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Updated: 13 जनवरी, 2017 03:37 PM
अशोक उपाध्याय
अशोक उपाध्याय
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अगर भारत में किसी के कैलेंडर की चर्चा सबसे ज्यादा होती थी तो वो थी विजय माल्या के किंगफिशर कैलेंडर की. वो आज करीब 9000 करोड़ रुपये का कर्ज बिना चुकाए ही देश से पलायन कर चुके हैं पर अभी भी उनका कैलेंडर इतिहास नहीं हुआ है. अभी भी वो इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं. पर इस बार ये उतनी चर्चा का विषय नहीं रहा.

2017 में विजय माल्या की जगह मीडिया में एक दूसरा केलेंडर छा गया है. इस बार खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग के 2017 के कैलेंडर में कुछ ऐसा दिखा की बवाल मच गया. इसके कैलेंडर में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की तस्वीर रहती थी जो चरखा चलाते हुए दिखाई पड़ते थे, लेकिन इस बार चरखे पर प्रधान मंत्री मोदी की तस्वीर दिखाई पड़ रही है. पर समझ में नहीं आ रहा है की हंगामा है क्यों बरपा अगर गांधी का चरखा मोदी के हाथ में आ गया है?

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खादी ग्रोमोद्योग 2017 के केलेंडर में बापू की जगह मोदी जी ने ले ली

महात्मा गांधी लगभग 100 वर्षों से चरखा कात रहे हैं. हो सकता है बापू इतने दिनों से चरखा चलाते-चलाते थक गए होंगे और हमारे प्रधान सेवक को उनपर थोड़ी दया आ गई होगी. प्रधान सेवक जी का ये कदम बापू को थोड़ा विराम देने के लिए लिया गया हो. अरे भाई दोनों एक ही प्रान्त के हैं. इतनी सहानुभूति तो होनी ही चाहिए. पर आलोचकों को कौन समझाए, अगर बापू को विराम दिया तो बोलेंगे क्यों विराम दिया और अगर न देते तो हो सकता था बोलते की इस व्यक्ति का ह्रदय पत्थर का है. लगता है की  हर तरह से प्रधान सेवक का मानसिक उत्पीडन करना ही आलोचकों का एकमात्र लक्ष्य रह गया हो.

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यह भी हो सकता है कि अर्ध नग्न फकीर की जगह कपडे वाले फकीर ने ये सोचकर ली हो कि समाज से नग्नता खत्म की जाए. आखिर नग्नता हमारी संस्कृति के भी तो खिलाफ है. और खादी  हमारी संस्कृति की प्रतीक है. वैसे भी समाज में नग्नता बढ़ती जा रही है. और भाजपा तो हमेशा से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को बढ़ावा देती रही है. प्रधान सेवक के इस कदम के पीछे खादी को अंतरराष्ट्रीय ब्रांड बनाना भी मकसद हो सकता है. योग को उन्होंने न केवल अंतरराष्ट्रीय ब्रांड बनवा दिया बल्कि इसकी संयुक्त राष्ट्र संघ से मान्यता भी दिलवा दी है. चूंकि हम भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि, जो कि सपेरों एवं गरीबों का देश की है- बदलना चाहते हैं तो पुराने युग के बापू इसके ब्रांड अम्बेसडर कैसे हो सकते हैं? हो सकता है इसीलिए राष्ट्रीय फकीर को हटा के अंतराष्ट्रीय फकीर ने ये जिम्मदारी अपने कन्धों पर ले ली है. इस कदम की भर्त्सना नहीं बल्कि सराहना होनी चाहिए.  

मार्केटिंग के इस युग में बापू खादी को बेच नहीं पा रहे थे. इसको एक नए ब्रांड एंबेसडर की सख्त जरुरत थी. इसके लिए आधुनिक विचारों एवं परिधान वाले नरेंद्र मोदी से योग्य ब्रांड एंबेसडर कोई हो ही नहीं सकता था. बापू हस्त निर्मित लंगोट के अलावा कुछ भी नहीं पहनते थे. पर आज के अंतरराष्ट्रीय फकीर जरुरत के अनुसार अपना परिधान बदल लेते हैं. यानी की जैसा देश वैसा भेष. जहां जरुरत हो खादी की वहां पर खादी एवं जहां जरुरत हो ब्रांडेड सूट बूट की वहां ब्रांडेड सूट बूट. और तो और समय की नजाकत समझते हुए वो कस्टम मेड परिधान भी अपना लेते हैं. आज खादी के लिए आक्रामक मार्केटिंग की जरुरत हैं. और वो केवल और केवल हमारे नरेंद्र मोदी ही कर सकते हैं.

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अगर खादी का प्रचार प्रसार होगा तो लाखों-करोड़ों लोगों को रोजगार मिलेगा. अब इन आलोचकों को कौन समझाए कि आपकी इन अवांछित आलोचनाओं से लोगों को मिलने वाली प्रस्तावित रोजी-रोटी भी छीनी जा सकती है. मतलब कि अगर प्रधान सेवक लोगों को रोजगार दिलाने के लिए कार्य करें तो आप ये क्यों कर रहें हैं. और अगर ना करें तो क्यों नहीं किया. अब ऐसे आलोचक रहें तो देश कैसे बदलेगा.

पर हमारे प्रधान सेवक एवं आलोचक अपने अपने प्रयास में तल्लीनता से जुड़े हुए हैं. दोनों में से कोई एक दूसरे की सुनाने को तैयार नहीं है. यानि की दोनों के दोनों ऐसे हैं कि मानते ही नहीं. एक देश बदलने के लिए कृत्यसंकल्प है तो दूसरा उसके हर प्रयास में अड़ंगा लगाने के लिए.

लेखक

अशोक उपाध्याय अशोक उपाध्याय @ashok.upadhyay.12

लेखक इंडिया टुडे चैनल में एडिटर हैं.

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