कुछ समय पहले शाम की चाय के वक्त टीवी पर एक कार्यक्रम देख रही थी. ब्रेक के दौरान अचानक से एक सीरियल का विज्ञापन दिखाया गया, जिसने शाम के वक्त का चैन और चाय के घूंट क मिठास एकदम से छीन ली. शांत से माहौल में जैसे डर ने दस्तक दी हो. वो एक नए सीरियल 'कयामत की रात' का विज्ञापन था, जिसमें कटा हाथ, कटा धड़ और कटा हुआ सर दिखाया जा रहा था. और ये सब एक तांत्रिक के थे, जिसकी शक्ल बेहद डरावनी और घिनौनी दिखाई दे रही थी. सीरियल का प्रोमो होश उड़ाने वाला था. लेकिन हम जैसे वयस्क और समझदार दर्शकों ने इस सीरियल के प्रोमो को देखकर ये तो निश्चित तौर पर समझ लिया था कि ये इस दौर का बेहद डरावना हॉरर शो साबित होगा.
इससे पहले कि इस प्रोमो पर कुछ प्रतिक्रिया दे पाती अचानक निगाह मेरे बेटे और मेरी सास पर पड़ी. दोनों ने वो प्रोमो देखा और अजीब से भाव उनके चेहरे पर दिखाई दिए, मानो किसी ने मिठास में कड़वाहट घोल दी हो. बेटा तो उसे देखकर फिर अपने खेल में मस्त हो गया, लेकिन मेरी सास का कहना था कि 'कितना अजीब है ये. ये लोग डराना चाहते हैं, लेकिन इस समय पर क्यों?, बच्चे डर जाएंगे.'
डर जो घर कर गया
उनकी बात गलत नहीं थी क्योंकि जब डर बड़ों को लग सकता है तो बच्चों के मन पर इसका कितना असर होगा ये समझना जरा भी मुश्किल नहीं. रात को हर कोई सो गया लेकिन मेरे बेटे को नींद नहीं आई, मैंने जब भी उसे देखा उसकी आंखों खुली ही थीं. वो रात भर सो नहीं पाया था, कारण...डर. सुबह सास ने भी शिकायत की कि उन्हें रात को अजीब अजीब सपने आए, और वो बेचैन रहीं. जब-जब मेरा बेटा उस सीरियल का विज्ञापन देखता है, वो रात को सो नहीं पाता. और हमें ये पहले से तो पता नहीं होता कि कब वो डरावना विज्ञापन आने वाला है,...
कुछ समय पहले शाम की चाय के वक्त टीवी पर एक कार्यक्रम देख रही थी. ब्रेक के दौरान अचानक से एक सीरियल का विज्ञापन दिखाया गया, जिसने शाम के वक्त का चैन और चाय के घूंट क मिठास एकदम से छीन ली. शांत से माहौल में जैसे डर ने दस्तक दी हो. वो एक नए सीरियल 'कयामत की रात' का विज्ञापन था, जिसमें कटा हाथ, कटा धड़ और कटा हुआ सर दिखाया जा रहा था. और ये सब एक तांत्रिक के थे, जिसकी शक्ल बेहद डरावनी और घिनौनी दिखाई दे रही थी. सीरियल का प्रोमो होश उड़ाने वाला था. लेकिन हम जैसे वयस्क और समझदार दर्शकों ने इस सीरियल के प्रोमो को देखकर ये तो निश्चित तौर पर समझ लिया था कि ये इस दौर का बेहद डरावना हॉरर शो साबित होगा.
इससे पहले कि इस प्रोमो पर कुछ प्रतिक्रिया दे पाती अचानक निगाह मेरे बेटे और मेरी सास पर पड़ी. दोनों ने वो प्रोमो देखा और अजीब से भाव उनके चेहरे पर दिखाई दिए, मानो किसी ने मिठास में कड़वाहट घोल दी हो. बेटा तो उसे देखकर फिर अपने खेल में मस्त हो गया, लेकिन मेरी सास का कहना था कि 'कितना अजीब है ये. ये लोग डराना चाहते हैं, लेकिन इस समय पर क्यों?, बच्चे डर जाएंगे.'
डर जो घर कर गया
उनकी बात गलत नहीं थी क्योंकि जब डर बड़ों को लग सकता है तो बच्चों के मन पर इसका कितना असर होगा ये समझना जरा भी मुश्किल नहीं. रात को हर कोई सो गया लेकिन मेरे बेटे को नींद नहीं आई, मैंने जब भी उसे देखा उसकी आंखों खुली ही थीं. वो रात भर सो नहीं पाया था, कारण...डर. सुबह सास ने भी शिकायत की कि उन्हें रात को अजीब अजीब सपने आए, और वो बेचैन रहीं. जब-जब मेरा बेटा उस सीरियल का विज्ञापन देखता है, वो रात को सो नहीं पाता. और हमें ये पहले से तो पता नहीं होता कि कब वो डरावना विज्ञापन आने वाला है, जिससे हम टीवी बंद कर दें.
एकता कपूर के इस सीरियल की पहली कामयाबी तो मैं अपनी आंखों से देख रही थी. वो अपने दर्शकों को डराने में सफल हुईं. सिर्फ प्रोमो ने ही वो काम कर दिया जो अब तक उनकी तीन घंटे की डरावनी फिल्में किया करती थीं. लेकिन दुख तब हुआ जब इन दर्शकों में मैंने डरे हुए बच्चे और बुजुर्ग देखे.
सीरियल लोगों के इंटरटेनमेंट के लिए बनाए जाते हैं. और इससे भी सहमत हूं कि हॉरर सीरियल का भी अपना दर्शक वर्ग है जो इसे अपने इंटरटेनमेंट के लिए देखता है. लेकिन इससे वो लोग क्यों प्रभावित हों जो हॉरर देखना पसंद नहीं करते.
कंडोम के विज्ञापन दिन भर चलते थे तब कुछ ज्ञानी लोगों ने आपत्ति जताई. सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने एक एडवाइजरी जारी करके कहा कि टीवी चैनलों पर कंडोम के विज्ञापन सिर्फ रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक दिखाए जा सकते हैं. कुछ चैनल कई बार कंडोम का विज्ञापन चलाते हैं, जो बच्चों के लिए ठीक नहीं हैं. इनका प्रदर्शन बच्चों के लिए अनुचित हो सकता है.
मंत्रालय का कहना था कि टीवी चैनलों को केबल टेलीविजन नेटवर्क रूल, 1994 पर ध्यान देना चाहिए, जिसके नियम 7 (7) के तहत ऐसे विज्ञापन जिनसे बच्चों की सुरक्षा प्रभावित होती हो या उन पर गलत प्रभाव डालते हों, उन्हें ना चलाया जाए. अब कंडोम के विज्ञापन अगर बच्चों को प्रभावित कर सकते हैं तो जाहिर है ये डरावने सीरियल भी उनके दिमाग पर थोड़ा-बहुत असर तो करते ही होंगे.
टीवी पर भी सेंसर बोर्ड की जरूरत महसूस होती है
हम अपने बच्चों को टीवी देखने से नहीं रोक सकते, लेकिन हद तो तब हुई जब बच्चों की फिल्म के दौरान भी 'कयामत की रात' का प्रोमो डरा रहा था. यानी इस विज्ञापन को कब दिखाना है कब नहीं इसपर कोई ध्यान नहीं दिया गया. हालांकि एकता कपूर अपने फील्ड की मास्टर हैं, उनके पास इतने सारे लोगों की टीम है. ब्राडकास्टिंग में क्या कैसे करना है, क्या ज्यादा प्रभावशाली होगा, किसमें ज्यादा मुनाफा है और किसमें इंनवेस्ट करना है वो बहुत अच्छी तरह जानती हैं. लेकिन इतनी समझदार होते हए भी वो कैसे केबल टेलीविजन नेटवर्क रूल भूलकर बच्चों को दर-किनार कर सकती हैं.
डरावना दिखाने की भी एक सीमा होती है, आप सीरियल में दिखाएं जितना भी डर दिखाना है, लेकिन हर घंटे बार-बार वही डरावना प्रोमो दिखाने का मतलब सिर्फ खौफ ही पैदा करना है. कभी बच्चों के प्वाइंट ऑफ व्यू से सोचकर भी देखा होता. न सिर्फ प्रोमो दिन भर चला बल्कि इस डरावने सीरियल का समय भी शनिवार- रविवार 7 से 8 बजे है. वो समय जब बच्चे जगे होते हैं. 23 जून से ये सीरियल शुरू हो गया.
मुझे याद है 2016 में जब रुडयार्ड किपलिंग की कहानियों पर आधारित 'द जंगल बुक' फिल्म भारत में रिलीज हुई थी तो उसे सेंसर बोर्ड ने उसे /A सर्टिफिकेट दिया था, और कारण बताया गया था कि फिल्म बहुत डरावनी है, जो बच्चों को प्रभावित करेगी. लेकिन टीवी पर दिखाए जाने वाले विज्ञापन और सीरियल किसपर क्या असर डालते हैं उसके लिए कोई परेशान नहीं होता. अफसोस होता है कि टीवी पर ऐसी चीजों पर कोई सेंसर बोर्ड नहीं है.
'कयामत की रात' को अब तक का सबसे डरावना शो कहना गलत नहीं होगा
मुझे 90 का दशक अच्छी तरह से याद है. जी टीवी और सोनी टीवी का वो शुरुआती दौर था. उस वक्त 'जी हॉरर शो' और 'आहट' ही ऐसे शो थे जो बेहद डरावने थे. तब से अब तक बहुत से हॉरर सीरियल बने लेकिन कोई भी ऐसा नहीं है जिसके नाम जुबानी याद हों. लेकिन एक बात अच्छी ये थी कि ये हॉरर सीरियल कम से कम रात 10 बजे के बाद ही आया करते थे.
'कयामत की रात' आज के जमाने का हॉरर थ्रिलर है जिसमें टेक्नोलॉजी का भरपूर इस्तेमाल किया गया है. इसमें डराने वाली सभी बातें हैं- शैतान, काला जादू, तंत्र और तांत्रिक सब कुछ है. तांत्रिक भी ऐसा कि किसी भूत की जरूरत ही नहीं. जब-जब इसका चेहरा दिखाया जाता है तब तब माथे की लकीरों पर बल पड़ जाते हैं.
हालांकि एकता कपूर के इस सीरियल में काफी मेहनत की गई है. डायरेक्शन और कैमरा वर्क बेहद शानदार है क्योंकि वो अपने काम में सफल होता है, डरावना दिखाई दे रहा है. कोशिश पूरी की गई है कि हर शॉट में डर दिखे, हर शॉट क्रिएटिव दिखे. मेकअप पर भी काफी ध्यान दिया गया है. हॉरर पसंद करने वालों के लिए ये सीरियल वास्तव में एक मास्टरपीस है. हालांकि अभी सिर्फ दो ही कड़ियां प्रसारित हुई हैं, लेकिन इन्हें देखकर लगता है कि ये सीरियल काफी आगे तक जाएगा. ऐसे ही एकता कपूर टीआरपी की रेस में सबसे आगे नहीं रहतीं.
सीरियल अच्छा है लेकिन फिर भी मैं इससे खुश नहीं. मैं ये सीरियल 7 बजे अपने घर के टीवी पर नहीं देख सकती, क्योंकि मेरे बच्चे डरते हैं. मैंने ये सीरियल हॉटस्स्टार पर अपने मोबाइल पर देखा और यही परिवार में रहने वालों के लिए सबसे खराब बात है. एक पेरेंट के हिसाब से मेरे लिए तो ये सीरियल फ्लॉप है.
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