फर्ज कीजिए कहानी को दो से ढाई घंटे की फिल्म के रूप में ढाला जाता, तो यक़ीनन एक तेज तर्रार थ्रिलर बनती. चूंकि मेकर्स ने ओटीटी प्लेटफार्म पर वेब सीरीज का रूट लिया, थ्रिलर की स्पीड धीमी पड़नी ही थी. रन टाइम की आजादी जो रहती है. यदि एडिटिंग पर थोड़ी मेहनत कर ली जाती तो निश्चित ही स्क्रीनप्ले कस जाता और जब स्क्रीनप्ले चुस्त होता तो दीगर कमियां भी दूर हो जाती. चूंकि वही राज और डीके टीम है जिन्होंने द फॅमिली मैन बनाई थी, फ्लेवर कमोबेश वही है. टाइप भी वही है. कुल 8 एपिसोड्स हैं, हर एपिसोड तक़रीबन एक घंटे का है और सीजन इन वेटिंग के लिए कुछ हिंट्स भी छोड़ जाती है.
यथा नामे तथा गुणे ही हैं चैप्टर्स यानी एपिसोड्स के टाइटल- आर्टिस्ट, सोशल सर्विस, सीसिफार्ट, धन रक्षक, सेकंड ओल्डेस्ट प्रोफेशन, कैट एंड माउस, सुपर नोट, क्रैश एंड बर्न. एक ख़ास बात और है कि इस वेब सीरीज से दो अलग अलग इंडस्ट्रीज के शानदार एक्टर अपना ओटीटी डेब्यू कर रहे हैं- बॉलीवुड के शाहिद कपूर (सनी) और साउथ के सुपर स्टार विजय सेतुपति (माइकल). इनके साथ अमोल पालेकर (नानू), के के मेनन (मंसूर), राशि खन्ना (मेघा), रेजिना कैसांड्रा (रेखा) और जाकिर हुसैन भी हैं. कहानी बताने से परहेज रखते हुए सिर्फ इतना भर बता दें कि नकली नोट के गोरखधंधे की इस रोमांच भरी एक्शन पैक आपराधिक कहानी में बगैर किसी ग्लोरिफिकेशन के अपराध को जस्ट अपराध की तरह ही दिखाया गया है. हर किरदार जमीनी है, कोई सुपर मैन टाइप नहीं है. पूरी सीरीज में एक भी घटनाक्रम ऐसा नहीं हैं जो किंचित भी अविश्वसनीय लगे.
ट्विस्ट्स तो है ही नहीं और कहीं न कहीं पहले ही हिंट मिलता रहता है कि क्या होने वाला है. मेकर्स का यही अंदाज काबिले तारीफ है कि नामी गिरामी एक्टरों के होने के कम्पल्शन में शो को सिनेमाई नहीं होने दिया है. सीरीज का ख़ास अट्रैक्शन हैं...
फर्ज कीजिए कहानी को दो से ढाई घंटे की फिल्म के रूप में ढाला जाता, तो यक़ीनन एक तेज तर्रार थ्रिलर बनती. चूंकि मेकर्स ने ओटीटी प्लेटफार्म पर वेब सीरीज का रूट लिया, थ्रिलर की स्पीड धीमी पड़नी ही थी. रन टाइम की आजादी जो रहती है. यदि एडिटिंग पर थोड़ी मेहनत कर ली जाती तो निश्चित ही स्क्रीनप्ले कस जाता और जब स्क्रीनप्ले चुस्त होता तो दीगर कमियां भी दूर हो जाती. चूंकि वही राज और डीके टीम है जिन्होंने द फॅमिली मैन बनाई थी, फ्लेवर कमोबेश वही है. टाइप भी वही है. कुल 8 एपिसोड्स हैं, हर एपिसोड तक़रीबन एक घंटे का है और सीजन इन वेटिंग के लिए कुछ हिंट्स भी छोड़ जाती है.
यथा नामे तथा गुणे ही हैं चैप्टर्स यानी एपिसोड्स के टाइटल- आर्टिस्ट, सोशल सर्विस, सीसिफार्ट, धन रक्षक, सेकंड ओल्डेस्ट प्रोफेशन, कैट एंड माउस, सुपर नोट, क्रैश एंड बर्न. एक ख़ास बात और है कि इस वेब सीरीज से दो अलग अलग इंडस्ट्रीज के शानदार एक्टर अपना ओटीटी डेब्यू कर रहे हैं- बॉलीवुड के शाहिद कपूर (सनी) और साउथ के सुपर स्टार विजय सेतुपति (माइकल). इनके साथ अमोल पालेकर (नानू), के के मेनन (मंसूर), राशि खन्ना (मेघा), रेजिना कैसांड्रा (रेखा) और जाकिर हुसैन भी हैं. कहानी बताने से परहेज रखते हुए सिर्फ इतना भर बता दें कि नकली नोट के गोरखधंधे की इस रोमांच भरी एक्शन पैक आपराधिक कहानी में बगैर किसी ग्लोरिफिकेशन के अपराध को जस्ट अपराध की तरह ही दिखाया गया है. हर किरदार जमीनी है, कोई सुपर मैन टाइप नहीं है. पूरी सीरीज में एक भी घटनाक्रम ऐसा नहीं हैं जो किंचित भी अविश्वसनीय लगे.
ट्विस्ट्स तो है ही नहीं और कहीं न कहीं पहले ही हिंट मिलता रहता है कि क्या होने वाला है. मेकर्स का यही अंदाज काबिले तारीफ है कि नामी गिरामी एक्टरों के होने के कम्पल्शन में शो को सिनेमाई नहीं होने दिया है. सीरीज का ख़ास अट्रैक्शन हैं शानदार डायलॉग्स जो जिंदगी की अलग अलग सिचुएशन पर सटीक बैठते हैं. यथोचित चुटीले भी हैं. हर किसी ने जब भी बोला है जो भी बोला है, डिलीवरी और फ्लो एकदम नेचुरल हैं मानो जीवन की कटु सच्चाई बयां कर रहे हों. जैसे, ''कोई हमेशा जरुरी नहीं होता जिंदगी में, या तो जरूरतें बदल जाती है या फिर लोग बदल जाते हैं'', ''अमीर लोग ने सिस्टम बनाया है जिसमे जिंदगी भर गरीब ब्याज चुकायेगा और अमीर ब्याज खायेगा'', ''जो लोग कहते हैं कि पैसा खुशियां नहीं खरीद सकता, या तो वे खुद कंगाल होते हैं या वो तुम्हें अमीर होता नहीं देख सकते'', ''सब के सब अंदर से चोर हैं, सिर्फ चांस का वेट करता है''.
एकाध जगह दंश सरीखे भी हैं संवाद जैसे, ''अपुन मिडिल क्लास नहीं मिडिल फिंगर क्लास हैं''. हां, ओटीटी लैंग्वेज भी खूब है लेकिन मेकर्स ने नेताजी के मुख से चेतावनी भी दे दी है कि 'हिंदी में गाली के अलावा और भी शब्द हैं; सीख लीजिये, जय हिंद'. बात करें एक्टिंग की तो शाहिद कपूर अनिरुद्ध हैं और विजय सेतुपति उत्कृष्ट हैं. शाहिद तो हैं ही 'अच्छे दिल वाला बुरा आदमी' सरीखे किरदारों का माहिर एक्टर और अपनी पहली ओटीटी सीरीज में ही वे टॉप फॉर्म में नजर आते हैं. विजय सेतुपति की तो क्या बात करें? उनके लेवल को को कोई छू भी नहीं सकता. अन्य सभी ने, जिनको जितना स्क्रीन टाइम मिला है, अपना उम्दा देने की कोशिश की है. स्पेशल मेंशन के काबिल हैं दो एक्टर्स; एक तो भुवन अरोड़ा फिरोज के किरदार में. उसे कॉमिक टाइमिंग और हाजिर जवाबी को दिखाने का भरपूर मौका दिया गया है और उसने कमाल कर दिया है. दूसरी एक विदेशी एक्ट्रेस हैं, पता नहीं कौन हैं, स्क्रीन टाइम भी बहुत कम मिला है उसे. किसी रशियन शिप के कप्तान और आर्टिस्ट विथ फिरोज के मध्य दुभाषिये के रोल को बेबाकी से गजब निभाया है उसने.
फिल्में और अब वेब सीरीज रचने वाले भी मानकर चलते हैं कि नेता भ्रष्ट ही होते हैं, थोड़ी ज्यादती है. जाकिर हुसैन ने एक ऐसा ही टाइप्ड कॉमिक किरदार निभाया है, ठीक काम किया है. गाली बोलते बोलते अचानक उनके मुख से "निष्कासित" सरीखा भारी भरकम हिंदी शब्द का निकलना हास्य को कंट्रीब्यूट करता हैं. कुल मिलाकर हर किरदार की खास अहमियत है और इसलिए इसमें हरेक एक्टर अपने काम के लिए चर्चित होगा ही. कैमरा का काम बेहद सराहनीय है. एडिटिंग थोड़ी और बेहतर हो सकती थी. फिर भी दोनों डिपार्टमेंट ने एक अनोखे तरीके से वेब सीरीज में लालच, शोहरत और ताकत को दिखाया है. कहानी से लेकर एक्टिंग और डायलॉगबाजी तक 'फर्जी' एक फ्रेश और बेहद दिलचस्प क्राइम-थ्रिलर है. संतुलित कॉमेडी पुट भी है, खासकर विजय सेतुपति की जब जब एंट्री होती है, हास्य बिखर ही आता है जैसे एंटी काउंटरफीटिंग करेंसी टास्क फोर्स के 'CCFART' नामकरण पर. सीरीज में खासियत ज्यादा है और खामियां कम, इसलिए देखना तो बनता है.
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