अपनी किताब सनराइज ओवर अयोध्या : नेशनहुड इन आवर टाइम्स में हिंदुत्व की तुलना आईएसआईएस और बोको हराम जैसे कुख्यात आतंकवादी समूहों के जिहादी इस्लाम से करने वाले कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद आलोचकों के निशाने पर हैं. कहा जा रहा है कि किताब में ऐसा बहुत कुछ है जो न केवल देश की अखंडता और एकता को प्रभावित करने वाला है. बल्कि जिससे देश में दंगों की भी नौबत आ सकती है. मांग की जा रही थी कि पूर्व केंद्रीय मंत्री की विवादास्पद किताब के प्रकाशन, प्रसार और बिक्री को रोकने के निर्देश जल्द से जल्द दिए जाएं. क्योंकि किताब ने एक वर्ग को आहत किया है इसलिए किताब का कोर्ट की दहलीज पर जाना लाजमी था. किताब से संबंधित एक याचिका को दिल्ली हाई कोर्ट में दायर किया गया जिसे कोर्ट ने खारिज किया गया है.
याचिकाकर्ता ने किताब के पेज नम्बर 113 को मुद्दा बनाया है और कहा है कि यह पूरे हिंदू समुदाय के लिए काफी उत्तेजक और मानहानिकारक बयान है साथ ही ये भी कहा गया था कि किताब से एक समाज के बारे में उनके मूल्यों और गुणों पर भी सवाल उठता है. याचिका में कहा गया है कि आईएसआईएस और बोको हराम के लिए हिंदू धर्म की तुलना को एक नकारात्मक विचारधारा के रूप में माना जा सकता है.
सुनवाई के दौरान जस्टिस यशवंत वर्मा की पीठ ने मौखिक रूप से स्पष्ट किया कि यह किताब का एक अंश मात्र है. जज ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि सभी को बताएं कि किताब बुरी तरह से लिखी गई है. उन्हें कुछ बेहतर पढ़ने के लिए कहें. अगर लोग इतने संवेदनशील हैं तो हम क्या कर सकते हैं. आखिर किसी ने उन्हें इसे पढ़ने के लिए नहीं कहा है.
वहीं सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने अदालत में कहा था कि भाषण और...
अपनी किताब सनराइज ओवर अयोध्या : नेशनहुड इन आवर टाइम्स में हिंदुत्व की तुलना आईएसआईएस और बोको हराम जैसे कुख्यात आतंकवादी समूहों के जिहादी इस्लाम से करने वाले कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद आलोचकों के निशाने पर हैं. कहा जा रहा है कि किताब में ऐसा बहुत कुछ है जो न केवल देश की अखंडता और एकता को प्रभावित करने वाला है. बल्कि जिससे देश में दंगों की भी नौबत आ सकती है. मांग की जा रही थी कि पूर्व केंद्रीय मंत्री की विवादास्पद किताब के प्रकाशन, प्रसार और बिक्री को रोकने के निर्देश जल्द से जल्द दिए जाएं. क्योंकि किताब ने एक वर्ग को आहत किया है इसलिए किताब का कोर्ट की दहलीज पर जाना लाजमी था. किताब से संबंधित एक याचिका को दिल्ली हाई कोर्ट में दायर किया गया जिसे कोर्ट ने खारिज किया गया है.
याचिकाकर्ता ने किताब के पेज नम्बर 113 को मुद्दा बनाया है और कहा है कि यह पूरे हिंदू समुदाय के लिए काफी उत्तेजक और मानहानिकारक बयान है साथ ही ये भी कहा गया था कि किताब से एक समाज के बारे में उनके मूल्यों और गुणों पर भी सवाल उठता है. याचिका में कहा गया है कि आईएसआईएस और बोको हराम के लिए हिंदू धर्म की तुलना को एक नकारात्मक विचारधारा के रूप में माना जा सकता है.
सुनवाई के दौरान जस्टिस यशवंत वर्मा की पीठ ने मौखिक रूप से स्पष्ट किया कि यह किताब का एक अंश मात्र है. जज ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि सभी को बताएं कि किताब बुरी तरह से लिखी गई है. उन्हें कुछ बेहतर पढ़ने के लिए कहें. अगर लोग इतने संवेदनशील हैं तो हम क्या कर सकते हैं. आखिर किसी ने उन्हें इसे पढ़ने के लिए नहीं कहा है.
वहीं सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने अदालत में कहा था कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गलत फायदा नहीं उठाया जाना चाहिए. किसी भी व्यक्ति को दूसरों की भावनाओं का उल्लंघन करने का हक़ नहीं है.
चूंकि किताब को बैन किये जाने की याचिका को खारिज कर कोर्ट ने किताब के लेखक और देश के पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद को बड़ी राहत दे दी है लेकिन अब भी बड़ा सवाल वही है कि आखिर लेखन के नाम पर दूसरों की धार्मिक भावनाओं को कब तक आहत किया जाता रहेगा. ये सवाल इसलिए भी जरूरी है क्योंकि ये कोई पहली बार नहीं है जब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हवाला देकर किसी किताब ने लोगों की धार्मिक भावना को आहत किया है.
तो इसी क्रम में आइये नजर डालें उन 10 किताबों पर जिन्होंने अपने दौर में न केवल विवादित कन्टेंट के कारण सुर्खियां बटोरीं बल्कि ऐसे भी मौके आए जब लेखकों को जान से मारने की धमकी मिली. यहां कुछ किताबें हैं जो भारत में प्रतिबंधित हैं.
द सैटेनिक वर्सेज बाय सलमान रुश्दी
पैगंबर का अपमान करने के आरोप में प्रतिबंधित. जिस पुस्तक ने 'फतवा' शब्द को साहित्यिक समुदाय में लोकप्रिय बनाया, रुश्दी का चौथा उपन्यास भारत और अन्य देशों में प्रतिबंधित है. मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा हिस्सा महसूस करता है कि इसमें पैगंबर मुहम्मद से जुडी कथाओं का अपमान किया गया है.
द हिंदू: एन अल्टरनेटिव हिस्ट्री बाय वेंडी डोनिगर
इस किताब को भारतीय देवताओं को विनोदी तरीके से चित्रित करने के लिए प्रतिबंधित किया गया है. 683 पेज की इस किताब को भारत में शिक्षा बचाओ आंदोलन समिति की आलोचना का सामना करना पड़ा. हालांकि किताब लिखते वक़्त लेखक द्वारा अच्छी तरह से शोध किया गया था लेकिन बावजूद इसके किताब भारत में बैन है.
राम स्वरूप द्वारा हदीस के माध्यम से इस्लाम को समझना
(इस्लाम के प्रति कठोर होने के कारण प्रतिबंधित) एक और किताब जिसे मुस्लिम समुदाय के कोप का सामना करना पड़ा. राम स्वरूप द्वारा लिखी गयी इस किताब ने राजनीतिक इस्लाम को मुद्दा बनाया. बाद में किताब को लेकर विरोध कुछ इस हद तक था कि प्रकाशक को गिरफ्तार किया गया.
औब्रे मेनन द्वारा लिखी गई रामायण
रामायण पर व्यंग्य करने के लिए प्रतिबंधित. एक व्यंग्यकार के रूप में ऑब्रे की प्रतिष्ठा भारतीय पौराणिक महाकाव्य के उनके हल्के-फुल्के और जोशीले संस्करण पर प्रतिबंध लगाने में मदद नहीं कर सकी. रूढ़िवादी हिंदुओं को औब्रे के सेंस ऑफ ह्यूमर से ठेस पहुंची और 1956 में इस पुस्तक पर प्रतिबंध लगा दिया गया.
जिन्ना: जसवंत सिंह द्वारा भारत-विभाजन-स्वतंत्रता
जिन्ना के प्रति सहानुभूति रखने के लिए प्रतिबंधित. जिन्ना को राष्ट्र तोड़ने वाले के रूप में चित्रित करने के बजाय एक उद्देश्यपूर्ण तरीके से चित्रित करने के लिए इस पुस्तक पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. इसने नेहरू और सरदार पटेल की नीतियों की आलोचना की थी.
सीमौर हेर्ष द्वारा लिखी गयी द प्राइस ऑफ पावर
मोरारजी देसाई को CIA का मुखबिर बताने के लिए किताब को प्रतिबंधित किया गया. भारतीय प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई पर इस पुस्तक ने कई गंभीर आरोप लगाए थे. किताब के अनुसार देसाई सीआईए को भारत के रहस्य बताते थे. किताब ने देसाई समर्थकों को आहत किया नतीजा ये निकला कि पुस्तक भारत में बैन हुई.
तस्लीमा नसरीन द्वारा लिखी लज्जा
मुस्लिम भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप में बैन. 1993 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस पर आधारित इस बांग्लादेशी लेखक की पुस्तक को भारत में प्रतिबंधित कर दिया गया था. कहा जाता है कि किताब का कंटेंट मुसलमानों के लिए अपमानजनक और इस्लाम का अपमान करने वाला था.
ऐन एरिया ऑफ डार्कनेस बाय वीएस नायपॉल
भारत को वस्तुनिष्ठ तरीके से चित्रित करने के लिए प्रतिबंधित. विवादास्पद लेखक वीएस नायपॉल द्वारा 60 के दशक में लिखी गयी इस किताब को सिर्फ इसलिए प्रतिबंधित किया गया क्योंकि किताब में सीधे तौर पर सामाजिक प्रतिबिंब और भारत की कठिनाइयों पर ध्यान केंद्रित किया गया था. किताब में बताया गया था कि वो कौन कौन सी जटिलाएं हैं जिनका सामना भारतीय जान मानस को करना पड़ता है.
अलेक्जेंडर कैंपबेल द्वारा द हार्ट ऑफ इंडिया
'प्रतिकूल' होने के लिए प्रतिबंधित. इस पुस्तक को भारत में आयात नहीं किया जा सकता है. 1958 में प्रकाशित, यह किताब भारत की आर्थिक नीतियों और राजनीति के बारे में थी. इसे "प्रतिकारक" होने के कारण प्रतिबंधित कर दिया गया था.
द पॉलिएस्टर प्रिंस: द राइज़ ऑफ़ धीरूभाई अंबानी बाय हामिश मैकडोनाल्ड
अंबानी परिवार की छवि खराब करने के आरोप में बैन. यह अनौपचारिक जीवनी छपी भी नहीं थी, और 1988 में प्रतिबंधित कर दी गई थी. अधिकांश प्रकाशकों ने इसे प्रकाशित करने से इनकार कर दिया क्योंकि अंबानी परिवार का दावा था कि इससे उनकी बदनामी की गयी है. अंबानी परिवार ने कानूनी कार्रवाई की धमकी दी थी.
उपरोक्त किताबों और भारत में उनके प्रतिबंध ने तमाम बातों पर पूर्ण विराम लगा दिया है. सलमान खुर्शीद कोई पहले व्यक्ति नहीं हैं जो भावना आहत करने के कारण लोगों की नजरों में आए हैं. पूर्व में भी ऐसा बहुत कुछ हो चुका है जब किसी किताब और उसके कंटेंट को लेकर लोग सड़कों पर आए थे.
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