क्या कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले के बाद कर्नाटक में हिजाब को लेकर जारी नाटक का पर्दा गिर चुका है? ये सवाल इसलिए क्योंकि बीते कुछ दिनों से हिजाब को लेकर कर्नाटक की फिजा में शांति थी. लेकिन ग़फ़लतें दूर होती हैं. फिर हुईं. कर्नाटक में बारहवीं की परीक्षा शुरू हुईं है और दो लड़कियों ने एग्जाम देने से इंकार कर दिया है. नियम, कानून, कोर्ट का वर्डिक्ट जाए चूल्हे भाड़ में. लड़कियों की जिद है कि जब वो एग्जाम दें तो हिजाब पहनकर दें. चूंकि लड़कियों को इजाजत नहीं मिली और वो अपनी मंशा में कामयाब नहीं हो पाईं, उन्होंने एग्जाम न देने का फैसला किया. आगे तमाम बातें होंगी लेकिन हमारे लिए ये जान लेना बहुत जरूरी है कि ये दोनों छात्राएं वही हैं जिन्होंने क्लास में हिजाब पहनने की अनुमति के लिए कोर्ट की शरण ली थी और याचिका दायर की थी.
मामले के तहत जो जानकारी आई है, अगर उस पर यकीन करें तो पता यही चलता है कि दोनों ही छात्राओं आलिया असदी और रेशम ने हिजाब पहनकर 12वीं का बोर्ड एग्जाम देने के लिए अनुमति मांगी थी. जब उनकी मांगों को स्कूल प्रशासन द्वारा अस्वीकार किया गया. तो, दोनों ने परीक्षा का बहिष्कार करते हुए एग्जाम सेंटर से बैरंग लौटने का फैसला किया.
बताया ये भी जा रहा है कि हिजाब ओढ़कर एग्जाम सेंटर पहुंची दोनों ही छात्राओं आलिया और रेशम ने करीब 45 मिनट तक प्रिंसिपल से अनुमति के लिए जिरह की. लेकिन, राज्य सरकार के प्रतिबंध को बरकरार रखने वाले कोर्ट के आदेश की वजह से अनुमति नहीं मिली. और, लकड़ियां बिना परीक्षा दिए ही लौट गईं.
लड़कियों की इस हरकत के बाद हिजाब को लेकर बहस फिर से तेज है. एक वर्ग भले ही इस बात को कह रहा हो कि इन दो लड़कियों के कारनामे ने हिजाब...
क्या कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले के बाद कर्नाटक में हिजाब को लेकर जारी नाटक का पर्दा गिर चुका है? ये सवाल इसलिए क्योंकि बीते कुछ दिनों से हिजाब को लेकर कर्नाटक की फिजा में शांति थी. लेकिन ग़फ़लतें दूर होती हैं. फिर हुईं. कर्नाटक में बारहवीं की परीक्षा शुरू हुईं है और दो लड़कियों ने एग्जाम देने से इंकार कर दिया है. नियम, कानून, कोर्ट का वर्डिक्ट जाए चूल्हे भाड़ में. लड़कियों की जिद है कि जब वो एग्जाम दें तो हिजाब पहनकर दें. चूंकि लड़कियों को इजाजत नहीं मिली और वो अपनी मंशा में कामयाब नहीं हो पाईं, उन्होंने एग्जाम न देने का फैसला किया. आगे तमाम बातें होंगी लेकिन हमारे लिए ये जान लेना बहुत जरूरी है कि ये दोनों छात्राएं वही हैं जिन्होंने क्लास में हिजाब पहनने की अनुमति के लिए कोर्ट की शरण ली थी और याचिका दायर की थी.
मामले के तहत जो जानकारी आई है, अगर उस पर यकीन करें तो पता यही चलता है कि दोनों ही छात्राओं आलिया असदी और रेशम ने हिजाब पहनकर 12वीं का बोर्ड एग्जाम देने के लिए अनुमति मांगी थी. जब उनकी मांगों को स्कूल प्रशासन द्वारा अस्वीकार किया गया. तो, दोनों ने परीक्षा का बहिष्कार करते हुए एग्जाम सेंटर से बैरंग लौटने का फैसला किया.
बताया ये भी जा रहा है कि हिजाब ओढ़कर एग्जाम सेंटर पहुंची दोनों ही छात्राओं आलिया और रेशम ने करीब 45 मिनट तक प्रिंसिपल से अनुमति के लिए जिरह की. लेकिन, राज्य सरकार के प्रतिबंध को बरकरार रखने वाले कोर्ट के आदेश की वजह से अनुमति नहीं मिली. और, लकड़ियां बिना परीक्षा दिए ही लौट गईं.
लड़कियों की इस हरकत के बाद हिजाब को लेकर बहस फिर से तेज है. एक वर्ग भले ही इस बात को कह रहा हो कि इन दो लड़कियों के कारनामे ने हिजाब के भूत को फिर जगाया है. जो आने वाले वक़्त में कर्नाटक जैसे राज्य में समुदाय विषय के सामने इस लिए भी चुनौतियां खड़ी करेगा क्योंकि राज्य में चुनाव हैं. भले ही ये तर्क आ रहे हों और तमाम तरह की चीजों का जिक्र हो रहा हो. मगर जिस तरह का ये मामला है. यदि इस पर गौर किया जाए तो कई दिलचस्प तथ्य हैं जो निकल कर बाहर आ रहे हैं.
कहने वाले कह सकते हैं कि, हिजाब का समर्थन कर इस तरह परीक्षा केंद्र से लौटकर भले ही लड़कियों ने हिजाब विवाद को वहीं ला दिया हो जहां से इसकी शुरुआत हुई थी लेकिन जो कुछ भी आलिया असदी और रेशम ने किया उससे समुदाय या उससे जुडी लड़कियों का कोई लेना देना ही नहीं है. अब मामला सिर्फ दो लड़कियों का है और पूरी लडाई ईगो और मजहब के घेरे में तब्दील होती दिखाई पड़ रही है.
उपरोक्त बातें हम मुस्लिम समुदाय के समर्थन में नहीं कह रहे हैं. जो हमें दिख रहा है वो उसमें सच सिर्फ इतना है कि भले ही कर्नाटक में मुस्लिम लड़कियों ने अभी बीते दिनों हिजाब को लेकर खूब जमकर हंगामा किया हो. लेकिन, अभी एग्जाम हैं और अधिकांश लड़कियां पढ़ाई-लिखाई में लगी हैं. उन्हें भले ही एक एजेंडे के तहत बरगलाया गया हो लेकिन उनकी अपनी ज़िन्दगी का मकसद हैं जिसके लिए उन्होंने जी जान एक की हुई है.
इन बातों के बाद जिक्र अगर आलिया और रेशम का हो तो मकसद तो इन दो लड़कियों का भी है लेकिन उस मकसद में कहीं दूर दूर तक पढ़ाई नहीं है. ये दोनों लड़कियां धर्म के साथ साथ राजनीति से प्रभावित हैं और अब जो कर रही हैं वो पूर्णतः पॉलिटिकल है और सस्ती लोकप्रियता और फैन फॉलोइंग पाने के लिए हैं. अगर इस बात को समझना हो तो हमें आलिया की ट्विटर टाइम लाइन का रुख करना चाहिए और इस बात को समझ लेना चाहिए कि पढ़ने लिखने की उम्र में राजनीति बुरी तरह से उनके दिमाग में घर कर गयी है.
हमें आलिया या उनकी हरकतों की आलोचना करनी ही नहीं है. यदि उनकी ट्विटर टाइम लाइन पर नजर डालें तो साफ़ है कि उन्होंने अपनी ज़िन्दगी पढ़ाई लिखे से इतर इस्लाम की सेवा और अल्लाह के बताए रास्ते के लिए समर्पित कर दी है. साथ ही शायद आलिया ये भी मान बैठी हैं कि उनकी इंकलाबी बातें और उग्र तेवर ही हैं जो मुस्लिम महिलाओं को उनका हक़ दिला सकते हैं.
आलिया ने अपनी ट्विटर टाइम टाइन पर एक वीडियो डाला है. वीडियो उनके उस प्रोग्राम का है जिसमें उन्होंने इसी 12 अप्रैल 2022 को शिरकत की थी. वीडियो में जैसी बातें आलिया कर रही हैं लग ही नहीं रहा कि ये स्कूल जाने वाली कोई छात्रा है.
वीडियो देखिये और खुद बताइये कि जिस लड़की का 10 दिन के बाद बोर्ड का पेपर हो वो क्या एजेंडे में लिप्त रहती? साफ़ था कि अगर आलिया पढ़ने लिखने वाली लड़की होती तो वो पढ़ाई करती. अच्छे से एग्जाम देती और समुदाय को आगे ले जाती. बात बहुत सीधी और साफ़ है भले ही आलिया ने हिजाब की आड़ लेकर पुनः तमाशा करने की कोशिश की हो और एग्जाम को आधार बनाया हो लेकिन उनका मकसद कभी एग्जाम देना था ही नहीं.
अंत में हम बस ये कहकर अपनी बातों को विराम देंगे कि आलिया जिस रास्ते पर चल रही हैं वो कहीं जाता नहीं है. जब तक उन्हें ये बात समझ में आएगी काफी देर हो जाएगी. कट्टरपंथ के लबादे में आलिया और रेशम सिर्फ और सिर्फ अपना नुक़सान कर रही हैं. दोनों को इस बात को समझना होगा कि क्रांति एक सीमा तक अच्छी लगती है और जिस तरह ये दोनों ही लड़कियां कॉमरेड हुई हैं कुछ बहुत ज्यादा करने का स्कोप इनके पास है नहीं.
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