2023 में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव का आगाज होने वाला है, और सभी पार्टियां अपनी-अपनी तैयारियों में जुट चुकी है. और इस बार के विधानसभा चुनाव में जेडीएस अपनी पुरानी चुनावी जमीन को तैयार करने में लगी है, यानी इस बार जेडीएस पुराने मैसूर क्षेत्र पर अपनी पकड़ मजबूत करने वाली है.
भूतकाल से वर्तमान तक जेडीएस
जेडीएस का जन्म 1999 में हुआ, जो जनता दल से 1999 में अलग हो गई और पार्टी में जान फूंकने का काम एचडी देवगौड़ा ने किया. 1999 में जेडीएस ने अपना पहला विधानसभा चुनाव लड़ा और 10.42 प्रतिशत के साथ 10 सीटों पर जीत का परचम लहराया. 2004 के विधानसभा चुनाव में जेडीएस ने अपने वोट शेयर को 10.42 प्रतिशत से बढ़ाया और 20.77 प्रतिशत वोट हासिल कर 58 सीटों पर जीत हासिल की, और इस बार किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिल सका और इसका सीधा लाभ जेडीएस को मिलता नजर आया और वह किंग मेकर की भूमिका में नजर आई.
2008 कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जेडीएस को चुनावी झटके का सामना करना पड़ा जब चुनाव परिणामों में जेडीएस को अपनी 30 सीट से हाथ धोना पड़ा. लेकिन पार्टी के वोट शेयर में ज्यादा उथल पुथल नजर नहीं आई क्योंकि पार्टी के वोट शेयर में 1.81 प्रतिशत की गिरावट ही देखने को मिली, लेकिन इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि 1.81 प्रतिशत वोटों की कमी ने 58 सीटों वाली पार्टी को 28 पर ला पटका .
2013 में जेडीएस ने 40 सीटों पर बहुमत के साथ 20.2 प्रतिशत वोट हासिल किये लेकिन इस पार्टी को किंग मेकर की भूमिका निभाने का मौका नहीं मिल सका क्योंकि इस बार के चुनाव में कांग्रेस प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफल साबित होती नजर आई. 2018 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में...
2023 में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव का आगाज होने वाला है, और सभी पार्टियां अपनी-अपनी तैयारियों में जुट चुकी है. और इस बार के विधानसभा चुनाव में जेडीएस अपनी पुरानी चुनावी जमीन को तैयार करने में लगी है, यानी इस बार जेडीएस पुराने मैसूर क्षेत्र पर अपनी पकड़ मजबूत करने वाली है.
भूतकाल से वर्तमान तक जेडीएस
जेडीएस का जन्म 1999 में हुआ, जो जनता दल से 1999 में अलग हो गई और पार्टी में जान फूंकने का काम एचडी देवगौड़ा ने किया. 1999 में जेडीएस ने अपना पहला विधानसभा चुनाव लड़ा और 10.42 प्रतिशत के साथ 10 सीटों पर जीत का परचम लहराया. 2004 के विधानसभा चुनाव में जेडीएस ने अपने वोट शेयर को 10.42 प्रतिशत से बढ़ाया और 20.77 प्रतिशत वोट हासिल कर 58 सीटों पर जीत हासिल की, और इस बार किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिल सका और इसका सीधा लाभ जेडीएस को मिलता नजर आया और वह किंग मेकर की भूमिका में नजर आई.
2008 कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जेडीएस को चुनावी झटके का सामना करना पड़ा जब चुनाव परिणामों में जेडीएस को अपनी 30 सीट से हाथ धोना पड़ा. लेकिन पार्टी के वोट शेयर में ज्यादा उथल पुथल नजर नहीं आई क्योंकि पार्टी के वोट शेयर में 1.81 प्रतिशत की गिरावट ही देखने को मिली, लेकिन इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि 1.81 प्रतिशत वोटों की कमी ने 58 सीटों वाली पार्टी को 28 पर ला पटका .
2013 में जेडीएस ने 40 सीटों पर बहुमत के साथ 20.2 प्रतिशत वोट हासिल किये लेकिन इस पार्टी को किंग मेकर की भूमिका निभाने का मौका नहीं मिल सका क्योंकि इस बार के चुनाव में कांग्रेस प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफल साबित होती नजर आई. 2018 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जेडीएस को 18.3 प्रतिशत के साथ 37 सीटों पर ही संतुष्ट होना पड़ा .
पुराने मैसूर क्षेत्र पर जेडीएस की नजर
2018 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जेडीएस ने 37 सीटें जीती. जीती सीटों में से 31 सीटें इसी क्षेत्र से आती हैं और यही कारण है कि जेडीएस की नजर इस इलाके पर है. वहीं इस इलाके में बीजेपी को 89 सीटों में से 22 और कांग्रेस को 32 सीटों पर संतोष करना पड़ा. इस क्षेत्र में वोक्कालिगा समाज काफी बड़ी संख्या में रहता है, और यह समाज लगातार आरक्षण की मांग भी कर रहा है, और इसी के चलते वोक्कालिगा समाज बीजेपी से नाराज है और इसी का फायदा जेडीएस उठाना चाहती है .
पंचरत्न यात्रा का लाभ
2023 कर्नाटक विधानसभा चुनाव में माहौल बनाने के लिए पंचरत्न यात्रा का सहारा ले रही है. और जनता के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में जुटी है. इस यात्रा के बहाने जेडीएस पुराने मैसूर के साथ-साथ दक्षिणी कर्नाटक के वोक्कालिगा समाज के वोट बैंक पर है. जो कांग्रेस का परंपरागत वोट माना जाता है लेकिन जेडीएस से भी परहेज नहीं करता नजर आता है.
जेडीएस और बीआरएस का मिलन
2023 के विधानसभा चुनाव में जेडीएस और तेलंगाना में सत्ता पर काबीज बीआरएस एक साथ मिलकर चुनाव में उतरने जा रही है, और बीआरएस के प्रमुख और तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर ने साफ किया कि, बीआरएस पूरी तरीके से जेडीएस के साथ है और साथ मिलकर सरकार बनाने का भी दावा किया, लेकिन अभी तक दोनों पार्टियों ने सीटों का बंटवारा नहीं किया है .
केसीआर किस के दम पर चुनाव मैदान में उतर रहे हैं ?
केसीआर की नजर कर्नाटक के 7 जिलों पर टिकी है, और यह 7 जिले पहले हैदराबाद रियासत के भीतर आते थे. और ये जिले पहले हैदराबाद -कर्नाटक क्षेत्र के नाम से जाने जाते थे इनमें बीदर, विजयनगर, कलबुर्गी, यादगिरी, रायचूर, बेल्लारी, और कोप्पल शामिल है. केसीआर का मानना है कि इस क्षेत्र में लगातार बीजेपी और कांग्रेस का जनाधार कम हो रहा है और इसका फायदा केसीआर उठाना चाहते है.
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