पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) ने एक बड़ा ही अजीब फैसला शेयर किया है. चरणजीत सिंह चन्नी ने 26 जनवरी 2021 की दिल्ली हिंसा (26 January Delhi violence) के आरोपियों को दो-दो लाख रुपये का मुआवजा (Compensation for Violence) देने का ऐलान किया है. पंजाब के मुख्यमंत्री के ट्वीट के मुताबिक, दिल्ली में ट्रैक्टर रैली के दौरान गिरफ्तार किये गये सूबे के 83 लोगों को मुआवजे की रकम दी जाएगी.
चरणजीत सिंह चन्नी का कहना है कि पंजाब सरकार कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के सपोर्ट के अपने स्टैंड पर कायम है और ये कदम भी उसी का हिस्सा है. चरणजीत सिंह चन्नी के पूर्ववर्ती कैप्टन अमरिंदर सिंह को लेकर भी माना जाता रहा है कि वो किसान आंदोलन को बढ़ावा देते रहे हैं - बल्कि, अपने राज्य में कानून व्यवस्था की मुसीबत से बचने के लिए ही कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने किसानों को पंजाब की सड़कों से हटाकर एक खास रणनीति के तहत दिल्ली बॉर्डर पर पहुंचा दिया था.
कृषि कानूनों का विरोध या किसान आंदोलन का समर्थन अलग चीज है, लेकिन आंदोलन के नाम पर देश की राजधानी में हिंसा और आगजनी करते हुए कानून तोड़ने वालों को सरकारी खजाने से मुआवजा देना तो बड़ा ही अजीब लगता है.
अगर चन्नी सरकार दिल्ली हिंसा में गिरफ्तार पंजाब के लोगों के लिए कानूनी मदद की बात करती तो भी चल जाता, लेकिन ये तो एक राज्य के मुख्यमंत्री का किसी दूसरे राज्य में अपराध को बढ़ावा देने की कोशिश और उसे स्पॉन्सर करने जैसा कदम है.
पंजाब की कांग्रेस सरकार का ये फैसला तो ऐसा लग रहा है जैसे वो हिंसा और उपद्रव को बढ़ावा दे रही हो - सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए, जिस लाल किले की प्राचीर से देश के प्रधानमंत्री तिरंगा फहराते हैं वहां निशान साहिब का झंडा फहराने के लिए लिए कानून...
पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) ने एक बड़ा ही अजीब फैसला शेयर किया है. चरणजीत सिंह चन्नी ने 26 जनवरी 2021 की दिल्ली हिंसा (26 January Delhi violence) के आरोपियों को दो-दो लाख रुपये का मुआवजा (Compensation for Violence) देने का ऐलान किया है. पंजाब के मुख्यमंत्री के ट्वीट के मुताबिक, दिल्ली में ट्रैक्टर रैली के दौरान गिरफ्तार किये गये सूबे के 83 लोगों को मुआवजे की रकम दी जाएगी.
चरणजीत सिंह चन्नी का कहना है कि पंजाब सरकार कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के सपोर्ट के अपने स्टैंड पर कायम है और ये कदम भी उसी का हिस्सा है. चरणजीत सिंह चन्नी के पूर्ववर्ती कैप्टन अमरिंदर सिंह को लेकर भी माना जाता रहा है कि वो किसान आंदोलन को बढ़ावा देते रहे हैं - बल्कि, अपने राज्य में कानून व्यवस्था की मुसीबत से बचने के लिए ही कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने किसानों को पंजाब की सड़कों से हटाकर एक खास रणनीति के तहत दिल्ली बॉर्डर पर पहुंचा दिया था.
कृषि कानूनों का विरोध या किसान आंदोलन का समर्थन अलग चीज है, लेकिन आंदोलन के नाम पर देश की राजधानी में हिंसा और आगजनी करते हुए कानून तोड़ने वालों को सरकारी खजाने से मुआवजा देना तो बड़ा ही अजीब लगता है.
अगर चन्नी सरकार दिल्ली हिंसा में गिरफ्तार पंजाब के लोगों के लिए कानूनी मदद की बात करती तो भी चल जाता, लेकिन ये तो एक राज्य के मुख्यमंत्री का किसी दूसरे राज्य में अपराध को बढ़ावा देने की कोशिश और उसे स्पॉन्सर करने जैसा कदम है.
पंजाब की कांग्रेस सरकार का ये फैसला तो ऐसा लग रहा है जैसे वो हिंसा और उपद्रव को बढ़ावा दे रही हो - सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए, जिस लाल किले की प्राचीर से देश के प्रधानमंत्री तिरंगा फहराते हैं वहां निशान साहिब का झंडा फहराने के लिए लिए कानून तोड़ने वाले को पुरस्कृत कर रही हो.
किसानों की ट्रैक्टर रैली में हिंसा याद है ना!
26 जनवरी 2021 को दिल्ली में जो उपद्रव हुआ पूरे देश ने लाइव देखा था. सबने देखा कि किस तरह किसानों की ट्रैक्टर रैली से निकल कर कुछ उपद्रवी देश की राजधानी की सड़कों पर हिंसा और आगजनी में शामिल थे - और किसान नेता भी सहम गये थे.
1. लाल किले पर निशान साहिब का झंडा फहराया: जिस दिन राजपथ पर बरसों से देश के तमाम राज्यों की झांकियां, करतब दिखाते लड़ाकू विमान, अत्याधुनिक हथियार और कदमताल से देशवासियों को मंत्रमुग्ध करती सैन्य टुकड़ियां देखने को मिलती रहीं, उसी दिन राजधानी दिल्ली कुछ उपद्रवी तत्वों के कारनामों की चश्मदीद भी बनी. कहीं प्रदर्शनकारियों के हाथों में तलवारें दिखीं तो कहीं बैरिकेडिंग तोड़ कर दिल्ली में घुस कर सड़क पर हिंसक तांडव करते कुछ लोग - और दीप सिद्धू नाम का एक शख्स तो तिरंगे की जगह लाल किला पहुंच कर निशान साहिब का झंडा ही फहराने लगा था.
2. योगेंद्र यादव को सफाई देते नहीं बन रही थी: दिल्ली हिंसा को लेकर बचाव की मुद्रा में आ चुके किसान नेता फौरन ही उपद्रवियों से दूरी बनाने लगे थे. ट्रैक्टर रैली के पूरी तरह शांतिपूर्ण होने का दावा करते न थकने वाले योगेंद्र यादव को सफाई देते नहीं बन रही थी - और बाकी किसान नेता भी हिंसा में शामिल लोगों के किसान आंदोलन से जुड़े होने से इंकार कर रहे थे. हालत तो ये हो गयी कि कई किसान नेताओं ने आंदोलन से अलग होने की घोषणा ही कर डाली.
3. आंदोलन से पीछे हटने लगे किसान नेता: हिंसा को लेकर राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के अध्यक्ष वीएम सिंह का कहना रहा, 'जो भी हुआ शर्मनाक हुआ... सही तरीके से काम नहीं हुआ... माहौल ऐसा बना कि आंदोलन अपने मुद्दे से भटक गया.'
वीएम सिंह ने तत्काल प्रभाव से आंदोलन से पीछे हटने का ऐलान कर दिया और उसके बाद एक और किसान नेता ठाकुर भानु प्रताप सिंह ने भी आंदोलन से अलग होने की घोषणा कर डाली. माना गया कि हिंसा के बाद पुलिस एक्शन के डर से भी किसान नेताओं ने ये कदम उठाया - तब तो राकेश टिकैत भी अंदर से हिल गये थे.
4. किसान आंदोलन में आया वो मोड़: हिंसा, आगजनी के बीच कई पुलिसकर्मी जख्मी हो गये और एक ट्रैक्टर चालक की मौत भी हो गयी - और जैसे ही पुलिस ने किसान नेताओं की कॉल रिकॉर्डिंग खंगालने के साथ ही नोटिस भेजने शुरू किये राकेश टिकैत तक सरेंडर का मन लिये. राकेश टिकैत की गिरफ्तारी के लिए पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी मौके पर पहुंच गये थे और लखनऊ के आला अफसरों तक को भी इत्तला कर दिया, लेकिन तभी बीजेपी के एक विधायक अपने लाव लश्कर के साथ किसानों के धरनास्थल पर पहुंचे और सब कुछ पूरी तरह पलट गया.
5. राकेश टिकैत के वे आंसू: जैसे ही राकेश टिकैत को बीजेपी विधायक के आने की सूचना मिली वो मंच पर चढ़ कर कहने लगे कि उनको गिरफ्तार करने के बाद बाकी किसानों की पिटाई की साजिश रची गयी है - और राकेश टिकैत की आंखों से निकले आंसुओं ने तो जैसे किसान आंदोलन का फिर से जिंदा ही कर दिया.
चन्नी सरकार ने कैसे लिया ये फैसला?
दिल्ली हिंसा के आरोपियों को मुआवजा देने का निर्णय चन्नी सरकार ने पंजाब विधानसभा कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर लिया है. विधानसभा के विशेष सत्र के दूसरे दिन की कार्यवाही के खत्म होने से ठीक पहले ये प्रस्ताव सदन में पेश किया गया था - और फिर मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने ट्विटर फैसले की जानकारी दी. असल में विधानसभा में सदस्यों के बीच हाथापाई की खबरों के बीच ये मामला सामने नहीं आ सका था.
चरणजीत सिंह चन्नी ने ट्विटर पर लिखा है, 'तीन काले कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन को अपनी सरकार का समर्थन दोहराते हुए... हमने फैसला किया है कि 26 जनवरी 2021 को राष्ट्रीय राजधानी में ट्रैक्टर रैली निकालने के लिए गिरफ्तार किये गये 83 किसानों को 2 लाख रुपये मुआवजा दिया जाएगा.'
विधानसभा कमेटी की जिस रिपोर्ट के आधार पर ये फैसला हुआ है, उसकी एक सदस्य विधायक सरबजीत कौर माणुके ने ही रिपोर्ट पर सवाल खड़ा कर दिया है. आम आदमी पार्टी की विधायक सरबजीत कौर का दावा है कि न तो उनको रिपोर्ट की कोई जानकारी है और न ही उनकी दस्तखत ही है. आप विधायक का आरोप है कि कांग्रेस विधायक और विधानसभा कमेटी के चेयरमैन कुलदीप सिंह वैद ने सदस्यों से विचार किये बगैर ही ये रिपोर्ट सदन में पेश कर दी.
पंजाब भाजपा महासचिव सुभाष शर्मा अब दिल्ली हिंसा को कांग्रेस प्रायोजित बताने लगे हैं, 'जिस लाल किले पर हिंसा की वजह से पूरा देश शर्मसार हो गया था. उस हिंसा के आरोपियों को 2 लाख रुपये की आर्थिक मदद देकर पंजाब के सीएम चरणजीत सिंह चन्नी ने साबित कर दिया है कि हिंसा की साजिश में कांग्रेस के नेता भी शामिल थे.'
बीजेपी नेता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से दिल्ली हिंसा के मामले में कांग्रेस नेताओं के शामिल होने को लेकर एनआईए से जांच कराने की मांग की है, ताकि मालूम हो सके कि कांग्रेस आंदोलन के जरिये हिंसा भड़काने की कोशिश तो नहीं कर रही है या फिर माहौल खराब करके राजनीतिक रोटियां तो नहीं सेंकी जा रही हैं?
ये कोई मुआवजा है या दंगा करने का मेहनताना?
चाहे ये कृषि कानूनों के विरोध की बात हो या फिर किसान आंदोलन के सपोर्ट की - पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी का तरीका बेहद खतरनाक है और ये घरेलू राजनीति का वो स्वरूप लगता है जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक मुल्कि अपने दुश्मन मुल्क के खिलाफ अख्तियार करता है.
चरणजीत सिंह चन्नी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह ही नहीं, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी काफी पीछे छोड़ दिया है जिनकी सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने वालों सूची चौराहे पर टांग देने के लिए आलोचना की जाती रही.
ये तो बड़ी ही अजीब स्थिति हो गयी है कि एक राज्य की सरकार आंदोलन करने वालों से जुर्माना वसूल रही हो, तो देश के ही एक अन्य राज्य की सरकार ठीक वैसा ही आंदोलन करने वालों को सपोर्ट कर रही हो - और बाकायदा घोषणा कर आर्थिक मुआवजा दे रही है.
पंजाब की चन्नी सरकार का ये फैसला कई तरह के सवालों को जन्म दे रहा है जिससे देश के भीतर ही बड़ी ही अजीब सी स्थिति पैदा हो सकती है!
1. ये तो अपराध को बढ़ावा देने जैसा है: सवाल है कि पंजाब की चन्नी सरकार का किसान आंदोलन के सपोर्ट ये तरीका देशहित में क्यों नहीं लगता - जब देश का कानून सभी पर और हर राज्य में बराबर लागू होता है, तो कोई एक राज्य सरकार किसी दूसरे राज्य में कानून तोड़ने वालों को रिवॉर्ड देकर क्या जताने की कोशिश कर रही है?
2. कानून सबके लिए बराबर होने का क्या मतलब रहेगा: फर्ज कीजिये दिल्ली की ट्रैक्टर रैली और हिंसा में शामिल कोई आरोपी पंजाब का है तो उसे दो लाख रुपये बतौर मेहनताना मिलेगा - और अगर कोई और यूपी, हरियाणा या मध्य प्रदेश से आता है तो उसके खिलाफ कुर्की होगी और उसकी सपंत्ति जब्त कर ली जाएगी.
3. कानून का राज या पार्टी पॉलिटिक्स: अब तो सवाल ये भी उठेगा कि विरोध प्रदर्शनों को लेकर अभिव्यक्ति की आजादी का दायरा कहां तक होगा और आंदोलनों से डील करने को लेकर कोई राष्ट्रीय पॉलिसी अपनायी जाएगी या फिर आगे से पार्टी पॉलिटिक्स चलेगी?
4. सपोर्ट है या शक के दायरे में धकेल दिया: किसान आंदोलन को लेकर शुरू से ही सवाल भी उठते रहे हैं. ऐसे विरोध अब तक महज राजनीतिक लगते थे, लेकिन चन्नी सरकार के कदम से तो लगता है जैसे आंदोलन कर रहे किसान शक के घेरे में आ गये हों - ये तो किसानों को सोशल मीडिया पर 'खालिस्तानी' कहने वालों का ही सपोर्ट कर रहा है.
5. सिद्धू-कन्हैया पर उठते सवाल भी पीछे छूट जाते हैं: चरणजीत सिंह चन्नी का ये कदम तो देश में अपराध और हिंसा को बढ़ावा देने वाला लगता है - ये तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होता रहा है जब कोई देश किसी दूसरे मुल्क में गड़बड़ी फैलाने की कोशिश करता है - क्या ये घरेलू स्तर पर आंतकवाद को बढ़ावा देने जैसा नहीं लगता?
ऐसा होने लगा तो कन्हैया कुमार और नवजोत सिंह सिद्धू की देश हित के खिलाफ भूमिका वाले सवाल भी छोटे पड़ जाएंगे?
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