2019 का आम चुनाव (Lok Sabha Elections) बीते अभी वक़्त ही कितना हुआ है. जैसे कल की ही बात हो. भाजपा (BJP) को पिक्चर से गायब और पीएम मोदी (PM Modi) को करारी शिकस्त देने के लिए कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने सभी पैंतरे आजमाए थे. राहुल ने चौकीदार को चोर कहा था. राफेल का मजाक उड़ाया, जनेऊ पहन हिंदू हुए, अपने को मुस्लिमों और मुस्लिम आयोजनों से दूर रखा. यानी अपनी तरफ से राहुल गांधी ने वो तमाम प्रयास किये, जिसके जरिये वो जनता को बता सकें कि पिछली गलतियों को नजरअंदाज करते हुए जनता को दोबारा कांग्रेस को मौका देना चाहिए. मगर होनी को कुछ और मंजूर था. चुनाव परिणाम आए और ये चौंकाने वाले थे. 2014 के मुकाबले 19 में भाजपा को प्रचंड बहुमत मिला और नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) दोबारा देश के प्रधानमंत्री (Prime Minister) बने. नरेंद्र मोदी का दोबारा प्रधानमंत्री बनना था, मुख्य विपक्ष की भूमिका अदा कर रहे राहुल गांधी की काबिलियत पर अंगुलियां उठीं और परिणामस्वरूप उन्हें पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा (Rahul Gandhi Resignation) देना पड़ा. राहुल के इस फैसले के बाद उनकी बड़ी मान मुनव्वल हुई लेकिन राहुल अपने फैसले पर अड़े रहे. सवाल हुआ कि इस विकट स्थिति में कांग्रेस (Congress) को कौन संभालेगा? तमाम कयासों पर विराम लगाते हुए सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) सामने आईं और पार्टी के अध्यक्ष का बोझ अपने कंधों पर लिया. बात बीते दिनों की है एक चिट्ठी (Letter War Congress) ने पूरी कांग्रेस पार्टी को हिलाकर रख दिया है. इस चिट्ठी को कांग्रेस पार्टी के 23 नेताओं ने लिखा है और इस खत के जरिये कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व पर सवाल खड़े किए गए थे. साथ ही ये भी कहा गया था कि पार्टी को एक ऐसा अध्यक्ष चाहिए जो पूर्ण रूप से पार्टी को वक़्त दे सके.
2019 का आम चुनाव (Lok Sabha Elections) बीते अभी वक़्त ही कितना हुआ है. जैसे कल की ही बात हो. भाजपा (BJP) को पिक्चर से गायब और पीएम मोदी (PM Modi) को करारी शिकस्त देने के लिए कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने सभी पैंतरे आजमाए थे. राहुल ने चौकीदार को चोर कहा था. राफेल का मजाक उड़ाया, जनेऊ पहन हिंदू हुए, अपने को मुस्लिमों और मुस्लिम आयोजनों से दूर रखा. यानी अपनी तरफ से राहुल गांधी ने वो तमाम प्रयास किये, जिसके जरिये वो जनता को बता सकें कि पिछली गलतियों को नजरअंदाज करते हुए जनता को दोबारा कांग्रेस को मौका देना चाहिए. मगर होनी को कुछ और मंजूर था. चुनाव परिणाम आए और ये चौंकाने वाले थे. 2014 के मुकाबले 19 में भाजपा को प्रचंड बहुमत मिला और नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) दोबारा देश के प्रधानमंत्री (Prime Minister) बने. नरेंद्र मोदी का दोबारा प्रधानमंत्री बनना था, मुख्य विपक्ष की भूमिका अदा कर रहे राहुल गांधी की काबिलियत पर अंगुलियां उठीं और परिणामस्वरूप उन्हें पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा (Rahul Gandhi Resignation) देना पड़ा. राहुल के इस फैसले के बाद उनकी बड़ी मान मुनव्वल हुई लेकिन राहुल अपने फैसले पर अड़े रहे. सवाल हुआ कि इस विकट स्थिति में कांग्रेस (Congress) को कौन संभालेगा? तमाम कयासों पर विराम लगाते हुए सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) सामने आईं और पार्टी के अध्यक्ष का बोझ अपने कंधों पर लिया. बात बीते दिनों की है एक चिट्ठी (Letter War Congress) ने पूरी कांग्रेस पार्टी को हिलाकर रख दिया है. इस चिट्ठी को कांग्रेस पार्टी के 23 नेताओं ने लिखा है और इस खत के जरिये कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व पर सवाल खड़े किए गए थे. साथ ही ये भी कहा गया था कि पार्टी को एक ऐसा अध्यक्ष चाहिए जो पूर्ण रूप से पार्टी को वक़्त दे सके.
इस चिट्ठी ने सोनिया गांधी को आहत किया और सोनिया ने अपने इस्तीफे की पेशकश की और कहा कि पार्टी अपना नया अध्यक्ष चुन सकती है. हालांकि तकरीबन7 घंटे तक चली CWC मीटिंग के बाद नतीजा यही निकला कि सोनिया ही पार्टी की अध्यक्ष रहेंगी.
अब सोचिए कि अगर सोनिया अपने फैसले पर टिकी रहती और इस्तीफा दे देतीं तो क्या होता? चूंकि 19 के चुनाव में हार का मुंह देखने के बाद राहुल गांधी पहले ही इस्तीफ़ा देकर हथियार डाल चुके हैं इसलिए पार्टी में वो कौन कौन से लोग होते जो अध्यक्षी की दावेदारी के लिए सामने आते.
आइये नजर डालें कुछ नामों पर और ये समझने का प्रयास करें कि आखिर कैसे ये लोग पार्टी में अध्यक्ष की कमान संभालने के लिए सर्वोत्तम विकल्प थे.
अहमद पटेल
अब चूंकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं और मार्गदर्शक मंडल में शुमार कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद राहुल गांधी की आंख की किरकिरी बन गए हैं और बात इतना सब करने के बावजूद पार्टी छोड़ने की आ गयी है ऐसे में पार्टी में अच्छे दिन किसी के आए हैं तो वो अहमद पटेल हैं. दिलचस्प बात ये भी है कि, एक ऐसे वक्त में जब पार्टी आंतरिक गतिरोध का सामना कर रही हो, पटेल लगातार यही प्रयास कर रहे हैं कि वो अपने को सोनिया गांधी और राहुल गांधी का विश्वासपात्र दिखा सकें.
पटेल में सबसे आगे निकलने की होड़ कितनी ज़बरदस्त है इसे हम बीते दिन हुई CWC बैठक और उस बैठक में उनके अंदाज से भी समझ सकते हैं. सीडब्ल्यूसी की बैठक में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल ने आनंद शर्मा पर पत्र लिखने का आरोप लगाया. साथ ही पटेल ने खेद व्यक्त किया कि आजाद, मुकुल वासनिक और आनंद शर्मा जैसे वरिष्ठ नेता उस पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले लोगों में शामिल थे.
इन बातों के अलावा बात अगर पटेल की पॉलिटिक्स पर पकड़ की हो तो पटेल का शुमार कांग्रेस के उन नेताओं में है जिन्हें 3 को 13 करने की कला बखूबी आती है. पूर्व में कई ऐसे मौके आ चुके हैं जिनमें पटेल ने बताया है कि उनके सौम्य चेहरे के पीछे एक शातिर रणनीतिकार है जिसके अंदर ये खूबी है कि वो अध्यक्ष बन कांग्रेस पार्टी की दशा और दिशा बदल सकता है.
प्रियंका गांधी
एक वर्ग वो है जो ये मानता है कि कांग्रेस में अध्यक्षी गांधी परिवार में रहेगी. ऐसे लोगों का कहना है कि कांग्रेस में अध्यक्ष का पद सोनिया गांधी से निकल कर या तो राहुल के पास आएगा और यदि राहुल मना करते हैं तो प्रियंका गांधी के पास जाएगा. तो अगर कांग्रेस पार्टी की अध्यक्षी प्रियंका गांधी कस पास आ जाती है तो इसमें कोई हर्ज नहीं है. बात प्रियंका गांधी की चली है तो हमारे लिए भी उत्तर प्रदेश का जिक्र करना ज़रूरी हो जाता है.
यूपी में सरकार भाजपा की है और पार्टी ने कमान योगी आदित्यनाथ को सौंपी है. चाहे वो नागरिकता संशोधन कानून हो या फिर गैंगस्टर विकास दुबे का कथित एनकाउंटर नौकरी के मुद्दे से लेकर कोरोना की अव्यवस्था तक तमाम अलग अलग मुद्दों तक योगी सरकार की आलोचना हुई है और इस आलोचना में सबसे आगे आगे नजर आ रही हैं प्रियंका गांधी.
उत्तर प्रदेश जैसी जगह जहां पिछली सरकार सपा और बसपा की थी वहां कांग्रेस का फ्रंट लाइन में रहना और सूबे के मुखिया की नाक में दम करना हमें प्रियंका गांधी की काबिलियत से अवगत कराता है.
साफ है कि अगर प्रियंका एक राज्य की जिम्मेदारी जब कुछ इस तरह निभा रही हैं तो अगर उन्हें पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दे तो उनके तेवर कुछ और ही होंगे. इसके अलावा जैसे राजस्थान में उन्होंने सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट का झगड़ा निपटाया उसने भी इस बात की तसदीख कर दी है कि प्रियंका में काबिलियत है और कांग्रेस को उन्हें मौका देना चाहिए.
अशोक गहलोत
भले ही राजस्थान में उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट से हुए गतिरोध के बाद अशोक गहलोत सुर्खियों में रहे हों और राज्य में नौबत सरकार गिरने की आ गयी हो मगर जिस तरह बीच भंवर में फंसी अपनी ख़ुद की कश्ती को अशोक गहलोत ने जिस सूझ बूझ से निकाला कहीं न कहीं इससे गृह मंत्री अमित शाह और पीएम मोदी भी सकते में पड़ गए होंगे.
ख़ुद सोचिए कि Rajasthan Political Crisis में गहलोत की जगह कोई और होता या फिर खुद सचिन पायलट ही होते तो क्या वो सिचुएशन मैनेज कर लेते? सीधा और सटीक जवाब है नहीं. राजस्थान में जिस शातिर अंदाज में अशोक गहलोत ने अपनी कुर्सी बचाई साफ हो गया कि ये सब केवल और केवल अनुभव के कारण ही हुआ. अशोक गहलोत का जैसा कांग्रेस में रुख है ये कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि वो एकमात्र ऐसे नेता हैं जो 'आपदा को अवसर में बदलना बखूबी जानते हैं.
वहीं बात अगर कांग्रेस पार्टी की हो तो जिस तरह पहले 2014 फिर 19 में जनता ने कांग्रेस को ख़ुदा हाफ़िज़ किया ये सिर्फ अशोक गहलोत है जो अपनी रणनीति से पार्टी को खोया हुआ सम्मान वापस दिला सकते हैं. इसलिए अब वो वक़्त आ गया है जब कांग्रेस को तमाम पुरानी बातों को दरकिनार कर अशोक गहलोत को मौका देना चाहिए और उन्हें बड़ी पिक्चर में लाना चाहिए.
शशि थरूर
वो तमाम लोग जो आज कांग्रेस की आलोचना करते हैं और उसे एक ही परिवार की पार्टी बताते हैं उनका मानना है कि जब जब बात ऑरा या पॉलिटिकल प्रेजेंस की आएगी तो वो शख्स जो राहुल/ प्रियंका गांधी की बराबरी कर सकता है वो सिर्फ और सिर्फ शशि थरूर हैं.
इसमें कोई शक नहीं कि वर्तमान में थरूर का शुमार देश के इंटीलेक्चुअल्स में है वहीं जब हम उनके ट्वीट्स का अवलोकन करते हैं तो मिलता है कि थरूर जिन मुद्दों को उठाते हैं वो न केवल देश के आम आदमी से जुड़े मुद्दे होते हैं बल्कि थरूर अपने ट्वीट्स के जरिये ये भी बताते हैं कि सत्तापक्ष पर चोट कैसे और किस जगह करनी है.
कुल मिलाकर अगर थरूर अपने ट्वीट्स में विटी और सर्कास्टिक हैं तो वहीं सदन में भी तीखे सवाल पूछ कर वो सत्तापक्ष का मुंह बंद कर देते हैं. जैसी राजनीति की ज़रूरत है कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए शशि थरूर एक परफेक्ट चॉइस हैं.
कैप्टन अमरिंदर सिंह
राजनीति अवसर का खेल है. सिकंदर वही है जो तीखा हमला करना और मौके पर चौका मारना जानता हो. इन पैमानों पर यदि हम पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को देखते हैं तो मिलता है कि दबंगई और निर्णय लेने के मामले में पूरी कांग्रेस पार्टी एक तरफ है जबकि कैप्टन अमरिंदर सिंह दूसरी तरफ.
बात सीधी और साफ है जो आदमी पार्टी के गलत और सही को सही कहने में नहीं हिचकता यदि उसे पार्टी की कमान दे दी जाए तो वो अवश्य ही उन कमियों को दूर करेगा जिनके चलते कांग्रेस लगातार बैक फुट में आ रही है. वहीं बात कैप्टन और राहुल गांधी के रिश्तों की हो तो कैप्टन को नहीं लगता है कि राहुल गांधी इस निर्णायक वक़्त में कांग्रेस पार्टी की कमान संभाल सकते हैं.
ध्यान रहे कि अभी बीते दिनों ही कैप्टन ने इस बात को स्वीकार किया था कि NDA के सफल होने के कारण एक मजबूत, एकजुट विपक्ष की अनुपस्थिति है. इस महत्वपूर्ण मोड़ पर पार्टी को हर फैसला सोच समझ के लेना होगा. साथ ही तब कैप्टन ने कांग्रेस पार्टी के उन लोगों को भी निशाने पर लिया था जो राहुल गांधी की वकालत कर रहे थे और चाहते थे कि राहुल कांग्रेस का अध्यक्ष बन अपनी सेवाएं दें.
यदि कैप्टन कांग्रेस के अध्यक्ष बनते हैं तो भले ही फैसले सख्त हों लेकिन इस बात में कोई संदेह नहीं है कि वर्तमान की अपेक्षा कांग्रेस मजबूत होगी और वो करिश्मा करेगी जो शायद ही किसी ने सोचा हो.
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