छत्तीसगढ़ चुनाव से ठीक पहले कराए गए सर्वे में राज्य के 41 फीसदी वोटरों ने रमन सिंह को फिर से मुख्यमंत्री बनता देखने की इच्छा जताई थी, तो इसके आधे करीब 21 फीसदी वोटरों की दिलचस्पी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल को सीएम पद पर देखने की थी. इस तरह की लोकप्रियता से निश्चिंत रमन सिंह के पैरों तले से जमीन खींच ली है चुनाव नतीजों ने. रमन सिंह की लोकप्रियता सिर्फ उनकी सीट तक ही दिखाई दे रही है, वरना तो उनके मंंत्रियों और विधायकों का जो हश्र हुआ है, वह शर्मनाक है.
छत्तीसगढ़ के चुनावी नतीजे भले ही अभी पूरी तरह से सामने नहीं आए हों, लेकिन तस्वीर बिल्कुल साफ हो चुकी है. ये साफ हो गया है कि तीन बार से लगातार मुख्यमंत्री बन रहे भाजपा के रमन सिंह का समय अब पूरा हो चुका है और जनता ने उन्हें कुर्सी ने नीचे उतारने का फैसला कर लिया है. और कांग्रेस प्रचंड बहुमत से जीत रही है. आधी मतगणना पूरी होने पर 90 सीटों वाली विधानसभा में बीजेपी के खाते में 20 सीटें भी नहीं आ रही हैं. अब सवाल ये है कि आखिर भाजपा का इतना बुरा हाल कैसे हो गया?
राजस्थान और मध्य प्रदेश में तो बड़े चेहरों पर चुनाव लड़ा जा रहा है, लेकिन छत्तसीगढ़ में तो कांग्रेस की ओर से कोई चेहरा भी सामने नहीं रखा गया. तो फिर वो क्या है, जिसकी वजह से जनता विरोध पर उतर आई है और रमन सिंह को सत्ता से बाहर कर दिया है? अपनी जीत को लेकर आश्वस्त रमन सिंह पर वोटरों ने घात लगाकर हमला किया है. उन पर हमले कहां-कहां से हुए हैं, पता ही नहीं चलता. लेकिन हर हमला बिल्कुल निशाने पर लगा है. छत्तीसगढ़ हारने से जितने शॉक में रमन सिंह होंगे, उतनी ही हैरानगी अभूतपूर्व बहुमत पाने पर कांग्रेस में भी होगी.
छत्तीसगढ़ की राजनीतिक स्थिति का आकलन करें, तो रमन सिंह की हार के प्रमुख कारण कुछ यूं देखे जा सकते हैं:
छत्तीसगढ़ हारने से जितने परेशान रमन सिंह हैं, उतनी ही हैरान कांग्रेस भी लग रही है.
1- 'चाउर वाले बाबा' काफी नहीं
दूसरी बार सत्ता में आने के बाद 2008 में रमन सिंह ने 2-3 रुपए प्रति किलो में चावल बांटा, जिसके बाद उन्हें 'चाउर वाले बाबा' कहा जाने लगा. 2012 में उन्होंने 35 रुपए में 35 किलो चावल देने की स्कीम शुरू कर दी. गरीबों की नजर में रमन सिंह का कद पहले के मुकाबले काफी ऊंचा हो गया. इसी के दम पर वह एक बार फिर से 2013 में चुनाव जीत गए. 'चावल का कटोरा' कहा जाने वाला छत्तीसगढ़ चावल के दम पर ही रमन सिंह की झोली में आ गया, लेकिन इस बार शायद लोग सिर्फ चावल से संतुष्ट नहीं हैं.
2- धान की पॉलिटिक्स ले डूबी !
'चावल का कटोरा' कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में करीब 75 फीसदी खेती सिर्फ धान की होती है. इस वजह से कांग्रेस और भाजपा के लिए धान पॉलिटिक्स का हिस्सा बन चुका है. किसान भी अपनी फसल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की बात करते हैं. जब 2013 में भाजपा की सरकार आई तो उसने धान की पॉलिटिक्स करते हुए किसानों को धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2100 रुपए देने का वादा किया, लेकिन धरातल पर ऐसा देखने को नहीं मिला. 4 सालों तक किसानों को ये फायदा नहीं मिला और अब चुनाव के समय में आखिरी साल में ये फायदा किसानों को दिया गया है. इसकी वजह से भी किसानों में सरकार के प्रति गुस्सा देखने को मिला. वहीं दूसरी ओर कांग्रेस ने कहा है कि वह सत्ता में आने के तुरंत बाद से ही 2500 रुपए का न्यूनतम समर्थन मूल्य देना शुरू कर देगी.
3- इस बार कुछ नया नहीं कर पाए
2013 में सत्ता में आने के बाद रमन सिंह कुछ खास बड़ा काम नहीं कर पाए हैं. उन्होंने भले ही नई-नई योजनाएं लोगों के लिए शुरू की हैं, लेकिन अधिकारियों से होकर सभी योजनाएं धरातल पर नहीं पहुंच पा रही हैं. ग्रामीण इलाकों में अगर लोगों से पूछा जाए कि वह किसे पसंद करते हैं तो अधिकतर लोग बेझिझक रमन सिंह को अच्छा कहते हैं, लेकिन सरकार से खफा होने की बात भी स्वीकारते हैं. लोगों की ये विरोधाभासी बातें साफ करती हैं कि रमन सिंह की सरकारी अधिकारियों पर पकड़ कमजोर पड़ गई है. इसी का नतीजा है कि ग्रामीण इलाकों में सरकार के प्रति असंतोष देखने को मिल रहा है. यहां आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ की कुल आबादी में करीब 76 फीसदी ग्रामीण आबादी है. ऐसे में गरीब तबका ही यहां की सरकार बनाने और गिराने के लिए जिम्मेदार होता है.
4- भाजपा के वादों पर भारी पड़े कांग्रेस के वादे
भाजपा ने अपने घोषणापत्र में 60 साल से अधिक के मजदूरों को 1000 रुपए प्रतिमाह पेंशन देने, 2 लाख नए पंप लगाने, न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने, 12वीं तक मुफ्त ड्रेस और किताबें देने और महिलाओं के व्यापार शुरू करने के लिए 2 लाख तक का ऋणमुक्त ब्याज देने का वादा किया. देखा जाए तो इन वादों में ऐसा कुछ भी बहुत बड़ा नहीं है, जो मतदाताओं को खुश कर सके. लेकिन कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में जो वादे किए, वह मतदाताओं को भा गए से लगते हैं.
कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में कुल 36 लक्ष्य रखे, जिसमें सबसे बड़ी घोषणा ये है कि सरकार बनते ही महज 10 दिनों में किसानों का कर्ज माफ होगा और स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के आधार पर विभिन्न फसलों पर एमएसपी तय होगी. वादा किया है कि चावल का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2500 रुपए और मक्के का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1700 रुपए किया जाएगा. इतना ही नहीं, किसानों की बिजली का बिल आधा करने की घोषणा भी की है. मुफ्त इलाज की सुविधा और आंगनबाड़ी केंद्रों में शिक्षा की व्यवस्था भी की जाएगी. और तो और, एक लाख सरकारी पदों पर भर्ती यानी कि नौकरी भी देने की बात कही है. सबसे अहम बात ये कि ये सारे वादे 5 साल के कार्यकाल में पूरे करने का दावा भी किया गया है. छत्तीसगढ़ के लोगों को और क्या चाहिए. यूं लगता है कि इन सभी बातों के मद्देनजर छत्तीसगढ़ के लोगों ने राज्य की सत्ता कांग्रेस के हाथों में सौंप दी है.
5- नक्सली समस्या का निर्णायक हल न होना
छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद की समस्या सबसे बड़ी और बेहद पुरानी है. जंगलों के बीच बसे ग्रामीण अगर किसी नक्सली की पुलिस में शिकायत करते हैं, तो इसकी कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है. पिछले 10 सालों में पुलिस रिकॉर्ड में ऐसे करीब 70 मामले दर्ज हैं. लोगों में नक्सिलयों को लेकर एक डर बैठ गया है, और सरकार है कि नक्सलियों से लड़ ही नहीं पा रही है. आए दिन नक्सली हमलों में सेना के जवान भी मारे जा रहे हैं. रमन सिंह की इस कमजोरी का भी कांग्रेस ने सत्ता में आने के लिए इस्तेमाल किया है. जब भी कोई नक्सली हमला होता है तो कांग्रेस तुरंत भाजपा पर हमला बोल देती है. खैर, अब छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनने जा रही है. देखते हैं कि कांग्रेस नक्सलियों से कैसे निपटती है? या फिर कांग्रेस भी भाजपा की तरह नक्सलियों के आगे बेबस नजर आती है.
कांग्रेस के वादों को भाजपा ने बार-बार झूठा कहा, लेकिन ऐसा लगता है कि जनता कम से कम एक बार कांग्रेस को आजमाना ही चाहती है. वहीं दूसरी ओर, न्यूनतम समर्थन मूल्य का वादा करके उसे निभाने में 4 साल की देरी भी भाजपा के खिलाफ चली गई. अब भले ही कांग्रेस वादे पूरे कर पाए या नहीं, भले ही वह नक्सलियों से निपटने में सफल हो या असफल हो, लेकिन जनता ने इस बार कांग्रेस को आजमाने की ठान ली है. इस बार छत्तीसगढ़ की जनता सिर्फ 1 रुपए किलो के चावल से खुश रहने वाली नहीं है. ना ही 24 घंटे बिजली वोट मांगने का आधार बन सकता है, बल्कि सस्ती बिजली का वादा लोगों को खुश करने वाला साबित हो रहा है.
कांग्रेस ने बिना किसी चेहरे के छत्तीसगढ़ का चुनाव लड़ा था. उम्मीद जताई जा रही है कि भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिलेगी. भूपेश बघेल के अलावा कांग्रेस के पास टीएस सिंहदेव भी हैं जो कांग्रेस विधायक दल के नेता हैं. इसी तरह ताम्रध्वज साहू ओबीसी चेहरा हैं तो चरणदास महंथ सीनियर नेताओं में शुमार हैं. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कौन बैठता है.
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