Lok sabha Election 2019 Results| नतीजे आने के बाद पश्चिम बंगाल और नॉर्थ ईस्ट में भी भाजपा ने अपनी पकड़ साबित कर ही दी. ममता बनर्जी और नरेंद्र मोदी के बीच जो घमासान हुआ था वो भी देखने लायक था. बंगाल में Mamta Banerjee का किला भेदना Narendra Modi और Amit Shah के लिए आसान नहीं था. पहली बार 'जय श्री राम' को लेकर बंगाल में इस तरह की राजनीति की गई. बंगाल में लेफ्ट की राजनीति काफी समय रही और उसका नतीजा ये था कि वहां के लोग उससे काफी हद तक प्रभावित हो गए. इतने कि TMC की सरकार आने पर लेफ्ट द्वारा स्थापित की गई आर्थिक सुधार की स्कीम को ज्यादा छेड़ा नहीं गया.
लोकसभा चुनाव 2019 में जिस तरह का प्रदर्शन नरेंद्र मोदी की पार्टी ने पश्चिम बंगाल में दिखाया है वो किसी अचंभे से कम नहीं है. पार्टी को बंगाल में 18 सीटें मिलीं और 40% लोगों ने भाजपा को वोट किया. यहीं ममता बनर्जी की पार्टी को 22 सीटें मिलीं और वोटिंग प्रतिशत 43% रहा.
पर इस तरह की ऐतिहासिक जीत आखिर भाजपा को मिली कैसे? पश्चिम बंगाल में कैसे मोदी-शाह की रणनीति सफल हो पाई.
1. सांप्रदायिकता का गहरा प्रभाव..
ये पश्चिम बंगाल का पहला ऐसा चुनाव रहा है जिसमें सांप्रदायिकता ने अहम रोल निभाया है. भाजपा ने जो कैंपेन चलाई वो साफ तौर पर हिंदुओं को लेकर की गई. चुनाव प्रचार भी युद्ध स्तर पर किया गया और राम के नाम को लेकर किया गया. अमित शाह का 'जय श्री राम' चिल्लाना और ममता बनर्जी को चैलेंज करना कि अब गिरफ्तार करके दिखाओ, पहले से ही बनी हुई दाल में तड़के का काम कर गया. यही नहीं बंगाल को लेकर सोशल मीडिया पर कई तरह की फेक न्यूज फैलाई गई. यहां तक की कई पोस्ट ये भी दावा कर रही थीं कि ममता बनर्जी सरकार ने दुर्गा पूजा...
Lok sabha Election 2019 Results| नतीजे आने के बाद पश्चिम बंगाल और नॉर्थ ईस्ट में भी भाजपा ने अपनी पकड़ साबित कर ही दी. ममता बनर्जी और नरेंद्र मोदी के बीच जो घमासान हुआ था वो भी देखने लायक था. बंगाल में Mamta Banerjee का किला भेदना Narendra Modi और Amit Shah के लिए आसान नहीं था. पहली बार 'जय श्री राम' को लेकर बंगाल में इस तरह की राजनीति की गई. बंगाल में लेफ्ट की राजनीति काफी समय रही और उसका नतीजा ये था कि वहां के लोग उससे काफी हद तक प्रभावित हो गए. इतने कि TMC की सरकार आने पर लेफ्ट द्वारा स्थापित की गई आर्थिक सुधार की स्कीम को ज्यादा छेड़ा नहीं गया.
लोकसभा चुनाव 2019 में जिस तरह का प्रदर्शन नरेंद्र मोदी की पार्टी ने पश्चिम बंगाल में दिखाया है वो किसी अचंभे से कम नहीं है. पार्टी को बंगाल में 18 सीटें मिलीं और 40% लोगों ने भाजपा को वोट किया. यहीं ममता बनर्जी की पार्टी को 22 सीटें मिलीं और वोटिंग प्रतिशत 43% रहा.
पर इस तरह की ऐतिहासिक जीत आखिर भाजपा को मिली कैसे? पश्चिम बंगाल में कैसे मोदी-शाह की रणनीति सफल हो पाई.
1. सांप्रदायिकता का गहरा प्रभाव..
ये पश्चिम बंगाल का पहला ऐसा चुनाव रहा है जिसमें सांप्रदायिकता ने अहम रोल निभाया है. भाजपा ने जो कैंपेन चलाई वो साफ तौर पर हिंदुओं को लेकर की गई. चुनाव प्रचार भी युद्ध स्तर पर किया गया और राम के नाम को लेकर किया गया. अमित शाह का 'जय श्री राम' चिल्लाना और ममता बनर्जी को चैलेंज करना कि अब गिरफ्तार करके दिखाओ, पहले से ही बनी हुई दाल में तड़के का काम कर गया. यही नहीं बंगाल को लेकर सोशल मीडिया पर कई तरह की फेक न्यूज फैलाई गई. यहां तक की कई पोस्ट ये भी दावा कर रही थीं कि ममता बनर्जी सरकार ने दुर्गा पूजा के आयोजन पर भी बैन लगा दिया है. इतना ही नहीं बंगलादेश के शरणार्थियों को भी भाजपा से जुड़ने को कहा गया.
विकास इस मामले में कोई मुद्दा नहीं था. भले ही TMC के काम को लोग पसंद कर रहे हों, लेकिन फिर भी भाजपा का ये आरोप कि TMC मुसलमानों का साथ दे रही है, ये सब पर भारी पड़ गया. इसका नतीजा ये निकला कि भाजपा को हिंदुओं के वोट मिले.
आलम ये था कि भाजपा को हिंदुओं का इस कदर सपोर्ट मिला कि माल्दा जो एक मुस्लिम बहुल इलाका है वहां भाजपा ने एक सीट जीती और दूसरी को वो सिर्फ 8222 वोटों से हार गई. यहां हिंदुओं की आबादी 48% ही है और माल्दा में भाजपा का वोट प्रतिशत 36% रहा है. जहां भाजपा को सभी हिंदुओं के वोट मिले वहीं कांग्रेस और TMC के बीच मुसलमानों के वोट बंट गए.
2. कम्युनिस्ट बड़े पैमाने में भाजपा की ओर हो गए-
ममता बनर्जी की पार्टी ने असल में 2014 से ज्यादा बेहतर प्रदर्शन किया है. 2014 में पार्टी का वोट प्रतिशत 39 था और इस बार 43 % है. पर यहां भाजपा के फायदे का सबसे बड़ा कारण था कम्युनिस्ट वोटों का शिफ्ट होना. CPI(M) के वोट जो 2014 में 30% थे वो 2019 चुनावों में 6% ही रह गए. ये बढ़े हुए वोट भाजपा को गए.
कम्युनिस्ट वोट कम होने का कारण ये भी है कि पिछले पांच सालों में बंगाल के कई हिस्सों में TMC के कार्यकर्ताओं ने कम्युनिस्ट पर काफी दबाव बना कर रखा है. आलम ये हो गया कि बंगाल में कई CPI(M) कार्यकर्ताओं ने सिर्फ TMC को हराने के मकसद से भाजपा का दामन थाम लिया. स्थानीय स्तर पर TMC का जो दबदबा था उससे बचने का यही कारण समझ आया और इसीलिए कम्युनिस्ट वोट भाजपा के दामन में चले गए. जैसे CPI(M) नेता खागेन मुर्मू जो माल्दा उत्तर में काफी लोकप्रिय थे वो भाजपा में जुड़ गए और इस बार जीत भी गए.
3. सोशल मीडिया का प्रहार..
चुनाव प्रचार के दौरान आए दिन ऐसी खबरें सुनने में आती थीं कि पश्चिम बंगाल में मोदी, योगी का हेलिकॉप्टर नहीं उतरने दिया गया या फिर भाजपा का प्रचार-प्रसार बंगाल में फीका है, पर असलियत तो ये है कि भाजपा का प्रचार पश्चिम बंगाल में किसी हेलिपैड का मोहताज नहीं थी. बंगाल में भी भाजपा IT सेल बेहद सतर्क है और जिस तरह से काम चल रहा था उसने दिखाया कि कैसे 5 इंच की मोबाइल स्क्रीन भी भाजपा के लिए चुनावी जमीन तैयार करने में मदद कर रही थी.
फेसबुक, वॉट्सएप, ट्विटर पर भाजपा समर्थक पोस्ट और ममता विरोधी पोस्ट का अंबार लग गया. कई Meme बनाए गए. सोशल मीडिया कंट्रोल से सांप्रदायिक दबाव बनाने में मदद मिली. जय श्री राम और दुर्गा पूजा के साथ बालाकोट एयरस्ट्राइक आदि की खबरें भी आईं. यहां तक कि भाजपा बंगाल आईटी सेल के संचालक दीपक दास 1114 वॉट्सएप ग्रुप और भाजपा के ट्विटर-फेसबुक पेज के संचालक भी थे. जो हमेशा अपने साथ दो फोन और एक चार्जर लेकर चलते थे.
क्योंकि बंगाल में भाजपा की जमीनी ताकत कम थी इसलिए सोशल मीडिया की ताकत का इस्तेमाल किया गया. बंगाल की राजनीतिक दिशा बदलने में सोशल मीडिया का बहुत बड़ा हाथ रहा है. भाजपा ने ये साबित कर दिया कि सबसे सफल वॉट्सएप कैंपेन कैसे चलाया जा सकता है.
4. जातिवाद भी अहम..
हिंदुत्व का नारा लेकर भाजपा सफल तौर पर पश्चिम बंगाल में अपनी कैंपेनिंग कर पाई. इसके साथ ही, भाजपा ने बंगाल में रह रहे दलित, आदिवासी हिंदुओं को भी टार्गेट किया. बंगाल की राजनीति में पिछले एक दशक से इनका बड़ा योगदान रहा है.
भाजपा का फोकस बंगाल में सांप्रदायिकता पर रहा और बंगलादेश के प्रवासियों की स्थिति का भी भाजपा ने फायदा उठाया. साफ तौर पर हिंदू और मुसलमान शरणार्थियों में भेद कर दिया गया. बंगलादेशी दलित प्रवासियों के बीच भाजपा ने अपनी जगह बना ली. झारखंड बॉर्डर पर बसने वाली आदिवासियों को भाजपा के खेमें में हिंदुत्व संगठन जैसे आरएसएस और बजरंग दल की मदद से लाया गया. नतीजा? भाजपा को बंगाल में अधिक वोट मिले.
5. भाजपा की फंडिंग..
भाजपा भारत की सबसे अमीर पार्टी कही जा सकती है. जिस तरह की कॉर्पोरेट फंडिंग भाजपा को मिलती है उसके मुकाबले TMC और लेफ्ट पार्टियों की दाल नहीं गलने वाली थी. जमीनी हकीकत में भाजपा की बड़ी रैलियां और जिस तरह का खर्च वो प्रचार प्रसार में कर सकती थी वो बहुत ज्यादा बड़ा था. TMC और लेफ्ट पार्टियों के ऑफिस ही भाजपा के ऑफिस के मुकाबले काफी पिछड़े हुए दिखते थे.
इस भव्यता को भी एक कारण माना जा सकता है कि क्यों बंगालियों को ये लगा कि मौजूदा पार्टियों की तुलना में भाजपा ज्यादा बेहतर विकल्प है.
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