Chandrayaan-2 मिशन के दौरान दुनिया ने बहुत कुछ देखा. 22 जुलाई से 6 सितंबर तक के बीच कई उतार चढ़ाव देखने को मिले. बल्कि इससे पहले से ही उतार-चढ़ाव दिखने लगे थे. 15 जुलाई को ही लॉन्चिंग होनी थी, लेकिन तकनीकी खराबी की वजह से उसे टालना पड़ा. 22 जुलाई को चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग हुई, जिसके बाद वह धीरे-धीरे पृथ्वी की कक्षा से निकल कर चंद्रमा की कक्षा में पहुंचा, फिर लैंडर ऑर्बिटर से अलग हुआ. यहां तक तो सब अच्छा था, लेकिन चांद की सतह से महज 2.1 किलोमीटर दूर पहुंचते ही किसी वजह से ISRO का लैंडर से संपर्क टूट गया. सब निराश हो गए. लेकिन खुशी की बात ये है कि ऑर्बिटर अभी भी चंद्रमा की कक्षा में है, जो हाई रिजॉल्यूशन तस्वीरें भेजता रहेगा. 15 जुलाई से 6 सितंबर तक भले ही कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले, लेकिन इस पूरे मिशन से कई ऐसी बातें निकलकर सामने आईं, जिसके लिए इस लैंडर से संपर्क टूटने की नाकामी के बावजूद इसरो का धन्यवाद अदा करना बनता है.
1- करीब से देखा इसरो के वैज्ञानिकों का टैलेंट
पहले चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग 15 जुलाई को होनी थी, लेकिन एक तकनीकी खराबी की वजह से इस लॉन्चिंग को टालना पड़ा. अभी तक किसी भी मिशन में कोई दिक्कतें होती थीं, तो वह दुनिया के सामने नहीं आ पाती थीं. लोगों को तब पता चलता था जब लॉन्चिंग हो जाती थी, लेकिन चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग के काफी पहले से लोग इसके बारे में जानते थे. वैसे भी, ये एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट था, जिसे देश को जानने का हक भी था. खैर, पहली बार लॉन्चिंग में दिक्कत आई तो महज हफ्ते भर में वैज्ञानिकों ने उसे सही कर दिया और चंद्रयान-2 को लॉन्च भी कर दिया. पहली बार दुनिया ने इसरो के वैज्ञानिकों का टैलेंट देखा कि वह कितने कम समय में समस्या का निदान कर सकते हैं. ये उनका टैलेंट ही है कि एक बार दिक्कत आने के बावजूद जब चंद्रयान-2 को लॉन्च किया गया तो वह सफलतापूर्वक चंद्रमा की कक्षा तक चला गया.
Chandrayaan-2 मिशन के दौरान दुनिया ने बहुत कुछ देखा. 22 जुलाई से 6 सितंबर तक के बीच कई उतार चढ़ाव देखने को मिले. बल्कि इससे पहले से ही उतार-चढ़ाव दिखने लगे थे. 15 जुलाई को ही लॉन्चिंग होनी थी, लेकिन तकनीकी खराबी की वजह से उसे टालना पड़ा. 22 जुलाई को चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग हुई, जिसके बाद वह धीरे-धीरे पृथ्वी की कक्षा से निकल कर चंद्रमा की कक्षा में पहुंचा, फिर लैंडर ऑर्बिटर से अलग हुआ. यहां तक तो सब अच्छा था, लेकिन चांद की सतह से महज 2.1 किलोमीटर दूर पहुंचते ही किसी वजह से ISRO का लैंडर से संपर्क टूट गया. सब निराश हो गए. लेकिन खुशी की बात ये है कि ऑर्बिटर अभी भी चंद्रमा की कक्षा में है, जो हाई रिजॉल्यूशन तस्वीरें भेजता रहेगा. 15 जुलाई से 6 सितंबर तक भले ही कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले, लेकिन इस पूरे मिशन से कई ऐसी बातें निकलकर सामने आईं, जिसके लिए इस लैंडर से संपर्क टूटने की नाकामी के बावजूद इसरो का धन्यवाद अदा करना बनता है.
1- करीब से देखा इसरो के वैज्ञानिकों का टैलेंट
पहले चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग 15 जुलाई को होनी थी, लेकिन एक तकनीकी खराबी की वजह से इस लॉन्चिंग को टालना पड़ा. अभी तक किसी भी मिशन में कोई दिक्कतें होती थीं, तो वह दुनिया के सामने नहीं आ पाती थीं. लोगों को तब पता चलता था जब लॉन्चिंग हो जाती थी, लेकिन चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग के काफी पहले से लोग इसके बारे में जानते थे. वैसे भी, ये एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट था, जिसे देश को जानने का हक भी था. खैर, पहली बार लॉन्चिंग में दिक्कत आई तो महज हफ्ते भर में वैज्ञानिकों ने उसे सही कर दिया और चंद्रयान-2 को लॉन्च भी कर दिया. पहली बार दुनिया ने इसरो के वैज्ञानिकों का टैलेंट देखा कि वह कितने कम समय में समस्या का निदान कर सकते हैं. ये उनका टैलेंट ही है कि एक बार दिक्कत आने के बावजूद जब चंद्रयान-2 को लॉन्च किया गया तो वह सफलतापूर्वक चंद्रमा की कक्षा तक चला गया.
2- सेना जैसे गौरवान्वित किया इसरो ने
आए दिन पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देकर सेना तो हर देशवासी का सिर फख्र से ऊंचा करती ही है, इस बार इसरो के वैज्ञानिकों ने भी कुछ वैसा ही काम किया है. चंद्रयान मिशन के दौरान जो कुछ भी हुआ, उसने इसरो या यूं कहें कि वैज्ञानिकों के पेशे को भी एक फैंटेसी बना दिया. जिस तरह लोग सेना में जाकर एक गौरव की अनुभूति करते हैं, कुछ वैसा ही अब स्टूडेंट्स इसरो के लिए भी सोचने लगे हैं. इससे पहले तक इसरो को सिर्फ एक ऑर्गेनाइजेशन समझा जाता था, जिसका काम सैटेलाइट छोड़ना समझा जाता था, लेकिन चंद्रयान-2 के लैंडर की लैंडिंग के दौरान स्टूडेंट्स में जो जोश था, वो देखकर कहा जा सकता है कि अब इसरो भी उनकी फैंटेसी में शामिल हो गया है.
3- चैंपियन अपनी विफलता का कैसे सामना करते हैं
यूं तो चंद्रयान-2 नाकाम नहीं हुआ है, लेकिन इस मिशन के एक हिस्से में बेशक नाकामी हाथ लगी है. नाकामी इस बात की कि लैंडर के चांद की सतह पर लैंड करने के दौरान ही इसरो से उसका संपर्क टूट गया. अभी तक जब भी बात इसरो की होती थी तो लोग समझते थे कि वहां बैठे वैज्ञानिक तो एक्सपर्ट हैं, जिनसे कोई गलती नहीं होती. वैसे भी, इसरो प्रमुख के सिवान ने कहा था कि वैज्ञानिकों ने लैंडर के हर सेकेंड के कई हिस्सों तक की प्लानिंग की थी. बावजूद इसके लैंडर से संपर्क टूट जाना ये दिखाता है कि चैंपियन भी फेल होते हैं. अक्सर लोग अपनी नाकामी से परेशान होते हैं और अपनी किस्मत को कोसते हैं, लेकिन इसरो के साथ ऐसा नहीं है.
पहले भी अलग-अलग मौकों पर इसरो कई बार फेल हुआ है, लेकिन हर बार वह एक नई ताकत के साथ उभर कर आया है. कई बार नाकाम होने के बावजूद आज इसरो ने जो नाम कमाया है, वह सबके लिए एक सबक जैसा है कि हमें अपनी नाकामी को लेकर बैठे नहीं रहना चाहिए, बल्कि आगे बढ़ने की कोशिशें करनी चाहिए. बीती रात लोगों ने जो देखा है, उससे ये तो साफ हो गया है कि इसरो में बैठे लोग भी हमारे जैसे ही हैं, उनके अंदर भी इमोशन्स हैं, बस उनका काम हम लोगों से बहुत अलग है. के सिवान जिस तरह पीएम मोदी के कंधे पर सिर रखकर रोए, उससे साफ दिखता है कि इसरो के वैज्ञानिकों में भी हमारे जैसे ही इमोशन्स होते हैं.
4- राजनीतिक नेतृत्व किसी विफलता का सामना कैसे करता है
ऐसा नहीं है कि पहली बार इसरो कोई मिशन कर रहा हो. पहले भी इसरो ने कई मिशन किए हैं. हर बार ये देखने को मिलता है कि मिशन की कामयाबी पर सोशल मीडिया से लेकर निजी तरीकों से लोग बधाइयां देते थे. नेता-मंत्री भी ट्वीट भर कर के हौंसला अफजाई कर देते थे. पीएम मोदी भी ऐसा कर सकते थे. मिशन की कामयाबी पर वह भी सिर्फ एक ट्वीट कर सकते थे. उन्हें इसरो मुख्यालय जाने की कोई जरूरत नहीं थी. लेकिन ये पहली बार था, जब इतने बड़े मिशन की नाकामी पूरे देश ने देखी और ये भी देखा कि उसे पीएम मोदी ने कैसे संभाला. वह खुद ये सब देखने के लिए इसरो के मुख्यालय में थे.
जब लैंडर से इसरो का संपर्क टूटा तो सभी निराश हो गए. उस समय भी पीएम मोदी ने सभी का मनोबल बढ़ाया और सुबह दोबारा एक स्पीच दी, जिसमें वैज्ञानिकों के काम को सराहा. इसी बीच इसरो प्रमुख के सिवान की आंखों से आंसू भी निकले, तो पीएम मोदी उन्हें भी गले से लगाकर सांत्वना दी. पीएम मोदी का इस तरह इसरो मुख्यालय जाना उनकी पॉलिटिकल मेच्योरिटी को दिखाता है. ये दिखाता है कि जैसे पीएम मोदी को कामयाबी का श्रेय मिलता है, उसी तरह वह नाकामी में भी वैज्ञानिकों का साथ देने के लिए खड़े थे.
5- सिलेबस में जुड़ गया एक और करियर ऑप्शन
अभी तक स्पेस साइंस की बातें 6,7 या 8वीं कक्षा तक ही स्टूडेंट्स के जेहन में रहती थीं. तभी तक वो एस्ट्रोनॉट, सोलर सिस्टम या प्लेनेट जैसी बातें के बारे में सोचते थे. बड़े होते-होते इंजीनियर-डॉक्टर जैसे पेशे ही सबका सपना बन जाते थे. लेकिन चंद्रयान-2 मिशन को जिस तरह से देश ने देखा है, ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि अब एक और करियर ऑप्शन स्टूडेंट्स की लिस्ट में शामिल हो गया है. अभी तक स्पेस साइंस में शिक्षा लेने वाले स्टूडेंट्स नासा में अपना भविष्य ढूंढ़ते थे, लेकिन अब भारत का इसरो ही ऐसे-ऐसे कारनामे कर रहा है, कि स्टूडेंट नासा नहीं, बल्कि इसरो में शामिल होकर अपने साथ-साथ देश का भी नाम रोशन करना चाहेंगे. बेशक ये करियर ऑप्शन डॉक्टर-इंजीनियर बनने के सपने को तो मात नहीं दे सकता, लेकिन अब ये उनसे किसी मामले में कम भी नहीं है. जैसे सेना में जाने का मतलब है नौकरी के साथ-साथ सम्मान, वैसे ही इसरो का वैज्ञानिक बन कर देश की सेवा करना भी सेना जैसा गौरव दिलाने वाला है.
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