अमेठी दिल्ली से लगभग 680 किमी दूर है. लेकिन पिछले एक दशक में, दूरी को हम केवल हमारे राजनीतिक प्रवचनों तक ही सीमित रख रहे हैं. और आज जबकि हम पांचवे चरण के मतदान के साक्षी बने हैं, सभी की निगाहें अमेठी पर हैं. क्यों? इसलिए क्योंकि अमेठी में एक दूसरे के मुकाबले पर राहुल गांधी और स्मृति ईरानी हैं. जो विचारधारा से लेकर कार्यप्रणाली तक हर लिहाज से एक दूसरे से अलग हैं.
नामदार बनाम कामदार
यदि कोई निर्वाचन क्षेत्र इस लोकसभा की लड़ाई को संक्षिप्त कर सकता है, तो वह अमेठी ही होगा. जहां लड़ाई नामदार और कामदार के बीच है. वो स्थान यहां सभी राजनीतिक दल दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप की राजनीति करते हुए तमाम चीजों के लिए उस दूसरे दल को जिम्मेदार ठहराते हैं.
ये वो लोकसभा क्षेत्र हैं जिसे देश की सबसे पुरानी पार्टी की विरासत से जोड़ा जाता है. अतीत में संजय गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी ने जिसका प्रतिनिधित्व किया. ऐसा सिर्फ दो ही बार हुआ है जब अमेठी की सीट कांग्रेस के हाथों से निकली. पहली बार ऐसा 1977 में हुआ जब जनता पार्टी जीती और दूसरा 1998 में जब भाजपा जीती.
अमेठी वो निर्वाचन क्षेत्र हैं जो हमेशा ही पूरी मजबूती के साथ गांधी परिवार के साथ खड़ा रहा है. हालांकि विधानसभा क्षेत्र, अमेठी लोकसभा क्षेत्र के मुकाबले एक दूसरी ही तस्वीर पेश करता है. अमेठी विधानसभा की तिलोई, सलोन, जगदीशपुर और अमेठी 2017 में भाजपा के पास चली गई. सिर्फ गौरीगंज समाजवादी पार्टी के हिस्से में आई जहां लड़ाई सपा और कांग्रेस के बीच थी.
सपा और बसपा का कोई उम्मीदवार नहीं
अमेठी में मुकाबला कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और केंद्रीय मंत्री स्मृति...
अमेठी दिल्ली से लगभग 680 किमी दूर है. लेकिन पिछले एक दशक में, दूरी को हम केवल हमारे राजनीतिक प्रवचनों तक ही सीमित रख रहे हैं. और आज जबकि हम पांचवे चरण के मतदान के साक्षी बने हैं, सभी की निगाहें अमेठी पर हैं. क्यों? इसलिए क्योंकि अमेठी में एक दूसरे के मुकाबले पर राहुल गांधी और स्मृति ईरानी हैं. जो विचारधारा से लेकर कार्यप्रणाली तक हर लिहाज से एक दूसरे से अलग हैं.
नामदार बनाम कामदार
यदि कोई निर्वाचन क्षेत्र इस लोकसभा की लड़ाई को संक्षिप्त कर सकता है, तो वह अमेठी ही होगा. जहां लड़ाई नामदार और कामदार के बीच है. वो स्थान यहां सभी राजनीतिक दल दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप की राजनीति करते हुए तमाम चीजों के लिए उस दूसरे दल को जिम्मेदार ठहराते हैं.
ये वो लोकसभा क्षेत्र हैं जिसे देश की सबसे पुरानी पार्टी की विरासत से जोड़ा जाता है. अतीत में संजय गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी ने जिसका प्रतिनिधित्व किया. ऐसा सिर्फ दो ही बार हुआ है जब अमेठी की सीट कांग्रेस के हाथों से निकली. पहली बार ऐसा 1977 में हुआ जब जनता पार्टी जीती और दूसरा 1998 में जब भाजपा जीती.
अमेठी वो निर्वाचन क्षेत्र हैं जो हमेशा ही पूरी मजबूती के साथ गांधी परिवार के साथ खड़ा रहा है. हालांकि विधानसभा क्षेत्र, अमेठी लोकसभा क्षेत्र के मुकाबले एक दूसरी ही तस्वीर पेश करता है. अमेठी विधानसभा की तिलोई, सलोन, जगदीशपुर और अमेठी 2017 में भाजपा के पास चली गई. सिर्फ गौरीगंज समाजवादी पार्टी के हिस्से में आई जहां लड़ाई सपा और कांग्रेस के बीच थी.
सपा और बसपा का कोई उम्मीदवार नहीं
अमेठी में मुकाबला कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के बीच है. इससे पहले सपा बसपा गठबंधन ने इस बात की घोषणा पहले ही कर दी थी कि वो कांग्रेस के गढ़ में अपने प्रत्याशी नहीं उतारेंगे (इससे दोनों ही दलों कांग्रेस और भाजपा के बीच की लड़ाई और दिलचस्प हो गई है) इसलिए अमेठी में किसी और प्रत्याशी द्वारा वोट काटने की सम्भावना कम है. इसलिए यहां दो ऐसे लोग एक दूसरे के आमने सामने हैं जो युवा हैं और नई ऊर्जा से भरे हैं.
'गायब' सांसद का मजेदार खेल
यह अमेठी में व्यंग्य करने का नया हथियार है- पूरे अमेठी में वर्तमान सांसद राहुल गांधी के पोस्टर लगाए गए हैं और उन्हें उन पोस्टर्स के जरिये गायब दर्शाया गया है. ये चीज अमेठी के लिए कोई नई नहीं है इससे पहले भी ऐसा ही कुछ देखा गया है. और ये फिर हुआ है. हालांकि इन पोस्टर्स पर यकीन नहीं किया जा सकता है मगर राहुल गांधी की अनुपस्थिति से उपजा गतिरोध वहां दिख रहा है इसलिए स्मृति ईरानी अमेठी से उभरकर सामने आ रही हैं.
आज भी जब अमेठी में चुनाव हो रहे हैं. चाहे ट्विटर हो, प्रत्येक न्यूज़ चैनल हों स्मृति ईरानी हर जगह हैं. चाहे राहुल गांधी पर बूथ कैप्चरिंग का आरोप लगाना ही या पोलिंग के दिन उनकी गैरहाजिरी हो स्मृति लगातार राहुल गांधी से सवाल कर रही हैं और अपनी उपस्थिति का एहसास करा रही हैं.
राहुल गांधी आज भी मैदान से नदारद हैं
हम यह बिल्कुल भी नहीं जानते कि राहुल गांधी स्मृति ईरानी को क्यों नजरंदाज करते हैं. मगर बात जब पीएम मोदी की आती है तो वो उनपर खूब हमले करते हैं. कह सकते हैं कि शायद ये छवियों की लड़ाई है जहां कुछ छवियां दूसरी छवियों से ज्यादा मजबूत होती हैं. स्मृति अमेठी में क्यों है इसकी वजह भी छवि के निर्माण को माना जा सकता है. जहां 2014 में राहुल गांधी ने उन्हें बड़े ही मामूली अंतर से हराया था. कह सकते हैं कि अमेठी में स्मृति 'राहुल नहीं तो कौन?' के उत्तर को लेकर प्रयत्नशील हैं और उसी दिशा में संघर्ष कर रही हैं.
भावुक पात्र
अभी कुछ दिन की बात है. अमेठी के हर घर में राहुल गांधी का लिखा एक पत्र आया. पत्र में अमेठी की जनता को राहुल गांधी ने अपने परिवार का सदस्य बताया. उन्होंने कहा कि यदि कांग्रेस केंद्र की सत्ता में आती है तो अमेठी के विकास में जो जो बाधाएं हैं उन्हें दूर किया जाएगा. साथ ही इस पत्र में राहुल ने ये भी कहा कि जिस अमेठी को लेकर आज भाजपा इतनी उग्र हो रही है उसके इन वादों को भाजपा को पूरा करना चाहिए था.
अमेठी में क्यों स्मृति ईरानी विजेता हैं
कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा है कि यदि राहुल गांधी अमेठी हारते हैं तो वो राजनीति छोड़ देंगे. ये असावधानी खुद इस बात की तरफ इशारा कर देती है कि स्मृति ईरानी वास्तव में राहुल गांधी को हरा सकती हैं. इसके बाद राहुल का केरल के वायनाड से चुनाव के लिए नामांकन करना ये बता देता है कि अमेठी को लेकर राहुल गांधी कहीं न कहीं डरे हुए हैं.
कुछ पराजय नुकसानदायक नहीं होतीं.
2014 की स्मृति को देख लें और फिर 2019 की स्मृति को देख लें. स्मृति जिस समय 2014 में अमेठी आई थीं वो बाहरी थीं वो रवि दत्त मिश्रा के घर में रहती थीं (जो अब कांग्रेस में हैं) और यहीं रहकर उन्होंने धीरे धीरे अमेठी को जाना. 5 सालों में अमेठी के प्रति जिस तरह का स्मृति ईरानी का रवैया रहा है. साफ हो जाता है कि वहां उन्होंने अपना एकछत्र राज चलाया है. स्मृति अमेठी में भाजपा का चेहरा हैं. यदि वो अमेठी में हारती भी हैं तो जो मतों का अंतर रहेगा वो उन्हें विजय बना देगा.
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