दिल्ली नगर निगम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को तीनों एमसीडी में बहुमत मिल गया है. परिणाम एग्जिट पोल की अपेक्षाओं के अनुरूप ही हैं. पर क्या कारण है कि 2015 में आप से बुरी तरह से परास्त होने वाली भाजपा ने फिर से दिल्ली वालों के दिल में जगह बना ली है.
1. मोदी मैजिक :
वैसे तो नगर निगम के चुनाव स्थानीय मुद्दों पर होता है एवं स्थानीय नेता ही इसका नेतृत्व करते हैं. पर इस चुनाव में ऐसा नहीं था. भाजपा ने इस चुनाव को नरेंद्र मोदी का चेहरा आगे रखकर लड़ा. दिल्ली एवं बिहार चुनाव में धूल धूसरित होने वाली ब्रांड मोदी फिर से भारत के लोगों में अपना जादू चला रही है.
ऐसा माना जा रहा है कि पाकिस्तान के विरुद्ध सर्जिकल स्ट्राइक एवं नोटबंदी से लोगों में मोदी के प्रति फिर से विश्वास जग गया है. भाजपा ने इस चुनाव को नरेंद्र मोदी बनाम अन्य के तर्ज पर लड़ा था, इसलिए जीत का सबसे ज्यादा श्रेय भी प्रधानमंत्री को ही जाना चाहिए.
2. केजरीवाल मैजिक का धूमिल होना :
जहां एक तरफ मोदी मैजिक दिल्ली वालों के सर चढ़ के बोला, वहीं केजरीवाल मैजिक लगभग धूमिल हो गया. 2015 में जहां राजधानी के लोगों ने उनको दिल्ली का सरताज बना दिया था वहीं 2017 में उनको दरकिनार कर दिया.
लगता है कि दिल्ली के लोगों को उनकी सरकार की कार्यशैली पसंद नहीं आई है. आम आदमी पार्टी भी अब एक आम पार्टी के जैसी हो गई है, इस कारण भी लोगों का मोहभंग हुआ.
3. मौजूदा पार्षदों का टिकट काटना
निगम चुनाव से पहले भाजपा ने अपने सभी पार्षदों के टिकट काटने की घोषणा करके सभी को...
दिल्ली नगर निगम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को तीनों एमसीडी में बहुमत मिल गया है. परिणाम एग्जिट पोल की अपेक्षाओं के अनुरूप ही हैं. पर क्या कारण है कि 2015 में आप से बुरी तरह से परास्त होने वाली भाजपा ने फिर से दिल्ली वालों के दिल में जगह बना ली है.
1. मोदी मैजिक :
वैसे तो नगर निगम के चुनाव स्थानीय मुद्दों पर होता है एवं स्थानीय नेता ही इसका नेतृत्व करते हैं. पर इस चुनाव में ऐसा नहीं था. भाजपा ने इस चुनाव को नरेंद्र मोदी का चेहरा आगे रखकर लड़ा. दिल्ली एवं बिहार चुनाव में धूल धूसरित होने वाली ब्रांड मोदी फिर से भारत के लोगों में अपना जादू चला रही है.
ऐसा माना जा रहा है कि पाकिस्तान के विरुद्ध सर्जिकल स्ट्राइक एवं नोटबंदी से लोगों में मोदी के प्रति फिर से विश्वास जग गया है. भाजपा ने इस चुनाव को नरेंद्र मोदी बनाम अन्य के तर्ज पर लड़ा था, इसलिए जीत का सबसे ज्यादा श्रेय भी प्रधानमंत्री को ही जाना चाहिए.
2. केजरीवाल मैजिक का धूमिल होना :
जहां एक तरफ मोदी मैजिक दिल्ली वालों के सर चढ़ के बोला, वहीं केजरीवाल मैजिक लगभग धूमिल हो गया. 2015 में जहां राजधानी के लोगों ने उनको दिल्ली का सरताज बना दिया था वहीं 2017 में उनको दरकिनार कर दिया.
लगता है कि दिल्ली के लोगों को उनकी सरकार की कार्यशैली पसंद नहीं आई है. आम आदमी पार्टी भी अब एक आम पार्टी के जैसी हो गई है, इस कारण भी लोगों का मोहभंग हुआ.
3. मौजूदा पार्षदों का टिकट काटना
निगम चुनाव से पहले भाजपा ने अपने सभी पार्षदों के टिकट काटने की घोषणा करके सभी को हैरान कर दिया था. ये साहसिक फैसला भाजपा पार्षदों के खिलाफ चल रही दस सालों की सत्ता विरोधी लहर को काटने के लिए लिया गया था. कुछ राजनीतिक समीक्षक ये मान रहे थे कि मौजूदा 153 पार्षदों की टिकट काटना पार्टी के लिए महंगा पड़ सकता है. पर यह फैसला एक वरदान साबित हुआ. भाजपा लगातार तीसरी बार जीतने में सफल हो गई.
4. मनोज तिवारी को दिल्ली भाजपा का अध्यक्ष बनाना
दिल्ली की पंजाबी बहुल राजनीति में पूर्वांचली चेहरा एवं भोजपुरी गायक मनोज तिवारी को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाना भी एक बहुत बड़ा दांव था. ये किसी भी तरफ जा सकता था.
2015 के चुनाव में पूर्वांचली लोगों का अधिकतर वोट आम आदमी पार्टी के साथ गया गया था. पर इस फैसले से भाजपा ने उन मतदाताओं के एक बड़े वर्ग को अपनी तरफ करने में सफलता पायी. यह प्रयोग भी सफल हो गया.
5. उत्तर प्रदेश की लहर का असर
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड विधानसभा में मिली प्रचंड जीत ने माहौल भाजपामय कर दिया था. राजौरी गार्डन विधानसभा उपचुनाव में मिली बड़ी जीत ने उस लहर को और भी शक्ति दी. उस लहर ने परिणाम भाजपा के पक्ष में मोड़ने में बहुत जयादा मदद की.
6. कांग्रेस का रिवाइवल
2015 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत एक अंक में चला गया एवं एक भी सीट नहीं मिली. लगभग इसके सारे के सारे वोट आप में चले गए थे. भाजपा विरोधी वोट एक जगह इकट्ठा हो गए एवं भाजपा का सफाया हो गया. नगर निगम के चुनाव में कांग्रेस अपने खोये हुए जनाधार में से कुछ वापस पाने में सफल हो गई है. परिणामस्वरूप भाजपा विरोधी वोट दो भागों में बंट गया एवं भाजपा आप एवं कांग्रेस से बहुत ही आगे निकल गई.
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