भर्ती का भर्ता कैसे बनता है अगर आपको जानना है तो पढिये 69000 सहायक अध्यापक भर्ती (69000 shikshak bharti) की यह कड़वी सच्चाई जिसने योगी आदित्यनाथ सरकार (Yogi Adityanath) की रात की नींद उड़ा कर रख दी और गले का फांस बन बैठी. विपक्ष मन ही मन प्रश्न पूछता हुआ गाना गा रहा है 'चुनाव बहुत से लड़े होंगे तुमने, मगर कोई भर्ती भी तुमने करा है?' सिलसिला शुरू होता है उत्तरप्रदेश में भाजपा की सरकार के आने से. उत्तर प्रदेश में सन 2017 में बीजेपी सरकार बहुमत से आयी. और उसने आते ही कुछ दिनों के भीतर प्राइमरी में पढा रहे शिक्षामित्रों (Shikshamitra) के पदों को अवैध घोषित कर दिया और उनको निकालने की ठाना. भाजपा के प्रदेश में आने से बहुतों के जीवन मे खुशी की लहर आ गयी थी. पर कुछ चेहरे ग़म में भी डूब चुके थे. गाना था आने से उसके आये बहार, पर शिक्षामित्रों के मन मे चलने लगा जाने से उसके आये बहार.
शिक्षामित्रों के समुदाय में लगभग भूचाल सा आ गया. सनद रहे कि शिक्षामित्रों का समायोजन समाजवादी पार्टी की सरकार द्वारा किया गया था. और भाजपा को विरोध करने का एक अच्छा मौका मिल चुका था. क्योंकि शिक्षामित्र 12वीं पास की योग्यता से लिए गए थे जो कि NCTE के नियमों के खिलाफ था. अर्थात उसमे कहीं भी इनके स्थायी पद का ज़िक्र नही था. इसका फायदा उठाते हुए योगी सरकार ने शिक्षामित्रों को पद से हटा दिया और कहा 'हमे योग्य शिक्षक चाहिए.'
शिक्षामित्रों के खेमे में तब आयी जान में जान,
जब उनके बीचे आया उनका नेता रिजवान.'
इसी भर्ती में शिक्षामित्रों का नेता रिजवान अंसारी उभर कर आया, उसके नेतृत्व में शिक्षामित्रों ने कई केस व आंदोलन किये. बहुत से शिक्षामित्र (लगभग 90%) 10 साल से अधिक साल तक प्राइमरी में अध्यापन कार्य कर रहे थे. बहुतों की शादी भी इसी पद को स्थायी समझकर हुई थी. जैसा कि सभी को ज्ञात है कि दहेज एक कुप्रथा है परंतु शिक्षामित्रों ने अपने पद के नाम पर...
भर्ती का भर्ता कैसे बनता है अगर आपको जानना है तो पढिये 69000 सहायक अध्यापक भर्ती (69000 shikshak bharti) की यह कड़वी सच्चाई जिसने योगी आदित्यनाथ सरकार (Yogi Adityanath) की रात की नींद उड़ा कर रख दी और गले का फांस बन बैठी. विपक्ष मन ही मन प्रश्न पूछता हुआ गाना गा रहा है 'चुनाव बहुत से लड़े होंगे तुमने, मगर कोई भर्ती भी तुमने करा है?' सिलसिला शुरू होता है उत्तरप्रदेश में भाजपा की सरकार के आने से. उत्तर प्रदेश में सन 2017 में बीजेपी सरकार बहुमत से आयी. और उसने आते ही कुछ दिनों के भीतर प्राइमरी में पढा रहे शिक्षामित्रों (Shikshamitra) के पदों को अवैध घोषित कर दिया और उनको निकालने की ठाना. भाजपा के प्रदेश में आने से बहुतों के जीवन मे खुशी की लहर आ गयी थी. पर कुछ चेहरे ग़म में भी डूब चुके थे. गाना था आने से उसके आये बहार, पर शिक्षामित्रों के मन मे चलने लगा जाने से उसके आये बहार.
शिक्षामित्रों के समुदाय में लगभग भूचाल सा आ गया. सनद रहे कि शिक्षामित्रों का समायोजन समाजवादी पार्टी की सरकार द्वारा किया गया था. और भाजपा को विरोध करने का एक अच्छा मौका मिल चुका था. क्योंकि शिक्षामित्र 12वीं पास की योग्यता से लिए गए थे जो कि NCTE के नियमों के खिलाफ था. अर्थात उसमे कहीं भी इनके स्थायी पद का ज़िक्र नही था. इसका फायदा उठाते हुए योगी सरकार ने शिक्षामित्रों को पद से हटा दिया और कहा 'हमे योग्य शिक्षक चाहिए.'
शिक्षामित्रों के खेमे में तब आयी जान में जान,
जब उनके बीचे आया उनका नेता रिजवान.'
इसी भर्ती में शिक्षामित्रों का नेता रिजवान अंसारी उभर कर आया, उसके नेतृत्व में शिक्षामित्रों ने कई केस व आंदोलन किये. बहुत से शिक्षामित्र (लगभग 90%) 10 साल से अधिक साल तक प्राइमरी में अध्यापन कार्य कर रहे थे. बहुतों की शादी भी इसी पद को स्थायी समझकर हुई थी. जैसा कि सभी को ज्ञात है कि दहेज एक कुप्रथा है परंतु शिक्षामित्रों ने अपने पद के नाम पर लाखों का दहेज लेकर शादी कर ली थी और इस कांड से उनकी इज्जत दांव में लग गयी. गली, मोहल्ले, गांव, और शहर से इनमे तानों की बौछार सी होने लगी. शिक्षामित्रों के दिमाग में बस यही घूम रहा था कि, 'अब जाएं तो जाएं कहां? करें तो करें क्या?'
सुप्रीम कोर्ट के पास शिक्षामित्र गुहार लगाने गए. जहां कोर्ट ने इन्हें 10 हजार मासिक सैलरी में बने रहने को कहा. परन्तु शिक्षामित्रों की सैलरी एक प्राइमरी अध्यापक के सैलरी के बराबर हो चुकी थी अर्थात लगभग 40 हजार से भी अधिक. ऐसे में 10 हजार रुपये मासिक में गुजारा करना उन्हें मुश्किल लगा. शिक्षामित्रों ने पुनः अपील की. और सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षामित्रों को 2 मौके दिए.
आखिर क्या थे शिक्षामित्रों को दिए जाने वाले दो मौके, जिनमे लगाने थे इनको चौके?
इन दो मौकों में शिक्षामित्रों को दूरस्थ संस्थान से डीएलएड (डिप्लोमा इन एलिमेंट्री एजुकेशन) करके TET ( टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट) अर्थात शिक्षक पात्रता परीक्षा को पास करना था. उसके बाद प्राथमिक स्तर के अध्यापक के लिए निकलने वाली भर्तियों में सम्मिलित होकर उसे उत्तीर्ण करना था. साथ ही शिक्षामित्रों को 25 भारांक भी दिया गया. जो तभी जोड़ा जाएगा जब वो परीक्षा की कटऑफ पार कर लेंगे.
2017-18 में 68500 प्राइमरी शिक्षक के पद निकले. जिसमे बीटीसी/डीएलएड किये हुए प्रशिक्षु और शिक्षामित्र सम्मिलित हुए. पदों की संख्या 68500 थी और प्रतियोगियों की संख्या 1 लाख 10 हजार लगभग थी. परीक्षा परिणाम आया और 150 अंक की लिखित परीक्षा में कट ऑफ लगाई गयी 40 और 45 प्रतिशत. अर्थात आरक्षण वर्ग के लिए 40% यानी 60 अंक और अनारक्षित वर्ग के लिए 45% यानी 65 अंक. इस कट ऑफ को पार करने वाला हर प्रतिभागी शिक्षक बनने योग्य माना गया.
68500 पदों में 40-45% की कटऑफ पर 45 हजार लगभग लोग ही पास हो पाए. और एक बार फिर से योगी जी का बयान आया 'उत्तरप्रदेश में योग्य शिक्षकों की कमी है.'
सन 2019 आया. 6 जनवरी को अगली परीक्षा 69000 प्राथमिक अध्यापकों की हुई. पर ये भर्ती 68500 से कुछ अलग थी.
क्यों अलग थी 69000 सहायक अध्यापक उत्तर प्रदेश की भर्ती पिछली 68500 भर्ती से?
इसकी वजह थी इसमे बीएड को शामिल करना. हांलकि बीएड किये हुए छात्राध्यापक बड़ी कक्षा में पढ़ाने के योग्य माने जाते हैं. उनको प्राथमिक में पढ़ाने हेतु प्रशिक्षित नही किया जाता है. प्राथमिक कक्षा के बच्चों को पढ़ाने का अलग मनोविज्ञान होता है और बड़ी कक्षा के बच्चों को पढ़ाने का अलग. परन्तु सरकार बीएड अभ्यर्थियों हेतु पद निकालने में सक्षम नही थी.
इसे सरकार की नाकामी या असफलता ही कहा जाएगा कि 7-8 सालों में बीएड हेतु कोई पद ही न निकले थे. ऐसे में उन अभ्यर्थियों को नौकरी हेतु प्राइवेट विद्यालयों में जाना पड़ता था. सरकार ने इस 69000 भर्ती में बीएड को भी योग्य घोषित करते हुए जगह दे दी. परंतु बीएड को ये कहा गया कि जॉइनिंग के सालभर के भीतर उनको एक ब्रिज कोर्स करना होगा. जिससे वो प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाने हेतु पूर्ण योग्य होंगे.
परीक्षा की आंसर की आयी. और साथ ही अबकी बार कटऑफ 60 और 65 प्रतिशत कर दी. इसकी वजह थी कि इस बार भाग लेने वाले परीक्षार्थी 4 लाख से भी ज़्यादा थे. ऐसे में 40 और 45 प्रतिशत कटऑफ लगाना, मतलब बेवजह लोगों को उम्मीद देना कि आप चयनित हो सकते हैं और इसमे योग्यता भी कम हो जाती.
तो 60-65 प्रतिशत कटऑफ लगने की 2 वजहें मानी गईं.
1- पहली वजह थी कि इस बार अभ्यर्थियों की संख्या लगभग लाख थी.
2- दूसरी वजह इस बार के प्रश्नपत्र में भी बदलाव किया गया.अर्थात लिखित से हटाकर इसे बहुविकल्पीय प्रश्नों वाली ओएमआर शीट बेस्ड परीक्षा बनाया गया.
इस वजह से शिक्षामित्रों को जाना पड़ा फिर से कोर्ट
अब शिक्षामित्रों का कॉम्पटीशन बीएड और बीटीसी दोनों से था. और परीक्षा के शुरुआत में कटऑफ का कोई ज़िक्र न होने की वजह से कुछ ने यह सोच लिया कि हम कुछ भी करके आ जाएंगे 25 भारांक तो मिलना ही है. और कुछ ने सोचा 40 और 45% कटऑफ के हिसाब से पास होने भर का कर लिया जाए. मन मे बस यही चल रहा था 'एक नौकरी चाहिए, ज़िंदगी के लिए'.
पर जब कटऑफ 60 और 65% लगी तो शिक्षामित्रों के पैरों तले जमीन खिसक गई. और रिजवान अंसारी के नेतृत्व में वो कोर्ट गए. और सिंगल बेंच में फैसला उनके हक़ में अर्थात 40 और 45% कटऑफ में आ भी गया. पर सरकार डबल बेंच गयी और फिर वकीलों की दलीलों के बाद फैसला 60-65% कटऑफ का यहां से आया. वकील कई थे जिनमे बीएड और बीटीसी प्रशिक्षुओं ने चंदा इकठ्ठा करके ख़ुद के वकील अलग से भी कर रखे थे. उधर टीम रिजवान अंसारी ने भी मजबूत वकील कर रखे थे.
महीनों ये सब चला और लगभग डेढ़ साल होने को आये हैं. पर सरकार भर्ती कराने में नाकाम रही है. संशोधित उत्तर कुंजी, परीक्षा परिणाम और चयनित सूची आने के बाद फिर से भर्ती की प्रक्रिया रुक गयी. इसके कई कारण हैं.
पहला कारण है कि कुछ प्रशिक्षु एकदम बॉर्डर पर हैं उन्होंने उत्तरकुंजी में दिए कुछ उत्तरों को चुनौती देते हुए केस कर दिया. जिस वजह से उन्ही जज ने जिन्हों 40-45% का फैसला दिया था, भर्ती पर स्टे लगा दिया और PNP (परीक्षा नियामक प्राधिकरण) से GC को सही रिपोर्ट देने को कहा और फैसला 12 जुलाई को सुनाने को कहा और इसी के साथ काउंसलिंग वाले दिन ही भर्ती रुक गयी. सरकार भर्ती से स्टे हटवाने के लिए डबल बेंच गयी परन्तु वहां भी जज ने फैसला सुरक्षित कर लिया और बुधवार को सुनाने को कहा.
दूसरा कारण, इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने टीम रिज़वान की प्रेयर allow करते हुए 37000 शिक्षामित्रों (40/45 पर उत्तीर्ण) के पदों को किया पूर्णतया सुरक्षित कर दिया.
सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट आदेश आया कि ;69000 भर्ती में इन 37339 पदों को सरकार कतई न छेड़े. शेष पदों पर चाहे तो कुछ करे.' और 14 जुलाई को विस्तृत सुनवाई का आदेश दिया.
कुल मिलाकर योगी सरकार के लिए यह भर्ती गले का फांस बन गयी है जिस पर विपक्ष प्रहार कर सकता है और करेगा भी. प्रियंका गांधी ट्वीट करके मुख्यमंंत्री आदित्यनाथ से मांग कर रहे हैं कि वे पारदर्शी रूप से इस मामले की जांच करें. प्रियंका तो इसे सीधे भर्ती घोटाला ही कह रही हैं. जाहिर, जिस भर्ती प्रक्रिया में उत्तर प्रदेश में राजनीति करने वाली सभी पार्टियों की रुचि हो, वह मुद्दा कैसे न बनेगा. लेकिन, फिलहाल बॉल तो योगी आदित्यनाथ के ही पाले में है.
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