यूपी के आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा की सत्ता में वापसी और अखिलेश यादव के दोबारा कुर्सी तक पहुंचने से ज्यादा 'मिस्टिरियस' सवाल तो ये होना चाहिए कि क्या प्रियंका गांधी वाड्रा के नेतृत्व में कांग्रेस का पुनर्जन्म होगा? कांग्रेस का चुनाव में मजबूती से बने रहना उसके लिए यूपी में सरकार बनाने-बिगाड़ने से ज्यादा महत्वपूर्ण है. 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले यह जीवन-मरण का सवाल बना हुआ है क्योंकि देश के सबसे बड़े राज्य में कांग्रेस की सेहत से ही केंद्र में नरेंद्र मोदी के सामने पार्टी की विपक्षी हैसियत तय होगी. यूपी में कांग्रेस को जो भी आधार मिलेगा, वह तय केरेगा कि केंद्र की राजनीति में मोदी के खिलाफ 'मजबूत विपक्ष' किसी गांधी-वाड्रा के पीछे खड़ा होगा या फिर उनका नेतृत्व क्षेत्रीय नेता के रूप में कोई तीसरी ताकत करेगा?
यूपी में लंबे वक्त बाद ऐसा दिखा है जब कांग्रेस में दीर्घकालिक राजनीतिक योजना पर काम हो रहा है. मोदी 2.0 के बाद से ही कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों के लिए पूरा जोर लगाया हुआ है. खासकर यूपी से कांग्रेस और गांधी परिवार को एक ऐसे जनादेश की उम्मीद है जो हिंदी बेल्ट के साथ ही समूचे देश में विपक्षी दलों को बड़ा संदेश देने वाला साबित हो. कांग्रेस के पास कुछ भी खोने के लिए नहीं है. अब तक यूपी प्रियंका गांधी वाड्रा का दूसरा घर बना हुआ है. बाकी चीजों पर कुछ कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन सांगठनिक लिहाज से देखें तो पिछले दो साल से कांग्रेस नेताओं की मेहनत रंग लाती दिख रही है.
ढाई दशकों में यह पहला चुनाव होगा जब हजारों की संख्या में कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस के विधानसभा टिकट में दिलचस्पी दिखाई है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार 'लल्लू' ने बताया- "अब तक सात हजार पार्टी नेताओं/कार्यकर्ताओं ने विधानसभा चुनाव के लिए टिकट पर दावेदारी पेश की है. चुनाव की घोषणा होने तक संख्या में और इजाफे की उम्मीद है. पार्टी सभी विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार है. पार्टी की योग्यता शर्तों के साथ हर एक सीट पर 10 से 20 दावेदार सामने आए हैं." लल्लू ने दावा...
यूपी के आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा की सत्ता में वापसी और अखिलेश यादव के दोबारा कुर्सी तक पहुंचने से ज्यादा 'मिस्टिरियस' सवाल तो ये होना चाहिए कि क्या प्रियंका गांधी वाड्रा के नेतृत्व में कांग्रेस का पुनर्जन्म होगा? कांग्रेस का चुनाव में मजबूती से बने रहना उसके लिए यूपी में सरकार बनाने-बिगाड़ने से ज्यादा महत्वपूर्ण है. 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले यह जीवन-मरण का सवाल बना हुआ है क्योंकि देश के सबसे बड़े राज्य में कांग्रेस की सेहत से ही केंद्र में नरेंद्र मोदी के सामने पार्टी की विपक्षी हैसियत तय होगी. यूपी में कांग्रेस को जो भी आधार मिलेगा, वह तय केरेगा कि केंद्र की राजनीति में मोदी के खिलाफ 'मजबूत विपक्ष' किसी गांधी-वाड्रा के पीछे खड़ा होगा या फिर उनका नेतृत्व क्षेत्रीय नेता के रूप में कोई तीसरी ताकत करेगा?
यूपी में लंबे वक्त बाद ऐसा दिखा है जब कांग्रेस में दीर्घकालिक राजनीतिक योजना पर काम हो रहा है. मोदी 2.0 के बाद से ही कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों के लिए पूरा जोर लगाया हुआ है. खासकर यूपी से कांग्रेस और गांधी परिवार को एक ऐसे जनादेश की उम्मीद है जो हिंदी बेल्ट के साथ ही समूचे देश में विपक्षी दलों को बड़ा संदेश देने वाला साबित हो. कांग्रेस के पास कुछ भी खोने के लिए नहीं है. अब तक यूपी प्रियंका गांधी वाड्रा का दूसरा घर बना हुआ है. बाकी चीजों पर कुछ कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन सांगठनिक लिहाज से देखें तो पिछले दो साल से कांग्रेस नेताओं की मेहनत रंग लाती दिख रही है.
ढाई दशकों में यह पहला चुनाव होगा जब हजारों की संख्या में कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस के विधानसभा टिकट में दिलचस्पी दिखाई है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार 'लल्लू' ने बताया- "अब तक सात हजार पार्टी नेताओं/कार्यकर्ताओं ने विधानसभा चुनाव के लिए टिकट पर दावेदारी पेश की है. चुनाव की घोषणा होने तक संख्या में और इजाफे की उम्मीद है. पार्टी सभी विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार है. पार्टी की योग्यता शर्तों के साथ हर एक सीट पर 10 से 20 दावेदार सामने आए हैं." लल्लू ने दावा किया कि इस बार कांग्रेस यूपी में सभी राजनीतिक पूर्वानुमान ध्वस्त करने जा रही है. पिछली बार कांग्रेस ने 100 सीटों पर गठबंधन में चुनाव लड़ा था और मात्र सात सीट जीतने में कामयाब रही थी.
बड़े पैमाने पर कांग्रेस का टिकट चाहने वाले क्या फर्क डालेंगे यह देखने वाली बात होगी. फिलहाल कांग्रेस ने आवेदकों के लिए टिकट विंडो बंद कर दी है. लेकिन पार्टी सूत्रों का दावा है कि अभी भी आवेदक आ रहे हैं. जिनकी दावेदारी खुद प्रदेश अध्यक्ष आगे बढ़ा रहे उनका नाम दावेदारों की लिस्ट में शामिल किया जा रहा है. कांग्रेस में दावेदारों की भीड़ को इस लिहाज से अहम है कि प्रत्येक दावेदार से पार्टी कोष में 11 हजार रुपये जमा करने, हर दावेदार को सदस्यता लक्ष्य पूरा करने और बनाए गए सदस्यों के जरिए पार्टी कोष में पांच-पांच रुपये का शुल्क जमा करने जैसी शर्तें पूरी करने को कहा गया था. शर्तें निचले स्तर तक पार्टी के सांगठनिक और आर्थिक ढाँचे को मजबूत बनाने के लिए है. कहना नहीं कि प्रतिद्वंद्वियों के मुकाबले अभी भी कांग्रेस का सांगठनिक ढांचा निचले स्तर पर कमजोर है.
सीटिंग विधायकों, सेकंड फाइटर्स का टिकट पक्का; महिलाओं की व्यापक हिस्सेदारी
कांग्रेस के दूसरे सूत्रों ने बताया कि पार्टी बने रहने वाले सभी मौजूदा विधायकों का टिकट बरकरार रहेगा. उन नेताओं को भी टिकट मिलेगा जो पिछले चुनाव या बाद में हुए उपचुनावों में दूसरे नंबर पर रहें. वैसे चार दर्जन से ज्यादा सीटों पर कांग्रेस ने अनाधिकारिक रूप से दावेदारों को संदेश देकर संबंधित निर्वाचन क्षेत्रों में भेज दिया गया है. इनमें प्रियंका के बाद संगठन से जुड़े तमाम पदाधिकारी और नागरिकता क़ानून में आंदोलन करने वाले चेहरे शामिल हैं. टिकट वितरण में युवाओं, महिलाओं और अल्पसंख्यक समुदाय का विशेष ख्याल रखा जा रहा है. हालांकि टिकट वितरण का अनुपात क्या होगा यह खुलासा तो नहीं किया जा सराहा लेकिन पहले से ही तय है कि इस बार 40 प्रतिशत महिलाओं और बड़े पैमाने पर अल्पसंख्यक चेहरों को दावेदारी मिलेगी.
कांग्रेस का चुनावी प्लान क्या है?
कांग्रेस सभी 403 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है. अंदरखाने की जानकारी यह है कि पार्टी तीन मोर्चों पर चुनाव की तैयारी कर रही है. पहला मोर्चे के तहत करीब चार दर्जन से ज्यादा सीटों पर कांग्रेस की नजर है. ये वो सीटें हैं जहां या तो पार्टी ने के सीटिंग विधायक हैं, या बढ़िया मतों के साथ दूसरे और तीसरे नंबर पर है. कांग्रेस के सबसे क्रीम कैंडिडेट इन्हीं चार दर्जन सीटों पर नजर आएंगे. बाकी की सभी सीटों को पार्टी दो तरह से डील करने की कोशिशें हैं. एक- ज्यादातर सीटों पर महिलाओं और जातीय धार्मिक भागीदारी के जरिए एक फ़ॉर्मूला सेट करने की कोशिश होगी. इन सीटों से पार्टी को हार जीत की बहुत उम्मीद नहीं है. मगर यहां वोट प्रतिशत बढाने की कोशिश की जाएगी.
दूसरा- भाजपा में बड़े पैमाने पर सीटिंग विधयकों के टिकट कटने की आशंका है. उधर, अभी भाजपा और सपा के नेतृत्व में सहयोगियों के साथ साझेदारी साफ़ नहीं हुई है. माना जा रहा है कि सीटों के बंटवारे में तमाम असंतुष्ट इधर से उधर हो सकते हैं. अलग-अलग पार्टियों से दावेदार निर्वाचन क्षेत्रों में लगातार कैम्पेन कर रहे हैं. लेकिन यह तय नहीं कि सीटें उनकी पार्टी के हिस्से जाएंगी या किसी दूसरे के खाते में. कांग्रेस को उम्मीद है कि गठबंधनों के सीट शेयरिंग के बाद कई असंतुष्ट उसके काम आ सकते हैं. पश्चिम उत्तर प्रदेश, अवध क्षेत्र और बुंदेलखंड में पार्टी की नजरें हैं.
कुल मिलाकर कांग्रेस का मकसद उत्तर प्रदेश में एक ऐसी पहेली को सुलझाना है जिसमें भविष्य में पार्टी के सामने खड़े तमाम सवालों के जवाब खुद निकलकर सामने आए. विधानसभा चुनाव के बहाने पार्टी लोकसभा चुनावों की जमीन तैयार करने में जुटी है. कांग्रेस को भरोसा है कि इस बार दलित अल्पसंख्यक मतों के साथ पुराने जनाधार का काफी हिस्सा उसके साथ जुड़ने जा रहा है.
सुरक्षा कारणों से पंजाब में मोदी की रैली रद्द होने के बाद जो हालात बनते दिख रहे हैं उसमें यूपी में चौथे नंबर पर दिख रही कांग्रेस- यूपी बीजेपी के निशाने पर होगी. जबकि पार्टी मुख्य विपक्ष नहीं है. कांग्रेस को इसका सीधा फायदा मिल सकता है. तीन तलाक, धारा 370, नागरिकता क़ानून, किसान आंदोलन, महंगाई और सीमा सुरक्षा को लेकर अब तक मोदी के सामने कांग्रेस और उसका शीर्ष नेतृत्व ही सबसे ज्यादा मुखर दिखा है. लेकिन इधर के कुछ महीनों में खासकर अखिलेश की यात्राओं के बाद कांग्रेस, सपा से पिछड़ती दिखी थी. बीजेपी का कांग्रेस पर सीधा हमला यूपी में कांग्रेस को एक विपक्ष के तौर पर स्वीकार्यता दिलाने वाला साबित हो सकता है.
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