विधानपरिषद चुनाव के बाद महाराष्ट्र की सियासत में जो तूफ़ान दिख रहा है उसका असर से लोकसभा भी अछूता नहीं है. शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में पार्टी करीब दो तिहाई से ज्यादा विधायकों ने बगावती तेवर दिखाए हैं. ज्यादातर विधायक पिछले कुछ दिनों से शिंदे के ही साथ हैं. विधायकों की बगावत की वजह से महाराष्ट्र में सेना, एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन की सरकार इस वक्त अल्पमत में है. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने दो दिन पहले ही सरकारी आवास वर्षा खाली भी कर दिया था. हालांकि उन्होंने सरकार बचे रहने का भरोसा जताया है. शिवसेना समेत कई आघाड़ी नेता भी सदन में पर्याप्त संख्याबल का दावा कर रहे हैं.
शिवसेना में बगावत का असर लोकसभा में भी नजर आने लगा है. 2019 में भाजपा के साथ मिलकर शिवसेना ने चुनाव लड़ा था. पार्टी सिम्बल पर 18 सांसद जीतने में कामयाब हुए थे. फिलहाल 18 में से 8 सांसदों के तेवर बगावती नजर आ रहे हैं. रिपोर्ट्स की मानें तो आघाड़ी से उद्धव के ना हटने की स्थिति में सेना के भीतर व्यापक टूट की योजना बनाई गई है. ना सिर्फ विधायक सांसद बल्कि जिला और शहर इकाइयों के साथ ही साथ जिला परिषद और महानगर पालिकाओं में भी तमाम कार्यकर्ता और पदाधिकारी, बागी नेताओं के संपर्क में हैं. साफ़ दिख रहा कि पार्टी सिर्फ विधानसभा या लोकसभा में ही दो फाड़ नहीं होगी.
क्या राज ठाकरे के जाने के बाद सेना में तय है इतिहास की सबसे बड़ी टूट?
साफ़ है कि राज ठाकरे के अलग होने के बाद शिवसेना में एक और बड़ी टूट तय है. वैसे भी लोकल मराठी मीडिया में सेना के बागी गुट को भाजपा की तरफ से मिले आकर्षक ऑफर की चर्चा है. इसमें शिंदे को डिप्टी सीएम का पद, आठ केंद्रीय और पांच राज्यमंत्री का पद दिया जा रहा है. बागी धड़े को केंद्र की मोदी...
विधानपरिषद चुनाव के बाद महाराष्ट्र की सियासत में जो तूफ़ान दिख रहा है उसका असर से लोकसभा भी अछूता नहीं है. शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में पार्टी करीब दो तिहाई से ज्यादा विधायकों ने बगावती तेवर दिखाए हैं. ज्यादातर विधायक पिछले कुछ दिनों से शिंदे के ही साथ हैं. विधायकों की बगावत की वजह से महाराष्ट्र में सेना, एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन की सरकार इस वक्त अल्पमत में है. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने दो दिन पहले ही सरकारी आवास वर्षा खाली भी कर दिया था. हालांकि उन्होंने सरकार बचे रहने का भरोसा जताया है. शिवसेना समेत कई आघाड़ी नेता भी सदन में पर्याप्त संख्याबल का दावा कर रहे हैं.
शिवसेना में बगावत का असर लोकसभा में भी नजर आने लगा है. 2019 में भाजपा के साथ मिलकर शिवसेना ने चुनाव लड़ा था. पार्टी सिम्बल पर 18 सांसद जीतने में कामयाब हुए थे. फिलहाल 18 में से 8 सांसदों के तेवर बगावती नजर आ रहे हैं. रिपोर्ट्स की मानें तो आघाड़ी से उद्धव के ना हटने की स्थिति में सेना के भीतर व्यापक टूट की योजना बनाई गई है. ना सिर्फ विधायक सांसद बल्कि जिला और शहर इकाइयों के साथ ही साथ जिला परिषद और महानगर पालिकाओं में भी तमाम कार्यकर्ता और पदाधिकारी, बागी नेताओं के संपर्क में हैं. साफ़ दिख रहा कि पार्टी सिर्फ विधानसभा या लोकसभा में ही दो फाड़ नहीं होगी.
क्या राज ठाकरे के जाने के बाद सेना में तय है इतिहास की सबसे बड़ी टूट?
साफ़ है कि राज ठाकरे के अलग होने के बाद शिवसेना में एक और बड़ी टूट तय है. वैसे भी लोकल मराठी मीडिया में सेना के बागी गुट को भाजपा की तरफ से मिले आकर्षक ऑफर की चर्चा है. इसमें शिंदे को डिप्टी सीएम का पद, आठ केंद्रीय और पांच राज्यमंत्री का पद दिया जा रहा है. बागी धड़े को केंद्र की मोदी कैबिनेट में भी हिस्सा दिया जाएगा. फिलहाल तो दो मंत्रिपद देने की बात सामने आ रही है. इसके अलावा बागी विधायकों और सांसदों को मंत्रियों के ओहदेवाले मलाईदार पदों पर भी समायोजित करने की तैयारी है. संकट गहराने के साथ ही शिवसेना के सांसदों का रुख भी वक्त के साथ ज्यादा साफ़ होने लगा है. हालांकि अभी तमाम सांसदों ने खुलकर विरोध का रास्ता नहीं अपनाया है.
कुछ सांसदों ने अभी भी खुलकर ठाकरे के नेतृत्व पर भरोसा जताया है. वहीं कुछ सांसदों का विचार है कि सेना को भाजपा के साथ गठबंधन में वापस आ जाना चाहिए. ऐसे सांसदों का मानना है कि वैचारिक रूप से गठबंधन, दोनों दलों के हित में है. कुछ सांसद ना तो उद्धव ठाकरे का नाम ले रहे हैं और ना ही एकनाथ शिंदे का. वे शिवसेना के साथ बने रहने की बात कर रहे हैं. सवाल है कि वे किस शिवसेना के साथ बने रहेंगे? हो सकता है कि कई सांसद अभी वेट एंड वॉच की रणनीति पर चल रहे हों. और सही वक्त पर फैसले सार्वजनिक करें.
ये हो सकते हैं शिवसेना के बागी सांसद
लोकमत मराठी ने शिवसेना के सांसदों से उनका रुख जानना चाहा. कल्याण से सांसद श्रीकांत शिंदे ने पूरे मामले में कोई टीका टिप्पणी नहीं की है. वे एकनाथ के बेटे हैं और अब खुलकर उद्धव ठाकरे के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. उत्तर पश्चिम से सांसद गजानन कीर्तिकर ने शिवसेना के साथ रहने की बात दोहराई है. हालांकि उन्होंने उद्धव ठाकरे का नाम नहीं लिया. राजन विचारे (ठाणे) किस तरफ हैं- मीडिया के सवालों पर कोई जवाब ही नहीं दिया है. कोई जवाब ना देना भी असल में बगावत का ही संकेत माना जा सकता है.
इसी तरह पालघर से सांसद और आदिवासी नेता राजेन्द्र गावित ने बात तो शिवसेना के साथ रहने की कही, मगर पार्टी के अंदरुनी मामलों को लेकर उन्होंने उद्धव ठाकरे का नाम नहीं लिया है. विदर्भ की यवतमाल वाशिम सीट से सांसद बनी भावना गवली के बयान साफ़ इशारा कर रहे कि वे शिंदे खेमे में हैं. उन्होंने हालांकि किसी पक्ष के साथ रहने का बयान नहीं दिया. मगर यह जरूर कहा कि उद्धव ठाकरे को शिंदे की बात सुननी चाहिए.
बुलढाणा के सांसद प्रताप राव जाधव ने भी शिवसेना के साथ ही रहने की बात कही. मगर उन्होंने यह भी कहा कि उद्धव ठाकरे एनसीपी/कांग्रेस की बजाए भाजपा के साथ गठबंधन बनाए. विदर्भ की रामटेक लोकसभा सांसद कृपाल तुमाने ने भी मीडिया के सवालों का कोई जवाब नहीं दिया. उन्होंने स्पष्ट नहीं किया कि वे शिंदे के साथ हैं या फिर ठाकरे के. उनके तेवर को बगावती ही माना जा सकता है. मावल के सांसद श्रीरंग बारने भी शिंदे गुट के संपर्क में बताए जा तरहे थे. हालांकि बाद में वो शिवसेना नेताओं के संपर्क में आ चुके हैं.
विधायकों की तरह शिवसेना का कोई सांसद फिलहाल भूमिगत नहीं है. कुछ दिल्ली, कुछ मुंबई और कई अपने निर्वाचन क्षेत्र या घरों में हैं. ऐसा लग रहा है कि महाराष्ट्र में सरकार बनने-बिगड़ने के बाद ही शिवसेना के सांसद पत्ते खोले. लेकिन यह तो साफ है कि फिलहाल के घटनाक्रम में सेना सांसदों की भी भूमिका है. पिछले दिनों उद्धव ने मुंबई में पार्टी के विधायक सांसदों की आपात मीटिंग बुलाई थी. उसमें भी तीन से चार सांसद अनुपस्थित थे. निर्दलीय संसद नवनीत राणा को एनसीपी के खिलाफ चुनाव में शिवसेना ने समर्थन दिया था. वह भी फिलहाल भाजपा के साथ हैं.
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