करीब साल भर पहले 12 जनवरी 2018 को भारतीय लोकतंत्र, खासकर न्यायपालिका के इतिहास में एक असाधारण घटना हुई. सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस की. सीजेआई के काम करने के तरीकों पर सवाल उठाए गए. सवाल उठाने वालों में शामिल थे जस्टिस जे चेलमेश्वर (अब रिटायर्ड), जस्टिस कुरियन जोसफ (अब रिटायर्ड) और जस्टिस मदन लोकुर (अब रिटायर्ड) और जस्टिस रंजन गोगोई (मौजूदा CJI). इन चारों वरिष्ठ जजों के सवाल उठाने का क्या निष्कर्ष निकला, ये तो बहुत स्पष्ट नहीं हो पाया. लेकिन इस एक साल में सुप्रीम कोर्ट और उसके जजों पर सवालों की बौछार हो गई. चाहे नेता हों, पत्रकार या फिर सोशल मीडिया पर आम पब्लिक. अब न्यायालय और उसके कामकाज पर सवाल उठाना आम हो गया है.
इस साल भर में एक बदलाव ये आया है कि अब किस जज की बेंच को कौन सा केस दिया जाता है, उससे जुड़ा रोस्टर सार्वजनिक कर दिया गया है. खुद पूर्व सीजेआई दीपक मिश्रा ने ही फरवरी 2018 में ये अहम कदम उठाया था. हालांकि, अभी भी ये फैसला सीजेआई ही करते हैं कि कौन सा केस किस जज को देना है, जबकि प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये मांग रखी गई थी कि केस किसी को सौंपने से पहले 5 वरिष्ठ जजों से सुझाव लिए जाने चाहिए. अब जस्टिस मिश्रा तो रिटायर हो चुके हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की अलग-अलग बेंच को केस का आवंटन बारीकी से देखा जाता है. इन आवंटनों पर टिप्पणी होती है कि कौन सा जज किसी फैसले पर कैसा रुख रखता है. अब सुप्रीम कोर्ट की सामान्य कार्यवाही भी सर्वसाधारण की बहस का हिस्सा हो गई है.
CJI पर 'महाभियोग' की अंतहीन सियासत
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करीब साल भर पहले 12 जनवरी 2018 को भारतीय लोकतंत्र, खासकर न्यायपालिका के इतिहास में एक असाधारण घटना हुई. सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस की. सीजेआई के काम करने के तरीकों पर सवाल उठाए गए. सवाल उठाने वालों में शामिल थे जस्टिस जे चेलमेश्वर (अब रिटायर्ड), जस्टिस कुरियन जोसफ (अब रिटायर्ड) और जस्टिस मदन लोकुर (अब रिटायर्ड) और जस्टिस रंजन गोगोई (मौजूदा CJI). इन चारों वरिष्ठ जजों के सवाल उठाने का क्या निष्कर्ष निकला, ये तो बहुत स्पष्ट नहीं हो पाया. लेकिन इस एक साल में सुप्रीम कोर्ट और उसके जजों पर सवालों की बौछार हो गई. चाहे नेता हों, पत्रकार या फिर सोशल मीडिया पर आम पब्लिक. अब न्यायालय और उसके कामकाज पर सवाल उठाना आम हो गया है.
इस साल भर में एक बदलाव ये आया है कि अब किस जज की बेंच को कौन सा केस दिया जाता है, उससे जुड़ा रोस्टर सार्वजनिक कर दिया गया है. खुद पूर्व सीजेआई दीपक मिश्रा ने ही फरवरी 2018 में ये अहम कदम उठाया था. हालांकि, अभी भी ये फैसला सीजेआई ही करते हैं कि कौन सा केस किस जज को देना है, जबकि प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये मांग रखी गई थी कि केस किसी को सौंपने से पहले 5 वरिष्ठ जजों से सुझाव लिए जाने चाहिए. अब जस्टिस मिश्रा तो रिटायर हो चुके हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की अलग-अलग बेंच को केस का आवंटन बारीकी से देखा जाता है. इन आवंटनों पर टिप्पणी होती है कि कौन सा जज किसी फैसले पर कैसा रुख रखता है. अब सुप्रीम कोर्ट की सामान्य कार्यवाही भी सर्वसाधारण की बहस का हिस्सा हो गई है.
CJI पर 'महाभियोग' की अंतहीन सियासत
मार्च 2018 में कांग्रेस के नेतृत्व में 6 अन्य विपक्षी पार्टियों ने साथ मिलकर देश के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग यानी अविश्वास प्रस्ताव लाने का ऐलान किया. इन पार्टियों में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), सीपीएम, सीपीआई और मुस्लिम लीग शामिल थीं. हालांकि, उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने महाभियोग के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था. कपिल सिब्बल ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिसे दीपक मिश्रा ने सुनवाई के लिए 5 जजों की बैंच के पास भेजा. जस्सि मिश्रा के इस ऑर्डर पर सवाल उठाते हुए कि एक CJI, जिसके महाभियोग का प्रस्ताव है, क्या वह प्रशासनिक आदेश दे सकता है, अपनी याचिका वापस ले ली. और इस तरह CJI के पद को लेकर सियासत का सिलसिला अंतहीन रह गया.
कर्नाटक की सियासत में आधी रात को दखल देकर 'इमानदार' हुआ सुप्रीम कोर्ट
कर्नाटक चुनाव के बाद गवर्नर वजूभाईवाला ने अल्पमत में होने के बावजूद भाजपा को सरकार बनाने का न्योता देकर 15 दिन में बहुमत साबित करने मौका दिया. जिसके खिलाफ कांग्रेस और जेडीएस रात को 11 बजे सुप्रीम कोर्ट पहुंची. रात 2.10 पर सुनवाई शुरू हुई और सुबह 4.20 पर राज्यपाल के फैसले को पलटते हुए 24 घंटे के भीतर बहुमत साबित करने के लिए फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया. जस्टिस दीपक मिश्रा पर तरह-तरह के आरोप लगाने वाली कांग्रेस के अभिषेक मनु सिंघवी ने ये भी कहा कि कानून कभी सोता नहीं है.
राम मंदिर पर सुनवाई टली, तो हिंदू संगठनों के लिए 'बेइमान' हो गया सुप्रीम कोर्ट
2 अक्टूबर 2018 को जस्टिस दीपक मिश्रा सीजेआई पद से रिटायर हुए, और उनकी पहले आलोचना कर चुके जस्टिस रंजन गोगोई ने यह संभाला. अब सबकी नजर इसी महीने के आखिर में होने वाली अयोध्या के राम मंदिर केस पर टिकी थी. यूपी सरकार पहले ही मामले की जल्द सुनवाई का आग्रह सुप्रीम कोर्ट से कर चुकी थी. 29 अक्टूबर को कुछ मिनटों की सुनवाई में ही सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि 'उसके पास और भी जरूरी काम है. मामला जनवरी में सुना जाएगा.' सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश हिंदू संगठनों के गले नहीं उतरा. बीजेपी से जुड़े संगठनों ने भी इशारों-इशारों में सुप्रीम कोर्ट पर जानबूझकर मामले को लटकाने की बात कही. 4 जनवरी 2019 को यह मामला जब दोबारा सुना गया तो इसकी अगली तारीख 29 जनवरी को दे दी गई. इस बीच प्रधानमंत्री मोदी ने भी अपने एक इंटरव्यू में मामले पर जल्द फैसला देने पर जोर दिया. सुप्रीम कोर्ट पर दबाव की यह राजनीति जारी है. कांग्रेस और बीजेपी के इसको लेकर अपने-अपने पक्ष हैं. लेकिन, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के बाहर जिस तरह से प्रदर्शन हो रहा है, वैसा किसी मामले में पहले नहीं हुआ.
आलोक वर्मा पर फैसले में जस्टिस सीकरी की भूमिका कांग्रेस के लिए 'संदिग्ध'
सीबीआई चीफ आलोक वर्मा को पद से हटाए जाने के फैसले में जस्टिस एके सीकरी की भूमिका पर सियासत अब भी जारी है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गठित हुई सेलेक्ट कमेटी में प्रधानमंत्री मोदी और नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ CJI के प्रतिनिधि जस्टिस सीकरी को वर्मा का भविष्य तय करना था. खड़गे ने अपनी पार्टी लाइन पर चलते हुए वर्मा के पक्ष में बात रखी थी, तो मोदी ने जाहिरतौर पर इसके विरोध में. सरकार के पक्ष वाली बात कहकर जस्टिस सीकरी ने यह टाई-ब्रेकर खत्म किया, लेकिन फिर वे कांग्रेस की आंखों की किरकिरी बन गए. खड़गे इस फैसले का विरोध करते हुए यहां तक कह दिया कि, ऐसा लग रहा था जैसे दोनों पहले से ही फैसला तय करके बैठे थे. अब जस्टिस सीकरी पर आरोप लगाए जा रहे हैं कि उन्हें मोदी सरकार की ओर से राष्ट्रमंडल सचिवालय मध्यस्थता न्यायाधिकरण (सीएसएटी) के अध्यक्ष का लंदन स्थित पद सौंपा जा रहा था. हालांकि, जस्टिस सीकरी इसे ठुकरा चुके हैं, लेकिन अब उनकी सफाई की किसे जरूरत है.
उस प्रेस कॉन्फ्रेंस को एक साल बीत चुका है, लेकिन अगर आज का वक्त उसे याद करते हुए देखा जाए तो पता चलता है कि जिस बात को लेकर 4 जजों ने विरोध किया था, जजों को केस देने के तरीके पर, वो अभी भी पहले की तरह ही चल रहा है. हां, सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई जरूर बदल गए और बदल गई है लोगों की सोच. पहले सुप्रीम कोर्ट और मुख्य न्यायाधीश पर सवाल उठाने को लोग कोर्ट का अपमान समझते थे, लेकिन चार जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर के विरोध और आलोचना के दरवाजे खोल दिए हैं. अब सोशल मीडिया से लेकर आम जनता तक सुप्रीम कोर्ट पर सवाल उठाने लगी है.
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