भारत में अक्सर पाकिस्तानी गजल गायक गुलाम अली के कॉन्सर्ट का विरोध किया जाता रहा है. खासकर मुंबई में शिवसेना इसकी विरोधी रही है.अक्टूबर 2015 में मुंबई में गुलाम अली का एक शो होने वाला था लेकिन उस वक्त पाकिस्तान की ओर से लगातार गोलीबारी का विरोध करते हुए शिवसेना ने कॉन्सर्ट के आयोजकों को शो रद्द करने चेतावनी दी थी. शो कैंसिल कर दिया गया. उस समय दो राजनीतिक पार्टियों ने इस मौके का फायदा उठाते हुए गुलाम अली का शो अपने राज्य में करवाने की पेशकश की थी. ये दो पार्टियां थीं दिल्ली में शासन कर रही आम आदमी पार्टी और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी त्रणमूल कांग्रेस. और बाजी मार गईं ममता बनर्जी. जिन्होंने जनवरी 2016 में गुलाम अली का वो कॉन्सर्ट कोलकाता में करवाया.
शिवसेना ने विरोध किया और ममत बनर्जी ने अपनाया
हालांकि अक्टूबर 2016 में भी गुलाम अली का कॉन्सर्ट मुंबई में होना था लेकिन तब भी शिवसेना की धमकी की वजह से ये शो रद्द करना पड़ा था. उस वक्त माहौल भी पाकिस्तान के खिलाफ था इसलिए तब गुलाम अली को कहीं किसी ने नहीं बुलाया.
गुलाम अली को हम सीधे-सीधे भारतीय राजनीति में शामिल व्यक्ति नहीं मान सकते हैं, वो तो कलाकार हैं, गजलें गाते हैं. लेकिन इतना तय है कि भारतीय राजनीतिक दल किसी भी मौके का फायदा उठाना नहीं भूलते. कह सकते हैं कि गुलाम अली का उपयोग सभी पार्टियों ने अपने- अपने स्वार्थ के हिसाब से किया. कुछ ने विरोध करके, तो कुछ ने इस विरोध के बाद समर्थन देकर. लेकिन भारत के कुछ कलाकार कला के साथ-साथ अपना राजनीतिक झुकाव भी दिखाते रहते हैं. ऐसे में उनके साथ कंट्रोवर्सी होने की संभावना बनी रहती है. जैसे फिलहाल विवादों में बने हुए हैं टीएम कृष्णा.
टीएम कृष्णा
टीएम कृष्णा कर्नाटक संगीत के विद्वान और गायक हैं. मैग्सेसे अवार्ड विजेता हैं. उनका मानना है कि कर्नाटक संगीत के दायरे को बड़ा किया जाना चाहिए, इसमें दूसरे समुदायों की आवाज़ को भी जगह मिलनी चाहिए. वो कर्नाटक संगीत में अल्लाह के बारे में भी गाते हैं और जीसस के बारे में भी. इसी वजह से कृष्णा का विरोध होता रहता है खासकर वो सरकार की नीतियों की आलोचना करने में भी कसर नहीं छोड़ते. वो देश-विदेश में मोदी सरकार की नीतियों के खिलाफ कुछ न कुछ बोलते रहे हैं. और इसीलिए उन्हें एंटी मोदी, एंटी नेशनल और urban Naxal कहा जाता है.
17 नवंबर को एयरपोर्ट ऑथॉरिटी ऑफ इंडिया (AAI) ने दिल्ली में टीएम कृष्णा के संगीत समारोह का आयोजन रखा था. ट्विटर पर इसकी जानकारी देने के बाद राइट विंग ने विरोध शुरू कर दिया. और AAI ने समारोह रद्द कर दिया. लेकिन तभी आम आदमी पार्टी यानी दिल्ली सरकार ने कृष्णा को न्यौता दे दिया. और अब दिल्ली सरकार खुद टीएम कृष्णा के लिए ‘आवाम की आवाज’ कार्यक्रम आयोजित कर रही है.
अरविंद केजरीवाल का कहना है कि- 'अगर आप सम्मिलित भारत में विश्वास रखते हैं, ऐसा भारत जो सभी धर्म, विचारधारा, जाति से बना हो, तो शनिवार को आपकी उपस्थिति हमारे देश को बांटने और बर्बाद करने की कोशिश करने वाली ताकतों को एक जवाब होगा.'
मनीष सिसोदिया भी बोले- किसी भी कलाकार को प्रस्तुति देने के अवसर से रोका नहीं जाना चाहिए. सिसोदिया ने ट्विटर पर कहा, 'मैंने टी एम कृष्णा को दिल्ली के लोगों के लिए प्रस्तुति देने के लिए आमंत्रित किया है. कला और कलाकार की गरिमा को बरकरार रखना जरूरी है.'
अब आप इसे कला और कलाकार को सम्मान देना कहें या राजनीति एक अदना सी चाल, वो आप समझ सकते हैं. लेकिन कलाकारों के ऐसे विरोध पर आप हमेशा से उन्हें स्वीकारती आई है.
उधर टीएम कृष्णा का कहना है कि - कला का राजनीतिकरण होना चाहिए. कोई कैसे बिना एक्टिविस्ट हुए जिंदा रह सकता है.
कलाकारों के बारे में एक बात तो है कि वो वही गाते हैं जो महसूस करते हैं. लेकिन कोई अगर अल्लाह गाए या ईसा गाए तो उसे राष्ट्र विरोधी तो नहीं कहा जा सकता. लेकिन यहां बात उनकी गायकी की है ही नहीं. यहां विरोध गायकी का कम उनके विचारों का ज्यादा है. वो चाहे कलाकार हो, लेखक हो या कोई भी आम आदमी, अगर कोई राजनीतिक झुकाव रखते हैं और खुलकर अपना मत भी रखते हैं, तो उन्हें विपक्ष का सामना करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए.
कला में राजनीति अच्छी नहीं लगती. लेकिन ये भी सत्य है कि राजनीति तो हर चीज में निकाली जा सकती है. आप गाएं या लिखें, विरोध तो होगा. लेकिन राजनीति की एक अच्छी बात ये भी है कि आप अकेले नहीं है, विपक्ष हमेशा आपको अपनाने के लिए तैयार बैठा है. वो चाहे गुलाम अली हों या फिर टीएम कृष्णा.
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