फुरफुरा शरीफ दरगाह पश्चिम बंगाल के चुनावों में अहम भूमिका निभाती रही है. बीते महीने इस दरगाह के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी से मुलाकात कर पश्चिम बंगाल के राजनीतिक दलों के लिए भूचाल ला दिया था. अब्बास सिद्दीकी और ओवैसी की इस मुलाकात ने तृणमूल कांग्रेस और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को बड़ा झटका दिया था. इसकी वजह है, फुरफुरा शरीफ दरगाह का मुस्लिम वोटों पर अच्छा-खासा प्रभाव. ममता बनर्जी के करीबियों में शामिल रहे पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने पहले नई पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट (ISF) बनाई. अब वह राज्य में कांग्रेस-वाम मोर्चा गठबंधन के पाले में जाकर खड़े हो गए हैं.
अब्बास सिद्दीकी के इस गठबंधन से जुड़ने के बाद पश्चिम बंगाल में राजनीतिक समीकरणों के बदलने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. कांग्रेस-वाम मोर्चा के साथ अब्बास सिद्दीकी का आना इस गठबंधन को मिला 'बूस्टर डोज' माना जा रहा है. इस गठबंधन में आरजेडी और अन्य छोटी पार्टियों के भी शामिल होने की संभावना है. राज्य में भाजपा से सीधी टक्कर ले रही ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस की मुश्किलों में पीरजादा अब्बास सिद्दीकी चार चांद लगा दिए हैं.
ममता बनर्जी के करीबी रहे पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने राजनीति में अपना 'हक' पाने के लिए टीएमसी से दूरी बना ली. अब्बास सिद्दीकी की इस नाराजगी ने ममता के लिए सियासी मुश्किलें बढ़ा दी हैं. पश्चिम बंगाल में करीब 31 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं. इन मतदाताओं पर फुरफुरा शरीफ दरगाह का हमेशा से ही खासा प्रभाव माना जाता रहा है. फुरफुरा शरीफ दरगाह पश्चिम बंगाल की करीब 100 सीटों पर एक अहम भूमिका निभाती है. भाजपा पहले ही ममता बनर्जी के मतुआ समुदाय के वोटबैंक पर हाथ साफ कर चुकी है. इस स्थिति में अब्बास सिद्दीकी का कांग्रेस-वाम गठबंधन में जाना ममता बनर्जी के वोटबैंक में बड़ी सेंध माना जा सकता है.
पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी समान रूप से बंटी हुई नहीं है. मुस्लिम आबादी का बड़ा हिस्सा उत्तर, दक्षिण और मध्य बंगाल में रहता है. वहीं,...
फुरफुरा शरीफ दरगाह पश्चिम बंगाल के चुनावों में अहम भूमिका निभाती रही है. बीते महीने इस दरगाह के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी से मुलाकात कर पश्चिम बंगाल के राजनीतिक दलों के लिए भूचाल ला दिया था. अब्बास सिद्दीकी और ओवैसी की इस मुलाकात ने तृणमूल कांग्रेस और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को बड़ा झटका दिया था. इसकी वजह है, फुरफुरा शरीफ दरगाह का मुस्लिम वोटों पर अच्छा-खासा प्रभाव. ममता बनर्जी के करीबियों में शामिल रहे पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने पहले नई पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट (ISF) बनाई. अब वह राज्य में कांग्रेस-वाम मोर्चा गठबंधन के पाले में जाकर खड़े हो गए हैं.
अब्बास सिद्दीकी के इस गठबंधन से जुड़ने के बाद पश्चिम बंगाल में राजनीतिक समीकरणों के बदलने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. कांग्रेस-वाम मोर्चा के साथ अब्बास सिद्दीकी का आना इस गठबंधन को मिला 'बूस्टर डोज' माना जा रहा है. इस गठबंधन में आरजेडी और अन्य छोटी पार्टियों के भी शामिल होने की संभावना है. राज्य में भाजपा से सीधी टक्कर ले रही ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस की मुश्किलों में पीरजादा अब्बास सिद्दीकी चार चांद लगा दिए हैं.
ममता बनर्जी के करीबी रहे पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने राजनीति में अपना 'हक' पाने के लिए टीएमसी से दूरी बना ली. अब्बास सिद्दीकी की इस नाराजगी ने ममता के लिए सियासी मुश्किलें बढ़ा दी हैं. पश्चिम बंगाल में करीब 31 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं. इन मतदाताओं पर फुरफुरा शरीफ दरगाह का हमेशा से ही खासा प्रभाव माना जाता रहा है. फुरफुरा शरीफ दरगाह पश्चिम बंगाल की करीब 100 सीटों पर एक अहम भूमिका निभाती है. भाजपा पहले ही ममता बनर्जी के मतुआ समुदाय के वोटबैंक पर हाथ साफ कर चुकी है. इस स्थिति में अब्बास सिद्दीकी का कांग्रेस-वाम गठबंधन में जाना ममता बनर्जी के वोटबैंक में बड़ी सेंध माना जा सकता है.
पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी समान रूप से बंटी हुई नहीं है. मुस्लिम आबादी का बड़ा हिस्सा उत्तर, दक्षिण और मध्य बंगाल में रहता है. वहीं, पहाड़ी और जंगलमहल क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी कम है. इस स्थिति में पीरजादा अब्बास सिद्दीकी को पश्चिम बंगाल में कम नहीं आंका जा सकता है. अब्बास सिद्दीकी का दांव सही पड़ गया, तो तृणमूल कांग्रेस के सामने मुस्लिम वोटरों को अपने साथ बनाए रखने की कोशिशों पर पानी फिर सकता है. उत्तर, दक्षिण और मध्य बंगाल की कई सीटों पर मुस्लिम वोटर सीधे हार-जीत का फैसला करने की स्थिति मे हैं. यह स्थिति ममता बनर्जी के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है.
पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच अब तक चल रही सीधी जंग अब्बास सिद्दीकी के कांग्रेस-वाम दल गठबंधन में जाने से चुनाव को त्रिकोणीय बनाता नजर आ रहा है. कहा जा सकता है कि वाम दलों के पास पश्चिम बंगाल में केवल उनका काडर वोट ही बचा है. कमोबेश यही हाल कांग्रेस का भी है. अब्बास सिद्दीकी का इस गठबंधन में जाना एक अलग ही राजनीतिक समीकरण बना रहा है. पश्चिम बंगाल की हर सीट पर मुस्लिम वोटरों के रूप में तृणमूल कांग्रेस को थोड़ा-बहुत नुकसान मिलने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.
जमीनी स्तर पर न दिखने वाली 'सत्ताविरोधी लहर' पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में बड़ा फैक्टर हो सकती है. इस सत्ताविरोधी लहर की वजह से अगर मुस्लिम वोटरों के साथ कांग्रेस और वाम दलों के पुराने मतदाता वापस आ जाते हैं, तो भाजपा को बड़े स्तर पर नुकसान झेलना पड़ सकता है. बीते एक दशक में विकल्प की तलाश में कांग्रेस और वाम दलों से छिटक कर टीएमसी और भाजपा में खाते में जुड़ चुके मतदाताओं की अब्बास सिद्दीकी के आने के बाद वापसी संभव हो सकती है. इससे राज्य में त्रिशंकु विधानसभा की संभावनाओं को और बल मिलेगा.
पीरजादा अब्बास सिद्दीकी दक्षिण बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी हो सकते हैं. भाजपा ने दक्षिण बंगाल में अपने पांव पसारने के लिए शुभेंदु अधिकारी और उनके परिवार पर दांव लगाया है. इस क्षेत्र के कई बड़े नेता हाल ही में भाजपा में शामिल हुए हैं. पश्चिम बंगाल में ध्रुवीकरण के सहारे हिंदू वोट बैंक हासिल करने में कामयाब रही भाजपा उत्तर बंगाल, जंगलमहल और पहाड़ी इलाकों में टीएमसी को कड़ी टक्कर देने को तैयार है. इस स्थिति में अगर टीएमसी के मुस्लिम वोटबैंक में थोड़ा सा भी भटकाव होता है, तो ममता सरकार को इसका भारी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है.
2016 के विधानसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल की 294 विधानसभा सीटों में टीएमसी को 211, लेफ्ट को 33, कांग्रेस को 44 और बीजेपी को 3 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. लेकिन , 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अप्रत्याशित प्रदर्शन करते हुए 42 में से 18 सीटों पर जीत हासिल की. टीएमसी को 22 सीटें और कांग्रेस को 2 सीटें ही मिली. इस दौरान भाजपा का वोट शेयर 40 फीसदी के करीब पहुंच गया. इस चुनाव में तृणमूल कांग्रेस का वोट शेयर 43 फीसदी के करीब था. कांग्रेस और वाम दलों का वोट शेयर गिरा था. यह वोट शेयर इशारा करता है कि भाजपा ने खुद को पश्चिम बंगाल में मुख्य विपक्षी दल के तौर पर स्थापित कर लिया है.
आगामी विधानसभा चुनाव से पहले पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने खुद को 'मैन ऑफ द मैच' साबित कर दिया है. अब्बास सिद्दीकी मुस्लिम वोटों के साथ तृणमूल कांग्रेस के वोटबैंक में बड़ी सेंधमारी करने के लिए तैयार बैठे हैं. वहीं, 'मैन ऑफ द सीरीज' के लिए अब्बास खिताबी दौड़ में शामिल हैं. 'वोटकटवा' के रूप में अब्बास सिद्दीकी और कांग्रेस-वाम गठबंधन तकरीबन हर सीट पर टीएमसी को नुकसान पहुंचाएगा. चुनाव नतीजों के आने के साथ ही यह तय हो जाएगा कि 'मैन ऑफ द सीरीज' के लिए अब्बास सिद्दीकी क्वालीफाई कर पाते हैं या नहीं.
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