राजनीति अलग है और स्पोर्ट्स अलग. दोनों का कॉकटेल दिक्कतें पैदा करता है. करने को तो एक खिलाड़ी राजनीति कर सकता है मगर जब राजनीति में खिलाड़ी आता है तो वो इसमें ज्यादा दूर नहीं जा पाता. बात को समझना हो तो हम सिद्धू और सचिन को बतौर उदाहरण ले सकते हैं. दोनों ने अपने अपने दौर में उम्दा खेल खेला मगर बात जब राजनीति पर आई तो स्थिति हमारे सामने है.
FIFA World Cup 2018 का फाइनल जैसे जैसे नजदीक आ रहा है फैंस के बीच एक्साइटमेंट तेज है. राउंड ऑफ 16 तक आते आते जर्मनी, अर्जेंटीना, पुर्तगाल, स्पेन और डेनमार्क बाहर हो गई हैं. फुटबॉल प्रेमियों का एक वर्ग है जो ये मान रहा है कि अब इस फीफा वर्ल्ड कप 2018 में देखने लायक कुछ बचा नहीं है तो वहीं एक तरफ फुटबॉल लवर्स का एक वर्ग वो भी है जिसका कहना है कि जिन्होंने परफॉर्म किया और अपना बेस्ट दिया वो सामने हैं और जो मैदान में फिसड्डी निकले उन्होंने घर वापसी कर ली.
फीफा की दीवानी दुनिया है. जाहिर है हिंदुस्तान में भी इसके फैंस होंगे. हिंदुस्तान के फैंस भले ही फुटबॉल न खेल पाते हों मगर इन्होंने फुटबॉल को भी राजनीति से जोड़ लिया है और FIFA World Cup 2018 के जरिये अपने मोदी और भाजपा विरोध को सारे देश के सामने पेश किया है.
इस बात को जो समझना हो तो हमें ज्यादा कुछ करनी की जरूरत नहीं है. हमें बस अभिषेक मनु सिंघवी को बतौर उदाहरण लेना होगा. अभिषेक मनु सिंघवी का जो इन दिनों रुख है अगर उसपर गौर करें तो मिल रहा है कि वो अपना सारा काम धंधा छोड़कर हाथ में रिमोट लिए बैठे हैं और मैच के दौरान टीवी स्क्रीन पर भी उन्हें मेसी और रोनाल्डो में अमित शाह और पीएम मोदी दिख रहे थे.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में शुमार अभिषेक मनु सिंघवी ने एक ट्वीट किया...
राजनीति अलग है और स्पोर्ट्स अलग. दोनों का कॉकटेल दिक्कतें पैदा करता है. करने को तो एक खिलाड़ी राजनीति कर सकता है मगर जब राजनीति में खिलाड़ी आता है तो वो इसमें ज्यादा दूर नहीं जा पाता. बात को समझना हो तो हम सिद्धू और सचिन को बतौर उदाहरण ले सकते हैं. दोनों ने अपने अपने दौर में उम्दा खेल खेला मगर बात जब राजनीति पर आई तो स्थिति हमारे सामने है.
FIFA World Cup 2018 का फाइनल जैसे जैसे नजदीक आ रहा है फैंस के बीच एक्साइटमेंट तेज है. राउंड ऑफ 16 तक आते आते जर्मनी, अर्जेंटीना, पुर्तगाल, स्पेन और डेनमार्क बाहर हो गई हैं. फुटबॉल प्रेमियों का एक वर्ग है जो ये मान रहा है कि अब इस फीफा वर्ल्ड कप 2018 में देखने लायक कुछ बचा नहीं है तो वहीं एक तरफ फुटबॉल लवर्स का एक वर्ग वो भी है जिसका कहना है कि जिन्होंने परफॉर्म किया और अपना बेस्ट दिया वो सामने हैं और जो मैदान में फिसड्डी निकले उन्होंने घर वापसी कर ली.
फीफा की दीवानी दुनिया है. जाहिर है हिंदुस्तान में भी इसके फैंस होंगे. हिंदुस्तान के फैंस भले ही फुटबॉल न खेल पाते हों मगर इन्होंने फुटबॉल को भी राजनीति से जोड़ लिया है और FIFA World Cup 2018 के जरिये अपने मोदी और भाजपा विरोध को सारे देश के सामने पेश किया है.
इस बात को जो समझना हो तो हमें ज्यादा कुछ करनी की जरूरत नहीं है. हमें बस अभिषेक मनु सिंघवी को बतौर उदाहरण लेना होगा. अभिषेक मनु सिंघवी का जो इन दिनों रुख है अगर उसपर गौर करें तो मिल रहा है कि वो अपना सारा काम धंधा छोड़कर हाथ में रिमोट लिए बैठे हैं और मैच के दौरान टीवी स्क्रीन पर भी उन्हें मेसी और रोनाल्डो में अमित शाह और पीएम मोदी दिख रहे थे.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में शुमार अभिषेक मनु सिंघवी ने एक ट्वीट किया है. ट्वीट था तो फुटबॉल पर , पर आदत से मजबूर अभिषेक मनु सिंघवी ने इसे 2019 के लोकसभा चुनाव से जोड़ दिया. मेसी और रोनाल्डो जैसे फुटबॉल के दो दिग्गजों की टीमें बाहर होने के बाद अभिषेक मनु सिंघवी ने लिखा कि. "यही होता है जब पूरी टीम बस एक नाम के सहारे चलती है। मेस्सी के अर्जेंटीना के बाद रोनाल्डो का पुर्तगाल भी बाहर हो गया। भाजपा वालों... 2019 के लिए संभल कर.....#Messi #Ronaldo #Modi #Argentina #Portugal #BJP"
इस ट्वीट से साफ है अभिषेक मनु सिंघवी मानते हैं कि आज भाजपा के लिए नरेंद्र मोदी वैसे ही हैं जैसे अर्जेंटीना के लिए मेसी और पुर्तगाल के लिए रोनाल्डो. अब भले ही अभिषेक मनु सिंघवी ने एक बड़ी बात कही हो मगर कहीं न कहीं वो मोदी को एक बड़े चैंपियन की तरह देखते हैं. एक ऐसा चैंपियन जो मैच पलटने की पूरी सामर्थ्य रखता है.
सोशल मीडिया के इस युग का एक दस्तूर है कहता एक है और उसकी बात का समर्थन सब करते हैं. जो व्यक्ति वक्ता की बात का समर्थन कर रहा होता है उसका समर्थन करने का अंदाज उसके बारे में बहुत कुछ बता देता है. बहरहाल इस मामले में भी कांग्रेस के एक अन्य नेता राजीव शुक्ला ने अभिषेक मनु सिंघवी की बात को ये कहते हुए रिट्वीट किया है कि,"वाह अभिषेक जी, क्या टिप्पणी की है और क्या चुस्की ली है".
मेस्सी और रोनाल्डो की तुलना मोदी से करने वाले अभिषेक मनु सिंघवी को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी ही होगी. ऐसा इसलिए क्योंकि उनका जो नेतृत्व कर रहा है वो भले ही उन्हें नेमार लगे मगर जब उसकी परफॉरमेंस पर नजर डालें तो मिल रहा है कि उसके जितने गोल नहीं मारे उससे ज्यादा बार गिरा. कभी वो ऑफ साइड पर पड़ा था तो कभी दर्शकों ने उसे मिडफील्ड पर छटपटाते देखा. कही बात को उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक कहीं भी रखकर किसी भी नजरिये से देख लें बात खुद-ब-खुद शीशे की तरह साफ हो जाएगी. इन तीनों ही राज्यों में राहुल गांधी कोई बड़ा चमत्कार नहीं कर पाए.
कहना गलत नहीं है कि पीएम मोदी पर व्यंग्य बाण चलाने वाले मनु सिंघवी एक बार अपनी पार्टी का रुख करें. उन्हें मिलेगा कि न तो उनकी पार्टी के पास कोई स्ट्राइकर है न डिफेंडर. गेंद अगर गलती से मिड फील्ड के बाहर आ भी गई तो उनकी पार्टी में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो फ़ाउल करा देते हैं और कभी कभी तो सामने वाली पार्टी पेनल्टी से ही जीत जाती है.
अतः उन्हें और राजीव शुक्ला दोनों को ही ये याद रखना होगा कि, कुछ चीजों को लेकर देश की जनता बहुत भावुक है. कहीं ऐसा न हो उनका ये बयान उनके लिए पेनल्टी या फिर सेल्फ गोल का काम न कर दे जिससे उन्हें और पार्टी दोनों को लेने के देने पड़ जाएं.
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