एनडीए के बिखरते जाने के सवाल के जवाब में अमित शाह नीतीश कुमार को चंद्र बाबू नायडू की भरपाई बताते हैं. ठीक उसी तरह कर्नाटक में कुमारस्वामी पर भी शाह की तीसरी आंख फोकस है. बिहार की हार के मुआवजे में जिस तरह नीतीश बीजेपी के हाथ लगे, दिल्ली में 2014 के बाद पहली शिकस्त के बदले बीजेपी कुमार विश्वास में दीवानगी देख रही है - और ओडिशा पहुंचने से पहले ही वो बैजयंत जे. पांडा को बतौर पहली सौगात भी समझ ही रही होगी. तब भी, जबकि पांडा ने बीजेडी छोड़ने के साथ साथ राजनीति से भी संन्यास लेने की घोषणा कर डाली है.
अंदर की खबर जो भी हो, ऊपर से तो ये सब अपनेआप हो रहा है. देश की राजनीतिक स्थिति ही ऐसी बन पड़ी है कि ये सारे वाकये बीजेपी की ओर वैसे ही उन्मुख प्रतीत हो रहे हैं जैसे बिल्ली के भाग्य से सिर्फ एक छींका नहीं, बल्कि एक के बाद एक कई छींके टूटते जा रहे हों या टूट की कगार पर पहुंच चुके हों.
आज नहीं कल सही, कुमारस्वामी जाएंगे कहां?
कर्नाटक में बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा ने न सिर्फ एक ज्योतिषी की तरह भविष्यवाणी की, बल्कि पूरी ताकत और हर संभव संसाधन से उस पर यथाशक्ति अमल भी किया. वो तो सुप्रीम कोर्ट की तीव्र दृष्टि ऐसी आ पड़ी कि भावुक भाषण के साथ पतली गली से निकलना पड़ा. लगता है येदियुरप्पा ने अपनी कुंडली में नवांश के ग्रहों की गणना ठीक से नहीं की या करायी थी. ज्योतिष के गणित और फलित में चूक का जो फर्क है येदियुरप्पा को भी वही ले डूबा. फिलहाल येदियुरप्पा बीजेपी के शलाका पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी की कविता के सिर्फ शुरुआती तीन शब्द 'हार नहीं मानूंगा...' का जप महामृत्युंजय मंत्र की तरह कर रहे हैं - क्योंकि आगे की लाइन न तो उन्हें न ही नये दौर की बीजेपी के किसी भी नेता को सूट करती है - '...रार नहीं ठानूंगा.'
एनडीए के बिखरते जाने के सवाल के जवाब में अमित शाह नीतीश कुमार को चंद्र बाबू नायडू की भरपाई बताते हैं. ठीक उसी तरह कर्नाटक में कुमारस्वामी पर भी शाह की तीसरी आंख फोकस है. बिहार की हार के मुआवजे में जिस तरह नीतीश बीजेपी के हाथ लगे, दिल्ली में 2014 के बाद पहली शिकस्त के बदले बीजेपी कुमार विश्वास में दीवानगी देख रही है - और ओडिशा पहुंचने से पहले ही वो बैजयंत जे. पांडा को बतौर पहली सौगात भी समझ ही रही होगी. तब भी, जबकि पांडा ने बीजेडी छोड़ने के साथ साथ राजनीति से भी संन्यास लेने की घोषणा कर डाली है.
अंदर की खबर जो भी हो, ऊपर से तो ये सब अपनेआप हो रहा है. देश की राजनीतिक स्थिति ही ऐसी बन पड़ी है कि ये सारे वाकये बीजेपी की ओर वैसे ही उन्मुख प्रतीत हो रहे हैं जैसे बिल्ली के भाग्य से सिर्फ एक छींका नहीं, बल्कि एक के बाद एक कई छींके टूटते जा रहे हों या टूट की कगार पर पहुंच चुके हों.
आज नहीं कल सही, कुमारस्वामी जाएंगे कहां?
कर्नाटक में बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा ने न सिर्फ एक ज्योतिषी की तरह भविष्यवाणी की, बल्कि पूरी ताकत और हर संभव संसाधन से उस पर यथाशक्ति अमल भी किया. वो तो सुप्रीम कोर्ट की तीव्र दृष्टि ऐसी आ पड़ी कि भावुक भाषण के साथ पतली गली से निकलना पड़ा. लगता है येदियुरप्पा ने अपनी कुंडली में नवांश के ग्रहों की गणना ठीक से नहीं की या करायी थी. ज्योतिष के गणित और फलित में चूक का जो फर्क है येदियुरप्पा को भी वही ले डूबा. फिलहाल येदियुरप्पा बीजेपी के शलाका पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी की कविता के सिर्फ शुरुआती तीन शब्द 'हार नहीं मानूंगा...' का जप महामृत्युंजय मंत्र की तरह कर रहे हैं - क्योंकि आगे की लाइन न तो उन्हें न ही नये दौर की बीजेपी के किसी भी नेता को सूट करती है - '...रार नहीं ठानूंगा.'
एचडी कुमारस्वामी तो कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बहुत पहले से ही 'पांचों अंगुल घी और सर कढ़ाई में' का स्टेटस एनजॉय कर रहे हैं. चुनाव में जो विरोधी खेमा कुमारस्वामी की पार्टी को दूसरे विरोधी दल की बी-टीम का तमगा देता, नतीजे आने के बाद उसी से हाथ भी मिला लेते हैं. ऊपर से तोहमत ये कि कांग्रेस से गठबंधन न होने पाये इसके लिए ED वाले केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी के फेवर में धमका भी रहे थे.
लेकिन क्या कुमारस्वामी की मौजूदा निष्ठा कर्नाटक की सियासत का स्थाई भाव है?
बीजेपी की बारी तो बाद में आएगी, फिलहाल तो कर्नाटक में छींका कुमारस्वामी के भाग्य से ही टूटा है. अब बीजेपी के नाम पर कुमारस्वामी जब तक चाहें कांग्रेस को ब्लैकमेल कर सकते हैं.
ये ठीक है कि कुमारस्वामी ने कांग्रेस की लिंगायत डिप्टी सीएम की मांग तो ठुकरायी ही, डीके शिवकुमार के उप मुख्यमंत्री बनने की ख्वाहिश में भी अड़ंगा लगा दिया. मौके की नजाकत को देखते हुए कांग्रेस भी कर्नाटक मंत्रिमंडल में वित्त मंत्रालय पर दावा छोड़ ही दिया और कुमारस्वामी भी गृह विभाग देने को राजी हो गये. फिर भी झगड़ा खत्म तभी माना जाएगा जब मंत्रिमंडल का गठन हो जाये - और सरकार चलने लगे.
वैसे कुमारस्वामी ने एक नया सिक्का तो मार्केट में उछाल ही दिया है - 'किसानों के लिए पूर्ण कर्जमाफी लागू नहीं कर पाया तो कुर्सी छोड़ दूंगा.' ऐसा तो नहीं कि कुमारस्वामी ने पाला बदलने के लिए पहले से ही मुद्दे का इंतजाम कर लिया है. अगर कांग्रेस से खटपट हुई तो इसी नाम पर गठबंधन तोड़ देंगे और बीजेपी से जा मिलेंगे. आखिर येदियुरप्पा भी तो किसानों के लिए ही जीने-मरने की कसमें खाते हुए इस्तीफा दिया था. ये तो मानना ही पड़ेगा कि कुमारस्वामी ने कुर्सी का इंतजाम तो कर ही लिया है. आज कांग्रेस सपोर्ट कर रही है तो कल बीजेपी नीतीश कुमार की तरह समर्थन दे सकती है. तब तो यही माना जाएगा कि छींका बीजेपी के भाग्य से टूटा है.
कुमार विश्वास की बेचैनी तो बस बीजेपी समझती है
अरविंद केजरीवाल और उनके कुछ साथियों के माफी मांग लेने के बाद मानहानि केस के कठघरे सिर्फ कुमार विश्वस बचे थे. तब तो यही कहा था कि वो भागने वालों में नहीं हैं आखिरी दम तक लड़ेंगे. सियासत में लगता है आखिरी दम तक का जो पीरियड है वो भी बहुत छोटा होता है. कुमार विश्वास को सेफ-एग्जिट का इंतजार रहा और रास्ता निकल आया. अरुण जेटली ने भी कुमार विश्वास की माफी मंजूर कर ली है.
जेटली से माफी मांगते हुए कुमार विश्वास ने जो चिट्ठी लिखी है वो बड़ी ही मार्मिक और भावनाओं रूप से भरपूर है. चिट्ठी के जरिये कवि हृदय कुमार विश्वास पूछते हैं "हम किससे माफी मांगें? अरुण जी आपसे? आपके परिवार से? नितिनजी सरीखे अन्य नेताओं या मीडिया मुगलों से? विवाद खत्म होने पर सब अपने घरों को लौट जाएंगे. लेकिन उन लाखों कार्यकर्ताओं से कौन माफी मांगेगा जिन्होंने एक सत्तालोलुप कायर झूठे के कहने पर अपना परिवार, कॅरियर और सपने सब दांव पर लगा दिये. उन बच्चों से कौन माफी मांगेगा जिन्होंने एक कायर झूठे के कहे को सच समझ कर आप सब के खिलाफ सड़कों पर प्रदर्शन किया, पुलिस की लाठियां खाईं, लोगों के मज़ाक का पात्र बने."
कुमार विश्वास ने माफी ऐसे वक्त मांगी है जब खबर आ रही है जब उन्हें राज्य सभा भेजे जाने की खबरें भी आ रही हैं. सचिन तेंदुलकर और रेखा का कार्यकाल पूरा होने के बाद माना जा रहा है कि कुमार विश्वास की सीट पक्की हो सकती है. वैसे भी कविता सुनाने के मुकाबले कुमार विश्वास का राजनीतिक कॅरियर छोटा ही है. आम आदमी पार्टी में अरविंद केजरीवाल से तकरार भी राज्य सभा न भेजे जाने पर ही बढ़ी.
कुमार विश्वास के आप छोड़ देने के बाद भले ही अरविंद केजरीवाल एंड कंपनी सुकून महसूस करे, लेकिन ये तो साफ है कि पार्टी एक बड़ा चेहरा तो गंवा ही देगी - और अगर बीजेपी कुमार को लपक लेती है तो उसे डबल फायदा होगा.
पांडा हाथ न लगे तब भी बीजेपी फायदे में रहेगी
बैजयंत जे. पांडा ने बीजू जनता दल से इस्तीफा दे दिया है. वैसे तो पांडा ने इस्तीफे के साथ ही राजनीति से संन्यास की घोषणा कर दी है, लेकिन तय है कि बीजेपी चाहेगी कि पांडा फैसला बदलकर पार्टी के साथ हो लें. ऐसे में जबकि बीजेपी ओडिशा में पांव जमाने की कोशिश में है पांडा का साथ बीजेपी के लिए बहुत फायदेमंद हो सकता है. बीजेपी ओडिशा में उस स्थिति में पांव जमाने और सरकार बनाने की कोशिश कर रही जब सूबे की 21 लोक सभा सीटों में से सिर्फ एक उसके पास है.
कुमार विश्वास की ही तरह केंद्रपाड़ा से सांसद पांडा ने भी ओडिशा के मुख्यमंत्री और बीजेडी नेता नवीन पटनायक को बड़ी ही भावुक चिट्ठी लिखी है. पांडा लिखते हैं, "2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही मैं आपको बताता रहा हूं कि हमारी पार्टी अपने मूल सिद्धांतों से भटक रही है. मेरे खिलाफ साजिश होती रही लेकिन मैंने बगैर आपको बताये कभी कुछ नहीं कहा... मेरे ऊपर अंडे और पत्थर भी फेंके गए... दुख इस बातका रहा कि आपने कभी इन सब के बारे में सोचना भी जरूरी नहीं समझा."
चिट्ठी के जरिये पांडा ने अपनी पीड़ा साझा की है, "ये बड़ा ही तकलीफदेह, दिल तोड़ने वाला और दुखदाई है कि मैंने राजनीति छोड़ने का फैसला किया है... मैं लोकसभा स्पीकर को इस बारे में आधिकारिक रूप से बता दूंगा."
बीजेपी का स्वर्णिम काल अमित शाह की नजर में पश्चिम बंगाल और ओडिशा में पार्टी की सरकार बनने पर ही आएगा. पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव में बीजेपी की हालत देख कर तो कोलकाता दूर लगता है, लेकिन ओडिशा में जो कुछ हो रहा है उससे कटक नजदीक लगने लगा है. कटक इसलिए क्योंकि 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वाराणसी के साथ साथ वहां से भी चुनाव लड़ने की संभावना जतायी जा रही है.
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