दुविधा बहुत घातक होती है. दुविधा की स्थिति में कोई भी शख्स एक कदम आगे तो बढ़ाता है, लेकिन फिर दो कदम पीछे चला जाता है या हालात पीछे जाने को मजबूर कर देते हैं. Congress अरसे से दुविधा के दौर से गुजर रही है. गुजर क्या रही है कहीं ठहर सी गयी है.
Adhir Ranjan Chowdhury को लेकर कांग्रेस ने जो फैसला लिया है, मुश्किल तो उसमें भी हुई ही होगी. मान कर चलना चाहिये कांग्रेस ने काफी मुश्किल से दुविधा को पार किया होगा. फैसला सोनिया को लेना था, इसलिए बेहतर तो होना ही था बनिस्बत Rahul Gandhi के मुकाबले.
अधीर रंजन चौधरी को लोक सभा में नेता बनाये जाने के पीछे कांग्रेस की सोच दूरगामी नजर आ रही है. हो सकता है ये सोच भी मजबूरी का नतीजा हो, लेकिन अपने ओपनिंग शॉट में भी अधीर रंजन चौधरी ने साबित कर दिया है कि राहुल गांधी ने जिम्मेदारी देकर कोई गलती नहीं की है - बल्कि, हाल फिलहाल के फैसलों में ये बेहतरीन है.
कांग्रेस का 'फाइटर' दो-दो हाथ को तैयार है
संसद सत्र शुरू होने के एक दिन पहले एक मीटिंग के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अधीर रंजन चौधरी की पीठ थपथपायी और 'फाइटर' बताया था. प्रधानमंत्री मोदी जब ये शाबाशी दे रहे थे तो वहां कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा भी मौजूद थे.
मोदी की तारीफ पर अधीर रंजन ने कहा था, 'मैंने पीएम को नमस्कार किया. उन्होंने इसके बाद मेरी पीठ थपथपाई और सबके सामने कहा कि अधीर फाइटर हैं. मुझे इस पर खुशी हुई. मेरी किसी से निजी दुश्मनी नहीं है. हम जनप्रतिनिधि हैं और वे भी हैं. हम अपनी आवाज उठाएंगे और वे अपनी. हम संसद में बोलने जा रहे हैं, न कि जंग के मैदान में.'
लोकसभा में कांग्रेस के नेता बनाये गये अधीर रंजन चौधरी ने सदन में अपने पहले ही भाषण में इरादा तो जाहिर किया ही, तेवर भी दिखाया और भविष्य की दशा और दिशा की भी साफ भी झलक दिखा दी.
स्पीकर ओम बिड़ला को मोदी के बधाई देने के बाद अधीर चौधरी का नंबर था. अधीर रंजन ने स्पीकर ओम बिड़ला को बधाई देते देते मोदी सरकार की खिंचाई भी...
दुविधा बहुत घातक होती है. दुविधा की स्थिति में कोई भी शख्स एक कदम आगे तो बढ़ाता है, लेकिन फिर दो कदम पीछे चला जाता है या हालात पीछे जाने को मजबूर कर देते हैं. Congress अरसे से दुविधा के दौर से गुजर रही है. गुजर क्या रही है कहीं ठहर सी गयी है.
Adhir Ranjan Chowdhury को लेकर कांग्रेस ने जो फैसला लिया है, मुश्किल तो उसमें भी हुई ही होगी. मान कर चलना चाहिये कांग्रेस ने काफी मुश्किल से दुविधा को पार किया होगा. फैसला सोनिया को लेना था, इसलिए बेहतर तो होना ही था बनिस्बत Rahul Gandhi के मुकाबले.
अधीर रंजन चौधरी को लोक सभा में नेता बनाये जाने के पीछे कांग्रेस की सोच दूरगामी नजर आ रही है. हो सकता है ये सोच भी मजबूरी का नतीजा हो, लेकिन अपने ओपनिंग शॉट में भी अधीर रंजन चौधरी ने साबित कर दिया है कि राहुल गांधी ने जिम्मेदारी देकर कोई गलती नहीं की है - बल्कि, हाल फिलहाल के फैसलों में ये बेहतरीन है.
कांग्रेस का 'फाइटर' दो-दो हाथ को तैयार है
संसद सत्र शुरू होने के एक दिन पहले एक मीटिंग के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अधीर रंजन चौधरी की पीठ थपथपायी और 'फाइटर' बताया था. प्रधानमंत्री मोदी जब ये शाबाशी दे रहे थे तो वहां कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा भी मौजूद थे.
मोदी की तारीफ पर अधीर रंजन ने कहा था, 'मैंने पीएम को नमस्कार किया. उन्होंने इसके बाद मेरी पीठ थपथपाई और सबके सामने कहा कि अधीर फाइटर हैं. मुझे इस पर खुशी हुई. मेरी किसी से निजी दुश्मनी नहीं है. हम जनप्रतिनिधि हैं और वे भी हैं. हम अपनी आवाज उठाएंगे और वे अपनी. हम संसद में बोलने जा रहे हैं, न कि जंग के मैदान में.'
लोकसभा में कांग्रेस के नेता बनाये गये अधीर रंजन चौधरी ने सदन में अपने पहले ही भाषण में इरादा तो जाहिर किया ही, तेवर भी दिखाया और भविष्य की दशा और दिशा की भी साफ भी झलक दिखा दी.
स्पीकर ओम बिड़ला को मोदी के बधाई देने के बाद अधीर चौधरी का नंबर था. अधीर रंजन ने स्पीकर ओम बिड़ला को बधाई देते देते मोदी सरकार की खिंचाई भी शुरू कर दी. स्पीकर को गार्जियन और संरक्षक बताते हुए अधीर रंजन बोले, 'आप समाजसेवा के साथ कृषि क्षेत्र से भी जुड़े रहे हैं. ऐसे में हमें उम्मीद है कि देश के किसानों की हालात को सुधारने में भी आप अपनी पहल करेंगे. मौजूदा समय में देश में हर रोज 36 किसान आत्महत्या कर रहे हैं, इससे किसान की हालत को समझा जा सकता है.' ध्यान देने वाली बात है कि राहुल गांधी भी किसानों का मुद्दा जोर शोर से उठाते रहे हैं - और मोदी सरकार की किसान सम्मान निधि और कांग्रेस के न्याय का चुनावी वादा भी किसानों के लिए ही है.
किसानों के जिक्र के बाद अधीर रंजन ने लोकतंत्र की गरिमा बनाये रखने के लिए निष्पक्षता का भी जोर देकर जिक्र किया. स्पीकर के माध्यम से अधीर रंजन ने मोदी सरकार 2.0 को आगाह भी किया कि वो अध्यादेशों के जरिये कानून का रास्ता अख्तियार करने से बाज आये. अधीर रंजन ने स्पीकर से कहा कि कांग्रेस चर्चा में यकीन रखती है और - 'हमें हमारा वक्त मिलना चाहिये'.
अधीर रंजन ने एक ही झटके में सत्तापक्ष को मोदी की ही भाषा में चेतावनी देने के साथ साथ स्पीकर से तटस्थ बने रहने की अपील भी - 'प्रधानमंत्री कहते हैं कि पक्ष और विपक्ष नहीं होगा बल्कि निष्पक्ष होगा. लेकिन हम कहना चाहते हैं कि लोकतंत्र में संसदीय सिस्टम है यहा मल्टी पार्टी डेमोक्रेसी है तो पक्ष और विपक्ष के साथ बहुपक्ष भी रहेंगे लेकिन आपको निष्पक्ष रहना होगा.'
कांग्रेस की नजर बंगाल पर
राहुल गांधी के आम चुनाव में हार की जिम्मेदारी लेने के बाद कांग्रेस ने सोनिया गांधी को संसदीय दल का नेता चुन लिया. फिर सोनिया गांधी को तय करना था कि लोक सभा और राज्य सभा में कांग्रेस का नेता कौन होगा. भला कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफे की पेशकश के बाद राहुल गांधी लोक सभा में नेता का पद कहां लेने वाले थे. ऐसी स्थिति में सोनिया गांधी के लिए एक योग्य नेता को चुनना बेहद कठिन था. लोक सभा चुनाव 2019 में ले देकर 52 सीटें जीतने वाली कांग्रेस के पास गिनती के नेता थे जिन्हें जिम्मेदारी दी जा सकती थी.
लोक सभा में कांग्रेस के नेता पद के दावेदार केरल से आने वाले शशि थरूर माने जा रहे थे. राहुल गांधी का केरल को यूपी की जगह नया कार्यक्षेत्र चुन लेना शशि थरूर के लिए घातक साबित हुआ. जब राहुल गांधी खुद केरल की आवाज बुलंद करने में जुटे हों तो शशि थरूर के लिए कोई बचा नहीं था. वैसे भी शशि थरूर को लेकर सोनिया गांधी की राय बहुत अच्छी नहीं रही है. एक बार तो यहां तक कह डाला था कि वो बहुत इधर-उधर गड़बड़ करते हैं. वैसे भी शशि थरूर जैसे नेता अगर संसद में अंग्रेजी में भाषण देते तो हर किसी के लिए मुश्किल ही होता. शशि थरूर के बाद कांग्रेस के कुल 52 पत्तों में पंजाब से आने वाले मनीष तिवारी भी थे - मनीष तिवारी की तो हिंदी और अंग्रेजी पर अच्छी पकड़ के साथ प्रवक्ता होने का अनुभव भी था, लेकिन जब तक कैप्टन अमरिंदर सिंह के हाथों में कमान है और डिस्टर्ब करने के लिए अकेले नवजोत सिंह सिद्धू काफी हैं तो मनीष तिवारी की दावेदारी वैसी खत्म हो जाती है.
अधीर रंजन चौधरी इस सूची में तीसरे नहीं बल्कि आखिरी नेता रहे होंगे - लेकिन अधीर रंजन चौधरी का जुझारूपन और पश्चिम बंगाल से होना उनकी ताकत बना.
अधीर रंजन चौधरी पश्चिम बंगाल से इस पद पर पहुंचने वाले राष्ट्रपति रह चुके प्रणव मुखर्जी के बाद दूसरे सांसद हैं. राष्ट्रपति बनने से पहले मनमोहन सिंह की सरकार के वक्त प्रणब मुखर्जी सदन में कांग्रेस के नेता रहे.
अधीर रंजन चौधरी की खासियत ऐसे समझी जा सकती है कि पश्चिम बंगाल में अगर कुछ लोग कांग्रेस के नाम लेने वाले बचे हैं तो उसका क्रेडिट सिर्फ और सिर्फ अधीर रंजन चौधरी को ही मिलेगा. अधीर रंजन ने पश्चिम बंगाल में बीजेपी, लेफ्ट और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस से बराबर दूरी बनाते हुए राजनीति की है. हालांकि, लोक सभा चुनाव से पहले उनके बीजेपी में शामिल होने तक की अफवाह भी चली थी. लगता है मुकुल रॉय कामयाब नहीं हो पाये.
दिल्ली में अगर शीला दीक्षित को आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन न होने देने का श्रेय मिलता है तो पश्चिम बंगाल में इसके हकदार अधीर रंजन ही हैं. शीला दीक्षित ने तो साबित भी कर दिया कि आप से गठबंधन न करने का उनका फैसला बिलकुल सही था. कांग्रेस ने दिल्ली में आप को तीसरे स्थान पर खदेड़ दिया है.
अधीर रंजन को लोक सभा में कांग्रेस का नेता बनाये जाने में लगता है कांग्रेस की भी नजर पश्चिम बंगाल चुनाव पर टिक गयी है. केरल में तो कांग्रेस ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है - अब उसकी कोशिश होगी कि विधानसभा चुनाव में अच्छे नंबर लाये. मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसी हालत तो बिलकुल न हो.
कांग्रेस को मालूम है कि केरल और पश्चिम बंगाल पर बीजेपी की सधी नजर है. कांग्रेस को ये भी मालूम है कि बीजेपी ने बंगाल में ममता बनर्जी की जमीन काफी कमजोर कर दी है. कांग्रेस को ये भी मालूम तो होगा ही कि ममता बनर्जी जिस तरह की राजनीति कर रही हैं उस राह पर लंबा टिके रहना मुश्किल है.
वैसे भी ममता बनर्जी कांग्रेस के लिए इतना ही मायने रखती हैं क्योंकि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ सख्त रवैया अपनाये हुए हैं. वरना, राहुल गांधी की राह में तो ममता बनर्जी ही रोड़ा बनी रहीं, नहीं तो विपक्ष में कांग्रेस अध्यक्ष को इस तरह हाशिये पर करना मुश्किल था. अधीर रंजन चौधरी पर मोदी सरकार के साथ संसद में दो दो हाथ करने की जिम्मेदारी तो है ही 2021 में कांग्रेस को पश्चिम बंगाल में सत्ता न सही, बेहतर स्थिति में पहुंचाने की भी है. मान कर चलना चाहिये राहुल गांधी खुद से भले निराश हों, अधीर रंजन चौधरी तो ऐसा बिलकुल नहीं होने देंगे.
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