राजनीति में समीकरण लगातार बदलते रहते हैं. और, ये समीकरण सत्ता परिवर्तन की ओर ले जाते हैं. इसी तरह के समीकरण 2017 के चुनावों से पहले तैयार किए गए थे. हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी ने अपने अलग-अलग आंदोलनों और सक्रियता के कारण भाजपा के लिए राह मुश्किल कर दी थी. इसके बावजूद दक्षिण गुजरात की वजह से बीजेपी की राह आसान हुई. गुजरात में बीजेपी को 99 सीटें मिली हैं. कांग्रेस को 77, निर्दलीय को 1, बीटीपी को 2, NCP को 1 और आम आदमी पार्टी का खाता भी नहीं खुला था. लेकिन, 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद से गुजरात में हर साल चुनाव होते रहे हैं.
2018 में कांग्रेस विधायक कुंवरजी बावलिया ने जसदान सीट से इस्तीफा दे दिया और भाजपा में शामिल हो गए. जसदान सीट से भाजपा ने कुंवरजी बावलिया को प्रत्याशी बनाया और उन्होंने जीत हासिल की. जिसके बाद विजय रूपाणी की सरकार में कुंवरजी बावलिया को मंत्री पद भी मिला. 2019 भी कांग्रेस के लिए खराब साबित हुआ. उस साल उंझा से कांग्रेस विधायक आशा बेन पटेल, ध्रांगधरा के विधायक पुरुषोत्तम साबरिया, जामनगर विधायक वल्लभ घावारिया, मनावदार माणावदर के विधायक जवाहर चावड़ा इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गए.
भाजपा ने फिर से इन उम्मीदवारों को मैदान में उतारा और जीत हासिल की. इसके बाद कांग्रेस विधायक अल्पेश ठाकोर ने राधनपुर सीट से इस्तीफा दे दिया था. हालांकि, उपचुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. बायड सीट से कांग्रेस विधायक धवलसिंह झाला ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और भाजपा में शामिल हो गए. धवलसिंह को भाजपा ने मैदान में उतारा था. लेकिन, उन्हें जनता ने स्वीकार नहीं किया और हार का सामना करना पड़ा.
राजनीति में समीकरण लगातार बदलते रहते हैं. और, ये समीकरण सत्ता परिवर्तन की ओर ले जाते हैं. इसी तरह के समीकरण 2017 के चुनावों से पहले तैयार किए गए थे. हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी ने अपने अलग-अलग आंदोलनों और सक्रियता के कारण भाजपा के लिए राह मुश्किल कर दी थी. इसके बावजूद दक्षिण गुजरात की वजह से बीजेपी की राह आसान हुई. गुजरात में बीजेपी को 99 सीटें मिली हैं. कांग्रेस को 77, निर्दलीय को 1, बीटीपी को 2, NCP को 1 और आम आदमी पार्टी का खाता भी नहीं खुला था. लेकिन, 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद से गुजरात में हर साल चुनाव होते रहे हैं.
2018 में कांग्रेस विधायक कुंवरजी बावलिया ने जसदान सीट से इस्तीफा दे दिया और भाजपा में शामिल हो गए. जसदान सीट से भाजपा ने कुंवरजी बावलिया को प्रत्याशी बनाया और उन्होंने जीत हासिल की. जिसके बाद विजय रूपाणी की सरकार में कुंवरजी बावलिया को मंत्री पद भी मिला. 2019 भी कांग्रेस के लिए खराब साबित हुआ. उस साल उंझा से कांग्रेस विधायक आशा बेन पटेल, ध्रांगधरा के विधायक पुरुषोत्तम साबरिया, जामनगर विधायक वल्लभ घावारिया, मनावदार माणावदर के विधायक जवाहर चावड़ा इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गए.
भाजपा ने फिर से इन उम्मीदवारों को मैदान में उतारा और जीत हासिल की. इसके बाद कांग्रेस विधायक अल्पेश ठाकोर ने राधनपुर सीट से इस्तीफा दे दिया था. हालांकि, उपचुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. बायड सीट से कांग्रेस विधायक धवलसिंह झाला ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और भाजपा में शामिल हो गए. धवलसिंह को भाजपा ने मैदान में उतारा था. लेकिन, उन्हें जनता ने स्वीकार नहीं किया और हार का सामना करना पड़ा.
लोकसभा चुनाव में 4 विधायकों की जीत
2019 के लोकसभा चुनाव में थराद बेठक से विधायक पर्वत पटेल लोकसभा के लिए चुने गए थे और इस सीट पर उपचुनाव हुआ था. जिसमें यह सीट कांग्रेस के गुलाब सिंह राजपूत ने भाजपा से छीन ली थी. भाजपा ने लूणावाड सीट से निर्दलीय निर्वाचित विधायक रतनसिंह राठौर को लोकसभा का टिकट दिया और उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी जिग्नेश पटेल ने जीत हासिल की. खेरालू सीट से भाजपा विधायक भरतसिंह डाभी ने लोकसभा चुनाव जीता और उपचुनाव में भाजपा के उम्मीदवार अजमलजी ठाकोर जीते. जबकि, अमराईवाड़ी सीट से भाजपा विधायक हसमुख पटेल ने लोकसभा चुनाव जीता और उपचुनाव में भाजपा के अपने उम्मीदवार जगदीश पटेल जीते.
वहीं, 2020 में 8 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया. जिसमें कपराडा सीट से जीतूभाई चौधरी, धारी सीट से जेवी काकड़िया, करजन सीट से अक्षय पटेल, गढ़डा सीट से प्रवीण मारू, डांग सीट से मंगल गावित, मोरबी सीट से ब्रीजेश मेराज, अबडासा सीट से प्रद्युम्नसिंह जडेजा और लिंबडी सीट से सोमा पटेल ने इस्तीफा दिया. इन सभी सीटों पर बीजेपी उम्मीदवार ने जीत हासिल की. सोमा पटेल के स्थान पर किरीट सिंह राणा और गढ़डा सीट के स्थान पर प्रवीण मारू ने आत्माराम परमार को टिकट दिया और जीत हासिल की.
2021 में पंचमहल के मोरवा-हडफ से विधायक भूपेंद्रसिंह खांट की सदस्यता रद्द कर दी गई. भूपेंद्र सिंह खांट मोरवा-हडफ से निर्दलीय विधायक थे. अदालत के फैसले के बाद उन्हें विधानसभा अध्यक्ष राजेंद्र त्रिवेदी के द्वारा फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर निलंबित कर दिया गया था. मोरवा-हडफ सीट आदिवासियों के लिए आरक्षित है. तो अध्यक्ष ने इसे लेकर यह कार्रवाई की थी. इस सीट से 2017 के विधानसभा चुनाव में भूपेंद्रसिंह खांट निर्दलीय चुने गए थे.
फर्जी सर्टिफिकेट का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट
हालांकि, इसके बाद भूपेंद्र खांट का निधन हो गया. भूपेंद्र खांट के निधन के बाद यह सीट खाली हुई थी. इस खाली सीट पर 17 अप्रैल 2021 को मतदान हुआ था. जिसमें बीजेपी ने मनीषाबेन सुथार को मैदान में उतारा था. जबकि, कांग्रेस ने सुरेश कटारा को प्रत्याशी बनाया था. इस सीट पर बीजेपी प्रत्याशी मनीषाबेन सुथार ने जीत हासिल की. 2022 में खेड़ब्रह्मा विधानसभा सीट से विधायक और आदिवासी समुदाय के नेता अश्विन कोतवाल ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है.
अब इस साल के आखिरी में गुजरात विधानसभा चुनाव होने हैं. और, 2017 के बाद हुए तमाम उपचुनावों को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि हवा का रुख किसकी ओर है? वैसे, राजनीति भी क्रिकेट की तरह अनिश्चितताओं से भरी हुई है. और, इस बार गुजरात के चुनावी मैदान में आम आदमी पार्टी के तौर पर एक नये खिलाड़ी की एंट्री भी हो चुकी है. देखना दिलचस्प होगा कि गुजरात विधानसभा चुनाव के क्या नतीजे आते हैं?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.