एक गुब्बारा एक हफ्ते से अमेरिकी इलाके में था. अमेरिका ने इसे दक्षिण कैरोलाइना के तट पर मार गिराया. अमेरिकी लड़ाकू विमान एफ-22 ने मिसाइल दागकर इसे गिरा दिया. चीन का कहना है कि यह मौसम के बारे में जानकारी जुटाने वाला सामान्य किस्म का गुब्बारा था. चीन और अमेरिका के बीच राजनयिक तनाव बढ़ गया. घटना की कहानी यही समाप्त नहीं हो जाती है . इसके सन्दर्भ में और भी बहुत कुछ जानने की जरुरत हैं. यदि यह केवल सामान्य किस्म का गुब्बारा था तो अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन का चीनी दौरा क्यों टाल दिया गया. चीन-अमेरिका के संबंधों में इस घटना को एक बड़ा झटका माना जा रहा है. ब्लिंकन के चीन जाने से एक दिन पहले चीन का गुब्बारा अमेरिका के आसमान में नजर आया और जिस तनाव को कम करने के लिए ब्लिंकन चीन जा रहे थे वो बढ़ता दिखने लगा. अमेरिका के पश्चिमी राज्य मोंटाना में इस गुब्बारे को उड़ता पाया गया था. तब इस इलाके में विमानों की उड़ान रोकनी पड़ी थी. यह गुब्बारा मोंटाना में दिखने से पहले अलास्का के अल्यूशन आईलैंड और कनाडा से होकर गुजरा था. दूसरी ओर, चीन ने गुब्बारे के जरिए जासूसी के आरोपों से इनकार किया है. चीन ने इसे एक नागरिक हितों वाला वायुयान बताया, जो रास्ते से भटक गया था. इस गुब्बारे का मकसद मौसम संबंधी जानकारियां जुटाना था.
चीन के सफाई देने के बावजूद अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने दौरा रद्द करने की घोषणा कर दी. अमेरिकी अधिकारियों का कहना था कि ऐसा नहीं था कि इस दौरे से कोई समाधान निकल जाता, लेकिन इससे बातचीत शुरू होने की उम्मीद जरूर थी. इस घटना से यह सवाल उठने लगा है कि क्या चीन ने भारत के साथ भी ऐसी हरकत की है या भविष्य में भी इसका खतरा हो सकता है. राजनयिक तनाव के ताजा दौर में भारत चौकस है और स्थिति पर नजर रखे हुए है. चौकसी का सवाल इसलिए भी अहम है, क्योंकि चीन और भारत के बीच करीब 32 महीनों से पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तनाव के हालात हैं.
हमें नहीं भूलना चाहिए कि अमेरिका में जासूसी गुब्बारा उड़ाकर हड़कंप मचाने वाले चीन ने जनवरी 2022 में हिंद महासागर में भारत के रणनीतिक रूप से बेहद अहम अंडमान निकोबार द्वीप समूह के ऊपर से जासूसी गुब्बारा उड़ाया था. रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि चीन के इस जासूसी गुब्बारे की तस्वीर भी ली गई थी. चीन ने साल 2000 में जापान के ऊपर से भी इसी तरह का जासूसी गुब्बारा उड़ाया था.
पेंटागन की एक रपट के मुताबिक, चीन ने अत्यधिक ऊंचाई पर उड़ने वाले जासूसी गुब्बारे का इस्तेमाल भारत के सैन्य अड्डों की जासूसी के लिए ही किया था. भारत के बेहद अहम नौसैनिक अड्डे अंडमान निकोबार द्वीप समूह के ऊपर से जासूसी गुब्बारा उड़ा था. भारत का यह द्वीप मलक्का जलडमरुमध्य के पास है जहां से चीन की गर्दन को दबोचा जा सकता है. चीन का ज्यादातर व्यापार इसी रास्ते से होता है. पहले भी कभी-कभी पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग इलाके के ऊपर चीन ने बलून उड़ाए हैं. लेकिन यह उनके क्षेत्र में होता रहा तो भारत कुछ कर नहीं सका.
ऐसे गुब्बारों से जैविक या रसायनिक युद्धाग्र के इस्तेमाल की आशंका होती है. इस कारण अमेरिका ने इसे मार गिराने में सावधानी बरती. अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने बयान जारी कर बताया 28 जनवरी को अमेरिका के हवाई क्षेत्र में एलुटिएल द्वीप के पास आसमान में चीन का ये बलून देखा गया था. यह पहले अलास्का और कनाडा से होते हुए दोबारा इडाहो (अमेरिकी हवाई क्षेत्र) में घुसा. गुब्बारा जब समंदर के ऊपर पहुंचा तो, इसे नष्ट करने के लिए वर्जीनिया के लेंग्ले एअरफोर्स अड्डे से एफ-22 रैप्टर लड़ाकू विमानों ने उड़ान भरी.
इस विमान से एआइएम-9एक्स साइडविंडर मिसाइल दागी गई. एफ-22 विमान ने 58 हजार की फीट की ऊंचाई से 60 से 65 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ रहे गुब्बारे पर निशाना साधा. मिसाइल लगने के बाद यह गुब्बारा तट से छह मील दूर 47 फीट गहरे समुद्र में गिर गया. जासूसी बैलून में लगे कैमरे के जरिए ऊपर से देखकर तैनाती का पता कर सकते हैं, सैन्य मूवमेंट का भी पता कर सकते हैं. रडार को छोटी चीजों को पकड़ने मे दिक्कत आती है. जैसे ड्रोन को पकड़ना मुश्किल होता है. उसी तरह बैलून को भी रडार से नहीं पकड़ा जा सकता.
जासूसी गुब्बारे बेहद हल्के होते हैं और इनमें हीलियम गैस भरी जाती है. जासूसी के लिए इसमें एडवांस कैमरे लगाए जाते हैं. जासूसी के मामले में ये गुब्बारे उपग्रहों से भी बेहतर साबित होते हैं.आमतौर पर गुब्बारे पृथ्वी की निचली कक्षा वाले उपग्रह की तुलना में साफ फोटो ले सकते हैं. ऐसा ज्यादातर ऐसे उपग्रह की गति के कारण होता है, जो 90 मिनट में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी कर लेते हैं. उपग्रह दूर से परिक्रमा करते हैं, इसलिए आम तौर पर धुंधली फोटो आती है.
यह बात अहम है कि वह गुब्बारा लंबी दूरी तय कर अमेरिका पहुंचा. भारत के साथ तो चीन की लंबी सीमा रेखा है. भारत का सीमा पर वायु रक्षा प्रणाली मजबूत है और उसे लगातार और मजबूत किया जा रहा है. अब इसकी संभावना कम है कि ऐसा कोई जासूसी गुब्बारा आए और उसे पहचाना न जा सके. हमारे सुखोई-30 और रफाल ऐसे गुब्बारों को मार गिराने में सक्षम हैं.
हमें मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) अशोक मेहता, रक्षा विशेषज्ञ की बात को भी सुनना जरुरी है . उनके अनुसार 'आज के दौर में जासूसी ड्रोन के जरिए भी होती है, लेकिन गुब्बारा ज्यादा लंबे वक्त तक हवा में रह सकता है. उसका निगरानी क्षेत्र ज्यादा होता है. वह स्थिर रह सकता है और आगे-पीछे भी हो सकता है. इसकी आशंका से कोई इनकार नहीं कर सकता कि चीन इस तरह के जासूसी बलून का इस्तेमाल एलएसी के पास भी कर सकता है.
अमेरिका के डिफेंस एक्सपर्ट एचआई सटन ने दावा किया है कि जनवरी 2022 में चीन के जासूसी गुब्बारे ने भारत के सैन्य बेस की जासूसी की थी. इस दौरान चीन के जासूसी गुब्बारे ने अंडमान निकोबार द्वीप समूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर के ऊपर से उड़ान भरी थी. उस दौरान सोशल मीडिया पर इसकी तस्वीर भी वायरल हुई थी.उस वक्त भारत सरकार की तरफ से इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया था. यह खुलासा भी नहीं हो सका था कि यह गुब्बारा किसका था.
हालांकि, तब भी चीन पर ही शक जताया गया था.स्थानीय मीडिया संगठन अंडमान शीखा की 6 जनवरी 2022 की रिपोर्ट में यह सवाल उठाया गया था कि किस एजेंसी ने आसमान में इस गुब्बारे को उड़ाया है और क्यों? यदि इस गुब्बारे को अंडमान में किसी एजेंसी ने नहीं उड़ाया है तो इसे जासूसी के लिए भेजा गया था? अंडमान शीखा ने यह भी कहा था कि अत्याधुनिक सैटलाइट के इस दौर में कौन एक उड़ती हुई चीज से जासूसी करेगा.
अमेरिका की घटना से अब यह खुलासा हो गया है कि चीन जासूसी गुब्बारे को दुनियाभर में उड़ा रहा है. इससे पहले फरवरी 2022 में भी इसी तरह के जासूसी गुब्बारे को अमेरिका के हवाई के पास देखा गया था और उसे मार गिराने के लिए अमेरिका ने अपने एफ-22 रैप्टर फाइटर जेट को भेजा था. हालांकि उस समय चीनी जासूसी गुब्बारे की तस्वीर सामने नहीं आई थी. डिफेंस एक्सपर्ट ने दावा किया है कि चीन इस गुब्बारे का इस्तेमाल परमाणु हथियारों को ले जाने के लिए कर सकता है.
अमेरिकन लीडरशिप एंड पॉलिसी फाउंडेशन की 2015 की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि दुश्मन देश द्वारा लॉन्च किए गए गुब्बारे अमेरिका में परमाणु हथियार गिरा सकते हैं. साथ ही इलेक्ट्रिकल ग्रिड में हस्तक्षेप कर सकते हैं.इस रिपोर्ट के लेखक एयरफोर्स के मेजर डेविड स्टकनबर्ग ने लिखा था कि इस तरह के गुब्बारे को कुछ ही महीनों में बनाकर लॉन्च किया जा सकता है. कई सौ किलोग्राम के हथियार को इतनी ऊंचाई पर ले जाने के बाद इसे कोई रडार भी डिटेक्ट नहीं कर सकता है.
स्टकनबर्ग ने शुक्रवार को कहा कि चीन का यह गुब्बारा एक प्रकार का ड्राई रन है जो अमेरिका को एक रणनीतिक संदेश भेजने के लिए लॉन्च किया गया है.डिफेंस एक्सपर्ट जॉन पैराचिनी ने बताया कि जो गुब्बारा अमेरिका के आसमान में मंडरा रहा था, वह लगभग तीन बस जितना लंबा था. भारत सहित सभी देशों को इस बात का ध्यान देने की जरुरत है कि पहले भी गुब्बारे में बम रखकर गिराए जा चुके हैं .5 मई 1945 की बात है. यानी दूसरे विश्व युद्ध में जर्मनी के आत्मसमर्पण करने से 3 दिन पहले की.
अमेरिका के ओरेगॉन के ब्लाए शहर में छह लोगों की मौत हो गई. स्थानीय मीडिया की खबरों में कहा गया कि मरने वालों के ऊपर बारूद से भरे बड़े-बड़े गुब्बारे गिराए गए. दरअसल, इन गुब्बारों को जापान ने भेजा था.अमेरिकी नेवी के पुराने दस्तावेजों के मुताबिक, गुब्बारे 10 मीटर चौड़े, 20 मीटर ऊंचे थे और इनमें हाइड्रोजन गैस भरी हुई थी.
ये गुब्बारे छोड़ते वक्त जापान ने प्रशांत महासागर के एयर फ्लो यानी वायु प्रवाह का लाभ उठाया था. उन्हें पता था कि हवा इन्हें सीधे अमेरिका तक बहा ले जाएगी.ये गुब्बारे बेहद हल्के कागज से बने थे, जिन पर सेंसर वाले बम लगे थे. इनकी ट्यूब्स में बारूद भरा गया था और साथ में एक एक्टिवेशन डिवाइस भी लगाई गई थी. ये गुब्बारे 12 किलोमीटर की ऊंचाई तक उड़ने में सक्षम थे और एक बार में 7,500 किलोमीटर तक की उड़ान भर सकते थे.
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