'समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल ब्याध, जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध'
रामधारी सिंह दिनकर की ये पंक्तियां जेएनयू, जाट आंदोलन और जम्मू-कश्मीर में देश विरोधी ताकतों का साथ देने वालों या इन मसलों पर तटस्थ रहने वालों के लिए बेहद मौजूं लगती हैं.
देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किए गए जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने छह महीने की सशर्त जमानत दे दी. उन्हें उन पर लगे तमाम आरोपों से दोषमुक्त नहीं किया है. कोर्ट ने कन्हैया को कई तरह के दिशा-निर्देश भी दिए गए हैं. बेशक कन्हैया को कोर्ट से राहत मिल गई है, पर देश आहत है क्योंकि जेएनयू में देश के टुकड़े करने को लेकर नारेबाजी होती है. मां दुर्गा को लेकर अपशब्द कहे जाते हैं. देश का आम अवाम इसलिए भी खफा है कि ये सब करने वालों के समर्थन में कुछ कथित बुद्धिजीवी और देश की बड़ी राजनीतिक पार्टियों के नेता खड़े होते हैं. इनके समर्थन में कुछ विदेशी विश्वविद्लायों के अध्यापक भी सामने आते हैं.
ये सब कहते हैं, 'भारत में अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटा जा रहा है.' और जब जेएनयू में बवाल होता है. लगभग तभी हरियाणा में जाट भी आरक्षण की मांग के समर्थन में हजारों करोड़ रुपये की संपत्ति को स्वाहा कर देते हैं. जाट स्कूलों तक को नहीं छोड़ते. जरा देखिए कि जेएनयू और हरियाणा की घटनाओं में एक समानता है. जेएनयू में देश को तोड़ने वालों के हक में कांग्रेस के वाइस प्रेसिडेंट राहुल गांधी खड़े होते हैं. जेएनयू में देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त छात्रों को लेफ्ट पार्टियों से भी समर्थन मिलता है. वहीं, हरियाणा में कांग्रेस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के राजनीतिक सलाहकार प्रो. वीरेंद्र सिंह भी फंसते नजर आ रहे हैं. वीरेंद्र सिंह का विवादित ऑडियो टेप सामने आने के बाद उनके खिलाफ रोहतक सिविल लाइन थाने में देशद्रोह सहित कई धाराओं में मामला दर्ज हुआ है. यानी जेएनयू के देश विरोधियों से लेकर जाट आंदोलनकारियों को साथ मिल रहा है एक बड़ी पार्टी के नेताओं का.
दरअसल जेएनयू से लेकर हरियाणा तक में सोची-समझी रणनीति के तहत अस्थिरता फैलाई जा रही है. कुछ राजनीतिक दल और अदृश्य ताकतें अपने एजेंडे पूरे करने के लिए हर तरफ गड़बड़ फैला रहे हैं. यही नहीं, जेएनयू...
'समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल ब्याध, जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध'
रामधारी सिंह दिनकर की ये पंक्तियां जेएनयू, जाट आंदोलन और जम्मू-कश्मीर में देश विरोधी ताकतों का साथ देने वालों या इन मसलों पर तटस्थ रहने वालों के लिए बेहद मौजूं लगती हैं.
देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किए गए जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने छह महीने की सशर्त जमानत दे दी. उन्हें उन पर लगे तमाम आरोपों से दोषमुक्त नहीं किया है. कोर्ट ने कन्हैया को कई तरह के दिशा-निर्देश भी दिए गए हैं. बेशक कन्हैया को कोर्ट से राहत मिल गई है, पर देश आहत है क्योंकि जेएनयू में देश के टुकड़े करने को लेकर नारेबाजी होती है. मां दुर्गा को लेकर अपशब्द कहे जाते हैं. देश का आम अवाम इसलिए भी खफा है कि ये सब करने वालों के समर्थन में कुछ कथित बुद्धिजीवी और देश की बड़ी राजनीतिक पार्टियों के नेता खड़े होते हैं. इनके समर्थन में कुछ विदेशी विश्वविद्लायों के अध्यापक भी सामने आते हैं.
ये सब कहते हैं, 'भारत में अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटा जा रहा है.' और जब जेएनयू में बवाल होता है. लगभग तभी हरियाणा में जाट भी आरक्षण की मांग के समर्थन में हजारों करोड़ रुपये की संपत्ति को स्वाहा कर देते हैं. जाट स्कूलों तक को नहीं छोड़ते. जरा देखिए कि जेएनयू और हरियाणा की घटनाओं में एक समानता है. जेएनयू में देश को तोड़ने वालों के हक में कांग्रेस के वाइस प्रेसिडेंट राहुल गांधी खड़े होते हैं. जेएनयू में देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त छात्रों को लेफ्ट पार्टियों से भी समर्थन मिलता है. वहीं, हरियाणा में कांग्रेस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के राजनीतिक सलाहकार प्रो. वीरेंद्र सिंह भी फंसते नजर आ रहे हैं. वीरेंद्र सिंह का विवादित ऑडियो टेप सामने आने के बाद उनके खिलाफ रोहतक सिविल लाइन थाने में देशद्रोह सहित कई धाराओं में मामला दर्ज हुआ है. यानी जेएनयू के देश विरोधियों से लेकर जाट आंदोलनकारियों को साथ मिल रहा है एक बड़ी पार्टी के नेताओं का.
दरअसल जेएनयू से लेकर हरियाणा तक में सोची-समझी रणनीति के तहत अस्थिरता फैलाई जा रही है. कुछ राजनीतिक दल और अदृश्य ताकतें अपने एजेंडे पूरे करने के लिए हर तरफ गड़बड़ फैला रहे हैं. यही नहीं, जेएनयू में संसद भवन हमले के गुनहगार अफजल गुरु को हीरो बनाने वाले और कन्हैया से लेकर उमेर खालिद के हक में बोलने और मार्च निकालने वालों का दोहरा चरित्र तो जरा देखिए. इन्होंने कश्मीर घाटी के उन देश-विरोधी लोगों के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोला जो पाकिस्तान के हक में तब नारेबाजी कर रहे थे जब हाल ही में पंपोर में भारतीय जवान आतंकियों से लड़ रहे थे. उस भीषण मुठभेड़ के दौरान वहां के आस-पास की मस्जिदों से लाउडस्पीकरों से पाकिस्तान और आंतकियों के समर्थन में नारे लगाए जा रहे थे.
आतंकियों को मुजाहिद कह कर जम कर उनका सपोर्ट किया जा रहा था. फरेस्टाबल, दरांगबल, कदलाबल और सेमपोरा जैसे इलाकों की मस्जिदों में आतंकियों के सपोर्ट में नारे लगे. नारों में कहा जा रहा था कि जागो, जागो सुबह हुई, जीवे, जीवे पाकिस्तान और हम क्या चाहते हैं- आजादी. सैकड़ों लड़के एंटरप्रेन्योर डेवलपमेंट इंस्टिट्यूट की बिल्डिंग के आसपास भी नारेबाजी करने पहुंचे. इसी बिल्डिंग में आतंकी छिपे थे और आर्मी एनकाउंटर कर रही थी. आतंकियों के सपोर्ट में पहुंचे लड़कों ने सिक्युरिटी फोर्सेज को कॉम्बैट ऑपरेशन से रोकने की भी कोशिश की. कई राष्ट्रीय अखबारों ने मुठभेड़ के समय कश्मीरी जनता के आतंकियों का साथ देने संबंधी खबरों को छापा भी.
क्या अभिव्यक्ति की आजादी की वकालत करने वालों को पाकिस्तान परस्त लोगों के खिलाफ आवाज नहीं उठानी चाहिए थी? जेएनयू, जाट आंदोलन और जम्मू-कश्मीर की घटनाओं के बाद देश को सोचना होगा कि देश विरोधी ताकतों से कैसे लड़ा जाए? उन्हें किस तरह से कुचला जाए? अब इन ताकतों के खिलाफ देश को एक साथ खड़ा होना होगा. जेएनयू में ताजा छात्र आंदोलन के बाद इसे बहुत महान यूनिवर्सिटी के रूप में पेश किया जा रहा है. कहा जा रहा है कि इधर के स्टुडेंट सर्वश्रेष्ठ होते हैं. कहने वाले कह रहे हैं, इसने देश को अनेक आईएएस, आईएफएस और दूसरी अखिल भारतीय सेवाओं के अफसर दिए. जेएनयू की इन महान उपलब्धियों का दावा वे कर रहे हैं जो जेएनयू में 'भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाअल्लाह, इंशाअल्लाह' के नारे लगाने वालों को नायक साबित करने पर आमादा हैं.
मेरे भी जेएनयू से जुड़े बहुत से मित्र रहे हैं. मैं उनसे भी पूछता रहता हूं कि क्या जेएनयू ने देश को कोई प्रख्यात कवि, उपन्यासकार, कहानीकार, नाटककार, साइंटिस्ट दिया? क्या जेएनयू ने देश को कोई आंत्रप्योनर दिया? मेरे इन सवालों को सुनकर जेएनयू के मेरे मित्रों की पेशानी से पसीना छूटने लगता है. क्योंकि उनके पास मेरे सवालों के जवाब नहीं होते.
अगर जेएनयू अपने करीब पांच दशकों के सफर में एक भी मशहूर कवि, उपन्यासकार, खिलाड़ी, आंत्रप्योनर नहीं निकाल पाया तो उसे महान क्यों कहा जाए? यही नहीं, जेएनयू से कौन सा अतंरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त इतिहासकार, अर्थशास्त्री या भाषाविद निकाला? क्या कोई इस सवाल का भी जवाब देगा? निर्विवाद रूप से जेएनयू को देश ने जितना दिया, उस अनुपात में इसने देश की सेवा नहीं की. इधर से देश-दुनिया को किसी भी क्षेत्र में पर्याप्त विशेषज्ञ नहीं मिले.
इस मसले पर जेएनयू बिरादरी को अपनी गिरेबान में झांकना होगा. और जो मैं नहीं लिखना चाहता था, पर मुझे बड़े भारी मन से लिखना पड़ रहा है. जेएनयू के अनुसूचित जाति और जनजाति, अल्पसंख्यक और पिछड़ा वर्ग छात्रों की तरफ से 4 अक्टूबर 2014 को एक पर्चा अपने कैंपेस में वितरित किया गया. उससे समझ आ जाएगा कि जेएनयू किस तरफ बढ़ रहा है. इस पर्चे का खुलासा संसद में केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी ने किया. उस पर्चे को पढ़ते हुए स्मृति ईरानी ने कहा, 'मुझे ईश्वर माफ करें इस बात को पढ़ने के लिए. दुर्गा पूजा सबसे ज्यादा विवादास्पद और नस्लवादी त्योहार है. जहां प्रतिमा में खूबसूरत दुर्गा मां को काले रंग के स्थानीय निवासी महिषासुर को मारते दिखाया जाता है. महिषासुर एक बहादुर, स्वाभिमानी नेता था, जिसे आर्यों द्वारा शादी के झांसे में फंसाया गया. उन्होंने एक सेक्स वर्कर का सहारा लिया, जिसका नाम दुर्गा था, जिसने महिषासुर को शादी के लिए आकर्षित किया और 9 दिनों तक सुहागरात मनाने के बाद उसकी हत्या कर दी, ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है? कौन मुझसे इस मुद्दे पर कोलकाता की सड़कों पर बहस करना चाहता है?'
अब ये बात समझ से परे है कि विपक्ष एक सुर में इस मसले पर स्मृति ईरानी से माफी की मांग क्यों कर रहा है. यानी कि मां दुर्गा को अपशब्द कहने वालों के साथ कई विपक्षी दल खड़े हैं. बेशक जेएनयू के छात्रों द्वारा दानव महिषासुर के समर्थन में कार्यक्रम को आयोजन किया जाता है, इससे उनकी ओछी मानसिकता का पता चलता है. अब वक्त का तकाजा है कि देश अपने दुश्मनों को पहचानें और कुचले.
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