पीएम मोदी के जीवन पर बनी फिल्म 'पीएम नरेंद्र मोदी' की रिलीज पर बैन लगाने को लेकर काफी दिनों से बहस चल रही थी. तरह-तरह की बातें हुईं, मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा, चुनाव आयोग की विश्वसनीयता तक पर सवाल उठने लगे. आखिरकार काफी ना-नुकुर के बीच चुनाव आयोग ने पीएम मोदी की बायोपिक 'पीएम नरेंद्र मोदी' की रिलीज पर चुनाव खत्म होने तक बैन लगा दिया है. खबर ये भी है कि चुनाव आयोग की लाठी सिर्फ 'पीएम नरेंद्र मोदी' फिल्म पर ही नहीं चली, बल्कि 'नमो टीवी' का प्रसारण भी रोक दिया गया है.
अब सवाल ये उठता है कि आखिर इन सबसे होगा क्या? एक फिल्म देखकर लोग मोदी को वोट दे देंगे? या एक टीवी पर मोदी के भाषणों को देखकर लोगों का मन बदल जाएगा? एक जमाना था जब टीवी नहीं थी, सिर्फ रेडियो या फिर अखबार से ही लोगों तक सूचना पहुंचती थी. उस जमाने में तो ऐसे बैन का मतलब समझ आता है, लेकिन आज स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के जमाने में, जहां हर हाथ में सूचना के माध्यम हैं, तब इस तरह के बैन बेकार की बात से अधिक कुछ नहीं लगते.
वैसे भी, सुबह-शाम टीवी चैनलों पर चल रही डिबेट, भाषण और इंटरव्यू तो आते ही हैं. अगर फिल्म और नमो टीवी से लोग मोदी को वोट दे आएंगे तो क्या राहुल गांधी की कोई रैली या इंटरव्यू देखकर लोग कांग्रेस को वोट नहीं दे देंगे? तो क्या सारे न्यूज चैनलों को भी चुनाव तक के लिए बंद कर देना चाहिए?
सबके टीवी बंद कराने होंगे
इस लोकसभा चुनाव में यूपी की एक राजनीतिक पार्टी 'नागरिक एकता पार्टी' का चुनाव चिन्ह टीवी है. तो क्या सबके घरों में घुसकर उनके टीवी को भी ढक देना चाहिए? बिहार और झारखंड में राष्ट्रीय सहयोग पार्टी को चुनाव चिन्ह हेलमेट मिला है....
पीएम मोदी के जीवन पर बनी फिल्म 'पीएम नरेंद्र मोदी' की रिलीज पर बैन लगाने को लेकर काफी दिनों से बहस चल रही थी. तरह-तरह की बातें हुईं, मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा, चुनाव आयोग की विश्वसनीयता तक पर सवाल उठने लगे. आखिरकार काफी ना-नुकुर के बीच चुनाव आयोग ने पीएम मोदी की बायोपिक 'पीएम नरेंद्र मोदी' की रिलीज पर चुनाव खत्म होने तक बैन लगा दिया है. खबर ये भी है कि चुनाव आयोग की लाठी सिर्फ 'पीएम नरेंद्र मोदी' फिल्म पर ही नहीं चली, बल्कि 'नमो टीवी' का प्रसारण भी रोक दिया गया है.
अब सवाल ये उठता है कि आखिर इन सबसे होगा क्या? एक फिल्म देखकर लोग मोदी को वोट दे देंगे? या एक टीवी पर मोदी के भाषणों को देखकर लोगों का मन बदल जाएगा? एक जमाना था जब टीवी नहीं थी, सिर्फ रेडियो या फिर अखबार से ही लोगों तक सूचना पहुंचती थी. उस जमाने में तो ऐसे बैन का मतलब समझ आता है, लेकिन आज स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के जमाने में, जहां हर हाथ में सूचना के माध्यम हैं, तब इस तरह के बैन बेकार की बात से अधिक कुछ नहीं लगते.
वैसे भी, सुबह-शाम टीवी चैनलों पर चल रही डिबेट, भाषण और इंटरव्यू तो आते ही हैं. अगर फिल्म और नमो टीवी से लोग मोदी को वोट दे आएंगे तो क्या राहुल गांधी की कोई रैली या इंटरव्यू देखकर लोग कांग्रेस को वोट नहीं दे देंगे? तो क्या सारे न्यूज चैनलों को भी चुनाव तक के लिए बंद कर देना चाहिए?
सबके टीवी बंद कराने होंगे
इस लोकसभा चुनाव में यूपी की एक राजनीतिक पार्टी 'नागरिक एकता पार्टी' का चुनाव चिन्ह टीवी है. तो क्या सबके घरों में घुसकर उनके टीवी को भी ढक देना चाहिए? बिहार और झारखंड में राष्ट्रीय सहयोग पार्टी को चुनाव चिन्ह हेलमेट मिला है. यानी हेलमेट देख लिया तो सारे वोट इसी पार्टी को मिल जाएंगे. तो फिर हेलमेट लगाने पर भी बैन लगा देना चाहिए. इससे तो चालान भी खूब कटेंगे और सरकारी खजाने में खूब माल आएगा.
ट्रेन के इंजन तक को नहीं छोड़ा
महाराष्ट्र के बारामती में अंग्रेजों के जमाने का एक भाप से चलने वाला ट्रेन इंजन है, जिसे चुनाव खत्म होने तक के लिए ढक दिया है. वजह ये है कि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) का चुनाव चिन्ह है ट्रेन का इंजन. अब अगर ऐसी बात है तो देश की सारी ट्रेनों को रोक देना चाहिए और उनके इंजन को ढक देना चाहिए, क्योंकि किसी ने ट्रेन का इंजन देख लिया तो सीधा जाकर एमएनएस को वोट डाल आएगा.
हाथियों की मूर्तियां हमेशा ढक दी जाती हैं
हाथियों की मूर्तियां ढक दी गईं, क्योंकि हाथी तो मायावती का चुनाव चिन्ह है. तो सबके हाथों पर भी दस्ताने पहना देने चाहिए क्योंकि वो भी कांग्रेस का चुनाव चिन्ह है, सारे कमल के फूल भी ढकने जरूरी हैं. यहां तक कि कोई साइकिल चलाता हुआ मिल जाए तो आचार संहिता के तहत पहले उसका चालान काट तो और फिर उसकी साइकिल को भी ढक दो, क्योंकि वो भी सपा का निशान है.
चुनाव आयोग ने बैलेट पेपर से होने वाली चुनावी व्यवस्था को ईवीएम से तो बदल दिया, लेकिन अपनी पुरानी मानसिकता से बाहर नहीं निकल पाया है. चार शिकायतें क्या आईं, चुनाव आयोग को लगने लगा कि वही गलत है और शिकायत करने वाले सही हैं. मानो बहुत से लोग एक ही बात कहें तो उनकी बात सही ही होगी. जिस जमाने में हर हाथ में स्मार्टफोन है और हर स्मार्टफोन में जियो का हाई स्पीड इंटरनेट है, उसमें वाट्सऐप, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया के जरिए नेताओं के भाषण या इंटरव्यू फैलाना कौन सी बड़ी बात है. आचार संहिता का मतलब है कि कोई भी सरकारी पैसों से चुनाव प्रचार-प्रसार ना किया जाए. जनता के पैसों दुरुपयोग ना हो, इसलिए आचार संहिता लागू की जाती है. खैर, देखते हैं आने वाले दिनों में क्या-क्या ढका जाता है और चुनाव आयोग क्या-क्या ढक पाता है.
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