लोकसभा चुनाव होने मे तक़रीबन एक साल बचा है. लेकिन बीजेपी अभी से इलेक्शन के रंग में रंगी नजर आ रही है. न केवल पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और अन्य वरिष्ठ नेता बल्कि प्रधानमंत्री भी देश के सभी वर्गों को बीजेपी के तरफ मोड़ने का कार्य कर रहे हैं. अमित शाह और पार्टी के वरिष्ठ नेता जहां 'सम्पर्क फॉर समर्थन' अभियान के तहत चुनिंदा लोगों से मिल रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर नरेंद्र मोदी नमो एप और अन्य माध्यमों के द्वारा समाज के विभिन्न तबके के लोगों को साधने का काम कर रहे हैं.
हाल के दिनों में जिस तरह से विपक्ष द्वारा बीजेपी पर हमला किया जा रहा है वो भी अपने में दिलचस्प है. सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि वो दलित, अल्पसंख्यक, किसान आदि वर्गों की अनदेखी कर रही है. सरकार ने विकास के मुद्दे को भुनाकर केंद्र की सत्ता हासिल की थी लेकिन उसी को उन्होंने भुला दिया. जिस तरह से हाल के विधानसभा और लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी को हार मिली है और विपक्षी एकता में वृद्धि हुई है उससे लगता तो यही है कि 2019 लोकसभा चुनाव में उनकी नैय्या डोल सकती हैं.
इसी के मद्देनजर बीजेपी और नरेंद्र मोदी ने कमान कसनी शुरू कर दी है. बीजेपी को मालूम है कि नरेंद्र मोदी वोटों के बाज़ीगर हैं और माहौल को अपने अनुरूप करने के लिए पार्टी अभी से इलेक्शन मोड में आती नजर आ रही है. हाल-फ़िलहाल घटित कुछ घटनाओं पर अगर हम नजर डालें तो प्रमाणित होता है कि बीजेपी इलेक्शन को लेकर कितनी सीरियस है. नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को जहां एक तरफ गन्ना किसानों से मिल कर न सिर्फ उनकी समस्याओं पर ध्यान दिया बल्कि उनके निवारण का भी संकेत दिया.
वहीं दूसरी तरफ उन्होंने दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्था्न (AIIMS)में कई योजनाओं का...
लोकसभा चुनाव होने मे तक़रीबन एक साल बचा है. लेकिन बीजेपी अभी से इलेक्शन के रंग में रंगी नजर आ रही है. न केवल पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और अन्य वरिष्ठ नेता बल्कि प्रधानमंत्री भी देश के सभी वर्गों को बीजेपी के तरफ मोड़ने का कार्य कर रहे हैं. अमित शाह और पार्टी के वरिष्ठ नेता जहां 'सम्पर्क फॉर समर्थन' अभियान के तहत चुनिंदा लोगों से मिल रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर नरेंद्र मोदी नमो एप और अन्य माध्यमों के द्वारा समाज के विभिन्न तबके के लोगों को साधने का काम कर रहे हैं.
हाल के दिनों में जिस तरह से विपक्ष द्वारा बीजेपी पर हमला किया जा रहा है वो भी अपने में दिलचस्प है. सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि वो दलित, अल्पसंख्यक, किसान आदि वर्गों की अनदेखी कर रही है. सरकार ने विकास के मुद्दे को भुनाकर केंद्र की सत्ता हासिल की थी लेकिन उसी को उन्होंने भुला दिया. जिस तरह से हाल के विधानसभा और लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी को हार मिली है और विपक्षी एकता में वृद्धि हुई है उससे लगता तो यही है कि 2019 लोकसभा चुनाव में उनकी नैय्या डोल सकती हैं.
इसी के मद्देनजर बीजेपी और नरेंद्र मोदी ने कमान कसनी शुरू कर दी है. बीजेपी को मालूम है कि नरेंद्र मोदी वोटों के बाज़ीगर हैं और माहौल को अपने अनुरूप करने के लिए पार्टी अभी से इलेक्शन मोड में आती नजर आ रही है. हाल-फ़िलहाल घटित कुछ घटनाओं पर अगर हम नजर डालें तो प्रमाणित होता है कि बीजेपी इलेक्शन को लेकर कितनी सीरियस है. नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को जहां एक तरफ गन्ना किसानों से मिल कर न सिर्फ उनकी समस्याओं पर ध्यान दिया बल्कि उनके निवारण का भी संकेत दिया.
वहीं दूसरी तरफ उन्होंने दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्था्न (AIIMS)में कई योजनाओं का शिलान्यास किया और कहा कि "हम सिर्फ पत्थर जड़ने नहीं आए हैं बल्कि बदलाव के लिये आए हैं. हम जो कर सकते हैं, वहीं कहते हैं.'' संकेत साफ हैं प्रधानमंत्री पूरे इलेक्शन रंग में आ चुके हैं और विपक्षीयों को भी इसके लिए तैयार रहना पड़ेगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मगहर दौरे से दलितों और पिछड़ों को साधने की कोशिश भी शुरू कर दी है. कबीर के अनुनायी मुस्लिम और दलित दोनों हैं. उत्तर प्रदेश में दलित की आबादी करीब 21 प्रतिशत है तो मुसलमानों की आबादी करीब 19 प्रतिशत है. राज्य की कुल 80 लोक सभा सीट में से 17 सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. यूपी में बस्ती व गोरखपुर मंडल की करीब 15 लोकसभा सीटों पर दलित और पिछड़े प्रभाव रखते हैं. 2019 लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र देखें तो हरियाणा, पंजाब और यूपी से सटे बिहार के जिलों में भी कबीर पंथियों का प्रभाव है.
उत्तरप्रदेश में करीब 7 लाख बुनकरों की आबादी रहती है जो अधिकतर कपीरपंथी है. मतलब साफ हैं समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी जिन्होंने हाल के लोकसभा उपचुनाव में हाथ मिलाया था और बीजेपी को हराया था और जिनकी पैठ दलित, पिछड़ों, मुस्लिमों में काफी अधिक है उन्हें अपनी ओर आकर्षित करना ही मगहर दौरे का मुख्य उद्देश्य था. एक तरह से कहें तो प्रधानमंत्री ने उत्तर प्रदेश से लोकसभा का सियासी बिगुल फूंक दिया है.
नरेंद्र मोदी ने 26 जून को इमरजेंसी की बरसी के दौरान मुंबई में कांग्रेस पर निशाना लगाते हुए कहा था कि लोकतंत्र के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को सजग रखने के लिए इसे याद करना चाहिए. हाल के दिनों में नरेंद्र मोदी विभिन्न तबके के लोगों को नमो एप के माध्यम से सम्बोधित कर रहे हैं. इसी कड़ी में उन्होंने 27 जून को सरकार की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लाभार्थियों से बातचीत की.
20 जून को उन्होंने किसानों को सम्बोधित किया. 15 जून को डिजिटल इंडिया लाभार्थियों से संपर्क साधा था. इससे पहले उन्होंने केंद्र की स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठा चुके लोगों और उज्ज्वला योजना की लाभार्थियों से भी बातचीत की थी. मकसद साफ है बीजेपी लोगों का विश्वास जीतने में अभी से लग गयी है.
बीजेपी केंद्र में चार साल पूरे होने पर ' संपर्क फॉर समर्थन' प्रचार अभियान चला रही है. 2019 लोकसभा इलेक्शन के प्रचार के लिए इसे मेगा अभियान कहा जा सकता है. इस अभियान के तहत बीजेपी बड़ी संख्या में ऐसे लोगों से संपर्क भी करेगी, जो अपने क्षेत्र में दिग्गज और लोकप्रिय हैं ताकि मोदी के कार्यकाल के दौरान हुए कार्यों का प्रसार कर सकें.
बीजेपी के वरिष्ठ नेता इस अभियान के तहत देश की नामी-गिरामी हस्तियों को पार्टी और सरकार के कामकाज से अवगत कराएंगे. केवल अमित शाह ही इस अभियान के तहत 50 बड़ी हस्तियों से मिलेंगे. अमित शाह जिन नामी व्यक्तियों से मिल चुके हैं उनमें स्वामी रामदेव, पूर्व सेना प्रमुख दलबीर सिंह सुहाग, सुभाष कश्यप, पूर्व क्रिकेटर कपिल देव आदि हैं.
इसके साथ-साथ पार्टी अध्यक्ष अमित शाह एनडीए गठबंधन के कई घटक दलों के नेताओं से भी मुलाकात करके उनकी नाराजगी दूर करने की कोशिश में लगे हुए हैं. 2019 लोकसभा चुनाव में विभिन्न राज्यों में एनडीए दलों के बीच सीटों केबंटवारे को लेकर आर-पार की लड़ाई हो सकती है और अमित शाह इसको सुलझाने के लिए अभी से इलेक्शन मोड में आ गए हैं. इसके साथ ही अभी से वे भारत के कई राज्यों का दौरा कर रहे हैं जैसे हाल ही में उन्होंने बंगाल का दौरा किया था. जहां उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को 2019 लोकसभा चुनाव के लिए तैयार होने के साथ ही जीत का मूलमंत्र दिया था.
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