गुजरात चुनाव में टिकट दिये जाने को लेकर अब तक सिर्फ दो बातें ही सामने आयी हैं - एक, बीजेपी अपने ज्यादातर मौजूदा विधायकों को टिकट नहीं देगी और कांग्रेस सभी विधायकों को दोबारा टिकट देगी.
बैठकों के कई दौर के बावजूद दोनों दलों ने उम्मीदवारों के नाम के ऐलान के नाम पर 'पहले-तुम, पहले-तुम' जैसी स्थिति अपना रखी है. असल में, दोनों इस मामले में एक दूसरे का इंतजार कर रहे हैं. गुजरात चुनाव के लिए नोटिफिकेशन जारी हो चुका है. पहले फेज के नामांकन की आखिरी तारीख 21 नवंबर है.
बीजेपी
15 नवंबर को बीजेपी ने बैठक बुलाई तो थी उम्मीदवारों के नाम फाइनल करने के लिए लेकिन ऐसा हो न सका. मीटिंग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह तो थे ही, गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी, डिप्टी सीएम नितिन पटेल और गुजरात बीजेपी अध्यक्ष जीतू वघानी भी दिल्ली पहुंचे थे.
मीटिंग के बाद जेपी नड्डा ने मीडिया को सिर्फ इतना बताया कि गुजरात की सभी सीटों के लिए टिकटों पर चर्चा हुई है. ज्यादा पूछे जाने पर इतना और बताया कि सही वक्त पर टिकट को लेकर फैसला लिया जाएगा.
जिसे टिकट चाहिये वो चाहे जिस मानसिक स्थिति से गुजर रहा हो, सबसे ज्यादा टेंशन तो मौजूदा विधायकों को है. पहले की ही तरह इस बार भी तकरीबन तय है कि बीजेपी के सभी सीटिंग एमएलए को टिकट तो मिलने से रहा. गुजरात के मुख्यमंत्री रहते नरेंद्र मोदी ने 2007 में 47 विधायकों का टिकट काट कर नये उम्मीदवार मैदान में उतारे. 2012 में भी बीजेपी ने यही रवैया अख्तियार किया और इस चक्कर में 30 विधायकों के टिकट कट गये. बीजेपी के इस प्रयोग के पीछे सत्ता विरोधी लहर से बचने की रणनीति होती है और अब तक ये नुस्खा कामयाब रहा है. दिल्ली में हुए एमसीडी चुनावों में भी अमित शाह...
गुजरात चुनाव में टिकट दिये जाने को लेकर अब तक सिर्फ दो बातें ही सामने आयी हैं - एक, बीजेपी अपने ज्यादातर मौजूदा विधायकों को टिकट नहीं देगी और कांग्रेस सभी विधायकों को दोबारा टिकट देगी.
बैठकों के कई दौर के बावजूद दोनों दलों ने उम्मीदवारों के नाम के ऐलान के नाम पर 'पहले-तुम, पहले-तुम' जैसी स्थिति अपना रखी है. असल में, दोनों इस मामले में एक दूसरे का इंतजार कर रहे हैं. गुजरात चुनाव के लिए नोटिफिकेशन जारी हो चुका है. पहले फेज के नामांकन की आखिरी तारीख 21 नवंबर है.
बीजेपी
15 नवंबर को बीजेपी ने बैठक बुलाई तो थी उम्मीदवारों के नाम फाइनल करने के लिए लेकिन ऐसा हो न सका. मीटिंग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह तो थे ही, गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी, डिप्टी सीएम नितिन पटेल और गुजरात बीजेपी अध्यक्ष जीतू वघानी भी दिल्ली पहुंचे थे.
मीटिंग के बाद जेपी नड्डा ने मीडिया को सिर्फ इतना बताया कि गुजरात की सभी सीटों के लिए टिकटों पर चर्चा हुई है. ज्यादा पूछे जाने पर इतना और बताया कि सही वक्त पर टिकट को लेकर फैसला लिया जाएगा.
जिसे टिकट चाहिये वो चाहे जिस मानसिक स्थिति से गुजर रहा हो, सबसे ज्यादा टेंशन तो मौजूदा विधायकों को है. पहले की ही तरह इस बार भी तकरीबन तय है कि बीजेपी के सभी सीटिंग एमएलए को टिकट तो मिलने से रहा. गुजरात के मुख्यमंत्री रहते नरेंद्र मोदी ने 2007 में 47 विधायकों का टिकट काट कर नये उम्मीदवार मैदान में उतारे. 2012 में भी बीजेपी ने यही रवैया अख्तियार किया और इस चक्कर में 30 विधायकों के टिकट कट गये. बीजेपी के इस प्रयोग के पीछे सत्ता विरोधी लहर से बचने की रणनीति होती है और अब तक ये नुस्खा कामयाब रहा है. दिल्ली में हुए एमसीडी चुनावों में भी अमित शाह ने ये प्रयोग किया था. एमसीडी चुनावों में भी इसी लहर के चलते बीजेपी ने एक तरीके से नयी टीम ही मैदान में उतार दी. बीजेपी को इसका फायदा भी मिला.
अब हालत ये है कि जब तक चुनाव लड़ने के लिए सिंबल नहीं मिल जाता किसी विधायक को चैन नहीं पड़ रहा. बल्कि, कई तो तभी मानने को तैयार हैं जब वो नामांकन भर लें और वापसी की तारीख बीत जाये. क्या मालूम आखिरी वक्त में किसे खड़े होने और किसे बैठने का फरमान सुना दिया जाये. कांग्रेस ने इस बार बीजेपी की चुनौतियां तो बढ़ाई ही हैं, तीन युवा नेताओं हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी ने तो मुसीबतों के ढेर ही खड़े कर दिये हैं. 15 नवंबर को कांग्रेस की भी बैठक होने वाली थी लेकिन आखिर में दो दिन के लिए टाल दी गयी.
कांग्रेस
कांग्रेस ने अहमद पटेल के चुनाव में पार्टी का साथ देने के लिए सभी मौजूदा विधायकों को टिकट देने की घोषणा कर रखी है. विरोधियों के दबाव और लालच के बावजूद पार्टी के साथ बने रहने के एवज में कांग्रेस ने ये फैसला किया है.
कांग्रेस की सबसे बड़ी परेशानी बीजेपी के विरोध में खड़े नेताओं की साथ आने को लेकर डिमांड है. कांग्रेस ने अल्पेश ठाकोर को तो मिला लिया है, हार्दिक पटेल को भी साध लेने में कामयाब रही है. जिग्नेश मेवाणी तो अब भी कह रहे हैं कि न तो कांग्रेस से हाथ मिलाएंगे न ही किसी नेता के साथ मंच शेयर करेंगे. सीटों को लेकर अब भी कई नेताओं के साथ पेंच फंसा हुआ है.
बताते हैं कि अल्पेश ने 25 सीटों की मांग की थी लेकिन फिर वो 14 पर मान गये. वैसे भी जिन सीटों पर वो अपने उम्मीदवार उतारेंगे वहां वैसे भी कांग्रेस के ही कार्यकर्ता ज्यादा हैं. साथ ही कुछ सीटों को लेकर अल्पेश की राय को भी पार्टी तवज्जो देगी. हार्दिक पटेल की पाटीदार अनामत आंदोलन समिति ने कांग्रेस से 22 सीटों की मांग की है.
कांग्रेस को सबसे ज्यादा मुश्किल आ रही है आदिवासी नेता छोटूभाई वसावा को लेकर. वसावा जेडीयू के बागी धड़े के वही नेता हैं जिनके वोट ने राज्य सभा चुनाव में अहमद पटेल की जीत में बड़ी भूमिका निभायी.
कांग्रेस वसावा को एहसान का बदला चुकाने को तैयार तो है लेकिन उतना ही जितना तर्कसंगत हो. वसावा की अगुवाई वाली गुजरात जेडीयू का कहना है कि आदिवासी इलाकों की करीब डेढ़ दर्जन सीटों पर उसका खासा प्रभाव है जो बीजेपी को शिकस्त देने में कांग्रेस के मददगार साबित हो सकते हैं. गुजरात जेडीयू कम से कम एक दर्जन सीटें चाह रही है जबकि कांग्रेस दो-तीन सीटों से ज्यादा देने पर राजी नहीं है. इस खींचतान में डेडियापारा विधानसभा सीट भी है जिस पर कांग्रेस अपना दावा जता रही है और छोटूभाई अपने बेटे महेश वसावा को उतारना चाहते हैं.
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