अहमद पटेल (Ahmed Patel) कांग्रेस (Congress) में गांधी परिवार जितना मैंडेट रखते थे, ताउम्र. कांग्रेस में शानदार ओपनिंग पारी के साथ अहमद पटेल ने एक बार जो शुरुआत की तो फिर तरक्की की सीढ़ियां चढ़ते ही गये और तब से नीचे झुक कर देखने के मौके कम ही आये.
28 साल की उम्र में अहमद पटेल गुजरात के भरूच से पहली बार सांसद बने थे - और ये 1977 की बात है. देश में लागू इमरजेंसी के बाद हुआ ये आम चुनाव इंदिरा गांधी की हार के तौर पर याद किया जाता है, लेकिन उसी चुनाव में अहमद पटेल 64 हजार वोटों से जीते थे.
इंदिरा गांधी से सीधे जुड़ जाने की भला इससे बड़ी वजह क्या हो सकती है. कांग्रेस के प्रति अपनी निष्ठा, गांधी परिवार के प्रति वफादारी और ऊपर से नीचे तक घुसपैठ - वो भी पाई पाई के हिसाब-किताब तक, अहमद पटेल की सियासी काबिलियत की मिसाल हैं.
इंदिरा गांधी के बाद राजीव गांधी और फिर सोनिया गांधी - अहमद पटेल सभी के बेहद करीबी, भरोसेमंद और मुश्किलों के घुप्प अंधेरों में ऐसी रोशनी बने रहे जिसमें सूझ-बूझ और सबसे सटीक सलाहियत समाहित रही - अगर किसी को खास पसंद नहीं आये और भरोसा भी हासिल न कर पाये तो वे हैं राहुल गांधी. मुमकिन है राहुल गांधी के पास कामयाबी के किस्से न होने की वजह भी यही रही हो कि अहमद पटेल ने. मजबूरन ही सही, अपनी तरफ से उसे कोरा कागज ही छोड़ दिया. हालांकि, राहुल गांधी को भी नहीं भूलना चाहिये कि 2018 में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की सरकार बनवाने से पहले गुजरात में उनको स्थापित करने के लिए भी सोनिया गांधी अपनी तरफ से अहमद पटेल को ही जिम्मेदारी दी थी. विदेशों में सैम पित्रोदा जो भी किये हों, लेकिन हर मौके पर राहुल गांधी के एक तरफ अशोक गहलोत रहे तो दूसरी तरफ अहमद पटेल ही साये की तरह बने रहे.
नेहरू युग के बाद से अब तक कांग्रेस में नेतृत्व से अलग तीन ताकतवर नेताओं का नाम लिया जाएगा तो संजय गांधी और राहुल गांधी के बीच अहमद पटेल को ही जगह मिलेगी. तीनों ही नेताओं को कांग्रेस में ऐसी पोजीशन मिली की...
अहमद पटेल (Ahmed Patel) कांग्रेस (Congress) में गांधी परिवार जितना मैंडेट रखते थे, ताउम्र. कांग्रेस में शानदार ओपनिंग पारी के साथ अहमद पटेल ने एक बार जो शुरुआत की तो फिर तरक्की की सीढ़ियां चढ़ते ही गये और तब से नीचे झुक कर देखने के मौके कम ही आये.
28 साल की उम्र में अहमद पटेल गुजरात के भरूच से पहली बार सांसद बने थे - और ये 1977 की बात है. देश में लागू इमरजेंसी के बाद हुआ ये आम चुनाव इंदिरा गांधी की हार के तौर पर याद किया जाता है, लेकिन उसी चुनाव में अहमद पटेल 64 हजार वोटों से जीते थे.
इंदिरा गांधी से सीधे जुड़ जाने की भला इससे बड़ी वजह क्या हो सकती है. कांग्रेस के प्रति अपनी निष्ठा, गांधी परिवार के प्रति वफादारी और ऊपर से नीचे तक घुसपैठ - वो भी पाई पाई के हिसाब-किताब तक, अहमद पटेल की सियासी काबिलियत की मिसाल हैं.
इंदिरा गांधी के बाद राजीव गांधी और फिर सोनिया गांधी - अहमद पटेल सभी के बेहद करीबी, भरोसेमंद और मुश्किलों के घुप्प अंधेरों में ऐसी रोशनी बने रहे जिसमें सूझ-बूझ और सबसे सटीक सलाहियत समाहित रही - अगर किसी को खास पसंद नहीं आये और भरोसा भी हासिल न कर पाये तो वे हैं राहुल गांधी. मुमकिन है राहुल गांधी के पास कामयाबी के किस्से न होने की वजह भी यही रही हो कि अहमद पटेल ने. मजबूरन ही सही, अपनी तरफ से उसे कोरा कागज ही छोड़ दिया. हालांकि, राहुल गांधी को भी नहीं भूलना चाहिये कि 2018 में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की सरकार बनवाने से पहले गुजरात में उनको स्थापित करने के लिए भी सोनिया गांधी अपनी तरफ से अहमद पटेल को ही जिम्मेदारी दी थी. विदेशों में सैम पित्रोदा जो भी किये हों, लेकिन हर मौके पर राहुल गांधी के एक तरफ अशोक गहलोत रहे तो दूसरी तरफ अहमद पटेल ही साये की तरह बने रहे.
नेहरू युग के बाद से अब तक कांग्रेस में नेतृत्व से अलग तीन ताकतवर नेताओं का नाम लिया जाएगा तो संजय गांधी और राहुल गांधी के बीच अहमद पटेल को ही जगह मिलेगी. तीनों ही नेताओं को कांग्रेस में ऐसी पोजीशन मिली की दस्तखत के लिए बगैर कलम चलाये ही एक इशारे पर सबको नचाते रहे - और अगर 2004 से 2014 के कांग्रेस की अगुवाई वाले शासन की बात करें तो मनमोहन सिंह कैबिनेट में मंत्रियों के नाम तय होने से लेकर आगे पीछे कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों के नाम पर भी अहमद पटेल ही की हामी ही मुहर का काम करती रही - दस्तखत करना तो रस्म अदायगी का हिस्सा ही रहा.
कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के मन की बात तो दिग्विजय सिंह ने ही कह डाली है - 'अहमद पटेल कांग्रेस में हर मर्ज की दवा थे.'
कांग्रेस में हर मर्ज की दवा थे अहमद पटेल!
अहमद पटेल ने गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष रहे भरत सिंह सोलंकी के कोरोना से जंग जीत कर लौटने का स्वागत करने के साथ ही, उसी दिन ट्वीट करके खुद के भी कोरोना पॉजिटिव होने की जानकारी दी थी - लेकिन उनके बारे में उनके बेटे वैसा अपडेट नहीं दे सके. असम के मुख्यमंत्री रहे तरुण गोगोई के बाद कोरोना के कारण ही अहमद पटेल भी बीमारी से नहीं उबर पाये.
अहमद पटेल के बेटे ने मार्मिक अपील की है.
अहमद पटेल के निधन पर सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी सहित कांग्रेस नेताओं ने गहरा शोक प्रकट किया है. कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने बड़े ही कम शब्दों में अहमद पटेल की कांग्रेस में हैसियत का जिक्र किया है - 'हम सभी कांग्रेसियों के लिए वे हर राजनैतिक मर्ज की दवा थे.'
अहमद पटेल की शख्सियत के बारे में दिग्विजय सिंह बताते हैं, कोई भी कितना ही गुस्सा हो कर जाये उनमें ये क्षमता थी वो उसे संतुष्ट करके ही भेजते थे. दिग्विजय सिंह ने अहमद पटेल के व्यक्तित्व का बहुत ही सही चित्रण पेश किया है - वैसे भी जब नवजोत सिंह सिद्धू को किनारे लगाना था तो राहुल गांधी ने भी उनको अहमद पटेल के पास भेज दिया - और सचिन पायलट को सबक सिखाने के साथ ही उनको कांग्रेस छोड़ने से रोकना था तो भी पहले और आखिरी मुलाकाती अहमद पटेल ही बने थे. ऐसे एक नहीं हजार वाकये हैं जब अहमद पटेल कांग्रेस के ज्यादातर फैसलों की महत्वपूर्ण कड़ी साबित हुए.
देखा जाये तो अहमद पटेल कांग्रेस में सबसे लंबे अरसे तक बहुत सारी चीजों के सबसे बड़े राजदार भी रहे - वो तीन बार लोक सभा सहित अहमद पटेल 8 बार सांसद पहुंचे लेकिन कभी सरकार में नहीं रहे, हमेशा ही संगठन के आदमी रहे. संगठन की मजबूत के साथ साथ हर कमजोर कड़ी और जिला स्तर पर कार्यकर्ताओं को भी अच्छी तरह जानते रहे.
आखिर में कोषाध्यक्ष की अहमद पटेल की ये दूसरी पारी रही - और कांग्रेस के लिए फंड जुटाने से लेकर कहां से कितना पैसा आया और कहां गया, ये सब अहमद पटेल को हमेशा ही मालूम होता रहा, तब भी जब वो कोषाध्यक्ष नहीं रहे. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के संसदीय सचिव रहे अहमद पटेल कांग्रेस अध्यक्ष की सबसे लंबी पारी खेलने वाली सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार के रूप में आंख, नाक और कान ही नहीं अक्सर मुंह भी बने रहे.
बीबीसी हिंदी वेबसाइट पर रशीद किदवई लिखते हैं, "वे समझदारी और गोपनीय ढंग से संसाधनों (एक घंटे के अंदर पैसा, भीड़, प्राइवेट जेट और दूसरे तमाम लॉजिस्टिक शामिल हैं) की व्यवस्था करने में माहिर थे."
शायद यही वजह रही कि वो केंद्रीय एजेंसियों के निशाने पर भी रहे - लेकिन कांग्रेस नेतृत्व को मालूम भी था और यकीन भी कि वो ये सब हंसते हंसते निबटने और निबटाने में पूरी तरह सक्षम हैं. अहमद पटेल के संबंधित ट्वीट भी ऐसा ही संप्रेषित करते हैं.
अमित शाह को भी याद रहेगा वो चुनाव
अहमद पटेल का वो आखिरी चुनाव था - 2017 में गुजरात से पांचवीं बार राज्य सभा जाने के लिए. कहते हैं अहमद पटेल की उस चुनाव में बहुत कम दिलचस्पी थी. बताते हैं खुद सोनिया गांधी ने बात कर अहमद पटेल को चुनाव लड़ने के लिए राजी किया. कम से कम एक मामले में तो सोनिया गांधी के साथ साथ राहुल गांधी का भी मानना रहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ साथ गुजरात में बीजेपी से खांटी सियासी मुकाबला करने में अहमद पटेल जितना सक्षम कांग्रेस में कोई नहीं था.
अहमद पटेल चुनाव मैदान में उतरे और अमित शाह ने भी इसे बड़े चैलेंज के तौर पर लिया. अमित शाह किसी भी सूरत में नहीं चाहते थे कि अहमद पटेल वो चुनाव जीत पायें. तब कांग्रेस की कर्नाटक में सरकार थी और डीके शिवकुमार तब भी वहां सबसे सक्षम नेता हुआ करते थे. गुजरात कांग्रेस के 42 विधायकों को कर्नाटक भेज दिया गया - और उसी दिन आयकर विभाग ने डीके शिवकुमार के तमाम ठिकानों पर छापेमारी की.
कांग्रेस ने कहा कि अहमद पटेल को राज्य सभा चुनाव में गुजरात से हराने के लिए सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया जा रहा है. कांग्रेस ने राज्य सभा की कार्यवाही ठप कर दी और लोक सभा से भी कांग्रेस सदस्यों ने वॉकआउट किया. कर्नाटक में तो मामला संभाल लिया गया, लेकिन सोनिया गांधी को लगा कि कांग्रेस के भीतर ही अहमद पटेल के जीतने या हारने में किसी की दिलचस्पी नहीं है. बल्कि, सोनिया गांधी को ये फीडबैक भी मिला कि गुजरात कांग्रेस के नेता भी अहमद पटेल की जीत सुनिश्चित करने को लेकर एक्टिव नहीं हैं क्योंकि उनको लगता था कि ये अहमद पटेल ही रहे जिनके चलते वे कभी आगे नहीं बढ़ पाये.
एक वक्त तो हालत ये हो गयी कि अहमद पटेल के चुनाव में अमित शाह और सोनिया गांधी की प्रतिष्ठा आमने सामने टकराने लगी. कांग्रेस नेताओं को भी भरोसा नहीं रहा कि अहमद पटेल जीत पाएंगे, सिवा सोनिया गांधी के. कांग्रेस के नेताओं की तरफ से बार बार सफाई दी जाने लगी कि अहमद पटेल के चुनाव से सोनिया गांधी की प्रतिष्ठा नहीं जुड़ी है. कुछ नेताओं के बयान से तो ऐसा लग रहा जैसे वे समझाने की कोशिश कर रहे हों कि अहमद पटेल कभी सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव रहे ही नहीं.
आखिर में सोनिया गांधी मोर्चे पर खुद आयीं और दिल्ली के तेज तर्रार नेताओं को टास्क दिया कि हर हाल में अहमद पटेल की जीत सुनिश्चित करनी है. तब जाकर सीनियर नेता हरकत में आये. कांग्रेस के कानूनी विशेषज्ञों को भी अलर्ट किया गया.
अमित शाह अपनी सीट निकाल चुके थे. स्मृति ईरानी के लिए भी न तो कोई मुश्किल पहले से थी, न कोई सामने ही आयी - लेकिन अहमद पटेल की चुनावी जीत ही अमित शाह के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई थी. जब कांग्रेस ने चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज करायी तो अमित शाह ने केंद्रीय मंत्रियों की फौज ही चुनाव आयोग भेज दी जिनमें सब के सब देश के जाने माने वकील शामिल रहे.
ये अहमद पटेल की किस्मत रही कि गुजरात कांग्रेस के एक नेता ने चुनाव के दौरान एक ऐसी गलती पकड़ ली थी जो जीत की इबारत लिखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. दरअसल, एक विधायक ने अमित शाह के सामने निष्ठा का प्रदर्शन करते हुए ऐसा इशारा किया था कि वो अपना वोट किसे दे रहा है. कांग्रेस ने चुनाव आयोग से उस विधायक का वोट रद्द करने की दरख्वास्त की और गहन जांच पड़ताल के बाद चुनाव आयोग ने केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी नेतृत्व के सभी दावों को खारिज करते हुए उस विधायक का वोट रद्द कर दिया - अहमद पटेल चुनाव जीत गये.
अहमद पटेल की वो जीत न सिर्फ उनकी अपनी या कांग्रेस पार्टी की जीत रही, बल्कि वो सोनिया गांधी की प्रतिष्ठा की जीत रही और उस एक शिकस्त पर ही अमित शाह मन मसोस कर रह गये थे. जाहिर है सोनिया गांधी जब भी उस चुनाव को या वैसे मौकों को याद करेंगी अहमद पटेल बहुत याद आएंगे.
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