तमिलनाडु की सबसे बड़ी पार्टी जिसकी स्थापना दक्षिण भारतीय फिल्मों के सुपरस्टार एम जी रामचंद्रन ने की थी और जिस पार्टी का नेतृत्व जयललिता ने ढ़ाई दशकों से अधिक तक किया था, लगता है अब टूट के कगार पर है. आय से अधिक संपत्ति के मामले में शशिकला को सुप्रीम कोर्ट ने दोषी माना और उन्हें चार साल की सजा और 10 करोड़ रुपये जुर्माने की सजा सुनायी. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद शशिकला के विधायक बनने या अगले 10 साल सीएम बनने के आसार खत्म हो गए हैं और इसलिए उन्होंने अपने उत्तराधिकारी के रूप में ई पलानीसामी को विधायक दल का नेता चुना और पार्टी के उप महासचिव के रूप में टी टी वी दिनाकरन को नियुक्त किया. साथ ही साथ सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उन्होंने तमिलनाडु के कार्यवाहक मुख्यमंत्री ओ पनीरसेल्वम को पार्टी ने निकाल दिया और उनका साथ देने वाले अन्य नेताओं को भी पार्टी से बर्खास्त कर दिया.
अन्नाद्रमुक में संकट गहराने लगा है जब दोनों खेमे अपने साथ सबसे ज्यादा विधायक होने का दावा कर रहे हैं. दोनों गुट जोड़-तोड़ में लगे हैं कि अगर उन्हें विधान सभा में बहुमत साबित करने को कहा जाता है तो वो कैसे बहुमत साबित करें.
जयललिता के मरने के बाद पार्टी का सारा ध्रुवीकरण शशिकला के इर्द-गिर्द था. लेकिन जैसे ही उन्होंने मुख्यमंत्री बनने का मन बनाया पार्टी में विद्रोह शुरू हो गया. पार्टी के प्रति समर्पित माने जाने वाले ओ पनीरसेल्वम ने विद्रोह का झंडा ऐसा बुलंद किया, जिसने अन्नाद्रमुक के राजनीतिक प्रवाह को बिलकुल बदल कर रख दिया. जयललिता का मरना पार्टी के लिए सबसे बड़ा सदमा था. अपने चमत्कारी नेतृत्व के कारण उन्होंने पार्टी को एकजुट रखने में कामयाबी हासिल की थी. जनता में उनकी पकड़ के कारण ही 1991 के बाद से अन्नाद्रमुक राज्य में 4 बार सरकार बना सकी है.
अब जब शशिकला तमिलनाडु के राजनीति से...
तमिलनाडु की सबसे बड़ी पार्टी जिसकी स्थापना दक्षिण भारतीय फिल्मों के सुपरस्टार एम जी रामचंद्रन ने की थी और जिस पार्टी का नेतृत्व जयललिता ने ढ़ाई दशकों से अधिक तक किया था, लगता है अब टूट के कगार पर है. आय से अधिक संपत्ति के मामले में शशिकला को सुप्रीम कोर्ट ने दोषी माना और उन्हें चार साल की सजा और 10 करोड़ रुपये जुर्माने की सजा सुनायी. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद शशिकला के विधायक बनने या अगले 10 साल सीएम बनने के आसार खत्म हो गए हैं और इसलिए उन्होंने अपने उत्तराधिकारी के रूप में ई पलानीसामी को विधायक दल का नेता चुना और पार्टी के उप महासचिव के रूप में टी टी वी दिनाकरन को नियुक्त किया. साथ ही साथ सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उन्होंने तमिलनाडु के कार्यवाहक मुख्यमंत्री ओ पनीरसेल्वम को पार्टी ने निकाल दिया और उनका साथ देने वाले अन्य नेताओं को भी पार्टी से बर्खास्त कर दिया.
अन्नाद्रमुक में संकट गहराने लगा है जब दोनों खेमे अपने साथ सबसे ज्यादा विधायक होने का दावा कर रहे हैं. दोनों गुट जोड़-तोड़ में लगे हैं कि अगर उन्हें विधान सभा में बहुमत साबित करने को कहा जाता है तो वो कैसे बहुमत साबित करें.
जयललिता के मरने के बाद पार्टी का सारा ध्रुवीकरण शशिकला के इर्द-गिर्द था. लेकिन जैसे ही उन्होंने मुख्यमंत्री बनने का मन बनाया पार्टी में विद्रोह शुरू हो गया. पार्टी के प्रति समर्पित माने जाने वाले ओ पनीरसेल्वम ने विद्रोह का झंडा ऐसा बुलंद किया, जिसने अन्नाद्रमुक के राजनीतिक प्रवाह को बिलकुल बदल कर रख दिया. जयललिता का मरना पार्टी के लिए सबसे बड़ा सदमा था. अपने चमत्कारी नेतृत्व के कारण उन्होंने पार्टी को एकजुट रखने में कामयाबी हासिल की थी. जनता में उनकी पकड़ के कारण ही 1991 के बाद से अन्नाद्रमुक राज्य में 4 बार सरकार बना सकी है.
अब जब शशिकला तमिलनाडु के राजनीति से बाहर हो गयी हैं, अन्नाद्रमुक के भविष्य को आगे ले जाने के लिए नए नए चहरे द्रविड़ियन कैनवास में सामने आ रहे हैं. लेकिन ऐसा लग रहा है कि इसका फायदा द्रमुक को आगे जा कर मिल सकता है. दोनों पार्टियां अन्नाद्रमुक और द्रमुक की नजर अब विधान सभा में होने वाले बहुमत पर टिकी है, कि कौनसा गुट बाजी मारता है. कुछ समीक्षक तो त्रिशंकु विधानसभा की भी संभावना देख रहे हैं और ऐसे में फिर से चुनाव हो सकते हैं. अगर ऐसा होता है तो इसका फायदा सबसे ज्यादा द्रमुक को ही होगा, क्योंकि अन्नाद्रमुक के अंदर संकट के बदल कम होते नहीं दिख रहे हैं.
एम जी रामचंद्रन ने द्रमुक से नाता तोड़ने के बाद 1972 में अन्नाद्रमुक का स्थापना किया था. एम जी रामचंद्रन के मरने के बाद 1987-1989 के बीच पार्टी में काफी उथल-पुथल रही थी, और पार्टी में दो फाड़ हो गए थे. उस समय एक गुट की लीडर जहां जानकी रामचंद्रन थीं तो दूसरे का नेतृत्व जयललिता कर रही थी. जानकी की 24 दिन की सरकार जनवरी 1988 में गिर गयी और उसके बाद हुए 1989 के चुनाव में दोनों गुट को द्रमुक से करारी हार मिली थी. इस हार के बाद दोनों गुट जयललिता के लीडरशिप में एक हो गए थे और इसका असर भी देखने को मिला था जब 1991 के चुनाव में अन्नाद्रमुक विजय हुई थी.
अब तकरीबन 29-30 साल के बाद पार्टी फिर से टूट के कगार पर खड़ी है. सबके मन में यही सवाल चल रहा है की क्या इतिहास फिर से दोहराया जायेगा? क्या अन्नाद्रमुक पार्टी टूट जाएगी? आने वाले दिनों में इन सवालों का जवाब हमें जरूर देखने को मिलेगा लेकिन टूट के संकेत अभी से मिलने लगे हैं.
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