महाराष्ट्र की राजनीति में 23 नवंबर का दिन बेहद अहम है. वही दिन, जब अजित पवार के समर्थन (Ajit Pawar) से भाजपा ने महाराष्ट्र में अपनी सरकार बनाई. देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और अजित पवार को उपमुख्यमंत्री बना दिया. हर ओर सिर्फ एक ही बात हो रही थी कि अजित पवार ने एनसीपी और पार्टी सुप्रीमो शरद पवार (Sharad Pawar) को धोखा (Ajit Pawar betrayal) दिया है. फिर शुरू हुआ आरोप-प्रत्यारोप का दौर. सबसे पहले तो एनसीपी ने अजित पवार को विधायक दल के नेता के पद से हटाया और फिर ये भी कह दिया कि वह फैसला अजित पवार का है ना कि एनसीपी पार्टी का. खैर, मामला सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) पहुंचा और फ्लोर टेस्ट (Floor Test) की नौबत आ गई, लेकिन उससे पहले ही अजित पवार ने इस्तीफा देकर महाराष्ट्र की राजनीति में एक और भूचाल ला दिया. देवेंद्र फडणवीस को भी इस्तीफा देना पड़ा. आज के समय में महाराष्ट्र में कांग्रेस (Congress), एनसीपी (NCP) और शिवसेना (Shiv Sena) के गठबंधन से महाविकास अघाड़ी गठबंधन बन गया है और उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) मुख्यमंत्री (Maharashtra CM) बन गए हैं. इस पूरी उठापटक में सबसे अधिक फायदा हुआ है एनसीपी को.
क्या फायदा हुआ है एनसीपी को?
अगर मुख्यमंत्री पद को छोड़ दें तो ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि दूध की अधिकतर मलाई एनसीपी के हिस्से आई है. एक तो एनसीपी को नई सरकार में उप-मुख्यमंत्री का पद मिल रहा है, इसके अलावा 16 मंत्रालय भी मिल रहे हैं. आपको बता दें कि खुद शिवसेना को भी मुख्यमंत्री पद के अलावा सिर्फ 15 ही मंत्रालय मिल रहे हैं. सबसे अधिक नुकसान में कांग्रेस है, जिसे महज 12 पदों से संतोष करना पड़ रहा है. पहले बात हो...
महाराष्ट्र की राजनीति में 23 नवंबर का दिन बेहद अहम है. वही दिन, जब अजित पवार के समर्थन (Ajit Pawar) से भाजपा ने महाराष्ट्र में अपनी सरकार बनाई. देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और अजित पवार को उपमुख्यमंत्री बना दिया. हर ओर सिर्फ एक ही बात हो रही थी कि अजित पवार ने एनसीपी और पार्टी सुप्रीमो शरद पवार (Sharad Pawar) को धोखा (Ajit Pawar betrayal) दिया है. फिर शुरू हुआ आरोप-प्रत्यारोप का दौर. सबसे पहले तो एनसीपी ने अजित पवार को विधायक दल के नेता के पद से हटाया और फिर ये भी कह दिया कि वह फैसला अजित पवार का है ना कि एनसीपी पार्टी का. खैर, मामला सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) पहुंचा और फ्लोर टेस्ट (Floor Test) की नौबत आ गई, लेकिन उससे पहले ही अजित पवार ने इस्तीफा देकर महाराष्ट्र की राजनीति में एक और भूचाल ला दिया. देवेंद्र फडणवीस को भी इस्तीफा देना पड़ा. आज के समय में महाराष्ट्र में कांग्रेस (Congress), एनसीपी (NCP) और शिवसेना (Shiv Sena) के गठबंधन से महाविकास अघाड़ी गठबंधन बन गया है और उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) मुख्यमंत्री (Maharashtra CM) बन गए हैं. इस पूरी उठापटक में सबसे अधिक फायदा हुआ है एनसीपी को.
क्या फायदा हुआ है एनसीपी को?
अगर मुख्यमंत्री पद को छोड़ दें तो ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि दूध की अधिकतर मलाई एनसीपी के हिस्से आई है. एक तो एनसीपी को नई सरकार में उप-मुख्यमंत्री का पद मिल रहा है, इसके अलावा 16 मंत्रालय भी मिल रहे हैं. आपको बता दें कि खुद शिवसेना को भी मुख्यमंत्री पद के अलावा सिर्फ 15 ही मंत्रालय मिल रहे हैं. सबसे अधिक नुकसान में कांग्रेस है, जिसे महज 12 पदों से संतोष करना पड़ रहा है. पहले बात हो रही थी कि दो डिप्टी सीएम होंगे, लेकिन अब एक ही डिप्टी सीएम होगा और बदले में कांग्रेस को स्पीकर का पद मिला है.
अजित पवार का धोखा तो तोहफा निकाल
जब अजित पवार ने एनसीपी से अलग होकर देवेंद्र फडणवीस को समर्थन दिया तो हर किसी का यही मानना था कि अजित पवार ने धोखा दिया है. ये तक कहा जाने लगा कि अजित पवार तो गद्दार हैं, उन्हें पार्टी से ही निकाल देना चाहिए. लेकिन शरद पवार इन सब से अलग अपनी राजनीति साधने में लगे हुए थे. अजित पवार के इस धोखे ने भले ही शरद पवार को टेंशन ना दी हो, लेकिन शिवसेना और कांग्रेस के माथे पर शिकन जरूर ला दी. चिंता सताने लगी कि कहीं फडणवीस फ्लोर टेस्ट में सफल हो गए तो सत्ता हाथ से गई.
शिवसेना की चिंता ये थी कि मुख्यमंत्री जो कुर्सी हाथ आई है, वो चली जाएगी, जबकि कांग्रेस इस चिंता में थी कि भाजपा यहां भी सरकार बना लेगी. अब कैबिनेट के बंटवारे को देखकर तो यही लग रहा है कि शरद पवार ने अजित पवार के कदम का अपने और पार्टी के हित में फायदा उठाया और शिवसेना-कांग्रेस के साथ एक अच्छी डील तय की. इस तरह अजित पवार का धोखा, एनसीपी के लिए तोहफा साबित हो गया. शरद पवार ने दिखा दिया है कि महाराष्ट्र के चाणक्य तो वही हैं.
कांग्रेस का मकसद तो सिर्फ भाजपा का विजयरथ रोकना था
भले ही शिवसेना को मुख्यमंत्री पद चाहिए था और एनसीपी को सत्ता में आना था, लेकिन कांग्रेस का सिर्फ एक मकसद था, भाजपा का विजयरथ रोकना. अगर ऐसा नहीं होता तो कांग्रेस कम से कम एक डिप्टी सीएम या स्पीकर पद के लिए तो लड़ती ही. आपको बता दें कि कांग्रेस की ओर से नाना पटोले को स्पीकर एक तरह से मजबूरी में ही बनाया गया है. कांग्रेस ने कहा था कि ना उसे डिप्टी सीएम का पद चाहिए, ना ही स्पीकर का, लेकिन शरद पवार फैसला कर चुके थे कि कांग्रेस का स्पीकर होगा, इसलिए कांग्रेस ने अंत समय में नाना पटोले को सामने किया. अब इससे बड़ा और क्या उदाहरण होगा इस बात का कि कांग्रेस को सत्ता नहीं चाहिए थी, बल्कि वह भाजपा को सत्ता से बाहर करने के लिए आगे आई. हां, अपने विधायकों को खुश रखने के लिए ही उसने 12 पद ले लिए.
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