यूं तो राजनीति में आए दिन कोई न कोई बड़ा मोड़ आता है, लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति (Maharashtra Government Formation) में ऐसे मोड़ हर पल आ रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने फ्लोर टेस्ट (Floor Test) का आदेश दे दिया है और 27 नवंबर शाम 5 बजे तक का वक्त भी मुकर्रर कर दिया है. ये भी आदेश हो गया है कि प्रोटेम स्पीकर (Protem Speaker) की नियुक्ति की जाए और फ्लोर टेस्ट का लाइव टेलिकास्ट किया जाए. अभी फ्लोर टेस्ट तो 27 नवंबर को होता, लेकिन उससे पहले ही अजित पवार के इस्तीफे (Ajit Pawar Resignation) की खबर ने एक बार फिर महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल पैदा कर दी है. अभी कुछ और सोच पाते कि देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) ने भी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर के साफ कर दिया कि वह भी इस्तीफा दे रहे हैं. अब यहां एक अहम सवाल ये खड़ा होता है कि महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार तो बनी नहीं, लेकिन इन सब से अजित पवार (Ajit Pawar) को क्या मिला?
गद्दारी का तमगा
महाराष्ट्र की सियासी उठापटक में अजित पवार को मिला है गद्दारी का तमगा. जी हां, पार्टी से गद्दारी कर के उन्होंने भाजपा को समर्थन दिया. खुद शरद पवार ने भी कह दिया कि ये सब अजित पवार का निजी फैसला है, पार्टी इस फैसले में उनके साथ नहीं है. यहां तक कि उन्हें विधायक दल के नेता के पद से भी हटा दिया गया. हां, गद्दारी के बावजूद एनसीपी ने उन्हें पार्टी से नहीं निकाला, जिसका रहस्य अभी तक पर्दे में है.
पार्टी में बौना कद
ये सब कर के अजित पवार ने अपनी ही पार्टी एनसीपी में अपना कद बौना कर लिया. देखा जाए तो राजनीति में एनसीपी की ओर से सबसे अधिक सक्रिय अजित पवार ही थे. शरद पवार ने तो चुनाव भी नहीं लड़ा, वह तो एक...
यूं तो राजनीति में आए दिन कोई न कोई बड़ा मोड़ आता है, लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति (Maharashtra Government Formation) में ऐसे मोड़ हर पल आ रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने फ्लोर टेस्ट (Floor Test) का आदेश दे दिया है और 27 नवंबर शाम 5 बजे तक का वक्त भी मुकर्रर कर दिया है. ये भी आदेश हो गया है कि प्रोटेम स्पीकर (Protem Speaker) की नियुक्ति की जाए और फ्लोर टेस्ट का लाइव टेलिकास्ट किया जाए. अभी फ्लोर टेस्ट तो 27 नवंबर को होता, लेकिन उससे पहले ही अजित पवार के इस्तीफे (Ajit Pawar Resignation) की खबर ने एक बार फिर महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल पैदा कर दी है. अभी कुछ और सोच पाते कि देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) ने भी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर के साफ कर दिया कि वह भी इस्तीफा दे रहे हैं. अब यहां एक अहम सवाल ये खड़ा होता है कि महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार तो बनी नहीं, लेकिन इन सब से अजित पवार (Ajit Pawar) को क्या मिला?
गद्दारी का तमगा
महाराष्ट्र की सियासी उठापटक में अजित पवार को मिला है गद्दारी का तमगा. जी हां, पार्टी से गद्दारी कर के उन्होंने भाजपा को समर्थन दिया. खुद शरद पवार ने भी कह दिया कि ये सब अजित पवार का निजी फैसला है, पार्टी इस फैसले में उनके साथ नहीं है. यहां तक कि उन्हें विधायक दल के नेता के पद से भी हटा दिया गया. हां, गद्दारी के बावजूद एनसीपी ने उन्हें पार्टी से नहीं निकाला, जिसका रहस्य अभी तक पर्दे में है.
पार्टी में बौना कद
ये सब कर के अजित पवार ने अपनी ही पार्टी एनसीपी में अपना कद बौना कर लिया. देखा जाए तो राजनीति में एनसीपी की ओर से सबसे अधिक सक्रिय अजित पवार ही थे. शरद पवार ने तो चुनाव भी नहीं लड़ा, वह तो एक तरह से मार्गदर्शन या यूं कहें कि पार्टी अध्यक्ष की तरह एनसीपी में रहे. अगर अजित पवार ने धोखेबाजी नहीं की होती और भाजपा को समर्थन नहीं देते तो आज भी एनसीपी में उनका कद काफी बड़ा और अहम होता, लेकिन अब तो वह अपनी ही पार्टी के नेताओं की नजरों में गिर गए. उनका कद अपनी ही पार्टी में बौना हो गया है. इसके साथ ही ये भी साबित हो गया है कि एनसीपी में धमक शरद पवार की है. उनके इशारे के बिना वहां पत्ता भी नहीं हिलता. पार्टी के कर्ता-धर्ता शरद पवार ही हैं.
भ्रष्टाचार के आरोपों से राजनैतिक मुक्ति
एक ओर महाराष्ट्र में सियासी उठापटक चल रही थी, इसी बीच भाजपा को समर्थन देकर नई सरकार में उप मुख्यमंत्री बने अजित पवार को सिंचाई घोटाले में क्लीन चिट मिल गई. कहा जाने लगा कि अजित पवार ने भाजपा को अपना समर्थन देकर जो मुख्यमंत्री पद हासिल करने का गिफ्ट दिया है, ये उसी का रिटर्न गिफ्ट है. बता दें कि सिंचाई घोटाले में अजित पवार के खिलाफ जांच चल रही थी, जिस पर भ्रष्टाचार निरोधक शाखा यानी एसीबी ने क्लीनचिट दे दी. आपको बता दें कि पहले देवेंद्र फडणवसी इन्हीं अजित पवार के खिलाफ मोर्चा खोले रहते थे और कहते थे कि अजित पवार को जेल में डालकर ही रुकेंगे, लेकिन जरूरत पड़ने पर उन्हीं अजित पवार के साथ सरकार तक बनाने को राजी हो गए.
संभवतः शिवसेना सरकार में उप मुख्यमंत्री का पद !
एक बात पर थोड़ा गौर कीजिएगा कि अजित पवार को एनसीपी के विधायक दल के नेता पद से हटा दिया गया था, लेकिन पार्टी से निकाला नहीं था. पूरे वक्त लगातार एनसीपी के बड़े-बड़े नेता अजित पवार को मनाने में लगे रहे. अब ये तो तय है उन्हें कुछ ना कुछ मिलेगा ही. संभव है कि उन्हें शिवसेना सरकार में उपमुख्यमंत्री का पद मिल जाए.
इस पूरी कवायद में एक चीज साफ हो चुकी है कि महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार किसी चाणक्य से कम नहीं हैं. अजित पवार ने पार्टी से धोखा कर के अपना कद बौना किया, तो इससे शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के लिए पार्टी की कमान हाथ में लेने का रास्ता भी साफ हो गया है. यानी अब इस बात को लेकर हैरानी नहीं होनी चाहिए अगर सुप्रिया सुले को एनसीपी की अध्यक्ष बना दिया जाए.
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