यूपी चुनाव 2022 के अंतिम दो चरणों का मतदान होना बाकी है. लेकिन, ईवीएम (EVM) पहले चरण से ही सवालों के घेरे में है. हालात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हर चरण के मतदान के बाद अपनी जीत का दावा ठोकने वाले समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव भी ईवीएम के बवाल को हवा देते नजर आते हैं. दरअसल, यूपी चुनाव 2022 के खत्म होते-होते समाजवादी नेता अखिलेश यादव का धैर्य जवाब देता नजर आ रहा है. बेरोजगारी, आवारा पशु और महंगाई जैसे मुद्दों के सहारे अपनी जीत का दावा कर रहे अखिलेश यादव की छटपटाहट उनके पिछले कुछ ट्वीट में स्पष्ट तौर से दिखाई पड़ी है. पांचवें चरण में कुंडा में मतदान को लेकर एक फर्जी वीडियो डालने में हड़बड़ी और लखनऊ में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा कार की टूलकिट को ईवीएम खोलने के औजार बताकर कहीं न कहीं अखिलेश यादव खुद ही अपनी जड़ों में मट्ठा डाल रहे हैं. वैसे, सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर यूपी चुनाव में 400 सीटें जीतने का दावा कर रहे अखिलेश यादव ईवीएम का रोना क्यों रो रहे हैं?
जनता का मूड भांपना आसान नहीं
यूपी चुनाव 2022 के आखिरी दो चरणों में अभी भी 111 सीटों पर मतदान होना है. माना जा रहा है कि इस बार उत्तर प्रदेश में भाजपा और समाजवादी पार्टी के बीच कांटे की टक्कर है. कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सत्ता का ऊंट किस करवट बैठेगा, इसका अंदाजा 10 मार्च को ही लगेगा. आसान शब्दों में कहा जाए, तो भले ही अखिलेश यादव यूपी चुनाव से पहले 400 सीटें जीतने का दावा कर रहे हों. लेकिन, मतदाताओं की खामोशी ने समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष की भी धड़कनें बढ़ा दी हैं. अखिलेश यादव अपनी हर रैली में यूपी की जनता से जुड़े मुद्दों को ही जगह दे रहे हैं. समाजवादी पार्टी ने इस बार गठबंधन में भी काफी प्रयोग किया है. यूपी चुनाव 2022 के शुरुआती दो चरणों के लिए आरएलडी नेता जयंत चौधरी का सहारा लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जीत का समीकरण बुना. वहीं, पांचवें चरण तक समाजवादी पार्टी की साइकिल एमवाई समीकरण और महान दल जैसे छोटे दलों के पहिये पर चल रही थी. लेकिन, आखिरी के दो चरणों में अखिलेश का सामना सीधे तौर पर सीएम योगी आदित्यनाथ और...
यूपी चुनाव 2022 के अंतिम दो चरणों का मतदान होना बाकी है. लेकिन, ईवीएम (EVM) पहले चरण से ही सवालों के घेरे में है. हालात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हर चरण के मतदान के बाद अपनी जीत का दावा ठोकने वाले समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव भी ईवीएम के बवाल को हवा देते नजर आते हैं. दरअसल, यूपी चुनाव 2022 के खत्म होते-होते समाजवादी नेता अखिलेश यादव का धैर्य जवाब देता नजर आ रहा है. बेरोजगारी, आवारा पशु और महंगाई जैसे मुद्दों के सहारे अपनी जीत का दावा कर रहे अखिलेश यादव की छटपटाहट उनके पिछले कुछ ट्वीट में स्पष्ट तौर से दिखाई पड़ी है. पांचवें चरण में कुंडा में मतदान को लेकर एक फर्जी वीडियो डालने में हड़बड़ी और लखनऊ में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा कार की टूलकिट को ईवीएम खोलने के औजार बताकर कहीं न कहीं अखिलेश यादव खुद ही अपनी जड़ों में मट्ठा डाल रहे हैं. वैसे, सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर यूपी चुनाव में 400 सीटें जीतने का दावा कर रहे अखिलेश यादव ईवीएम का रोना क्यों रो रहे हैं?
जनता का मूड भांपना आसान नहीं
यूपी चुनाव 2022 के आखिरी दो चरणों में अभी भी 111 सीटों पर मतदान होना है. माना जा रहा है कि इस बार उत्तर प्रदेश में भाजपा और समाजवादी पार्टी के बीच कांटे की टक्कर है. कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सत्ता का ऊंट किस करवट बैठेगा, इसका अंदाजा 10 मार्च को ही लगेगा. आसान शब्दों में कहा जाए, तो भले ही अखिलेश यादव यूपी चुनाव से पहले 400 सीटें जीतने का दावा कर रहे हों. लेकिन, मतदाताओं की खामोशी ने समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष की भी धड़कनें बढ़ा दी हैं. अखिलेश यादव अपनी हर रैली में यूपी की जनता से जुड़े मुद्दों को ही जगह दे रहे हैं. समाजवादी पार्टी ने इस बार गठबंधन में भी काफी प्रयोग किया है. यूपी चुनाव 2022 के शुरुआती दो चरणों के लिए आरएलडी नेता जयंत चौधरी का सहारा लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जीत का समीकरण बुना. वहीं, पांचवें चरण तक समाजवादी पार्टी की साइकिल एमवाई समीकरण और महान दल जैसे छोटे दलों के पहिये पर चल रही थी. लेकिन, आखिरी के दो चरणों में अखिलेश का सामना सीधे तौर पर सीएम योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से होना है.
हालांकि, यहां भी अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी के एमवाई समीकरण में इजाफा करते हुए गैर-यादव ओबीसी मतदाताओं को साथ में लाने का दांव खेला है. लेकिन, सुभासपा के नेता ओमप्रकाश राजभर, अपना दल (कमेरावादी) की कृष्णा पटेल, जनवादी पार्टी के संजय चौहान और भाजपा के बागी स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान जैसे ओबीसी नेताओं के गठजोड़ पर भी भाजपा यहां भारी नजर आती है. दरअसल, पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ के चुनावी तरकश में हिंदुत्व के साथ कल्याणकारी योजनाओं का तीर तो है ही. लेकिन, पूर्वांचल में पहुंचे चुनाव के छठे चरण में भाजपा के लिए माफियाओं पर नकेल सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट नजर आता है. वहीं, इस चरण में पूर्वांचल की सबसे बड़ी समस्या रही दिमागी बुखार यानी इंसेफेलाइटिस की रोकथाम भी सीएम योगी को सीधी बढ़त दिलाती है. क्योंकि, यूपी चुनाव 2022 की सियासी लड़ाई बहुत करीबी है. तो, अखिलेश यादव को इस बात का संशय रहेगा कि समाजवादी पार्टी को उसके गठबंधन वाले नेताओं की जातियों का वोट ट्रांसफर होगा या नहीं?
बसपा की मजबूत स्थिति बन रही चुनौती
पांचवें चरण के बाद जैसे ही यूपी चुनाव 2022 ने पूर्वांचल में एंट्री ली. अचानक से बसपा सुप्रीमो मायावती मुखर नजर आने लगीं. बसपा सुप्रीमो ने इन चरणों के चुनाव प्रचार में केवल अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी पर ही निशाना नहीं साधा. बल्कि, भाजपा और सीएम योगी आदित्यनाथ को भी निशाने पर लिया. मायावती ने सीएम योगी आदित्यनाथ पर मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भेदभाव के आरोप के साथ ही उन्हें वापस उनके मठ में भेज देने की अपील तक कर दी. दरअसल, पूर्वांचल में मायावती की ताकत कहलाने वाले दलित वोटबैंक के साथ ही ओबीसी मतदाता भी बसपा के साथ हिस्सेदारी रखता है. इसे पिछले विधानसभा चुनाव में छठे चरण की 57 सीटों के नतीजों से समझा जा सकता है. छठे चरण के दौरान पिछले चुनाव में सपा के खाते में केवल दो सीटें आई थीं. जबकि, बसपा ने पांच सीटों पर जीत दर्ज की थी. आसान शब्दों में कहा जाए, तो आखिरी के दो चरणों में बसपा सुप्रीमो मायावती एक बड़ी गेमचेंजर साबित हो सकती हैं. जो सीधे तौर पर समाजवादी पार्टी और उसके गठबंधन को ही नुकसान पहुंचाती दिख रही हैं. मायावती ने वैसे भी अपनी सोशल इंजीनियरिंग में इस बार दलित-मुसलमान-ब्राह्मण समीकरण को फिट किया है, जो पूर्वांचल के लिहाज से सबसे सटीक कहा जा सकता है.
करो या मरो की स्थिति ने हिलाया अखिलेश का 'आत्मविश्वास'
अगर यूपी चुनाव 2022 में समाजवादी पार्टी सत्ता में नहीं आती है, तो अखिलेश यादव के सामने बसपा सुप्रीमो मायावती की तरह ही अपनी प्रासंगिकता को बचाए रखने की चुनौती होगी. 2024 के आम चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में हिस्सेदारी मांगने के लिए आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी जैसे सियासी दल आएंगे. क्योंकि, आम आदमी पार्टी को छोड़ दिया जाए, तो यूपी चुनाव 2022 में इन दलों को खुद अखिलेश यादव ने ही यहां निमंत्रण दिया है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो अखिलेश यादव के सामने करो या मरो की स्थिति है. अगर चुनावी नतीजे समाजवादी पार्टी के पक्ष में नहीं आते हैं, तो अखिलेश यादव पूरी तरह से हाशिये पर चले जाएंगे.
इस स्थिति में शायद अखिलेश यादव ने ईवीएम पर आरोपों को एक 'इस्केप प्लान' के तौर पर तैयार रखा है. प्रथम दृष्टया तो ईवीएम पर लगाए जा रहे आरोपों की वजह यही नजर आती है. क्योंकि, पहले चरण से लेकर पांचवें चरण तक के हर मतदान में एक सबसे कॉमन बात केवल यही है कि मतदान प्रतिशत सत्ताविरोधी लहर की वजह से बढ़ने की जगह एक प्रतिशत गिरा है. वैसे, हालात ये हो गए कि कुंडा से प्रत्याशी और बाहुबली नेता रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने जब कुंडा विधानसभा सीट पर हुए मतदान को लेकर अखिलेश यादव के ट्वीट को फर्जी करार दिया, तो उन्हें ट्वीट तक डिलीट करना पड़ा.
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