अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की खामोशी समाजवादी पार्टी के मुस्लिम नेताओं (Muslim SP Leaders) की नाराजगी की वजह बन गयी है. इस्तीफे तो छोटे नेताओं ने ही दिये हैं, लेकिन नाराजगी शफीकुर्रहमान बर्क जैसे नेता भी खुल कर जताने लगे हैं - और बहाने से मोहम्मद आजम खां नाराजगी के केंद्र बिंदु बने हुए हैं.
आजम खान के साथ साथ बरेली के सपा विधायक शहजिल इस्लाम और कैराना वाले नाहिद हसन का नाम लेकर भी विरोध की राजनीति शुरू हो गयी है. जिन सपा नेताओं ने खुलेआम नाराजगी जतायी है, वे याद दिला रहे हैं कि अखिलेश यादव ढाई साल में आजम खान से जेल जाकर सिर्फ एक बार ही मुलाकात किये. नाहिद हसन की गिरफ्तारी और पार्टी विधायक शहजिल इस्लाम के पेट्रोल पंप पर चले बुलडोजर पर भी अखिलेश यादव की चुप्पी से पार्टी के मुस्लिम नेता खासे खफा हैं.
सरकारी एक्शन से हफ्ता भर पहले ही शहजिल इस्लाम ने कहा था, 'उनके मुंह से आवा निकली तो हमारे बंदूकों से धुआं नहीं, गोलियां निकलेंगीं.' पेट्रोल पंप पर बुलडोजर चलने के बाद, शहजिल इस्लाम के मार्केट और फार्म हाउस को लेकर तो बरेली विकास प्राधिकरण ने नोटिस थमा दिया है.
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अखिलेश यादव ने ही बुलडोजर बाबा नाम दिया था - और चुनावों से काफी पहले कहा करते थे कि समाजवादी पार्टी सत्ता में आयी तो वो भी बीजेपी वालों के यहां बुलडोजर चलवाएंगे.
जब योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि 10 मार्च के बाद वो सबकी गर्मी शांत कर देंगे, तो अखिलेश यादव ने कम्प्रेशर कह कर मजाक उड़ाया था. चुनावों में तो अखिलेश यादव बुलडोजर को लेकर हर रैली में कुछ न कुछ बोलते ही थे, लेकिन अब ऐसा नहीं करते. मुस्लिम नेताओं को समाजवादी पार्टी अध्यक्ष का ये रवैया बिलकुल भी अच्छा नहीं लग रहा है.
आखिर क्यों मुस्लिम समाज को ऐसा लग रहा है कि समाजवादी पार्टी को वोट देकर वो ठगे से रह गये हैं? चुनावों के दौरान ही महसूस किया जाने लगा था कि मुस्लिम वोट समाजवादी पार्टी के पक्ष में एकतरफा डाले जा रहे हैं. मायावती ने तो सारे मुस्लिम वोट अखिलेश...
अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की खामोशी समाजवादी पार्टी के मुस्लिम नेताओं (Muslim SP Leaders) की नाराजगी की वजह बन गयी है. इस्तीफे तो छोटे नेताओं ने ही दिये हैं, लेकिन नाराजगी शफीकुर्रहमान बर्क जैसे नेता भी खुल कर जताने लगे हैं - और बहाने से मोहम्मद आजम खां नाराजगी के केंद्र बिंदु बने हुए हैं.
आजम खान के साथ साथ बरेली के सपा विधायक शहजिल इस्लाम और कैराना वाले नाहिद हसन का नाम लेकर भी विरोध की राजनीति शुरू हो गयी है. जिन सपा नेताओं ने खुलेआम नाराजगी जतायी है, वे याद दिला रहे हैं कि अखिलेश यादव ढाई साल में आजम खान से जेल जाकर सिर्फ एक बार ही मुलाकात किये. नाहिद हसन की गिरफ्तारी और पार्टी विधायक शहजिल इस्लाम के पेट्रोल पंप पर चले बुलडोजर पर भी अखिलेश यादव की चुप्पी से पार्टी के मुस्लिम नेता खासे खफा हैं.
सरकारी एक्शन से हफ्ता भर पहले ही शहजिल इस्लाम ने कहा था, 'उनके मुंह से आवा निकली तो हमारे बंदूकों से धुआं नहीं, गोलियां निकलेंगीं.' पेट्रोल पंप पर बुलडोजर चलने के बाद, शहजिल इस्लाम के मार्केट और फार्म हाउस को लेकर तो बरेली विकास प्राधिकरण ने नोटिस थमा दिया है.
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अखिलेश यादव ने ही बुलडोजर बाबा नाम दिया था - और चुनावों से काफी पहले कहा करते थे कि समाजवादी पार्टी सत्ता में आयी तो वो भी बीजेपी वालों के यहां बुलडोजर चलवाएंगे.
जब योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि 10 मार्च के बाद वो सबकी गर्मी शांत कर देंगे, तो अखिलेश यादव ने कम्प्रेशर कह कर मजाक उड़ाया था. चुनावों में तो अखिलेश यादव बुलडोजर को लेकर हर रैली में कुछ न कुछ बोलते ही थे, लेकिन अब ऐसा नहीं करते. मुस्लिम नेताओं को समाजवादी पार्टी अध्यक्ष का ये रवैया बिलकुल भी अच्छा नहीं लग रहा है.
आखिर क्यों मुस्लिम समाज को ऐसा लग रहा है कि समाजवादी पार्टी को वोट देकर वो ठगे से रह गये हैं? चुनावों के दौरान ही महसूस किया जाने लगा था कि मुस्लिम वोट समाजवादी पार्टी के पक्ष में एकतरफा डाले जा रहे हैं. मायावती ने तो सारे मुस्लिम वोट अखिलेश यादव के खाते में चले जाने को ही बीएसपी की हार की वजह बता डाली थी - और बीजेपी नेता अमित शाह ने तो इसे बहुत पहले ही भांप लिया था और अपनी तरफ से कोशिश भी की कि मुस्लिम वोट बंट जाये.
जिस तरह से चुनावों से पहले कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा मुस्लिम समुदाय के साथ खड़ी नजर आ रही थीं, अखिलेश यादव चुनाव बाद भी वैसी तत्परता नहीं दिखा पा रहे हैं. ऐसे में मुस्लिम नेता एकजुट होते जा रहे हैं. धीरे धीरे बढ़ रहा ये चैलेंज अखिलेश यादव के लिए खतरनाक इशारे कर रहा है - ऐसा लगता है जैसे समाजवादी पार्टी के मुस्लिम-यादव गठजोड़ (M-Y Factor) पर ही खतरा मंडरा रहा हो.
मुस्लिम समाज को मुलायम जैसी अपेक्षा है
अव्वल तो अखिलेश यादव ने लोक सभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर लखनऊ में डेरा जमाने का फैसला काफी सोच समझ कर लिया था, लेकिन ऐसा लगता है जैसे सिर मुंड़ाते ही ओले टपकने लगे हों - ऐसा लग रहा है जैसे अखिलेश यादव का विधानसभा में विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी सपा नेताओं को फूटी आंख नहीं सुहा रही है.
मुस्लिम सपा नेताओं की बातों से लगता है कि वे इस बार मोहम्मद आजम खां को ही यूपी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाये जाने की उम्मीद लगा बैठे थे, लेकिन जब अखिलेश यादव ने लड़ाई खुद लड़ने का फैसला कर लिया तो बात ही खत्म हो गयी. आजम खां को लेकर इसलिए भी उम्मीद रही होगी क्योंकि 2017 में अखिलेश यादव ने राम गोविंद चौधरी को ये जिम्मेदारी दे दी थी. मैसेज तो यही गया होगा कि मुख्यमंत्री पद चले जाने की वजह से अखिलेश यादव विपक्ष का नेता बनना अच्छा नहीं लग रहा होगा.
अब ये तो कह नहीं सकते कि आजम खां की जगह अखिलेश यादव को खुद ये जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिये थी, लिहाजा उनकी उपेक्षा का आरोप लगाने लगे हैं. वैसे भी अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह यादव की तरह मुसलमानों के लिए खड़े कभी नजर नहीं आये. हो सकता है अखिलेश यादव को डर हो कि कहीं 'मुल्ला मुलायम' जैसा ठप्पा बीजेपी वाले उन पर भी न लगा दें - चुनावों में तो मुलायम सिंह यादव को योगी आदित्यनाथ, अखिलेश यादव के 'अब्बाजान' कह कर बुलाने लगे थे.
हाल के चुनावों को छोड़ दें तो पहले मुलायम सिंह यादव हमेशा ही अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवाने की जिक्र करना नहीं भूलते थे - और बलात्कार के एक केस में मुलायम सिंह का कुख्यात बयान भी मुस्लिम समुदाय को खुश करने के लिए ही रहा - 'बच्चे हैं... बच्चों से गलती हो जाती है... अब क्या फांसी पर चढ़ा दोगे?'
मुस्लिम नेताओं की नाराजगी हाल फिलहाल इसलिए भी बढ़ी क्योंकि बाकी मामलों के साथ साथ अखिलेश यादव की तरफ से एक महंत के मुस्लिम महिलाओं को लेकर दिये बयान पर भी रिएक्शन नहीं आया. बजरंग मुनि नाम के एक महंत ने मुसलमानों की बहू-बेटियों को अगवा करके उनके साथ रेप की बात कही थी.
थोड़ी देर से ही सही, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने यूपी के मुख्यमंत्री से कार्रवाई की मांग की थी - और बजरंग मुनि को बयान देने के कई दिन बाद गिरफ्तार भी कर लिया गया.
मुस्लिम-यादव गठजोड़ पर लटकती तलवार
मुलायम सिंह यादव जैसे तो बन पाने से रहे, अखिलेश यादव के लिए लगता है उनकी विरासत को भी संभाले रखना मुश्किल होता जा रहा है. कहां मुलायम सिंह यादव पिछड़ों के नेता माने जाते रहे और अखिलेश यादव महज यादवों के नेता बन कर रह गये हैं. विधानसभा चुनाव ही नहीं, हाल के विधान परिषद चुनाव में भी अखिलेश यादव ने अपनी ही बिरादरी से सबसे ज्यादा उम्मीदवार खड़े किये थे.
मुलायम सिंह यादव की तरह अखिलेश यादव परिवार को भी नहीं संभाल सके और अब तो लगता है, समाजवादी पार्टी की मुस्लिम-यादव गठजोड़ की राजनीति भी खतरे में हैं. 2012 में जब यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी थी तो बीजेपी नेता ये कह कर मजाक उड़ाते थे कि सूबे में साढ़े चार मुख्यमंत्री हैं - और ये आधा हिस्सा ही अखिलेश यादव को मिलता रहा क्योंकि असली मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को माना जाता रहा. मुलायम सिंह के अलावा शिवपाल यादव और आजम खां की भी धमक मुख्यमंत्री जैसी ही हुआ करती थी.
शिवपाल यादव तो सपा गठबंधन के होकर और समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ कर भी नेटवर्क के बाहर नजर आ रहे हैं, आजम खां के समर्थक भी अखिलेश यादव के खिलाफ मोर्चा खोल दिये हैं - और पार्टी के ही नेता सरेआम आरोप लगा रहे हैं कि अखिलेश यादव मुस्लिम समाज की उपेक्षा कर रहे हैं.
कहने को तो अखिलेश यादव अपनी बातों से सवालों को हंसी मजाक के जरिये टालने की कोशिश जरूर करते हैं, लेकिन मुश्किलें खत्म नहीं हो रही हैं. ये पूछे जाने पर कि पहले अपर्णा यादव बीजेपी में गईं - और अब शिवपाल यादव की जोरदार चर्चा है, अखिलेश यादव का जवाब होता है - भाजपा परिवारवाद खत्म कर रही है.
चुनावों के समय से ही अखिलेश यादव अंबेडकरवादियों को समाजवादियों के साथ आने की अपील करते रहे हैं, 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती के मौके पर पिता मुलायम सिंह के साथ मैनपुरी पहुंचे थे - समाजवादी पार्टी कार्यकर्ताओं से मिलने. लेकिन मुद्दा गरम होने की वजह से आजम खां से जुड़े सवालों से पीछा नहीं छूट पाता.
मीडिया से सामना होते ही आजम खां को लेकर सवाल शुरू हो जाता है तो कहते हैं, 'इसलिए मैंने प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं बुलाई थी... मैंने इतनी बड़ी संख्या में आप लोगों को देखा तो सोचा कि नमस्ते कर लूं.'
सवाल खत्म नहीं होता तो साफ साफ बोल देते हैं कि वो आजम खां के मुद्दे पर कुछ नहीं कहना चाहते. फिर भी बात घूम फिर कर आजम खां पर आ ही जाती है तो कहते हैं, छोड़िये इन बातों को. जब ऐसे सवालों का सिलसिला खत्म नहीं होता तो आखिरकार बोलना ही पड़ता है. सवालिया लहजे में कहते हैं, आज जो बातें हो रही हैं, वो दो महीने पहले क्यों नहीं हुईं? वो चुनावों के दौरान हुए वाकयों की तरफ इशारा करते हैं.
मुस्लिम विधायकों का प्रेशर ग्रुप तो बन चुका है: सीएसडीएस के आंकड़ों से मालूम होता है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को यादव समाज का तो 85 फीसदी ही वोट मिला, मुस्लिम समाज से तो उससे भी ज्यादा 87 फीसदी वोट अखिलेश यादव के नाम पर पड़े.
समाजवादी गठबंधन से 61 मुस्लिम उम्मीदवार बनाये गये थे और उनमें से 34 जीत कर विधानसभा पहुंच चुके हैं. आजम खां तो जेल में बंद रह कर ही चुनाव जीते हैं. समाजवादी पार्टी ने 55, जयंत चौधरी की आरएलडी ने 5 और ओमप्रकाश राजभर ने एक मुस्लिम नेता को टिकट दिया था. 34 विधायकों में से 31 समाजवादी पार्टी के हैं जबकि दो आरएलडी और एक ओमप्रकाश राजभर की पार्टी के. उनमें भी 21 मुस्लिम विधायक पश्चिम उत्तर प्रदेश से हैं और 13 पूर्वांचल से.
अब तो ऐसा लगता है जैसे सारे मुस्लिम विधायक एकजुट भी हैं और अखिलेश यादव के खिलाफ भी. अखिलेश यादव से भी अपेक्षा स्वाभाविक रूप से वैसी ही होगी जैसी मुलायम सिंह यादव से हुआ करती थी. फर्क ये है कि मुलायम सिंह यादव बगैर किसी बात की परवाह किये खुल कर मुस्लिम समाज के साथ खड़े रहते रहे, अखिलेश यादव वैसी स्थिति से निकलने की कोशिश कर रहे हैं.
अखिलेश यादव भी, असल में मौजूदा राजनीतिक माहौल में मजबूर हैं. अगर कुछ बोलते भी हैं तो बात अब्बजान तक पहुंच जाती है और दुहाई दी जाने लगती है. जिस तरह से मायावती का वोटर बीएसपी से नाराज होकर बीजेपी के खेमे में चला गया है, अखिलेश यादव को भी तो डर होगा ही कि कहीं यादव वोटर भी आगे से वैसा ही न करने लगे - और जब मुस्लिम वोटर को भी लगेगा कि समाजवादी पार्टी को वोट देने से कोई फायदा नहीं मिलने वाला तो वो भी नये रास्ते की तलाश करेंगे - और अगर ऐसा हुआ तो वो अखिलेश यादव के मुस्लिम-यादव गठजोड़ की राजनीति के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक होगा.
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