उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (P CM Yogi Adityanath) की चुस्त-दुरुस्त गवर्नेंस और सख्त फैसले सियासी पिच पर मजबूत फिल्डिंग बैठाये हैं. यहां मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के हाथ से किसानों का मुद्दा भी फिसलता नज़र आ रहा है. किसान आंदोनलन का भारत बंद यूपी में बेअसर होना समाजवादी की निष्क्रियता मानी जा रही है. गौरतलब है कि सपा अध्यक्ष आखिलेश यादव लखनऊ स्थिति अपने आवास से किसान आंदलन के समर्थन में कन्नौज तक की यात्रा के लिए निकले थे. घर से निकलते ही उनकी प्रतिकात्मक गिरफ्तारी हुई. इसी के साथ सपा के कुछ पदाधिकारी अरेस्ट या हाउस अरेस्ट हुए. जिस हिसाब से इतने बड़े सूबे में इतने बड़े विपक्षी दल सपा के आम कार्यकर्ताओं को किसानों के समर्थन में प्रदेश भर में जगह-जगह नजर आना चाहिए था ऐसा कुछ नहीं हुआ. और यूपी में भारत बंद असफल साबित हुआ.
इसके कई तमाम कारणों में सबसे अहम कारण ये बताया जा रहा है कि योगी-मोदी सरकारो़ं के सख्त फैसलों की वजह से अखिलेश यादव खुद ज्यादा खुल कर मुखर नहीं हो पा रहे तो आम कार्यकर्ताओं को सड़क पर उतर कर सरकार के खिलाफ मुखर होने की हिम्मत नहीं दे पा रहे हैं. सपा अध्यक्ष की राजनीतिक क्षमता पर सवाल उठाने वालों का कहना है कि हाथरस जैसे तमाम मुद्दों की तरह किसानों की समस्याओं का अत्यंत अहम मुद्दे से योगी सरकार को घेरने की आखिलेश यादव की रणनीति बेहत कमजोर थी.
सरकार के खिलाफ सड़क पर आंदोलन कैसे फले फूले जब आजम ख़ान जैसे दिग्गज को परिवार सहित जेल में देखकर बड़े विपक्षी नेताओं के खुद हाथ-पैर फूले हैं. और छोटे कार्यकर्ता सीएए आंदोलन में हिंसा के आरोपियों का नतीजा देखकर डरे-दुबके और सहमे...
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (P CM Yogi Adityanath) की चुस्त-दुरुस्त गवर्नेंस और सख्त फैसले सियासी पिच पर मजबूत फिल्डिंग बैठाये हैं. यहां मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के हाथ से किसानों का मुद्दा भी फिसलता नज़र आ रहा है. किसान आंदोनलन का भारत बंद यूपी में बेअसर होना समाजवादी की निष्क्रियता मानी जा रही है. गौरतलब है कि सपा अध्यक्ष आखिलेश यादव लखनऊ स्थिति अपने आवास से किसान आंदलन के समर्थन में कन्नौज तक की यात्रा के लिए निकले थे. घर से निकलते ही उनकी प्रतिकात्मक गिरफ्तारी हुई. इसी के साथ सपा के कुछ पदाधिकारी अरेस्ट या हाउस अरेस्ट हुए. जिस हिसाब से इतने बड़े सूबे में इतने बड़े विपक्षी दल सपा के आम कार्यकर्ताओं को किसानों के समर्थन में प्रदेश भर में जगह-जगह नजर आना चाहिए था ऐसा कुछ नहीं हुआ. और यूपी में भारत बंद असफल साबित हुआ.
इसके कई तमाम कारणों में सबसे अहम कारण ये बताया जा रहा है कि योगी-मोदी सरकारो़ं के सख्त फैसलों की वजह से अखिलेश यादव खुद ज्यादा खुल कर मुखर नहीं हो पा रहे तो आम कार्यकर्ताओं को सड़क पर उतर कर सरकार के खिलाफ मुखर होने की हिम्मत नहीं दे पा रहे हैं. सपा अध्यक्ष की राजनीतिक क्षमता पर सवाल उठाने वालों का कहना है कि हाथरस जैसे तमाम मुद्दों की तरह किसानों की समस्याओं का अत्यंत अहम मुद्दे से योगी सरकार को घेरने की आखिलेश यादव की रणनीति बेहत कमजोर थी.
सरकार के खिलाफ सड़क पर आंदोलन कैसे फले फूले जब आजम ख़ान जैसे दिग्गज को परिवार सहित जेल में देखकर बड़े विपक्षी नेताओं के खुद हाथ-पैर फूले हैं. और छोटे कार्यकर्ता सीएए आंदोलन में हिंसा के आरोपियों का नतीजा देखकर डरे-दुबके और सहमे हुए हैं. ऐसे में किस विपक्षी दल का कौन बड़ा नेता किस कार्यकर्ताओं के साथ किसानों के आंदोलन को हवा-पानी देने में कैसे सफल होते. हांलाकि यूपी की सियासत के लिए किसानों की नाराजगी बड़ा मीद्दा है.
उत्तर प्रदेश कृषि और कृषक प्रधान सूबा है. गांव और किसान के मुद्दों की जमीन पर ही उत्तर प्रदेश की सियासत में सपा की फसल खूब लहलही थी. पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने गांव और किसानों को आधार बनाकर सपा को आगे बढ़ाया. लेकिन मुलायम सिंह की अगली पीढ़ी खेत खलियानों और गांव की पगडंडियों से भी एग्जिट करती नजर आ रही है.
सरकार के ख़िलाफ कोई भी ग़ैर सियासी आंदोलन विपक्षी दलों के लिए रामबाण बनता है. वो इसे पालते पोसती हैं, हवा देते हैं. मूल आंदोलनकारियों के कंधे पर रखकर बंदूक चलाते हैं. और उनके मुद्दे का सियासी फायदा उठाते हैं. इस तरह सरकार के खिलाफ माहौल विपक्षियों को ऊर्जा देता है. हजार आंदोलनकारियों में लाखों पार्टी वर्कर ऐसे घुल मिल जाते हैं जैसे पैसी में चीनी.
इस तरह जब लाखों का जनसैलाब जब सड़कों पर होता है तो लगता है कि अब हुकुमत का तख्त पलट जाना तय है. लेकिन यूपी के विपक्षी दलों को योगी सरकार की सख्त कार्यकुशलता ऐसा कोई मौका देने ही नहीं दे रही.नये कृषि कानून को लेकर पंजाब के किसानों की नाराजगी जब आंदोलन की सूरत अख्तियार करने लगी तो सभी विपक्षी दलों को लगा कि अब इस मुद्दों की गाड़ी से उनकी सियासत की गाड़ी चल पड़ेगी.
डर के आगे जीत है
एक विज्ञापन की ये पंच लाइन विपक्षी पार्टियों के कार्यकर्ताओं के लिए सटीक है और विपक्ष के लिए इसके उलट, यानी डर के आगे हार है. विपक्षी कार्यकर्ता डर के आगे सुकून मे रहने की जीत महसूस करता है, क्योंकि यदि वो डरेगा नहीं और विपक्षी पार्टी के कहने पर कोई उग्र प्रदर्शन करेगा तो यूपी की सख्त पुलिस उसे बख्शेगी नहीं. ऐसे में विपक्षी पार्टी का शीर्ष नेतृत्व उसे बचाने भी नहीं आयेगा. क्योंकि वो खुद डरा हुआ है. और बड़े नेताओ के इस डर से उनकी पार्टी की नैया डूबी जा रही है. इसलिए विपक्ष के शीर्ष नेताओं के डर के आगे विपक्षी दलों की हार है.
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