उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के घर का नाम टीपू है, यह बात बहुत से लोग जानते हैं. लेकिन जो लोग टीपू को बच्चा समझते थे, जिन्होंने टीपू को गोद में खिलाया था, जिन्हें यकीन था कि एक डांट पर टीपू सहमकर उनकी बात मान जाएगा - वे लोग अब हैरान हैं. उन्होंने हमेशा मुस्कुराते रहने वाले प्यारे से टीपू का यह बागी तेवर पहले कभी नहीं देखा था. अब टीपू, सुल्तान बनने की राह पर चल पड़ा है - संकल्प की तलवार लेकर, रथ पर सवार होकर. वो एलान कर चुका है कि 3 नवंबर से अपनी ही बनाई हुई लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे पर उसके चुनाव प्रचार का रथ सरपट दौड़ेगा. जिसे साथ आना है आए, जिसे नहीं आना है न आए. लेकिन जो सामने आएगा उस पर तलवार चलेगी. जो रास्ता रोकेगा, वह कुचल दिया जाएगा क्योंकि अब टीपू साइकिल पर नहीं, बल्कि रथ पर सवार है.
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पिता मुलायम सिंह यादव और चाचा शिवपाल यादव आवाज़ लगा रहे हैं कि टीपू रुक जाओ. लेकिन टीपू ने अब अपने सारथियों से कह दिया है कि रथ जल्दी से तैयार करो - संग्राम का बिगुल बज चुका है. हार हो या जीत, अपनी गर्दन कटे या अपनों की - अब टीपू की तलवार म्यान में नहीं लौटेगी. सत्ता के साढ़े चार साल ने टीपू को यह सिखा दिया है कि सुल्तान बनने की राह आसान नहीं होती. टीपू सुल्तान के पिता हैदर अली की तरह मुलायम सिंह यादव ने भी बहुत कम उम्र में ही अखिलेश को उत्तर प्रदेश की गद्दी पर बैठा दिया था. लेकिन सुल्तान के सिंहासन पर बैठकर भी अखिलेश बहुत समय तक घर के टीपू ही बने रहे. आए दिन सरेआम मुलायम सिंह यादव की डांट से भी अखिलेश विचलित नहीं हुए और मुस्कुरा कर यही कहते रहे की पिता की डांट में कौन सी बुरी बात है !
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लेकिन जब उन्होंने देखा की पिता को ढाल बनाकर दूसरे लोग भी लगातार उन पर हमला कर रहे हैं तो अखिलेश यादव के सब्र का बांध टूट गया. शिवपाल यादव जब तक चाचा थे तब तक अखिलेश यादव ने उनका भी लिहाज किया. लेकिन चाचा और अंकल की जुगलबंदी अखिलेश को ज़रा भी रास नहीं आई. जब टीपू ने देखा कि घर के भीतर की कलह और सत्ता हड़पने की होड़, रिश्तों को फंदा बनाकर उनका गला कसना चाहती है तो टीपू ने भी समझ लिया कि अब तलवार उठाने का समय आ गया है. गुरुवार को दिनभर की घटनाओं के बाद यह बात साफ हो गई कि अब अखिलेश यादव आर पार की लड़ाई लड़ने का मन बना चुके हैं.
मुलायम सिंह यादव ने आदेश दिया कि 5 नवंबर को समाजवादी पार्टी के 25 वीं सालगिरह धूमधाम से मनाई जाएगी. लेकिन अखिलेश यादव ने कहा कि जब मुख्यमंत्री होकर भी वह अपने कुछ समर्थकों की पार्टी में वापसी तक नहीं करा सकते तो फिर कैसा जश्न ? उन्होंने ऐलान कर दिया कि वह दो दिन पहले, यानि 3 तारीख से ही चुनाव प्रचार का अपना रथ लेकर निकल जाएंगे.
मुख्यमंत्री बेटे के बिना नेताजी पार्टी की 25वीं सालगिरह कैसे मनाएंगे यह चिंता उन्होंने मुलायम सिंह यादव के लिए छोड़ दी. जिस मुलायम सिंह यादव को यह गुमान था कि उनकी मर्जी के बिना समाजवादी पार्टी में पत्ता भी नहीं हिल सकता, वो अब हक्के बक्के हैं. अब हालत यह है की बेटे को समझाने की बात अब बेनी प्रसाद वर्मा जैसे वो नेता कर रहे हैं जो खुद ही पार्टी में किनारे पड़े हुए हैं. धरतीपुत्र कहे जाने वाले मुलायम सिंह यादव इतने लाचार कभी नहीं थे.
मुलायम सिंह यादव ने 5 तारीख के जलसे को सफल बनाने के लिए 24 अक्टूबर को पार्टी के विधायकों और नेताओं की बड़ी बैठक बुलाई है. अखिलेश यादव ने एक दिन पहले, यानी 23 तारीख को ही विधायकों की बैठक बुला ली ताकि रथ यात्रा की तैयारी पर चर्चा हो सके. टीपू का रथ अब मुलायम-शिवपाल के अरमानों को रौंदने में भी नहीं हिचकेगा. गुरुवार की रात शिवपाल यादव दो घंटे तक अखिलेश से मिलकर आए थे. उनसे कहा था कि जिलाध्यक्षों की बैठक में वो भी आ जाएं ताकि पार्टी में फूट की खबरों पर कुछ विराम लगे. अखिलेश यादव ने ठीक उलटा किया. जिलाध्यक्षों की बैठक में तो वो नहीं गए, हां, ये जरूर किया कि शाम में उन्हीं जिलाध्यक्षों को घर पर बुला लिया और कहा कि 3 तारीख के उनके रथ यात्रा की तैयारी जोर-शोर से की जाए.
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शुक्रवार को जिस समय शिवपाल यादव जिला अध्यक्षों के सामने कह रहे थे कि वह अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं, उसी वक्त अखिलेश यादव अपने घर पर कुछ चुनिंदा नेताओं- मंत्रियों के साथ अपना दर्द बांट रहे थे. सूत्रों के मुताबिक अखिलेश यादव ने अपना दर्द बयान करते हुए कहा कि कैसे अंकल के चक्कर में पड कर नेताजी ने उन्हें कहां से कहां पहुंचा दिया. यह भी कहा कि जो पार्टी चुनाव जीतने की तरफ बढ़ रही थी अब उसका बुरा हाल हो चुका है. अखिलेश यादव अब अपनी नाराजगी छिपा भी नहीं रहे हैं. सभी समर्थकों की चिट्ठी के जरिए, तो कभी इशारों इशारों में वह अपनी बात कह देते हैं. अब टीपू को बच्चा नहीं समझा जाए. लेकिन नेताजी हैं की टीपू को गद्दी तो सौंप दी , लेकिन अभी भी घर के बच्चे से ज्यादा मानने को तैयार ही नहीं. तंग आकर अखिलेश यादव तो अब 'टीपू' से 'सुल्तान' बनने निकल चुके हैं. लेकिन क्या उनकी तलवार में टीपू सुल्तान जैसी वही धार है जिसका लोहा अंग्रेज इस कदर मानते थे कि अपने साथ उनकी तलवार इंग्लैंड दिखाने के लिए ले गए ?
कम लोग जानते हैं कि टीपू सुल्तान को 'मैसूर का शेर' ही नहीं दुनिया का पहला मिसाइल मैन भी कहा जाता है क्योंकि उन्हीं की सेना ने पहली बार दूर तक मार करने वाले रॉकेट की खोज की थी. अखिलेश यादव को शेरों का शौक है यह तो सबको पता है क्योंकि इटावा में वो जी-जान लगाकर लायन सफारी बनवा रहे हैं. लेकिन क्या अपने टीपू को सुल्तान बनाने के लिए उनकी सेना के पास विरोधियों को चकमा देकर दूर तक मार करने वाली रॉकेट भी है ? इस सवाल का जवाब जानने के लिए यूपी की जंग के नतीजे का इंतजार करना होगा. तब तक ये देखना दिलचस्प होगा कि टीपू की तलवार किसके-किसके खून से लाल होती है.
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