अब करीब करीब ये भी साफ हो गया है कि डिंपल यादव अभी लोक सभा उपचुनाव भी नहीं लड़ने जा रही हैं. आजमगढ़ सीट पर हो रहे उपचुनाव में अब तक डिंपल यादव को उम्मीदवार बनाये जाने की चर्चा रही, लेकिन अब नये उम्मीदवार का नाम फाइनल हो जाने की खबर आ रही है.
डिंपल यादव की उम्मीदवारी को लेकर कयास तब और भी मजबूत लगने लगे थे जब आखिरी वक्त में राज्य सभा उम्मीदवारों की सूची से उनका नाम हटा दिया गया. उत्तर प्रदेश से राज्य सभा चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों की सूची जारी होने के 24 घंटे पहले तक तीन नाम बताये जा रहे थे - डिंपल यादव, कपिल सिब्बल और जावेद अली खान.
लेकिन जब नामों की घोषणा हुई तो उसमें डिंपल यादव की जगह आरएलडी नेता जयंत चौधरी का नाम देखा गया. जयंत चौधरी यूपी विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी गठबंधन में सबसे बड़े सहयोगी रहे - और 2019 के आम चुनाव में भी वो सपा-बसपा गठबंधन में शामिल किये गये थे.
आजमगढ़ सीट पर समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के इस्तीफे के चलते ही उपचुनाव हो रहा है. उत्तर प्रदेश में सपा नेता आजम खान के इस्तीफे से खाली हुई रामपुर सीट पर भी उपचुनाव हो रहा है - जहां वोटिंग 23 जून, 2022 और वोटों की गिनती 26 जून को होनी है.
बहरहाल, अब समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में सुशील आनंद का नाम फाइनल किया गया है, जिसका मकसद बीएसपी कैंडिडेट शाह आलम यानी गुड्डू जमाली को काउंटर करना लगता है - मतलब, ये समझा जाये कि विधानसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) से मुकाबला करने वाले अखिलेश यादव ये नयी लड़ाई मायावती (Mayawati) के खिलाफ लड़ने वाले हैं.
अखिलेश यादव को आजमगढ़ पर भरोसा कम क्यों?
आजमगढ़ लोक सभा सीट को लेकर एक बात तो पक्की है, अखिलेश यादव...
अब करीब करीब ये भी साफ हो गया है कि डिंपल यादव अभी लोक सभा उपचुनाव भी नहीं लड़ने जा रही हैं. आजमगढ़ सीट पर हो रहे उपचुनाव में अब तक डिंपल यादव को उम्मीदवार बनाये जाने की चर्चा रही, लेकिन अब नये उम्मीदवार का नाम फाइनल हो जाने की खबर आ रही है.
डिंपल यादव की उम्मीदवारी को लेकर कयास तब और भी मजबूत लगने लगे थे जब आखिरी वक्त में राज्य सभा उम्मीदवारों की सूची से उनका नाम हटा दिया गया. उत्तर प्रदेश से राज्य सभा चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों की सूची जारी होने के 24 घंटे पहले तक तीन नाम बताये जा रहे थे - डिंपल यादव, कपिल सिब्बल और जावेद अली खान.
लेकिन जब नामों की घोषणा हुई तो उसमें डिंपल यादव की जगह आरएलडी नेता जयंत चौधरी का नाम देखा गया. जयंत चौधरी यूपी विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी गठबंधन में सबसे बड़े सहयोगी रहे - और 2019 के आम चुनाव में भी वो सपा-बसपा गठबंधन में शामिल किये गये थे.
आजमगढ़ सीट पर समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के इस्तीफे के चलते ही उपचुनाव हो रहा है. उत्तर प्रदेश में सपा नेता आजम खान के इस्तीफे से खाली हुई रामपुर सीट पर भी उपचुनाव हो रहा है - जहां वोटिंग 23 जून, 2022 और वोटों की गिनती 26 जून को होनी है.
बहरहाल, अब समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में सुशील आनंद का नाम फाइनल किया गया है, जिसका मकसद बीएसपी कैंडिडेट शाह आलम यानी गुड्डू जमाली को काउंटर करना लगता है - मतलब, ये समझा जाये कि विधानसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) से मुकाबला करने वाले अखिलेश यादव ये नयी लड़ाई मायावती (Mayawati) के खिलाफ लड़ने वाले हैं.
अखिलेश यादव को आजमगढ़ पर भरोसा कम क्यों?
आजमगढ़ लोक सभा सीट को लेकर एक बात तो पक्की है, अखिलेश यादव किसी भी सूरत में गंवाना नहीं चाहते होंगे - लेकिन क्या डिंपल यादव की जीत को लेकर मन में कोई आशंका रही होगी?
बड़ा सवाल यही है - और अब तो जवाब भी हां में ही समझा जाना चाहिये.
अगर डिंपल यादव को राज्य सभा भेजे जाने की बात नहीं हुई होती, तो शायद आजमगढ़ उपचुनाव को लेकर भी बतौर संभावित उम्मीदवार उनका नाम चर्चा में नहीं आया होता. तब तो पूर्व सांसद रमाकांत यादव या आजमगढ़ के समाजवादी पार्टी नेताओं में से ही कोई न कोई दावेदार होता.
डिंपल यादव को लेकर एक आशंका स्थानीय उम्मीदवार बनाम बाहरी की लड़ाई भी मानी जा रही थी, खास कर तब जबकि दिनेश लाल यादव निरहुआ की लखनऊ और आजमगढ़ में गतिविधियां कम देखी जाने लगीं. वैसे बीजेपी ने उपचुनाव को लेकर अपना कोई उम्मीदवार घोषित नहीं किया है.
यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी की तरफ से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर सदर सीट से उम्मीदवार घोषित कर दिये जाने के बाद अखिलेश यादव पर भी दबाव बढ़ गया था. दबाव में तो प्रियंका गांधी वाड्रा भी रहीं, लेकिन वो जैसे तैसे बच कर निकल गयीं - और मायावती ने पहले ही नियमों का हवाला देकर पल्ला झाड़ लिया था.
चुनाव कैंपेन के दौरान अखिलेश यादव से भी योगी आदित्यनाथ की तरह विधानसभा चुनाव लड़ने को लेकर सवाल पूछा गया था. तब अखिलेश यादव ने कहा था कि वो अपने चुनाव लड़ने का फैसला आजमगढ़ के लोगों से पूछ कर ही करेंगे - और तभी कंफर्म भी करेंगे.
फिर अचानक ही समजवादी पार्टी की तरफ से अखिलेश यादव को मैनपुरी की करहल सीट से उम्मीदवार घोषित कर दिया गया. फिर बीजेपी ने करहल से केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल को मैदान में उतार दिया. बीजेपी नेता तभी अखिलेश यादव पर आजमगढ़ से धोखा करने और पिता मुलायम सिंह यादव के गढ़ से मैदान में उतरने को लेकर हमलावर हो गये थे.
और तभी अखिलेश यादव ने वोट मांगने के लिए मुलायम सिंह यादव को बुलाकर राजनीतिक विरोधियों के आरोपों को मजबूती दे डाली. मुलायम सिंह यादव फिलहाल मैनपुरी लोक सभा सीट से ही सांसद हैं.
अब तो यही लगता है कि आजमगढ़ को लेकर अखिलेश यादव को जीत का पक्का भरोसा नहीं रह गया था. अब तो ये भी लगता है कि विधानसभा चुनाव के दौरान भी अखिलेश यादव के मन में ऐसी ही आशंका रही होगी - और उसी के चलते वो मैनपुरी की करहल सीट पर ज्यादा भरोसा किये. करहल के लोगों ने अखिलेश यादव की उम्मीदें टूटने भी नहीं दी.
अखिलेश के निशाने पर बीएसपी है, बीजेपी नहीं
अखिलेश यादव ने जिस तरीके से आजमगढ़ के लिए समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार फाइनल किया है, लगता नहीं कि इस बार वो बीजेपी या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुकाबला करने जा रहे हैं - बल्कि, ऐसा लग रहा है जैसे वो बीएसपी नेता मायावती से दो-दो हाथ करने की तैयारी कर चुके हों.
आंकड़ों के हिसाब से देखें तो आजमगढ़ में 84 फीसदी हिंदू और 16 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं - लेकिन क्या मायावती ने बीएसपी की तरफ से मुस्लिम कैंडिडेट चुनाव जीतने के मकसद से खड़ा किया है?
1952 से लेकर 2019 तक आजमगढ़ के लोगों ने महज तीन बार ही मुस्लिम उम्मीदवारों को लोक सभा भेजा है - दो बार अकबर अहमद डम्पी और एक बार मोहसिना किदवई. अकबर अहमद बीएसपी के टिकट पर, जबकि मोहसिना किदवई बीएसपी उम्मीदवार के रूप में.
अगर बीएसपी के ट्रैक रिकॉर्ड के हिसाब से देखें तो मायावती ने आजमगढ़ में पार्टी उम्मीदवारों की जीत के हिसाब से इस बार भी कैंडिडेट का सेलेक्शन किया है. 1989 में बीएसपी के टिकट पर रामकृष्ण यादव सांसद चुने गये थे.
2014 में मौजूदा उम्मीदवार गुड्डू जमाली ही बीएसपी के टिकट पर चुनाव मैदान में थे और ढाई लाख से ज्यादा वोट पाने के बावजूद तीसरे स्थान पर रह गये थे. तब मुलायम सिंह यादव ने बीजेपी उम्मीदवार के रूप पूर्व सपा सांसद रमाकांत यादव को हराया था. 2019 में तो सपा-बसपा गठबंधन की वजह से आजमगढ़ सीट अखिलेश यादव के कोटे में ही रही.
आजमगढ़ में निर्णायक वोटर कौन: 2014 और 2019 के आम चुनाव ही नहीं, 2017 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में भी समजवादी पार्टी के पक्ष में सबसे ज्यादा आजमगढ़ के लोगों ने ही वोट दिया था - और 2022 में तो सिर्फ लोक सभा सीट की कौन कहे, आजमगढ़ जिले की सभी 10 सीटों पर समाजवादी पार्टी ने ही कब्जा जमा रखा है.
आजमगढ़ में मुस्लिम से ज्यादा दलित वोटर हैं - और ओबीसी वोटर उससे भी ज्यादा हैं. आजमगढ़ लोक सभा क्षेत्र में मुस्लिम वोटर 18 फीसदी, दलित वोटर 25 फीसदी और करीब 40 फीसदी ओबीसी वोटर हैं. आजमगढ़ में सवर्ण वोटर 17 फीसदी हैं.
ओबीसी के 40 फीसदी में से 21 फीसदी गैर-यादव वोट हैं. देखा जाये तो ये 18 फीसदी मुस्लिम और 19 फीसदी यादव वोट यानी करीब 37 फीसदी ने ही अखिलेश यादव की जीत सुनिश्चित की होगी. 2014 का केस अलग रहा. मुलायम सिंह यादव के परिवार के लोगों की जीत को बीजेपी के साथ भीतरी सेटिंग के तौर पर देखा गया था. वैसे ये भी मान कर चलना चाहिये कि मुलायम सिंह यादव को मुस्लिम-यादव के अलावा गैर-यादव ओबीसी के वोट भी मिले होंगे.
मुस्लिम वोट कटने से अखिलेश यादव को नुकसान होगा: यूपी चुनाव में हार की वजह मायावती की तरफ से यही बतायी गयी थी कि मुस्लिम वोट समाजवादी पार्टी को मिल जाने से बीएसपी हार गयी. चुनावों के दौरान भी अमित शाह के बयान को वैसा ही समझा गया था. अमित शाह ने बीएसपी की चुनावी प्रासंगिकता को लेकर जो बयान दिया था उसके पीछे भी मकसद मुस्लिम वोटों का बंटवारा ही समझा गया.
आजमगढ़ से गुड्डू जमाली की उम्मीदवारी को विधानसभा चुनावों में मायावती की रणनीति से अलग करके देखना होगा. मायावती के पास दलील है कि बीएसपी ने 2014 के ही अपने उम्मीदवार पर फिर से भरोसा जताया है. 2019 में तो ये विकल्प ही नहीं था. यूपी विधानसभा चुनाव में मायावती ने दलितों के साथ साथ जगह जगह मुस्लिम उम्मीदवार भी उतारे थे - और यही समझा गया कि उसके पीछे मंशा बीजेपी की मदद करनी रही होगी.
सपा उम्मीदवार सुशील आनंद कौन हैं: सुशील आनंद बामसेफ और बीएसपी के संस्थापकों में से एक रहे बलिहारी बाबू के बेटे हैं. बामसेफ के संस्थापक होने का मतलब कांशीराम के साथी के तौर पर समझा जाना चाहिये.
बीएसपी की तरफ से राज्य सभा सांसद रहे बलिहारी बाबू 2020 में समाजवादी पार्टी में शामिल हो गये थे. ये मामला भी कांशीराम के जमाने के बीएसपी नेताओं की मायावती से नाराजगी का ही एक नमूना रहा. अप्रैल, 2021 में कोविड इंफेक्शन की वजह से बलिहारी बाबू का निधन हो गया था.
सुशील आनंद 2010 में फूलपुर के ब्लॉक प्रमुख रह चुके हैं - और एमए, एलएलबी, बीएड की डिग्री उनके पास है. सुशील आनंद की पत्नी अनुराधा गौतम लालगंज जीजीआईसी में प्रभारी प्रिंसिपल हैं.
सुशील आनंद को समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार बनाये जाने से कई बातें साफ हो गयी हैं. अखिलेश यादव ये लड़ाई योगी आदित्यनाथ से नहीं बल्कि मायावती से लड़ रहे हैं - और आजमगढ़ छोड़ने का कुछ न कुछ मलाल भी मन में है.
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