अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के सामने आजम खान को पूरी तरह मना लेने की चुनौती है - और उत्तर प्रदेश की रामपुर और आजमगढ़ लोक सभा सीटों पर उपचुनाव (Azamgarh Bypoll) में समाजवादी पार्टी की जीत सुनिश्चित करना एक अलग ही मुश्किल है.
ऊपर से यूपी विधान परिषद भेजे जाने वाले समाजवादी पार्टी के चार नेताओं की लिस्ट भी फाइनल करनी है. वैसे अभी ये नहीं मालूम कि रामपुर लोक सभा सीट की तरह विधान परिषद के लिए भी आजम खान की तरफ से कोई दावेदारी या सिफारिश है क्या?
आजम खान (Azam Khan) के जेल से छूटने के बाद अखिलेश पहली बार दिल्ली के अस्पताल पहुंच कर मिले हैं. अखिलेश यादव से पहले नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला भी अस्पताल जाकर आजम खान से मिल चुके हैं.
जाहिर है, मुलाकात के दौरान अखिलेश यादव और आजम खान की मुलाकात में यूपी के राजनीतिक हालात, समाजवादी पार्टी के मुस्लिम विधायकों की नाराजगी के साथ साथ रामपुर लोक सभा सीट पर उम्मीदवार के नाम पर भी चर्चा होना जरूरी था.
अखिलेश यादव के अस्पताल आने को लेकर आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम राजनीतिक की जगह इसे निहायत ही निजी मुलाकात बता रहे हैं. अब्दुल्ला आजम का दावा है कि ये मुलाकात सिर्फ हालचाल तक सीमित रही.
ऐसे में जबकि समाजवादी पार्टी के सामने कुल जमा पांच में से दो लोक सभा सीटों पर कब्जा बनाये रखने की चुनौती आ खड़ी हुई हो, पार्टी के दो बड़े नेता पूरे तीन घंटे सिर्फ हालचाल लेते रहे होंगे यकीन करने लायक तो नहीं ही है.
अब्दुल्ला आजम की बात अपनी जगह है, लेकिन सूत्रों के हवाले से आ रही खबर से मालूम होता है कि आजम खान से अखिलेश यादव रामपुर उपचुनाव के लिए समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के नाम पर उनकी मंजूरी लेने के लिए मिले थे.
अब तक ये साफ हो चुका है कि रामपुर से जहां आजम...
अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के सामने आजम खान को पूरी तरह मना लेने की चुनौती है - और उत्तर प्रदेश की रामपुर और आजमगढ़ लोक सभा सीटों पर उपचुनाव (Azamgarh Bypoll) में समाजवादी पार्टी की जीत सुनिश्चित करना एक अलग ही मुश्किल है.
ऊपर से यूपी विधान परिषद भेजे जाने वाले समाजवादी पार्टी के चार नेताओं की लिस्ट भी फाइनल करनी है. वैसे अभी ये नहीं मालूम कि रामपुर लोक सभा सीट की तरह विधान परिषद के लिए भी आजम खान की तरफ से कोई दावेदारी या सिफारिश है क्या?
आजम खान (Azam Khan) के जेल से छूटने के बाद अखिलेश पहली बार दिल्ली के अस्पताल पहुंच कर मिले हैं. अखिलेश यादव से पहले नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला भी अस्पताल जाकर आजम खान से मिल चुके हैं.
जाहिर है, मुलाकात के दौरान अखिलेश यादव और आजम खान की मुलाकात में यूपी के राजनीतिक हालात, समाजवादी पार्टी के मुस्लिम विधायकों की नाराजगी के साथ साथ रामपुर लोक सभा सीट पर उम्मीदवार के नाम पर भी चर्चा होना जरूरी था.
अखिलेश यादव के अस्पताल आने को लेकर आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम राजनीतिक की जगह इसे निहायत ही निजी मुलाकात बता रहे हैं. अब्दुल्ला आजम का दावा है कि ये मुलाकात सिर्फ हालचाल तक सीमित रही.
ऐसे में जबकि समाजवादी पार्टी के सामने कुल जमा पांच में से दो लोक सभा सीटों पर कब्जा बनाये रखने की चुनौती आ खड़ी हुई हो, पार्टी के दो बड़े नेता पूरे तीन घंटे सिर्फ हालचाल लेते रहे होंगे यकीन करने लायक तो नहीं ही है.
अब्दुल्ला आजम की बात अपनी जगह है, लेकिन सूत्रों के हवाले से आ रही खबर से मालूम होता है कि आजम खान से अखिलेश यादव रामपुर उपचुनाव के लिए समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के नाम पर उनकी मंजूरी लेने के लिए मिले थे.
अब तक ये साफ हो चुका है कि रामपुर से जहां आजम खान के परिवार से ही कोई न कोई उम्मीदवार होगा, वहीं आजमगढ़ को लेकर पहले से चल रहे डिंपल यादव के नाम के अलावा एक और नाम की चर्चा भी चल रही है.
रूठे रब को मनाना आसान है, रूठे...
ऐसा लगता है जैसे नाराज आजम खान ने खुद को मनाने के लिए अखिलेश यादव के लिए ईएमआई फिक्स कर दी हो. हर एक किस्त की अदायगी के साथ वो थोड़ा और मान जाते हैं, लेकिन अब भी कई ईएमआई का पेमेंट बकाया लगता है.
ये ईएमआई किसी आम लोन के रीपेमेंट की तरह नहीं हैं, बल्कि क्रेडिट कार्ड के सेटलमेंट केस जैसी लग रही हैं. जैसे सेटलमेंट के लिए एक माध्यम की जरूरत पड़ती है, कपिल सिब्बल फिलहाल वैसी ही भूमिका निभा रहे बताये जाते हैं. समझने वाली बात तो ये भी है कि कपिल सिब्बल को राज्य सभा भेजा जाना भी आजम खान केस की एक ईएमआई जैसा ही है. हालांकि, ये डबल बेनिफिट स्कीम वाली लगती है - क्योंकि कपिल सिब्बल की सेवाएं तो कानूनी लड़ाइयों में भी ली जानी हैं ही.
और लेटेस्ट ईएमआई अखिलेश यादव की दिल्ली के अस्पताल में आजम खान से मुलाकात है. सीतापुर जेल से रिहा होने के बाद आजम खान की तबीयत खराब होने पर उनको दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में भर्ती कराया गया है.
आजम खान की नाराजगी का आलम ये है कि जेल से रिहाई के बाद कौन कहे, वो तो विधायक के तौर पर शपथग्रहण के बाद भी अखिलेश यादव से नहीं मिले. लोगों से मिलते जुलते अपनी तबाही के लिए अपनों को ही जिम्मेदार ठहराते रहे हैं. जाहिर है आजम खान के मन में बहुत कुछ चल रहा था, लेकिन खुल कर कुछ नहीं बोले.
यूपी चुनाव 2022 में मुस्लिम-यादव वोट यानी M-Y फैक्टर की बदौलत समाजवादी पार्टी को सबसे बड़ा विपक्षी दल बनाने वाले अखिलेश यादव के लिए आजम खान कितने अहम हो चुके हैं, समझना मुश्किल नहीं होना चाहिये. ऐसे में आजम खान के रामपुर के किले में अपनी कोई मनमानी कर सकेंगे, बिलकुल स्कोप नहीं है.
खबर ये भी आई थी कि अखिलेश यादव और आजम खान के बीच ये मीटिंग भी कपिल सिब्बल ने ही तय करायी थी. अगर वास्तव में ऐसा ही है तब तो यही लगता है कि आजम खाने की नाराजगी इस हद तक रही कि न तो अखिलेश यादव खुद फोन कर उनसे मिलने पहुंच सकते थे - और न ही समाजवादी पार्टी में किसी की ऐसी हैसियत रह गयी थी.
रामपुर की लड़ाई
रामपुर की लड़ाई न तो अखिलेश यादव अपने बूते अकेले लड़ पाने की स्थिति में हैं, न ही ये उनकी अकेली लड़ाई होने वाली है - रामपुर लोकसभा सीट को समाजवादी पार्टी के पास अखिलेश यादव और आजम खान दोनों के मिले जुले प्रयास से ही रखा जा सकता है. उसमें भी अखिलेश यादव के मुकाबले बड़ी भूमिका आजम खान की ही लगती है.
अगर रामपुर सीट पर मायावती ने अपना प्रत्याशी खड़ा न करने या किसी भी पार्टी का सपोर्ट न करने का फैसला लिया है, तो उसकी वजह अखिलेश यादव नहीं बल्कि आजम खान ही लगते हैं - क्योंकि आजमगढ़ के लिए बीएसपी उम्मीदवार के नाम की घोषणा पहले ही हो चुकी है.
आजम खान के जेल में रहने के दौरान ही मायावती ने बयान जारी कर अपना समर्थन जताया था. मायावती का कहना रहा, 'उत्तर प्रदेश की सरकार अपने विरोधियों पर लगातार द्वेषपूर्ण और आतंकित कार्रवाई कर रही है. वरिष्ठ विधायक मोहम्मद आजम खान को करीब सवा दो सालों से जेल में बंद रखने का मामला काफी चर्चाओं में है, जो लोगों की नजर में न्याय का गला घोंटना नहीं तो और क्या है?'
कांग्रेस का रवैया भी रामपुर सीट को लेकर बीएसपी जैसा ही लगता है, बशर्ते उम्मीदवार आजम खान के परिवार से ही कोई न कोई हो. इसकी वजह कुछ कांग्रेस नेताओं से दिल्ली में आजम खान की मुलाकात बतायी जा रही है. बताते हैं कि कांग्रेस नेताओं ने आजम खान को आश्वस्त किया है कि अगर उनके परिवार से कोई चुनाव लड़ता है तो पार्टी अपना प्रत्याशी मैदान में नहीं उतारेगी. एक जानकारी ये भी आयी है कि नवेद मियां के नाम से एक नामांकन पत्र लिया गया है. कांग्रेस नेता नवाब काजिम अली खान उर्फ नवेद मियां ने ये पत्र अपने प्रतिनिधि काशिफ खान के जरिये मंगवाया है.
रही बात बीजेपी की तो एक दावेदार तो 2019 में हार चुकीं जया प्रदा भी हैं, लेकिन राज्य सभा के लिए बीजेपी की सूची से मुख्तार अब्बास नकवी का नाम नदारद होने के पीछे एक वजह रामपुर उपचुनाव भी माना जा रहा है. 2019 में बीजेपी उम्मीदवार रहीं जया प्रदा चुनाव जरूर हार गयी थीं, लेकिन 2004 और 2009 में वो रामपुर से समाजवादी पार्टी की सांसद रही हैं. 2009 में बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ चुके मुख्तार अब्बास नकवी को भी जया प्रदा हरा चुकी हैं - और तब तो वो अपनी जमानत भी नहीं बचा पाये थे.
रामपुर से अखिलेश यादव किसे उम्मीदवार बनाएंगे: खबर है कि रामपुर संसदीय सीट से सिदरा खान समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी हो सकती हैं. वैसे सूत्रों के हवाले से कुछ मीडिया रिपोर्ट में तजीन फातिमा के नाम पर भी मुहर लग जाने की बात कही गयी है. तजीन फातिमा, आजम खान की पत्नी हैं, जबकि सिदरा खान उनकी बहू हैं. सिदरा खान, आजम खान के बड़े बेटे अदीब खान की पत्नी हैं.
सिदरा खान सोशल मीडिया पर खासी एक्टिव हैं - और अक्सर फेसबुक पर लाइव के जरिये रामपुर से जुड़े मुद्दे उठाती रहती हैं. आजम खान के जेल में रहने के दौरान भी वो बीजेपी को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करते देखी गयीं. पिछले चुनाव के दौरान रैलियों में अखिलेश यादव के मंच पर अपनी सास तजीन फातिमा के साथ भी देखी गयी थीं.
आजम खान के छोटे बेटे अब्दुल्ला आजम तो विधायक हैं, लेकिन बड़े बेटे अदीब खान की राजनीति में दिलचस्पी नहीं है. ऐसे में पति की जगह सिदरा खान भरती देखी जा सकती हैं - अगर सिदरा खान को रामपुर से समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार बनाया जाता है तो आजम खान की राजनीतिक विरासत पर वो दावा जताने की हकदार अपनेआप बन जाएंगी.
आजमगढ़ का किला बचाने की चुनौती
रामपुर के उलट मायावती ने आजमगढ़ सीट पर बीएसपी उम्मीदवार के नाम की घोषणा कर दी है - पूर्व विधायक शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली आजगढ़ संसदीय सीट पर हो रहे उपचुनाव में बीएसपी के प्रत्याशी होंगे.
2019 में हुए लोकसभा चुनाव में आजमगढ़ से अखिलेश यादव और रामपुर सीट से आजम खान लोक सभा पहुंचे थे, लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव जीत कर अखिलेश यादव और आजम खान दोनों विधायक बन गये. आजम खान तो सीतापुर जेल से ही चुनाव लड़े और जीते भी.
समाजवादी पार्टी के दोनों नेताओं के विधायक बन जाने की वजह से ही उत्तर प्रदेश की आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीट पर 23 जून को वोटिंग होनी है - और 26 जून को वोटों की गिनती होगी, यानी रिजल्ट भी आ जाएगा.
बीएसपी के साथ साथ समाजवादी पार्टी को बीजेपी उम्मीदवार से भी जूझना होगा. 2019 में अखिलेश यादव के खिलाफ बीजेपी ने भोजपुरी कलाकार दिनेशलाल यादव निरहुआ को चुनाव लड़ाया था - और अखिलेश यादव के आजमगढ़ सीट छोड़ने की घोषणा के बाद से ही निरहुआ को लखनऊ और आजमगढ़ में देखा जाने लगा था. हालांकि, हाल के कुछ दिनों से उनकी मौजूदगी कम महसूस की जा रही है - और इसी बीच विधान परिषद सदस्य यशवंत सिंह के नाम की भी चर्चा होने लगी है. यशवंत सिंह को हाल ही में 6 साल के लिए बीजेपी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था. यशवंत सिंह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के करीबियों में शुमार हुआ करते थे. अब नये सिरे से चर्चा थोड़ी अजीब जरूर है, लेकिन माफी तो कभी भी किसी को मिल सकती है.
आजमगढ़ जिले में विधानसभा की 10 सीटें आती हैं और फिलहाल सभी पर समाजवादी पार्टी का ही कब्जा है. हाल फिलहाल अखिलेश यादव दो बार आजमगढ़ का दौरा कर चुके हैं - और बताते हैं कि सभी पार्टी विधायक अखिलेश यादव के साथ बैठक में डिंपल यादव को चुनाव लड़ाने की बात पर सहमति जता चुके हैं.
डिंपल यादव की चर्चा तो तभी से होने लगी थी जब उनको राज्य सभा उम्मीदवार बनाने का फैसला वापल ले लिया गया था, लेकिन अब पूर्व सांसद रमाकांत यादव का नाम भी चर्चा का हिस्सा बन चुका है. रमाकांत यादव 1996, 1999, 2004 और 2009 में आजमगढ़ से सांसद रह चुके हैं. 2009 में वो बीजेपी के टिकट पर लोक सभा पहुंचे थे. 2014 में बीजेपी उम्मीदवार के रूप में वो मुलायम सिंह यादव से चुनाव हार गये थे.
रमाकांत यादव के पक्ष में बस एक ही बात जाती है, वो है उनका लोकल होना. अगर बीजेपी ने चुनाव में बाहरी और स्थानीय उम्मीदवार का मुद्दा बनाया तो डिंपल यादव के लिए मुश्किल हो सकती है. बीजेपी की तरफ से समझाया जा सकता है कि जैसे अखिलेश यादव आजमगढ़ छोड़ कर मैनपुरी चल गये, डिंपल भी आने वाले दिनों में कन्नौज लौट सकती हैं. हालांकि, ऐसी सूरत में बीजेपी को भी निरहुआ को ड्रॉप करने का फैसला करना पड़ेगा क्योंकि वो तो गाजीपुर से आते हैं.
2019 के चुनाव में अखिलेश यादव ने मायावती की बीएसपी के साथ चुनावी गठबंधन किया था. बीएसपी को तो 10 सीटें मिलीं, लेकिन समाजवादी पार्टी के हिस्से में महज 5 सीटें ही आयीं. समाजवादी पार्टी के हिस्से में तो 2014 में भी पांच ही सीटें आयी थीं जबकि बीएसपी खाता भी नहीं खोल सकी थी, लेकिन बुरी खबर ये रही कि डिंपल यादव अपना चुनाव हार गयीं. 2014 के नतीजे भी इस लिहाज से चौंकाने वाले रहे क्योंकि समाजवादी पार्टी के सारे उम्मीदवार हार गये थे और सिर्फ मुलायम सिंह यादव का परिवार ही जीत सका था.
अभी जो हालात नजर आ रहे हैं, ऐसा लगता है कि अखिलेश यादव के लिए रामपुर से ज्यादा मुश्किल आजमगढ़ को बचाना हो सकता है - क्योंकि रामपुर में ज्यादा भार तो आजम खान के कंधों पर ही रहने वाला है.
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