यूपी विधानसभा चुनाव प्रचार का आग़ाज़ करते हुए सपा अध्यक्ष की विकास यात्रा के पहले पोस्टर से पार्टी संस्थापक मुलायम सिंह यादव ग़ायब थे, और अब एकाएकी सपा मुलायममय हो गई. पोस्टर में अखिलेश के साथ मुलायम की तस्वीर शामिल कल ली गई. विकास यात्रा के एक दिन पहले अखिलेश यादव द्वारा अपने पिता और पार्टी संस्थापक से आर्शीवाद लेने का वीडियो भी वायरल होने लगा. भाजपा यही चाहती थी और इसीलिए यूपी भाजपा अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने सपा के उस पहले पोस्टल की ढिंढोरा पीटा जिसमें मुलायम ग़ायब थे. भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव ने मुलायम सिंह की तस्वीर के बिना सिर्फ खुद की तस्वीर लगाने वाले अखिलेश यादव की पिता से बेवफाई का बखान कर ललकारा. सपा अध्यक्ष भाजपा की इस चाल में फंस गए और तत्काल विकास यात्रा के पोस्टर में पिता की तस्वीर शामिल कर दी. यही नहीं उन्होंने पिता से आर्शीवाद लेने का वीडियो शूट कर उसे पब्लिक डोमेन पर डाला.
इसी के साथ भाजपा ने सपा के प्रचार में मुलायम के चेहरे को प्रमुखता से जगह दिलवा दी. इससे पूर्व भी स्वतंत्र देव राम मंदिर आंदोलन के नायक और पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की शोकसभा के लिए आमंत्रण देने खुद मुलायम सिंह के आवास पंहुचे थे. जबकि अखिलेश सहित मुलायम परिवार का कोई सदस्य भी कल्याण सिंह के देहांत पर श्रद्धांजलि देने नहीं पंहुचा था.
दरअसल भाजपा चाहती है कि मुलायम सुर्खियो़ में बने रहेंं और इसी बहाने अयोध्या की कहानी में उनका किरदार याद दिलाए जाने में आसानी हो.इस तरह सपा को राम मंदिर का विरोधी बताने में आसानी हो. यूपी विधानसभा चुनावी रण की तैयारियों में भाजपा अपनी सबसे बड़े प्रतिद्वंदी सपा को उसकी ही पिच पर कमज़ोर करने के लिए जो बिसात बिछा रही है...
यूपी विधानसभा चुनाव प्रचार का आग़ाज़ करते हुए सपा अध्यक्ष की विकास यात्रा के पहले पोस्टर से पार्टी संस्थापक मुलायम सिंह यादव ग़ायब थे, और अब एकाएकी सपा मुलायममय हो गई. पोस्टर में अखिलेश के साथ मुलायम की तस्वीर शामिल कल ली गई. विकास यात्रा के एक दिन पहले अखिलेश यादव द्वारा अपने पिता और पार्टी संस्थापक से आर्शीवाद लेने का वीडियो भी वायरल होने लगा. भाजपा यही चाहती थी और इसीलिए यूपी भाजपा अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने सपा के उस पहले पोस्टल की ढिंढोरा पीटा जिसमें मुलायम ग़ायब थे. भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव ने मुलायम सिंह की तस्वीर के बिना सिर्फ खुद की तस्वीर लगाने वाले अखिलेश यादव की पिता से बेवफाई का बखान कर ललकारा. सपा अध्यक्ष भाजपा की इस चाल में फंस गए और तत्काल विकास यात्रा के पोस्टर में पिता की तस्वीर शामिल कर दी. यही नहीं उन्होंने पिता से आर्शीवाद लेने का वीडियो शूट कर उसे पब्लिक डोमेन पर डाला.
इसी के साथ भाजपा ने सपा के प्रचार में मुलायम के चेहरे को प्रमुखता से जगह दिलवा दी. इससे पूर्व भी स्वतंत्र देव राम मंदिर आंदोलन के नायक और पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की शोकसभा के लिए आमंत्रण देने खुद मुलायम सिंह के आवास पंहुचे थे. जबकि अखिलेश सहित मुलायम परिवार का कोई सदस्य भी कल्याण सिंह के देहांत पर श्रद्धांजलि देने नहीं पंहुचा था.
दरअसल भाजपा चाहती है कि मुलायम सुर्खियो़ में बने रहेंं और इसी बहाने अयोध्या की कहानी में उनका किरदार याद दिलाए जाने में आसानी हो.इस तरह सपा को राम मंदिर का विरोधी बताने में आसानी हो. यूपी विधानसभा चुनावी रण की तैयारियों में भाजपा अपनी सबसे बड़े प्रतिद्वंदी सपा को उसकी ही पिच पर कमज़ोर करने के लिए जो बिसात बिछा रही है उसमें पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव फंसते नज़र आ रहे हैं.
सियासत के अखाड़े की मुलायम मिट्टी पर सख्ती से पलटने का दांव सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव अपने पिता से नहीं सीख सके बल्कि ऐसे दांव से बचने के हुनर में भी वो अनाड़ी साबित हो रहे है. एक सोची समझी चाल के तहत अखिलेश यादव पर भाजपा तोहमत रखती रही कि जो अपने पिता मुलायम सिंह यादव को हाशिए पर डाल दे वो प्रदेश की जनता का अपना कैसे होगा!
प्रदेश की जनता को दलीलों दीं गई कि जो अपने पिता का न हुआ, जो पुत्र का फर्ज नहीं निभा पा रहा वो जनता के प्रति अपना कर्तव्य कैसे निभाएगा. भाजपा ने अपने एक हाथ में मुलायम से हमदर्दी का लड्डू रखा और और तर्कसंगत तोहमतों के साथ अखिलेश को उनकी ही पिच पर लाकर दूसरे बड़े दांव से पछाड़ने की तैयारी कर ली.
खबर है कि भाजपा अंततः राम मंदिर हितैशी बनाम राम मंदिर विरोधी थीम को अपना सबसे बड़ा हथियार बनाएगी. अयोध्या में राम मंदिर के श्रेय से खुद को मजबूत करने और सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी सपा को राम मंदिर विरोधी साबित करना भाजपा की रणनीति होगी. जिसके तहत सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव को खलनायक के तौर पर पेश करने की योजना है. इसलिए भाजपा ये चाहती है कि सपा मुलायम सिंह यादव का चेहरा सबसे आगे रखे.
अखिलेश यादव आगामी विधानसभा चुनाव में ऐसी नकारत्मकता से बचने के लिए अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल के विकास कार्यों को अपने प्रचार का आधार बनाना चाहते हैं. इसीलिए उन्होंने अपनी पहली चुनावी यात्रा को विकास यात्रा नाम दिया. वो मुस्लिमपरस्ती से भी दूर रहना चाहते है. उन्हें लगता है कि बिना कोशिश के भी एम वाई (मुस्लिम और यादव) समाज उनका पूरा साथ देकर पच्चीस प्रतिशत वोट हासिल करवा देगा.
बाकी विभिन्न जातियों का आठ-दस फीसद हिन्दू वोट भी मिल गया तो उनकी नैया पार हो जाएगी. इसलिए वो भाजपा सरकार की नाकामियों और खुद के विकास कार्यों का बखान करके हिन्दुओं के सर्वसमाज को लुभाने की कोशिश पर तटस्थ रहना चाहते है. इसलिए भी वो सपा और खुद उनको जन्म देने व पालने पोछने वाले मुलायम सिंह यादव को फ्रेम में ज्यादा नहीं लाना चाहते.
ताकि भाजपा अयोध्या में रामभक्तों/कार्यसेवकों की मौत के पुराने जख्म नहीं कुरेद पाए. लेकिन भाजपा का चुनाव प्रबंधन अपने लक्ष्य पर तटस्थ रहता है. विरोधी भी भाजपा के चुनावी तैयारियों का लोहा लेते हैं. चुनावी प्रबंधन का मतलब सिर्फ बूथ मैनेजमेंट, संगठन की क्रियाशीलता, जनसम्पर्क, आईटी सेल की ताकत,चिंतन, मनन, मंथन और तैयारी बैठक ही नहीं.
विरोधी को किस दांव से चारों ख़ाने चित किया जाए ये सीक्रेट रणनीति भाजपा का ब्रह्मास्त्र है. भाजपा सपा के चुनावी प्रचार फ्रेम म़े मुलायम को प्रमुखता से लाने में काययाब होती नजर आ रही है.
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