यूपी चुनाव 2022 में कांग्रेस, बसपा, आम आदमी पार्टी जैसे विपक्षी दलों के बीच भाजपा के सामने मुख्य चुनौती के तौर पर समाजवादी पार्टी के सियासी समीकरण सबसे मजबूत नजर आ रहे हैं. उत्तर प्रदेश के छोटे सियासी दलों के साथ गठबंधन से लेकर चाचा शिवपाल सिंह यादव के साथ पुरानी अदावत मिटाने तक समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने भाजपा के खिलाफ हर मौके पर बेहतर रणनीति अपनाई है.
जातीय राजनीति के कई विपक्षी नेताओं को अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी की साइकिल पर भी सवार कर लिया है. सीएम योगी और पीएम नरेंद्र मोदी के सियासी दुर्ग पूर्वांचल में भी अखिलेश यादव ने मजबूत तरीके से चुनावी बिसात बिछा दी है. इन तमाम सियासी दांवों के साथ अखिलेश यादव भले ही योगी आदित्यनाथ और भाजपा के सामने मजबूत प्रतिद्वंदी के तौर पर दिखाई पड़ रहे हों. लेकिन, कहना मुश्किल है कि समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव के लिए इतनी कोशिशें ही काफी होंगी. आइए जानते हैं उन 3 आरोपों के बारे में जिनकी काट खोजना अखिलेश यादव के लिए बहुत जरूरी है.
जातिवादी राजनीति
समाजवादी पार्टी में हमेशा से ही 'यादव कुनबे' का प्रभाव रहा है. पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव से लेकर अखिलेश यादव तक समाजवादी पार्टी में 'यादव' होना ही सबसे बड़ी अर्हता मानी जाती है. कुछ समय पहले तक समाजवादी पार्टी के संगठन से लेकर बड़े नेताओं तक में सिर्फ यादव जाति के नाम वालों का ही बोलबाला रहा है. उत्तर प्रदेश की कुछ सीटें तो बाकायदा यादव परिवार के लिए रिजर्व सीटें कही जाती हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो समाजवादी पार्टी हर बार सत्ता में आने के लिए एमवाई समीकरण यानी मुस्लिम-यादव गठजोड़ का सहारा लेती...
यूपी चुनाव 2022 में कांग्रेस, बसपा, आम आदमी पार्टी जैसे विपक्षी दलों के बीच भाजपा के सामने मुख्य चुनौती के तौर पर समाजवादी पार्टी के सियासी समीकरण सबसे मजबूत नजर आ रहे हैं. उत्तर प्रदेश के छोटे सियासी दलों के साथ गठबंधन से लेकर चाचा शिवपाल सिंह यादव के साथ पुरानी अदावत मिटाने तक समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने भाजपा के खिलाफ हर मौके पर बेहतर रणनीति अपनाई है.
जातीय राजनीति के कई विपक्षी नेताओं को अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी की साइकिल पर भी सवार कर लिया है. सीएम योगी और पीएम नरेंद्र मोदी के सियासी दुर्ग पूर्वांचल में भी अखिलेश यादव ने मजबूत तरीके से चुनावी बिसात बिछा दी है. इन तमाम सियासी दांवों के साथ अखिलेश यादव भले ही योगी आदित्यनाथ और भाजपा के सामने मजबूत प्रतिद्वंदी के तौर पर दिखाई पड़ रहे हों. लेकिन, कहना मुश्किल है कि समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव के लिए इतनी कोशिशें ही काफी होंगी. आइए जानते हैं उन 3 आरोपों के बारे में जिनकी काट खोजना अखिलेश यादव के लिए बहुत जरूरी है.
जातिवादी राजनीति
समाजवादी पार्टी में हमेशा से ही 'यादव कुनबे' का प्रभाव रहा है. पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव से लेकर अखिलेश यादव तक समाजवादी पार्टी में 'यादव' होना ही सबसे बड़ी अर्हता मानी जाती है. कुछ समय पहले तक समाजवादी पार्टी के संगठन से लेकर बड़े नेताओं तक में सिर्फ यादव जाति के नाम वालों का ही बोलबाला रहा है. उत्तर प्रदेश की कुछ सीटें तो बाकायदा यादव परिवार के लिए रिजर्व सीटें कही जाती हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो समाजवादी पार्टी हर बार सत्ता में आने के लिए एमवाई समीकरण यानी मुस्लिम-यादव गठजोड़ का सहारा लेती रही है. सपा सरकार के दौरान यादव जाति के अधिकारियों की हनक उत्तर प्रदेश की जनता ने बहुत करीब से महसूस की है. प्रदेश स्तर की नौकरियों में भी यादवों को बोलबाला सपा सरकार के दौरान किसी से छिपा नही है. हालांकि, अखिलेश यादव ने इस बार सभी जातियों को समान रूप से तवज्जो देने की रणनीति अपनाई है. लेकिन, समाजवादी पार्टी पर जातिवादी राजनीति करने के आरोपों की काट अखिलेश यादव को किसी भी हाल में खोजनी होगी.
मुस्लिम समर्थक टैग
अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश की जनता के बीच मुल्ला मुलायम के नाम से भी मशहूर हैं. अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन के दौरान कारसेवकों पर गोलियां चलवाने का दाग लिए घूम रहे मुलायम सिंह फिलहाल स्वास्थ्य कारणों से समाजवादी पार्टी के लिए सक्रिय नजर नहीं आ रहे हैं. लेकिन, योगी आदित्यनाथ और भाजपा की ओर से सबसे पहला निशाना मुलायम सिंह यादव पर ही साधा जाता है. सीएम योगी ने कुछ समय पहले ही आजतक के एक कार्यक्रम में मुलायम सिंह यादव को 'अब्बाजान' के तौर पर संदर्भित किया था. इतना ही नहीं, योगी आदित्यनाथ हर वाजिब मौके पर मुलायम सिंह यादव के गोली कांड को याद कराना नहीं भूलते हैं. खैर, पिछली सपा सरकार में अखिलेश यादव के ऊपर भी मुस्लिम समर्थक होने के आरोप लगते रहे हैं. यूपी में भाजपा के उभार को देखते हुए कहा जा सकता है कि मुस्लिम समर्थक होने के आरोप की सबसे बड़ी कमी ये है कि बहुसंख्यक हिंदू वोट इसके चलते छिटक जाता है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो समाजवादी पार्टी के सामने मुस्लिम समर्थक टैग को हटाने की चुनौती होगी.
गुंडागर्दी वाली छवि
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया कानपुर दौरे पर समाजवादी पार्टी के कुछ अतिउत्साही कार्यकर्ताओं ने मोदी का पुतला फूंकने के बाद एक कार पर पत्थरबाजी कर दी. पुलिस के अनुसार, इस कार पर पीएम मोदी का पोस्टर लगा था. और, सपा कार्यकर्ताओं ने जानबूझकर दंगा-फसाद कराने की नीयत से साजिश के तहत पत्थरबाजी और आगजनी का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किया था. इस मामले में समाजवादी पार्टी ने 5 कार्यकर्ताओं को पार्टी से निष्कासित कर दिया है. इसी महीने सकलडीहा के सपा विधायक प्रभुनारायण सिंह यादव ने सीओ अनिरुद्ध सिंह के साथ झड़प होने पर उनके सिर पर अपना सिर दे मारा था. इस मामले ने काफी तूल पकड़ा था.
वहीं, अखिलेश यादव की उन्नाव रैली के दौरान भी कुछ उत्साही कार्यकर्ताओं ने पत्रकारों और स्थानीय लोगों से धक्का-मुक्की कर दी थी. इस घटना की वीडियो भी वायरल हुआ था. ऐसे अनगिनत मामले हैं, जब समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं की वजह से कानून व्यवस्था खतरे में पड़ती रही है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं को आम जनता सीधे तौर पर गुंडों के तौर पर परिभाषित करती है. यूपी चुनाव 2022 में अखिलेश यादव के लिए इस आरोप की काट खोजना बहुत जरूरी है.
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