उत्तर प्रदेश सरकार नगर निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण की पक्षधर रही है. सरकार ने उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को हरी झंडी दिखाते हुए मंजूरी दे दी थी, और इसी के चलते कई लोगों के सपने टूट गए जो चुनाव के लिए तैयारियों में लगे थे. क्योंकि उनकी सीट रातों रात सामान्य सीट न रहकर ओबीसी सीट में बदल चुकी थी. इसी के चलते कोर्ट में पेटिशन फाइल की गई कि सरकार ने आरक्षण लागू करते वक़्त ट्रिपल टेस्ट का प्रयोग नहीं किया. ट्रिपल टेस्ट को आधार मानते हुए कोर्ट ने उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को मंजूरी नहीं दी.
क्या हैं ट्रिपल टेस्ट?
सुरेश महाजन मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए अपने आदेश में कहा गया है कि स्थानीय नगर निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण दिए जाने के लिए ट्रिपल टेस्ट के फार्मूला को अपनाना अनिवार्य होगा. जिसमें सबसे पहले एक आयोग का गठन किया जाएगा जिसका का काम पर्टिकुलर निकाय में ओबीसी समाज की आर्थिक, सामाजिक, और शैक्षणिक स्तिथि को जानना और परखना होगा. और दूसरा आयोग का काम होगा कि आरक्षण मिलना चाहिए या नहीं और अगर मिलना चाहिए तो कितना मिलना चाहिए और फिर तीसरा है कि आरक्षण 50 फीसदी की सीमा को पार न करे.
उत्तरप्रदेश सरकार, ओबीसी आरक्षण प्रेम के राजनीतिक मायने!
उत्तर प्रदेश सरकार लगातार निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण पर अपना स्टैंड क्लियर करती आयी है. उत्तर प्रदेश सरकार ओबीसी आरक्षण की पक्षधर नजर भी आती है और इसका सबसे बड़ा कारण हैं, ओबीसी वोटबैंक के एक बड़े हिस्से को अपने पक्ष में लाना. बीजेपी 2024 लोकसभा चुनाव से पहले अपने वोटबैंक के प्रति अपनी वफादारी साबित करने का कोई ऐसा मौका नहीं...
उत्तर प्रदेश सरकार नगर निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण की पक्षधर रही है. सरकार ने उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को हरी झंडी दिखाते हुए मंजूरी दे दी थी, और इसी के चलते कई लोगों के सपने टूट गए जो चुनाव के लिए तैयारियों में लगे थे. क्योंकि उनकी सीट रातों रात सामान्य सीट न रहकर ओबीसी सीट में बदल चुकी थी. इसी के चलते कोर्ट में पेटिशन फाइल की गई कि सरकार ने आरक्षण लागू करते वक़्त ट्रिपल टेस्ट का प्रयोग नहीं किया. ट्रिपल टेस्ट को आधार मानते हुए कोर्ट ने उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को मंजूरी नहीं दी.
क्या हैं ट्रिपल टेस्ट?
सुरेश महाजन मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए अपने आदेश में कहा गया है कि स्थानीय नगर निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण दिए जाने के लिए ट्रिपल टेस्ट के फार्मूला को अपनाना अनिवार्य होगा. जिसमें सबसे पहले एक आयोग का गठन किया जाएगा जिसका का काम पर्टिकुलर निकाय में ओबीसी समाज की आर्थिक, सामाजिक, और शैक्षणिक स्तिथि को जानना और परखना होगा. और दूसरा आयोग का काम होगा कि आरक्षण मिलना चाहिए या नहीं और अगर मिलना चाहिए तो कितना मिलना चाहिए और फिर तीसरा है कि आरक्षण 50 फीसदी की सीमा को पार न करे.
उत्तरप्रदेश सरकार, ओबीसी आरक्षण प्रेम के राजनीतिक मायने!
उत्तर प्रदेश सरकार लगातार निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण पर अपना स्टैंड क्लियर करती आयी है. उत्तर प्रदेश सरकार ओबीसी आरक्षण की पक्षधर नजर भी आती है और इसका सबसे बड़ा कारण हैं, ओबीसी वोटबैंक के एक बड़े हिस्से को अपने पक्ष में लाना. बीजेपी 2024 लोकसभा चुनाव से पहले अपने वोटबैंक के प्रति अपनी वफादारी साबित करने का कोई ऐसा मौका नहीं गवाना चहती है.
उत्तरप्रदेश में लोकसभा का चुनाव हो या फिर चुनाव हो विधानसभा का अगर किसी ने बीजेपी की नैया पार लगवाई है तो वो है ओबीसी समाज और इसलिए पीएम मोदी भी अपने आप को ओबीसी समाज से आने का दावा करते हैं.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.