क्या आदित्यनाथ योगी के लिए मुख्यमंत्री बनने से भी मुश्किल मंत्रिमंडल के विभागों का बंटवारा रहा? ऐसी तमाम बातें अब आम हो चुकी हैं कि किस तरह योगी ने संघ पृष्ठभूमि से लेकर बाहर से आये नेताओं को ऐडजस्ट करने के साथ साथ चेतन चौहान जैसे मंत्री को उनका पसंदीदा खेल विभाग थमा दिया. लब्बोलुआब यही है कि योगी ने बाहरी नेताओं को मंत्री तो बनाया लेकिन सारे अहम विभाग या तो अपने पास या अपनों के पास ही रखे.
योगी कैबिनेट में दो नये चेहरे भी चमकते देखे जा सकते हैं - स्वाति सिंह और नीलकंठ तिवारी, जो चुनावों में खासे चर्चित रहे और शायद इसी वजह से उन्हें कैबिनेट में आसानी से एंट्री मिल गयी.
परंपरा का ख्याल
आम तौर पर सबसे अहम गृह मंत्रालय और वित्त मंत्रालय को छोड़ दें तो यूपी की राजनीति में PWD और सिंचाई मंत्रालय अब तक 'मलाईदार' कैटेगरी का हिस्सा माने जाते रहे हैं.
एक परंपरा सी बन गयी है कि गृह विभाग मुख्यमंत्री खुद अपने पास ही रखते रहे हैं. आदित्यनाथ योगी ने भी उसी परंपरा का निर्वाह करते हुए गृह सहित बचे खुचे कुल 37 मंत्रालय अपने पास रखे हैं.
योगी कैबिनेट में मोटे तौर पर दो तरह की बातें लगती हैं. एक वे मंत्री जिन पर आरएसएस का एजेंडा, जो संकल्प पत्र का बड़ा हिस्सा रहा, लागू करने की जिम्मेदारी सौंपी गयी है - और दूसरा वो जिनकी बदौलत कोई भी सिस्टम चलता है. जाहिर है एजेंडा तो अपने ही लागू करेंगे - और सिस्टम दूसरे भी चला सकते हैं.
ऐसी ही कुछ परंपराओं के चलते पूर्व क्रिकेटर मोहसिन रजा योगी कैबिनेट के पोस्टरबॉय बन गये हैं. मणिपुर की गवर्नर नजमा हेपतुल्ला के रिश्तेदार मोहसिन को बीजेपी ने उन्हें चुनाव जीतने लायक तो नहीं माना लेकिन परंपराओं के चलते अचानक ही उन्हें मंत्री पद देना पड़ा. असल में राज्य में कुछ विभाग ऐसे हैं जिनका नेतृत्व अल्पसंख्यक हाथों में ही रहता आया है. मसलन - वक्फ बोर्ड और अल्पसंख्यक कल्याण विभाग. मोहसिन को भी इसी विभाग की जिम्मेदारी दी गयी है.
अपनों के...
क्या आदित्यनाथ योगी के लिए मुख्यमंत्री बनने से भी मुश्किल मंत्रिमंडल के विभागों का बंटवारा रहा? ऐसी तमाम बातें अब आम हो चुकी हैं कि किस तरह योगी ने संघ पृष्ठभूमि से लेकर बाहर से आये नेताओं को ऐडजस्ट करने के साथ साथ चेतन चौहान जैसे मंत्री को उनका पसंदीदा खेल विभाग थमा दिया. लब्बोलुआब यही है कि योगी ने बाहरी नेताओं को मंत्री तो बनाया लेकिन सारे अहम विभाग या तो अपने पास या अपनों के पास ही रखे.
योगी कैबिनेट में दो नये चेहरे भी चमकते देखे जा सकते हैं - स्वाति सिंह और नीलकंठ तिवारी, जो चुनावों में खासे चर्चित रहे और शायद इसी वजह से उन्हें कैबिनेट में आसानी से एंट्री मिल गयी.
परंपरा का ख्याल
आम तौर पर सबसे अहम गृह मंत्रालय और वित्त मंत्रालय को छोड़ दें तो यूपी की राजनीति में PWD और सिंचाई मंत्रालय अब तक 'मलाईदार' कैटेगरी का हिस्सा माने जाते रहे हैं.
एक परंपरा सी बन गयी है कि गृह विभाग मुख्यमंत्री खुद अपने पास ही रखते रहे हैं. आदित्यनाथ योगी ने भी उसी परंपरा का निर्वाह करते हुए गृह सहित बचे खुचे कुल 37 मंत्रालय अपने पास रखे हैं.
योगी कैबिनेट में मोटे तौर पर दो तरह की बातें लगती हैं. एक वे मंत्री जिन पर आरएसएस का एजेंडा, जो संकल्प पत्र का बड़ा हिस्सा रहा, लागू करने की जिम्मेदारी सौंपी गयी है - और दूसरा वो जिनकी बदौलत कोई भी सिस्टम चलता है. जाहिर है एजेंडा तो अपने ही लागू करेंगे - और सिस्टम दूसरे भी चला सकते हैं.
ऐसी ही कुछ परंपराओं के चलते पूर्व क्रिकेटर मोहसिन रजा योगी कैबिनेट के पोस्टरबॉय बन गये हैं. मणिपुर की गवर्नर नजमा हेपतुल्ला के रिश्तेदार मोहसिन को बीजेपी ने उन्हें चुनाव जीतने लायक तो नहीं माना लेकिन परंपराओं के चलते अचानक ही उन्हें मंत्री पद देना पड़ा. असल में राज्य में कुछ विभाग ऐसे हैं जिनका नेतृत्व अल्पसंख्यक हाथों में ही रहता आया है. मसलन - वक्फ बोर्ड और अल्पसंख्यक कल्याण विभाग. मोहसिन को भी इसी विभाग की जिम्मेदारी दी गयी है.
अपनों के पास
चर्चा रही कि सबसे ज्यादा डिमांड PWD की रही, लेकिन तब जब नेताओें को पता लगा कि गृह विभाग का दावा कोई नहीं कर सकता और वित्त भी किसी अतिविश्वस्त को सौंपा जाएगा.
पिछली अखिलेश यादव सरकार में PWD और सिंचाई मंत्रालय ज्यादातर वक्त उनके चाचा शिवपाल यादव के पास ही रहा - जब तक कि उन्होंने शिवपाल को कैबिनेट से बाहर न कर दिया. अखिलेश ने शिवपाल को दोबारा मंत्री तो बनाया था लेकिन PWD विभाग नहीं दिये थे.
योगी ने डिप्टी सीएम केशव मौर्या को PWD तो दे दिये लेकिन लेकिन सिंचाई मंत्रालय धरमपाल सिंह को थमाया.
वित्त मंत्रालय के लिए योगी के मानदंडों पर खरे उतरे बरेली से विधायक राजेश अग्रवाल. इसके साथ ही पुराने नेताओं सुरेश खन्ना को शहरी विकास, सूर्य प्रताप शाही को कृषि मंत्री बनाकर एक तरीके से मैसेज देने की कोशिश रही कि केशव मौर्या और दिनेश शर्मा भले ही डिप्टी सीएम हों, लेकिन पुराने नेताओं का दबदबा खत्म नहीं होने वाला.
सिस्टम चलाने की जिम्मेदारी
सिस्टम चलाने के लिए योगी ने मेहमानों पर भरोसा जताया. 27 साल तक कांग्रेस की राजनीति करने के बाद चुनाव के ठीक पहले बीजेपी का दामन थामने वाली रीता बहुगुणा जोशी को योगी ने महिला, परिवार, मातृ एवं शिशु कल्याण मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी है. रीता बहुगुणा ने लखनऊ में अपनी सीट बरकरार रखते हुए मुलायम की छोटी बहू अपर्णा यादव को चलता किया था.
बीएसपी छोड़ कर बीजेपी में आये स्वामी प्रसाद मौर्य को योगी कैबिनेट में श्रम एवं सेवा योजना, नगरीय रोजगार और गरीबी उन्मूलन मंत्रालय विभाग दिया गया है, जबकि उनके साथी रह चुके ब्रजेश पाठक को विधि एवं न्याय, अतिरिक्त उर्जा स्रोत और पेंशन मंत्रालय मिला है.
ताजा चेहरे
फ्रेश चेहरों में स्वाति सिंह और नीलकंठ तिवारी ने बाकियों की तरह योगी का भी ध्यान खींचा. नीलकंठ के राज्य मंत्री बनने में उनका संघ कनेक्शन मददगार बना तो स्वाति सिंह की परफॉर्मेंस. अपने पति दयाशंकर को बीजेपी से निकाल दिये जाने के बाद स्वाति सिंह मायावती पर तो जैसे कहर बन कर टूट पड़ीं. स्वाति ने बीएसपी नेताओं को ऐसे घेरा कि उन्हें सूबे भर के लिए तैयार धरना प्रदर्शन स्थगित करने पड़े थे.
स्वाति को स्वतंत्र प्रभार के साथ नीलकंठ को उनके बैकग्राउंड को देखते हुए विधि मंत्रालय में जगह दी गयी.
बोलने का अधिकार
योगी सरकार ने दो मंत्रियों को यूपी सरकार का आधिकारिक प्रवक्ता भी बनाया है. ये दो मंत्री हैं केंद्र से सूबे की सियासत में पहुंचे श्रीकांत शर्मा और सिद्धार्थ नाथ सिंह. श्रीकांत शर्मा को ऊर्जा तो सिद्धार्थ नाथ सिंह को स्वास्थ्य मंत्रालय मिला हुआ है.
मुख्यमंत्री बनने के फौरन बाद योगी ने मीडिया के सामने ये बात कही - और बाद में भी उन्हें दोहराते सुना गया. इस हिसाब से देखें तो बाकी मंत्रियों के लिए एक अघोषित गैग-ऑर्डर है ताकि उनके ऊलजुलूल बयानों से सरकार की किरकिरी से बचा जा सके - और इस तरह बोलने का अधिकार सिर्फ श्रीकांत शर्मा और सिद्धार्थ नाथ सिंह को हासिल है.
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