गुजरात में ओबीसी समाज की राजनीति में बड़ा नाम अल्पेश ठाकोर 23 अक्टूबर को एक महासमेलन करने जा रहे हैं. इस कार्यक्रम की सफलता के पैमाने पर ये भी तय होगा कि इस चुनाव में आखिर ओबीसी समाज किस राजनीतिक पार्टी को अपना समर्थन देंगे. लेकिन क्या अल्पेश ठाकोर का फैसला राजनैतिक हवा का रुख बदल सकेगा, या फिर विकास की राजनीति पर जाति की राजनीति भारी पड़ेगी.
अल्पेश ठाकोर पहली बार तब चर्चा में आए जब तीन साल पहले उनकी बनाई गई ठाकोर सेना ने मध्यगुजरात ओर उत्तर गुजरात में शराबबंदी को लेकर देशी शराब के अड्डों पर छापे मारना शुरू किया. इतना ही नहीं अल्पेश ने ये भी कहा कि देशी शराब सब से ज्यादा ठाकोर युवाओं को ही बर्बाद कर रही है. इस अभियान में 70% समाज अल्पेश के साथ जुड़ गया. हर कोई अल्पेश के साथ सरकार के खिलाफ इस मुहिम में उसका साथ देने लगा.. सरकार के लिये भी विडम्बना ये थी कि शराबबंदी होने के बावजूद, वो अवैध शराब के अड्डे पर रोक नहीं लगा पायी थी. और इसी वजह से...
गुजरात में ओबीसी समाज की राजनीति में बड़ा नाम अल्पेश ठाकोर 23 अक्टूबर को एक महासमेलन करने जा रहे हैं. इस कार्यक्रम की सफलता के पैमाने पर ये भी तय होगा कि इस चुनाव में आखिर ओबीसी समाज किस राजनीतिक पार्टी को अपना समर्थन देंगे. लेकिन क्या अल्पेश ठाकोर का फैसला राजनैतिक हवा का रुख बदल सकेगा, या फिर विकास की राजनीति पर जाति की राजनीति भारी पड़ेगी.
अल्पेश ठाकोर पहली बार तब चर्चा में आए जब तीन साल पहले उनकी बनाई गई ठाकोर सेना ने मध्यगुजरात ओर उत्तर गुजरात में शराबबंदी को लेकर देशी शराब के अड्डों पर छापे मारना शुरू किया. इतना ही नहीं अल्पेश ने ये भी कहा कि देशी शराब सब से ज्यादा ठाकोर युवाओं को ही बर्बाद कर रही है. इस अभियान में 70% समाज अल्पेश के साथ जुड़ गया. हर कोई अल्पेश के साथ सरकार के खिलाफ इस मुहिम में उसका साथ देने लगा.. सरकार के लिये भी विडम्बना ये थी कि शराबबंदी होने के बावजूद, वो अवैध शराब के अड्डे पर रोक नहीं लगा पायी थी. और इसी वजह से वह अल्पेश के खिलाफ कार्रवाई भी नहीं कर सकती थी. अल्पेश ने शराबबंदी के जरीये लोगों का वो विश्वास हासिल कर लिया था, जो उसे एक समाज के मजबूत नेता के तौर पर साबित करता था.
पाटीदार नेता हार्दिक पटेल पहले से ही सरकार के खिलाफ आरक्षण की लड़ाई कर रहा है, जबकि जिग्नेश मेवानी ने उना के दलितों पर हुए अत्याचार के बाद दलित के न्याय ओर हक की लडाई शुरू की. लेकिन अल्पेश ठाकोर बीच बीच में कई बार अपने आंदोलन के जरिये, सरकार के खिलाफ आंदोलन चलाकर सरकार के साथ भी समझौता करते नजर आए हैं. हालाकी इस चुनाव में अल्पेश ठाकोर बीजेपी का साथ देंगे या उसके खिलाफ होंगे, ये सबसे बड़ा सवाल है. 23 अक्टूबर के कार्यक्रम में वे अपना रुख साफ करने वाले हैं.
लेकिन अल्पेश का इतिहास देखें तो उनके पिता खोडाजी ठाकोर बहुत पहले से बीजेपी के साथ जुड़ रहे. ये उस समय की बात है जब शंकरसिंह वाघेला, नरेन्द्र मोदी ओर आनंदीबेन पटेल बीजेपी में संगठन के लिये काम किया करते थे. शंकरसिंह वाघेला ने जब बीजेपी से अलग होकर राष्ट्रीय जनता पार्टी बनाई तब खोडाजी ने भी बीजेपी को छोड़ शंकरसिंह वाघेला का हाथ थाम लिया. शंकरसिंह वाघेला के जरीये उस वक्त जब शक्तिदल बनाया गया तब अल्पेश उस शक्तिदल के युवा संयोजक थे. वाघेला जब कांग्रेस में जुड़े तब खोडाजी ठाकोर ओर अल्पेश भी उनके साथ कांग्रेस में जुड़ गये.
अल्पेश ने बतौर युवा नेता अहमदबाद जिले की मांडल पंचायत से चुनाव भी लड़ा था. लेकिन वो चुनाव अल्पेश हार गए. तीन साल पहले एक बार फिर कांग्रेस के ठाकोर समाज के नेता के जरीये समाज के लिये एक मूवमेंट चलाने की बात आयी. तब संगठन का काम कर चुके खोडाजी ने ये जिम्मेिदारी उठाते हुए अपने बेटे अल्पेश को आगे करते हुए समाज के लिये मूवमेन्ट किया. जिस में पहले ठाकोर सेना ओर फिर पूरे ओबीसी समाज को जोड़ दिया गया.
राजनीतिक जानकार प्रशांत दयाल की मानें तो हार्दिक ओर जिग्नेश का रुख काफी साफ है कि वो सरकार विरोधी हैं, जो सीधा कांग्रेस को फायदा दिलाता है. लेकिन अल्पेश ठाकोर सरकार विरोधी हैं या नहीं, ये अभी तक साफ नहीं है. वे अपना समर्थन भाजपा को देंगे या कांग्रेस को, यह भी रहस्यय ही है. हालांकि जानकार ये भी कहते हैं कि अल्पेश ने जिस तरह से लोगों में सरकार के खिलाफ असंतोष पैदा किया है, उससे इतना तो साफ है अब अल्पेश भाजपा के साथ दे भी दें तो भी लोग उनका साथ नहीं देंगे. यानी अल्पेश के लिये अब कांग्रेस के अलावा दूसरा विकल्प है ही नहीं.
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