लगातार तीन दिन मऊ कुछ ज्यादा ही गुलजार रहा. पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, फिर बीएसपी नेता मायावती और उसके बाद यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मऊ में चुनाव प्रचार किया. मऊ विधानसभा से उम्मीदवार होने के चलते मुख्तार अंसारी प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक सभी के भाषणों में छाये रहे.
प्रधानमंत्री मोदी ने मऊ की जंग को फिल्मी किरदारों 'बाहुबली' और 'कटप्पा' की लड़ाई बताया तो मायावती ने उसी बात को अपने तरीके से आगे बढ़ाया, लेकिन अखिलेश यादव पहुंचे तो सफाई से देते नजर आये. ऐसा क्यों?
मुस्लिम विरोधी ठप्पा
अखिलेश यादव पर मुस्लिम विरोधी होने का ठप्पा खुद उनके पिता मुलायम सिंह यादव ने ही लगाया था. उस भरी सभा में जब चाचा-भतीजे में हाथापाई भी हुई, मुलायम का सवाल था - सुना है, तुम मुस्लिम विरोधी हो.
अखिलेश यादव ने इस इल्जाम के सबूत मांगे और शोर शराबे के साथ ही मीटिंग किसी और मोड़ पर जाकर खत्म हो गयी. उसके पहले और बाद में भी अखिलेश की कोशिश रही कि समाजवादी पार्टी को वो मौलाना मुलायम की पार्टी वाली इमेज से बाहर ले जाएं.
उस मीटिंग में एक नेता का दूसरे नेता पर मुख्यमंत्री की मौजूदगी में पीटे जाने का आरोप लगाना, मंच पर अतीक अहमद को धक्का देना और आखिरकार अंसारी बंधुओं के खिलाफ नो एंट्री का बोर्ड लगा देना - जैसी बातें लगता है अखिलेश यादव का पीछा नहीं छोड़ रहीं. शायद इसीलिए अखिलेश यादव को इनकी फिक्र सी होने लगी है. मऊ रैली में अखिलेश की बातें कुछ वैसे ही इशारे कर रही हैं.
अखिलेश यादव ने कहा, "मान लो और किसी के साथ समझौता कर लेते... तो आपके फ्लाईओवर की बहस नहीं होती. आपकी सड़क की बहस नहीं हो रही होती. आपके तमाम काम हैं... उसकी बहस नहीं हो रही होती - और ही कोई...
लगातार तीन दिन मऊ कुछ ज्यादा ही गुलजार रहा. पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, फिर बीएसपी नेता मायावती और उसके बाद यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मऊ में चुनाव प्रचार किया. मऊ विधानसभा से उम्मीदवार होने के चलते मुख्तार अंसारी प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक सभी के भाषणों में छाये रहे.
प्रधानमंत्री मोदी ने मऊ की जंग को फिल्मी किरदारों 'बाहुबली' और 'कटप्पा' की लड़ाई बताया तो मायावती ने उसी बात को अपने तरीके से आगे बढ़ाया, लेकिन अखिलेश यादव पहुंचे तो सफाई से देते नजर आये. ऐसा क्यों?
मुस्लिम विरोधी ठप्पा
अखिलेश यादव पर मुस्लिम विरोधी होने का ठप्पा खुद उनके पिता मुलायम सिंह यादव ने ही लगाया था. उस भरी सभा में जब चाचा-भतीजे में हाथापाई भी हुई, मुलायम का सवाल था - सुना है, तुम मुस्लिम विरोधी हो.
अखिलेश यादव ने इस इल्जाम के सबूत मांगे और शोर शराबे के साथ ही मीटिंग किसी और मोड़ पर जाकर खत्म हो गयी. उसके पहले और बाद में भी अखिलेश की कोशिश रही कि समाजवादी पार्टी को वो मौलाना मुलायम की पार्टी वाली इमेज से बाहर ले जाएं.
उस मीटिंग में एक नेता का दूसरे नेता पर मुख्यमंत्री की मौजूदगी में पीटे जाने का आरोप लगाना, मंच पर अतीक अहमद को धक्का देना और आखिरकार अंसारी बंधुओं के खिलाफ नो एंट्री का बोर्ड लगा देना - जैसी बातें लगता है अखिलेश यादव का पीछा नहीं छोड़ रहीं. शायद इसीलिए अखिलेश यादव को इनकी फिक्र सी होने लगी है. मऊ रैली में अखिलेश की बातें कुछ वैसे ही इशारे कर रही हैं.
अखिलेश यादव ने कहा, "मान लो और किसी के साथ समझौता कर लेते... तो आपके फ्लाईओवर की बहस नहीं होती. आपकी सड़क की बहस नहीं हो रही होती. आपके तमाम काम हैं... उसकी बहस नहीं हो रही होती - और ही कोई बहस हो रही होती."
अखिलेश की ये बातें तो कौमी एकता दल के समाजवादी पार्टी में विलय न हो पाने का ही जिक्र कर रही हैं. क्या अखिलेश के मन में इस बात को लेकर कोई मलाल है?
अखिलेश कहते हैं, “राजनीति का टेढ़ा-मेढ़ा रास्ता होता है... आपने किसी के साथ समझौता किया... हमें नहीं पसंद आया... हम नहीं चाहते समझौता हो..."
और फिर अखिलेश सफाई देने वाले अंदाज में कहते हैं, "हमारी किसी से नाराजगी नहीं. कोई बेवजह कह रहा है कि हम नाराज हैं. हमारा झगड़ा तो बुआ से है."
असल में समाजवादी पार्टी के साथ बात बिगड़ जाने के बाद अंसारी बंधुओं की ओर से कई बार अखिलेश को जिम्मेदार बताया गया. जैसे ही अंसारी बंधुओं की बातचीत समाजवादी पार्टी से टूटी मायावती ने हाथोंहाथ लिया. सात साल पहले बीएसपी से बेदखल करने के बाद शायद मायावती को भी अंसारी बंधुओं का बेसब्री से इंतजार था.
बाहुबली बनाम कटप्पा
मोदी के 24 घंटे बाद - और अखिलेश की रैली से 24 घंटे पहले मायावती मऊ में थीं और निशाने पर प्रधानमंत्री मोदी रहे, "प्रधानमंत्री ने कल सोमवार... अपनी रैली में मुख्तार अंसारी का नाम तो नहीं लिया, लेकिन वो जिस तरह माफिया, बाहुबली कह रहे थे, उससे पता लग रहा था कि उनका इशारा किस तरफ था. क्या जनता माफिया और बाहुबली को पसंद करती है? मैं समझती हूं कि बिल्कुल भी पसंद नहीं करती. जब वो चुनाव जीत जाएगा तो उस पर मुहर लग जाएगी कि वो ना तो माफिया है और ना ही बाहुबली है."
मुख्तार अंसारी और उनके भाइयों को पहली बार बीएसपी में शामिल करते वक्त मायावती को उम्मीद थि कि वे सुधर जाएंगे. जब उनकी नजर में अंसारी बंधुओं में कोई सुधार नहीं हुआ तो फौरन बाहर का रास्ता भी दिखा दिया. दोबारा शामिल करते वक्त भी मायावती ने कहा था कि उनकी पार्टी सुधरने का मौका देती है - और अब अगर बीएसपी उम्मीदवार के रूप में मुख्तार जीत जाते हैं तो समझो ऑटो-क्लीन चिट मिल गया. वैसे अब तक मुख्तार को टिकट की जरूरत भी नहीं पड़ती रही.
बीजेपी ने पूर्वांचल में अपना दल के अलावा ओम प्रकाश राजभर की भारतीय समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया है - और समझौते के तहत उसे 9 सीटें दी हैं.
मोदी की सभा में राजभर अपना चुनाव चिह्न छड़ी लेकर खड़े थे. राजभर की ओर देख कर कर मोदी बोले, "बाहुबली फिल्म आई थी... बाहुबली फिल्म में कटप्पा पात्र था... बाहुबली का सब कुछ तबाह कर दिया था उसने. इस छड़ी वाले में वो दम है. ये छड़ी नहीं, ये कानून का डंडा है. 11 मार्च को इसकी ताकत दिखाई देगी."
दिलचस्प बात ये है कि 2012 के चुनाव में मुख्तार अंसारी और ओम प्रकाश राजभर मिल कर चुनाव लड़े थे.
अखिलेश मऊ में उसी लहजे में बात कर रहे थे जैसे आगरा की रैली में मायावती कर रही थीं. वो मायावती के चुनाव अभियान का पहला चरण था. तब 'तिलक तराजू और तलवार... ' को लेकर बीजेपी ने बहस छेड़ रखी थी और कई रैलियों में मायावती उस पर तफसील से सफाई देती रहीं. हालांकि, जल्द ही वो अपने मुख्य एजेंडे 'दलित-मुस्लिम' पर आ गईं.
अंसारी बंधुओं के साथ मायावती ने पूर्वांचल में उनके प्रभाव को देखते हुए दांव लगाया है. बीएसपी की टिकट पर मुख्तार अंसारी ने बीजेपी के मुरली मनोहर जोशी को जोरदार टक्कर दी थी, लेकिन चुनाव नहीं जीत पाये. हालांकि, मऊ से विधानसभा का चुनाव निर्दल जीतने में उन्हें पिछले दो चुनावों में कोई परेशानी नहीं हुई. मुख्तार के वोटर को बाहुबली कहे जाने से कोई परहेज नहीं क्योंकि वे तो रॉबिन हुड के रूप में देखते हैं, जैसा कि उनके बीच प्रोजेक्ट किया जाता है.
पैरोल खारिज होने के बाद जेल से ही चुनाव लड़ रहे मुख्तार के बेटे उनके लिए प्रचार कर रहे हैं - और कौमी एकता दल के स्टार प्रचारक अफजाल अंसारी. मुख्तार के अलावा मायावती ने अंसारी बंधुओं को दो और टिकट दिये हैं - जिनमें मोहम्मदाबाद में बीजेपी कड़ी टक्कर दे रही है. बड़ा सवाल ये भी है कि मौजूदा हालात में बीएसपी में मुख्तार के होने का मायावती को कितना फायदा मिलेगा?
आखिर अखिलेश को मऊ जाकर ये कहने की जरूरत क्यों पड़ी कि उनकी किसी से नाराजगी नहीं है? आखिर बाहुबली और कटप्पा की लड़ाई में भैया, बुआ से सहमे सहमे क्यों लगते हैं?
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