ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने फिर दिल्ली का कार्यक्रम बनाया है, लेकिन नये तरीके का. पता चला है कि ममता बनर्जी अगस्त के पहले हफ्ते में दिल्ली का दौरा करने वाली हैं. ममता बनर्जी का अगला दिल्ली दौरा थोड़ा अलग होगा.
दिल्ली दौरे का ये कार्यक्रम विपक्षी नेताओं से मुलाकात के लिए नहीं बल्कि मोदी-शाह से मिलने का हो सकता है. ऐसे में जबकि ममता बनर्जी ने राष्ट्रपति चुनाव से हाथ पीछे खींच लिये थे - और उपराष्ट्रपति चुनाव में हिस्सा न लेने का ऐलान कर रखा है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात का मौका भी अलग हो सकता है. ममता बनर्जी के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भी मिलने की संभावना जतायी गयी है.
असल में ममता बनर्जी नीति आयोग के कार्यक्रम में हिस्सा लेने दिल्ली पहुंच रही हैं. नीति आयोग की बैठक में ममता बनर्जी का हिस्सा लेना भी कोई आम बात नहीं है. ऐसा वो हमेशा नहीं करतीं. ऐसा करने के पीछे भी राजनीतिक रणनीति होती है. कभी ऐसी सरकारी बैठकों में अपने प्रतिनिधि भेज देती हैं, तो कभी अफसरों को बुलाये जाने पर भी खुद हाजिर हो जाती हैं.
ऐसे में जबकि ममता बनर्जी के राजनीतिक विरोधी दार्जिलिंग वाली मुलाकात को लेकर हमलावर हैं, ममता की मोदी-शाह से संभावित मुलाकात महत्वपूर्ण तो मानी ही जानी चाहिये. दार्जिलिंग में ममता बनर्जी और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के अलाव पश्चिम बंगाल के तत्कालीन राज्यपाल जगदीप धनखड़ भी मौजूद थे. एनडीए की तरफ से उपराष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार बनाये जाने के बाद पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के पद से इस्तीफा दे दिया था.
बीजेपी के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय (Amit Malviya) अब पूर्व राज्यपाल जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) के एक बयान का हवाला देकर ममता बनर्जी को कोई मैसेज देने की कोशिश कर रहे हैं. अमित मालवीय ने...
ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने फिर दिल्ली का कार्यक्रम बनाया है, लेकिन नये तरीके का. पता चला है कि ममता बनर्जी अगस्त के पहले हफ्ते में दिल्ली का दौरा करने वाली हैं. ममता बनर्जी का अगला दिल्ली दौरा थोड़ा अलग होगा.
दिल्ली दौरे का ये कार्यक्रम विपक्षी नेताओं से मुलाकात के लिए नहीं बल्कि मोदी-शाह से मिलने का हो सकता है. ऐसे में जबकि ममता बनर्जी ने राष्ट्रपति चुनाव से हाथ पीछे खींच लिये थे - और उपराष्ट्रपति चुनाव में हिस्सा न लेने का ऐलान कर रखा है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात का मौका भी अलग हो सकता है. ममता बनर्जी के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भी मिलने की संभावना जतायी गयी है.
असल में ममता बनर्जी नीति आयोग के कार्यक्रम में हिस्सा लेने दिल्ली पहुंच रही हैं. नीति आयोग की बैठक में ममता बनर्जी का हिस्सा लेना भी कोई आम बात नहीं है. ऐसा वो हमेशा नहीं करतीं. ऐसा करने के पीछे भी राजनीतिक रणनीति होती है. कभी ऐसी सरकारी बैठकों में अपने प्रतिनिधि भेज देती हैं, तो कभी अफसरों को बुलाये जाने पर भी खुद हाजिर हो जाती हैं.
ऐसे में जबकि ममता बनर्जी के राजनीतिक विरोधी दार्जिलिंग वाली मुलाकात को लेकर हमलावर हैं, ममता की मोदी-शाह से संभावित मुलाकात महत्वपूर्ण तो मानी ही जानी चाहिये. दार्जिलिंग में ममता बनर्जी और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के अलाव पश्चिम बंगाल के तत्कालीन राज्यपाल जगदीप धनखड़ भी मौजूद थे. एनडीए की तरफ से उपराष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार बनाये जाने के बाद पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के पद से इस्तीफा दे दिया था.
बीजेपी के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय (Amit Malviya) अब पूर्व राज्यपाल जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) के एक बयान का हवाला देकर ममता बनर्जी को कोई मैसेज देने की कोशिश कर रहे हैं. अमित मालवीय ने इंडिया टुडे कॉनक्लेव का एक वीडियो क्लिप शेयर किया है, जिसमें जगदीप धनखड़ कह रहे हैं कि मुख्यमंत्रियों को जेल पहुंचा चुके शिक्षक भर्ती के घोटालों के मुकाबले पश्चिम बंगाल का मामला काफी बड़ा है.
पार्थ चटर्जी को बर्खास्त करने के बाद खबर ये भी कि ममता बनर्जी सरकार और संगठन में बड़े पैमाने पर बदलाव की तैयारी कर रही हैं - और ये समझना भी जरूरी है कि अमित मालवीय ने ट्वीट करके ममता बनर्जी को आगाह करने की कोशिश की है या ये जताने की कोशिश कर रहे हैं कि मंत्री की तरह ही अगला नंबर मुख्यमंत्री का भी हो सकता है.
बीजेपी ममता को धमकाने क्यों लगी?
मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा गिरफ्तार पार्थ चटर्जी के खिलाफ एक्शन के बाद ममता बनर्जी ने मीडिया के साथ साथ बीजेपी नेतृत्व को भी अपनी तरफ से आगाह कर दिया था. CJI एनवी रमन्ना का हवाला देते हुए ममता बनर्जी ने मीडिया को कंगारू कोर्ट कल्चर से बचने की सलाह दी थी.
ममता बनर्जी ने कहा था कि महाराष्ट्र के बाद झारखंड में भी वैसे ही तख्तापलट की तैयारी हो रही है, लेकिन पश्चिम बंगाल में ऐसा मुमकिन नहीं होगा. केंद्र की बीजेपी सरकार को चेतावनी देते हुए ममता बनर्जी ने कहा कि बंगाल में कुछ भी करने से पहले उनको रॉयल बंगाल टाइगर से मुकाबला करना होगा.
ममता बनर्जी का ये बयान एक्टर से बीजेपी नेता बने मिथुन चक्रवर्ती के उस बयान पर रिएक्शन भी हो सकता है. मिथुन चक्रवर्ती ने हाल ही में दावा किया था कि तृणमूल कांग्रेस के 38 विधायक बीजेपी के संपर्क में हैं - मतलब, ये बताने की कोशिश रही कि एक अदद एकनाथ शिंदे के हाथ लगते ही बंगाल में भी बीजेपी 'खेला' कर सकती है.
पश्चिम बंगाल में प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई का आलम ये है कि पार्थ चटर्जी की करीबी महिला अर्पिता मुखर्जी के घरों से 50 करोड़ से ज्यादा कैश और बहुत सारे कीमती गहने भी बरामद किये जा चुके हैं - और अब एक अन्य टीएमसी विधायक कृष्ण कल्याणी को भी ईडी ने नोटिस भेज दिया है. कल्याणी से पहले ऐसा ही नोटिस माणिक भट्टाचार्य को भी मिला है.
ट्विटर पर पश्चिम बंगाल के गवर्नर रहे जगदीप धनखड़ का एक वीडियो शेयर करते हुए अमित मालवीय ने लिखा है - ममता बनर्जी को भी डरना चाहिये. अमित मालवीय का कहना है कि जगदीप धनखड़ के पास छोटी से छोटी जानकारी रही है.
बंगाल के पूर्व राज्यपाल के हवाले से अमित मालवीय असल में हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे ओम प्रकाश चौटाला की तरफ इशारा कर रहे हैं. ओम प्रकाश चौटाला को वैसे तो आय से अधिक संपत्ति के मामले में भी सजा हो चुकी है, लेकिन पहले से ही वो हरियाणा के शिक्षक भर्ती घोटाले में जेल की सजा काट चुके हैं.
पूर्व राज्यपाल के माध्यम से अमित मालवीय की समझाने की कोशिश है कि पश्चिम बंगाल के मुकाबले हरियाणा का मामला बहुत मामूली था, बंगाल का घोटाला कहीं ज्यादा बड़ा है. मतलब, ममता बनर्जी को भी बंगाल शिक्षक घोटाले को लेकर अलर्ट हो जाना चाहिये.
अमित मालवीय ने जो वीडियो क्लिप शेयर की है, उस इवेंट से ठीक पहले इंडिया टुडे कॉनक्लेव में ममता बनर्जी का भी सेशन था - और अपने सेशन में जगदीप धनखड़ का पूरा जोर ममता बनर्जी से हुई बातचीत पर ही रहा. जगदीप धनखड़ पूरी तैयारी के साथ आये थे. सबूतों का पुलिंदा लिये हुए.
बंगाल में फिर से 'पोरिबोर्तन'
मिथुन चक्रवर्ती का दावा और अमित मालवीय का ट्वीट अपनी जगह है, लेकिन ममता बनर्जी ने अपनी रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है - और ये रणनीति भी कोई नया प्रयोग नहीं है, बल्कि ममता बनर्जी का सबसे भरोसेमंद आजमाया हुआ नुस्खा है - 'पोरिबोर्तन'. ममता बनर्जी इसी नारे के साथ लेफ्ट मोर्चे को सत्ता से बेदखल कर पश्चिम बंगाल में अपनी सरकार बनायी थी. पिछले साल के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने भी ममता के खिलाफ यही नारा दिया था, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.
ममता बनर्जी जिस तरीके से तैयारी कर रही हैं, उसे कांग्रेस के कामराज प्लान से जोड़ कर देखा जा रहा है. 60 के दशक के शुरू में कांग्रेस नेता के. कामराज ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को सरकार में आमूल चूल परिवर्तन की सलाह दी थी, जिसमें सरकार के मंत्रियों को संगठन में काम करने के लिए भेज देने को कहा गया था.
पूरी तरह कामराज प्लान तो नहीं लेकिन बीजेपी बीजेपी को भी ऐसे छोटे मोटे प्रयोग करते देखा गया है. 2019 के आम चुनाव से पहले बीजेपी ने ऐसे कदम उठाये थे.
ममता बनर्जी के बारे में माना जा रहा है कि वो भी कामराज प्लान की तरह मौजूदा मंत्रियों को तृणमूल कांग्रेस में काम करने के लिए भेज सकती हैं.
ऐसा भी हो सकता है कि सारे मंत्री एक साथ इस्तीफा दे दें और ममता बनर्जी नये सिरे से मंत्रिमंडल का गठन करें. नये मंत्रिमंडल में कुछ पुराने चेहरों को हटा कर नये लोगों को जगह दी जा सकती है - और कुछ बिलकुल ही नये नेताओं को मंत्री बनाया जा सकता है. नये मंत्रिमंडल में लोक सभा और राज्य सभा सांसदों को भी जगह मिल सकती है.
ऐसे मंत्रियों की छुट्टी तो पक्की है जो किसी न किसी वजह से जांच एजेंसियों के निशाने पर आ चुके हैं. ऐसे दागी नेताओं को संगठन में भी जगह मिलने की कम ही संभावना है.
परेश अधिकारी, मलय घटक और अनुब्रत मंडल जैसों पर गाज तो निश्चित तौर पर गिरना है. परेश अधिकारी से तो सीबीआई भी पूछताछ कर चुके हैं.
पार्थ चटर्जी के साथ ही प्रवर्तन निदेशालय की टीम ने परेश अधिकारी के घर पर भी छापेमारी की थी. परेश अधिकारी फिलहाल शिक्षा राज्य मंत्री हैं.
मंत्रियों के साथ साथ सूबे की नौकरशाही पर भी ममता बनर्जी की खास नजर है - खासतौर से एजुकेशन सेक्रेट्री. कहा जा रहा है कि मौजूदा सचिव को हटा कर किसी अच्छी छवि वाले अफसर की नियुक्ति की जा सकती है.
संगठन को लेकर भी ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी ने ऐसे ही बदलाव का प्लान बनाया हुआ है. खबर है कि तृणमूल कांग्रेस के जिला स्तर के पदाधिकारी भी बदले जाने वाले हैं - और मंत्रिमंडल से लेकर संगठन में सभी स्तरों पर नये नेताओं को जिम्मेदारी देने की तैयारी चल रही है.
ममता बनर्जी का ये सब करने के पीछे मकसद अलग हो सकता है, लेकिन चुनावों से पहले बीजेपी ऐसे उपाय सत्ता विरोधी लहर से बचने के लिए करती है. जहां तक चुनावों की बात है, विधानसभा चुनाव में तो काफी वक्त है, लेकिन अगले आम चुनाव में दो साल ही बचें हैं - और लोक सभा चुनाव के लिए ममता बनर्जी को ऐसे बदलावों की उतनी जरूरत नहीं लगती.
फिर तो मान कर चलना चाहिये कि ममता बनर्जी ये अपनी सरकार की साफ सुथरी छवि पेश करने के लिए कर रही हैं. पार्थ चटर्जी को लेकर भी सवाल तो ममता बनर्जी पर भी उठ ही रहे हैं - आखिर उनके ही नीचे इतना बड़ा घोटाला कैसे हो गया और उनको भनक तक नहीं लगी?
ध्यान देने वाली बात ये है कि ममता बनर्जी विपक्षी नेताओं से भी दूरी बना चुकी हैं. सोनिया गांधी के लिए साझा बयान पर हस्ताक्षर न करके और शरद पवार से फोन पर बात न करके. ऐसा लगता है अरविंद केजरीवाल की तरह ममता बनर्जी भी राष्ट्रीय राजनीति में अलग मुकाम बनाने की कोशिश कर रही हैं.
हो सकता है ममता बनर्जी को लग रहा हो कि जो वक्त बचा है, उसमें अगर किसी तरह प्रधानमंत्री मोदी को चैलेंज करने के मामले में वो ताकतवर बन कर उभरती हैं तो बाकियों को उनका नेतृत्व स्वीकार करने के लिए बाध्य होना पड़ सकता है - लेकिन ऐन उसी वक्त उपराष्ट्रपति चुनाव में ममता बनर्जी की भूमिका उनके किसी सीक्रेट प्लान की तरफ भी इशारा करता है.
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