अयोध्या में राम मंदिर (Ram Temple Date) जनवरी, 2024 में बन कर तैयार हो जाएगा - ये बात केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने त्रिपुरा दौरे में बतायी. अपने लोक सभा प्रवास कार्यक्रम के तहत अमित शाह त्रिपुरा में बीजेपी की जन आशीर्वाद यात्रा को हरी झंडी दिखाने पहुंचे थे.
राम मंदिर निर्माण का काम तो चल ही रहा है, लेकिन 2024 में बन कर तैयार हो जाने की एक खास राजनीतिक अहमियत भी है. 2024 में ही लोक सभा (General Election 2024) का अगला चुनाव होना है - और विपक्षी खेमे में बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चैलेंज करने की तैयारी चल रही है.
विपक्ष अब तक बिखरा हुआ ही नजर आ रहा है, लेकिन निजी तौर पर सभी नेता तैयारियों में जोर शोर से जुटे हुए हैं - और इस काम में भारत जोड़ो यात्रा पर निकले कांग्रेस नेता राहुल गांधी विपक्षी खेमे में सबसे आगे आगे चलते नजर आ रहे हैं.
यात्राएं तो बीजेपी और विपक्ष में, दोनों तरफ हो रही हैं. बीजेपी त्रिपुरा से पहले कर्नाटक और राजस्थान में भी यात्रा शुरू कर ही चुकी है. राहुल गांधी के अलावा विपक्ष में नीतीश कुमार, बिहार में और चंद्रबाबू नायडू आंध्र प्रदेश में रोड शो कर रहे हैं.
राहुल गांधी की तरह पदयात्रा तो बिहार में प्रशांत किशोर ही कर रहे हैं, लेकिन नीतीश कुमार की यात्रा सरकारी दौरे जैसी लगती है - और अब अमित शाह का लोक सभा प्रवास भी करीब करीब वैसा ही है. फर्क बस ये है कि अमित शाह का कार्यक्रम बीजेपी तक ही सीमित है, जबकि नीतीश कुमार ने अपनी यात्रा की हदें सरकारी बैठकों के दायरे में तय कर दी है.
तो क्या अमित शाह के लोक सभा प्रवास कार्यक्रम को भारत जोड़ो यात्रा के समानांतर काउंटर करने की कोशिश के तौर पर भी देख सकते हैं. ये ठीक है कि अमित शाह पदयात्रा नहीं कर रहे हैं, लेकिन जहां जहां भी जाने का कार्यक्रम तय है, रैलियों के जरिये लोगों से अपनी बात तो कहेंगे ही - और जब कहेंगे तो जाहिर है सामयिक होने की वजह से भारत जोड़ो यात्रा का जिक्र आएगा ही.
वैसे भी अमित शाह ने त्रिपुरा के सबरूम में राहुल गांधी का नाम लेकर अपने मिशन का आगाज तो कर ही दिया है. क्या ये भारत जोड़ो यात्रा में चलती देखी जा रही भीड़ का असर है? आखिर युवराज कह कर संबोधित करने वाले अमित शाह अब राहुल गांधी का सीधे सीधे नाम क्यों ले रहे हैं?
क्या राहुल गांधी का नाम लेने में अमित शाह के निशाने पर अरविंद केजरीवाल और नीतीश कुमार जैसे नेता भी हो सकते हैं. नीतीश कुमार तो खुद ही कह चुके हैं कि वो प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं हैं, लेकिन आम आदमी पार्टी तो पहले से ही उछल उछल कर दावा कर रही है कि 2024 में मुकाबला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल के बीच ही होगा.
देखा जाये तो राम मंदिर के बहाने अमित शाह ने राहुल गांधी और प्रधानमंत्री मोदी को बराबरी में खड़ा कर दिया. मुकाबला भले ही एकतरफा हो, लेकिन अगर दो लोग आमने सामने बताये जायें तो नतीजे आने तक मुकाबला बराबरी पर समझा ही जा सकता है?
सवाल ये है कि ऐसा मुकाबला बता कर बीजेपी को क्या फायदा हो सकता है? अमित शाह के इस राजनीतिक बयान में बीजेपी की रणनीति छिपी हुई तो है, लेकिन ये बात राहुल गांधी के फायदे में भी जा सकती है.
मंदिर 2024 में चुनावी मुद्दा होगा क्या
ये जरूर है कि जल्दी ही त्रिपुरा में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं और अमित शाह ने वहां बीजेपी की जनविश्वास यात्रा भी शुरू करायी है, लेकिन अपने लोक सभा प्रवास कार्यक्रम की शुरुआत भी की है. जनवरी, 2023 में अमित शाह देश के 11 राज्यों में उन इलाकों का दौरा करने वाले हैं जो 2024 के आम चुनाव के हिसाब से बीजेपी के लिए खास मायने रखते हैं.
अमित शाह ने राम मंदिर के मुद्दे पर राहुल गांधी को तात्कालिक तौर पर कठघरे में खड़ा किया है या ये व्यवस्था 2024 के चुनाव तक लागू रहेगी?
त्रिपुरा के चुनावी मैदान में लोगों से मुखातिब अमित शाह ने सबरूम की रैली में वो तारीख बतायी जिसका भारत में बहुत सारे लोगों को इंतजार है - 1 जनवरी, 2024. मतलब, अगले आम चुनाव से कुछ महीने पहले.
और मिलते जुलते अंदाज में ही 1 जनवरी, 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक इंटरव्यू आया था. बाकी बातों के अलावा प्रधानमंत्री मोदी ने अयोध्या में मंदिर निर्माण को लेकर संघ और हिंदू संगठनों की तरफ से कानून बनाने की मांग पर अपना और अपनी सरकार का रुख साफ किया था.
तब मोदी का कहना रहा कि केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक न तो कोई अध्यादेश लाएगी, न ही अपनी तरफ से कोई कदम उठाएगी. अध्यादेश या ऐसे किसी इंतजाम की डिमांड संघ प्रमुख मोहन भागवत की तरफ से की गयी थी.
बहरहाल, अगस्त, 2019 में राम मंदिर निर्माण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी आ गया और सरकार को अलग से कोई इंतजाम करने की जरूरत नहीं पड़ी - और साल भर बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन भी किया.
अब उन्हीं बातों की याद दिलाकर अमित शाह राम मंदिर के बहाने राहुल गांधी को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं - और बीजेपी का पुराना इल्जाम गिना रहे हैं कि कैसे कांग्रेस ने मंदिर निर्माण को लेकर अदालती कार्यवाही में रुकावट डालने का काम किया.
2019 के आम चुनाव से पहले ही बीजेपी ने भी विश्व हिंदू परिषद और संघ के बाद घोषणा कर दी थी कि चुनावों में मंदिर को मुद्दा नहीं बनाया जाएगा. और ये प्रयोग सफल भी रहा. बीजेपी 2014 के मुकाबले ज्यादा सीटों के साथ सत्ता में वापसी करने में सफल रही. लेकिन आम चुनाव के बाद जब झारखंड में चुनाव हो रहे थे तो अमित शाह ने मंदिर का मुद्दा फिर से प्रोजक्ट किया, लेकिन बीजेपी चुनाव हार गयी. अमित शाह ने तब मुद्दा बनाने की कोशिश इसलिए की थी क्योंकि तभी सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया था.
त्रिपुरा में बीजेपी की रैली में अयोध्या में मंदिर के बन कर तैयार हो जाने के जिक्र के साथ ही अमित शाह कह रहे थे, 'राहुल बाबा कान खोल कर सुन लो... सबरूम वालों आप भी टिकट करा लो.'
तो क्या 2024 के लिए बीजेपी राम मंदिर को फिर से मुद्दा बनाने की तैयारी कर रही है? या फिर ये सब भारत जोड़ो यात्रा के जरिये राहुल गांधी को मिल रहे फायदे को न्यूट्रलाइज करने की कोशिश भर है?
: केंद्रीय मंत्री अमित शाह लोक सभा प्रवास कार्यक्रम के तहत जिन राज्यों की यात्रा पर निकले हैं, उनमें त्रिपुरा के अलावा राज्य हैं - मणिपुर, नगालैंड, छत्तीसगढ़, झारखंड, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक हरियाणा और पंजाब.
11 राज्यों में त्रिपुरा, मणिपुर, नगालैंड, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में इसी साल विधानसभा के लिए भी चुनाव होने हैं. लिहाजा बीजेपी के लिए विधानसभा के साथ ही आम चुनाव की भी तैयारी हो जाएगी - हालांकि, ज्यादा जोर उन 160 सीटों पर होगा जिन पर बीजेपी को खास तैयारी करनी है.
बीजेपी ने पहले देश भर में ऐसे 144 सीटों की पहचान की थी जिन पर हार का मुंह देखना पड़ा. बाद में ऐसे सीटों की संख्या बढ़ा कर 160 कर दी गयी - अमित शाह फिलहाल पिछली हार को अगली जीत के रूप में सुनिश्चित करने निकले हैं.
राहुल के जिक्र से बीजेपी का नफा-नुकसान
राजनीतिक रैलियों में किसी का नाम लेना उसे तवज्जो देने जैसा ही होता है. और किसी को नजरअंदाज करना भी राजनीतिक संदेश ही होता है - 2024 के आम चुनाव के प्रसंग में अमित शाह की जबान से राहुल गांधी का नाम सुना जाना भी ऐसा ही मामला है.
अपने हिसाब से तो अमित शाह ने राहुल गांधी का नाम लेकर लोगों को यही समझाने की कोशिश की है कि कांग्रेस नेता के झांसे में आने की जरूरत नहीं है. जो नेता भारत जोड़ो यात्रा पर निकला है, उसी की कांग्रेस पार्टी के शासन में राम मंदिर निर्माण की राह में रोड़े अटकाये जाते रहे.
और तभी अमित शाह ये भी समझा देते हैं, जैसे ही केंद्र में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने कांग्रेस की रणनीतियां नाकाम होने लगीं. और फिर सुप्रीम कोर्ट के फैसले में भी राम मंदिर निर्माण की राह में हरी झंडी दिखा दी गयी - और अब तो भव्य मंदिर बन कर तैयार होने वाला है.
राहुल गांधी का नाम लेकर अमित शाह ने लोगों को ये समझाने की भी कोशिश की है कि प्रधानमंत्री मोदी का मुकाबला उसी कांग्रेस से होने जा रहा है जिसे बीजेपी ने 2014 और 2019 में बुरी तरह हराया था, और 2024 में भी कांग्रेस का वैसा ही हाल होने वाला है.
ये समझाने के पीछे अमित शाह की एक रणनीति और भी हो सकती है कि न तो अरविंद केजरीवाल और न ही नीतीश कुमार 2024 की लड़ाई में कहीं भी खड़े हो पाने की स्थिति में हैं. यूपी चुनाव से पहले बीजेपी की ऐसी ही रणनीति देखी गयी थी. तब बीजेपी नेता जितना तेज रिस्पॉन्स प्रियंका गांधी के बयानों और एक्शन पर देते थे, लेकिन अखिलेश यादव कुछ भी कर देते तो भी नजरअंदाज कर देते थे.
ये सब राजनीति में जनता को गफलत में डालने की तरकीब होती है. जो वास्तव में चैलेंजर हो, उसे इग्नोर करो और जो मुकाबले में बहुत पीछे है उसे अहमियत दो. जब फैसले की घड़ी आएगी तो ये नुस्खा काम भी कर जाता है - लेकिन देखा तो यही गया कि यूपी में बीजेपी की लड़ाई तो समाजवादी पार्टी से ही रही, जबकि कांग्रेस के हिस्से में तो दो ही सीटें आयीं.
ऐसा लगता है अमित शाह ने राहुल गांधी का नाम लेकर अरविंद केजरीवाल को कमतर बताने की कोशिश कर रहे हों. वैसे भी गुजरात चुनाव के दौरान भी बीजेपी की बैठकों में अरविंद केजरीवल को लेकर अमित शाह की फिक्र महसूस की गयी थी. हालांकि, अपनी रणनीति को कारगर तरीके से लागू करके अमित शाह ने अरविंद केजरीवाल को बीजेपी से काफी दूर ही रोक दिया था.
लेकिन राहुल गांधी के लिए तो अमित शाह का बयान अभी फायदेमंद ही लगता है. कांग्रेस अपने समर्थकों को समझा सकती है कि अगले चुनाव में राहुल गांधी ही प्रधानमंत्री मोदी को चैलेंज करने जा रहे हैं - और ऐसा करके वो अपने कार्यकर्ताओं में बड़े आराम से जोश भी भर सकती है.
अगर अमित शाह के बयान का कांग्रेस ने थोड़ा सा भी फायदा उठा लिया तो विपक्षी खेमे पर दबाव बढ़ाना भी आसान हो जाएगा. जैसे अभी अखिलेश यादव पर दबाव बनाने में राहुल गांधी कामयाब हुए हैं, धीरे धीरे दूसरे क्षेत्रीय नेताओं को भी अपने प्रभाव में लेने की कोशिश कर सकते हैं. नीतीश कुमार पर तो पहले से ही असर होने लगा है, ये बात अलग है कि नीतीश कुमार बहुत बड़े खिलाड़ी भी हैं.
अगर अमित शाह ने राहुल गांधी का नाम ये सोच कर लिया है जैसे लोग सोशल मीडिया पर टेम्परेरी प्रोफाइल बदल लेते हैं तब तो ठीक है, लेकिन मंदिर और राहुल गांधी का आगे भी ऐसे ही जिक्र करते रहे तो कभी बैकफायर भी कर सकता है.
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