एक समय था जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो अमित शाह सबसे युवा मंत्री तो थे ही उनके पास गृह विभाग और कानून जैसे दर्जनभर महत्वपूर्ण विभाग थे. ये बात मोदी का शाह पर मजबूत भरोसा दर्शाती है. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का लोकसभा चुनाव लड़ने के फैसले के बाद से ही ये कहा जाने लगा था कि अमित शाह अगले गृहमंत्री होंगे. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तो सार्वजनिक तौर पर ये कह भी चुके थे जो कि 31 मई को सच साबित हो गया. मोदी सरकार-2 के मंत्रिमंडल का सबसे ताकतकवर चेहरा अमित शाह हैं और इसीलिए वो चर्चा में हैं. सबसे विवादित चेहरा है इसलिए वो चर्चा में है. विरोधी पार्टियों के नेता मोदी जितना ही शाह को निशाने पर लेते हैं.
मोदी के दोबारा जीतने से पहले ही ये चर्चा आम थी कि मोदी के उत्तराधिकारी अमित शाह हैं. अमित शाह मोदी के गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के पहले से उनके करीबी रहे हैं और लक्ष्य भेदने में इस शख्स का पूरे राजनीतिक फलक पर कोई सानी नहीं है. गुजरात के दिनों की बात न भी करें तो हाल के वक्त में चुनावी प्रबंधन में अमित शाह ने अपना लोहा मनवा लिया है. उत्तर प्रदेश और बिहार जहां महागठबंधन को ताकतवर माना जा रहा था, शाह के रणनीतिक और राजनीतिक कौशल ने भाजपा को आगे लाकर खड़ा कर दिया. शाह के ज्यादातर फैसले अचूक और वांछित नतीजे देने वाले होते हैं भले ही वे विवादित हों. निर्भय हो कर फैसले करने का खामियाजा भी शाह भोग चुके हैं लेकिन पुरस्कार भी उन्हें ही मिला है.
भारतीय जनता पार्टी लगातार दूसरी बार चुनाव जीत गई है और उसे आगे कहां जाना है ये तय करेंगे मोदी सरकार-2 के काम. मोदी सरकार काम पर जुट चुकी है. कुछ ऐसे मुद्दे हैं जैसे जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की...
एक समय था जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो अमित शाह सबसे युवा मंत्री तो थे ही उनके पास गृह विभाग और कानून जैसे दर्जनभर महत्वपूर्ण विभाग थे. ये बात मोदी का शाह पर मजबूत भरोसा दर्शाती है. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का लोकसभा चुनाव लड़ने के फैसले के बाद से ही ये कहा जाने लगा था कि अमित शाह अगले गृहमंत्री होंगे. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तो सार्वजनिक तौर पर ये कह भी चुके थे जो कि 31 मई को सच साबित हो गया. मोदी सरकार-2 के मंत्रिमंडल का सबसे ताकतकवर चेहरा अमित शाह हैं और इसीलिए वो चर्चा में हैं. सबसे विवादित चेहरा है इसलिए वो चर्चा में है. विरोधी पार्टियों के नेता मोदी जितना ही शाह को निशाने पर लेते हैं.
मोदी के दोबारा जीतने से पहले ही ये चर्चा आम थी कि मोदी के उत्तराधिकारी अमित शाह हैं. अमित शाह मोदी के गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के पहले से उनके करीबी रहे हैं और लक्ष्य भेदने में इस शख्स का पूरे राजनीतिक फलक पर कोई सानी नहीं है. गुजरात के दिनों की बात न भी करें तो हाल के वक्त में चुनावी प्रबंधन में अमित शाह ने अपना लोहा मनवा लिया है. उत्तर प्रदेश और बिहार जहां महागठबंधन को ताकतवर माना जा रहा था, शाह के रणनीतिक और राजनीतिक कौशल ने भाजपा को आगे लाकर खड़ा कर दिया. शाह के ज्यादातर फैसले अचूक और वांछित नतीजे देने वाले होते हैं भले ही वे विवादित हों. निर्भय हो कर फैसले करने का खामियाजा भी शाह भोग चुके हैं लेकिन पुरस्कार भी उन्हें ही मिला है.
भारतीय जनता पार्टी लगातार दूसरी बार चुनाव जीत गई है और उसे आगे कहां जाना है ये तय करेंगे मोदी सरकार-2 के काम. मोदी सरकार काम पर जुट चुकी है. कुछ ऐसे मुद्दे हैं जैसे जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की वापसी, 35A को हटाना जिन पर निर्णायक फैसले लेने की बात पहले सत्ताधारी पार्टी कह चुकी है. उन पर रुख तय करने का जिम्मा अमित शाह का होगा. इन मसलों पर हुए फैसलों का दूरगामी और गहरा असर होगा इसलिए मोदी ने अपने सबसे भरोसेमंद आदमी इसके लिए आगे किया है. NIA और CBI दोनों गृह मंत्रालय के मातहत हैं. आतंकवाद पर मोदी का रुख बहुत सख्त है और शाह का रुख उनसे भी सख्त दिखना तय है.
इस सबके अलावा मोदी के इस कार्यकाल में भारतीय इतिहास के सबसे लंबे वक्त से चले आ रहे सबसे ज्यादा संवेदनशील अयोध्या विवाद का फैसला सुप्रीम कोर्ट से आ जाएगा. फैसला कैसा भी आए दोनों पक्षों का संतुष्ट होना नामुमकिन है. वो वक्त बहुत नाजुक होगा. ऐसा नाजुक वक्त होगा जैसा पहले कभी देखा नहीं गया होगा. ऐसे वक्त के लिए मोदी को भी भरोसेमंद शख्स की जरूरत होगी जो उचित फैसले ले सके और उसे उन्होंने तैनात कर दिया है. अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर देशव्यापी हो सकता है इसलिए गृह मंत्रालय में मोदी ने अपना सबसे भरोसेमंद शख्स बैठाया है. यानी देश के अंदरूनी हालात हर हाल में दुरुस्त रखे जाएं. इसके लिए केंद्रीय सुरक्षा बलों की देश में तैनाती से लेकर आइबी समेत अन्य खुफिया सूचनाओं का किस तरह इस्तेमाल किया जाए ये फैसला भी शाह को ही करना होगा.
असम में एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस) की सूची 31 जुलाई तक प्रकाशित करने का आदेश सुप्रीम कोर्ट दे चुका है. सूची में से लाखों लोगों को बाहर करने का फैसला खलबली मचा देगा. जाहिर है इसका राजनीतिक असर भी होगा.
अमित शाह से उम्मीद लगाए बैठे लोगों को उनसे नक्सल समस्या का निर्णायक हल निकालने की उम्मीद है. चुनाव शुरू होने से ठीक पहले बस्तर के भाजपा विधायक नक्सल आतंकवाद का शिकार हो चुके हैं. सुरक्षा बलों पर हमले तो पहले से ही आम हैं. क्या अमित शाह रेड कॉरिडोर में निर्णायक कार्रवाई करेंगे? देखने वाली बात होगी.
अब तक का ट्रैक रिकॉर्ड बताता है कि मोदी-शाह के फैसले संयुक्त होते हैं. इन दोनों ने कभी धोखे से भी कोई निर्णय एक-दूसरे के मत्थे नहीं मढ़ा है. शाह ने विपक्षी दलों को चुनाव के रण में बुरी तरह परास्त किया है और अब गृह मंत्रालय में उनके आ जाने से कुछ नेताओं की नींद उड़ना लाजिमी है. वो भाजपा के नजरिये के हिसाब से फैसले लागू कराएंगे. दरअसल, मोदी-शाह ताबड़तोड़ चुनाव जीतने की मशीन बन गए हैं. इनके छोटे-बड़े फैसले भी भाजपा को कहीं न कहीं फायदा दिलाने वाले होते हैं. हालांकि सभी सत्तारुढ़ पार्टियां दोबारा सत्ता में आने के लिहाज से ही फैसले करती हैं लेकिन मोदी-शाह की सफलता रिकॉर्ड किसी से बेहतर है. जाहिर है सत्ता का पेंडुलम जब अमित शाह की ओर झुकेगा तो विरोधी दलों की मुश्किल बढ़ेगी. अमित शाह के गृह मंत्री बनने के बाद नए नजारों के लिए हमें तैयार रहना चाहिए.
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