शिवसेना संस्थापक बाला साहेब ठाकरे बीजेपी के लिए एक खास कोडवर्ड का इस्तेमाल करते थे - 'कमलाबाई. एनसीपी नेता शरद पवार ने अपनी आत्मकथा में इसका जिक्र किया है. प्रसंग तब का है जब सुप्रिया सुले 2006 में राज्य सभा का चुनाव लड़ रही थीं.
बाल ठाकरे ने शरद पवार को फोन कर शिकायत की कि सुप्रिया के चुनाव लड़ने की खबर उन्हें दूसरे से मिल रही है. इस पर शरद पवार ने समझाया कि चूंकि पहले से ही शिवसेना-बीजेपी गठबंधन सुप्रिया के खिलाफ उम्मीदवार की घोषणा कर चुका था, इसलिए परेशान करना ठीक नहीं समझा. जब ठाकरे ने बोल दिया कि वो सुप्रिया के खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा करेंगे तो शरद पवार ने बीजेपी की बाबत पूछा. बाल ठाकरे का जवाब था - 'कमलाबाई की चिंता न करो. वो वही करेगी जो मैं कहूंगा.'
चुनाव नतीजों से उद्धव ठाकरे को लग रहा होगा कि हालात कुछ कुछ बदले हैं, लेकिन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का ट्रैक रिकॉर्ड बताता है कि वो हवाई बातों में यकीन कम रखते हैं. उद्धव ठाकरे भले ही 50-50 फॉर्मूले पर जोर दे रहे हों, लेकिन सीटों के बंटवारे में ही अमित शाह ने साफ कर दिया था कि मौजूदा दौर में 'कमलाबाई' कौन है - और आज की 'कमलाबाई' वही करेगी जो शाह कहेंगे. शाह ने पहले से ही कह रखा है कि मुख्यमंत्री तो देवेंद्र फणडवीस ही बनेंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी चुनाव नतीजों के बाद फडणवीस को सत्ता में वापसी के लिए बधाई दे ही दी है.
क्या शिवसेना अपने दम पर सरकार बना सकती है?
मुश्किल राह हमेशा मुश्किल नहीं होती. आसान रास्ते अक्सर भारी पड़ते हैं - बीजेपी नेतृत्व से बेहतर इसे कौन महसूस कर रहा होगा!
महाराष्ट्र में सरकार बनाना बायें हाथ का खेल लग रहा था - और 'लॉ ऑफ अट्रैक्शन' ऐसा काम करता गया कि हरियाणा में सरकार बनवाने वाले अमित शाह के दरवाजे तक पहुंच गये. महाराष्ट्र में तो शिवसेना अभी 50-50 की जिद पर ही अड़ी हुई है.
महाराष्ट्र विधानसभा में इस बार बीजेपी ही नहीं सीटें तो शिवसेना की भी घटी हैं. 288 सदस्यों वाली विधानसभा में इस बार बीजेपी को...
शिवसेना संस्थापक बाला साहेब ठाकरे बीजेपी के लिए एक खास कोडवर्ड का इस्तेमाल करते थे - 'कमलाबाई. एनसीपी नेता शरद पवार ने अपनी आत्मकथा में इसका जिक्र किया है. प्रसंग तब का है जब सुप्रिया सुले 2006 में राज्य सभा का चुनाव लड़ रही थीं.
बाल ठाकरे ने शरद पवार को फोन कर शिकायत की कि सुप्रिया के चुनाव लड़ने की खबर उन्हें दूसरे से मिल रही है. इस पर शरद पवार ने समझाया कि चूंकि पहले से ही शिवसेना-बीजेपी गठबंधन सुप्रिया के खिलाफ उम्मीदवार की घोषणा कर चुका था, इसलिए परेशान करना ठीक नहीं समझा. जब ठाकरे ने बोल दिया कि वो सुप्रिया के खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा करेंगे तो शरद पवार ने बीजेपी की बाबत पूछा. बाल ठाकरे का जवाब था - 'कमलाबाई की चिंता न करो. वो वही करेगी जो मैं कहूंगा.'
चुनाव नतीजों से उद्धव ठाकरे को लग रहा होगा कि हालात कुछ कुछ बदले हैं, लेकिन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का ट्रैक रिकॉर्ड बताता है कि वो हवाई बातों में यकीन कम रखते हैं. उद्धव ठाकरे भले ही 50-50 फॉर्मूले पर जोर दे रहे हों, लेकिन सीटों के बंटवारे में ही अमित शाह ने साफ कर दिया था कि मौजूदा दौर में 'कमलाबाई' कौन है - और आज की 'कमलाबाई' वही करेगी जो शाह कहेंगे. शाह ने पहले से ही कह रखा है कि मुख्यमंत्री तो देवेंद्र फणडवीस ही बनेंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी चुनाव नतीजों के बाद फडणवीस को सत्ता में वापसी के लिए बधाई दे ही दी है.
क्या शिवसेना अपने दम पर सरकार बना सकती है?
मुश्किल राह हमेशा मुश्किल नहीं होती. आसान रास्ते अक्सर भारी पड़ते हैं - बीजेपी नेतृत्व से बेहतर इसे कौन महसूस कर रहा होगा!
महाराष्ट्र में सरकार बनाना बायें हाथ का खेल लग रहा था - और 'लॉ ऑफ अट्रैक्शन' ऐसा काम करता गया कि हरियाणा में सरकार बनवाने वाले अमित शाह के दरवाजे तक पहुंच गये. महाराष्ट्र में तो शिवसेना अभी 50-50 की जिद पर ही अड़ी हुई है.
महाराष्ट्र विधानसभा में इस बार बीजेपी ही नहीं सीटें तो शिवसेना की भी घटी हैं. 288 सदस्यों वाली विधानसभा में इस बार बीजेपी को 105 और शिवसेना को 56 सीटें मिली हैं. 2014 में ये आंकड़ा क्रमशः 122 और 63 रहा. 2014 में शिवसेना के साथ गठबंधन न होने के कारण बीजेपी ने एनसीपी के समर्थन से सरकार बना ली थी.
एनसीपी को इस बार शिवसेना से दो ही सीटें कम मिली हैं - 54. एनसीपी के साथ मिल कर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस के 44 विधायक चुनाव जीत कर आये हैं. एक विधायक राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का भी जीता है.
शिवसेना का मनोबल बीजेपी की सीटें कम आने से तो बढ़ा ही पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण के एक बयान ने लगता है इसमें इजाफा कर दिया. कांग्रेस नेता चव्हाण ने चुनाव नतीजे आने के बाद कहा था कि बहुत सारी रोचक संभावनाएं बन रही हैं. ऐसी संभावना को विस्तार से समझाते हुए चव्हाण ने कहा कि शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस का गठजोड़ बीजेपी के मंसूबों पर पानी फेर देगा.
सवाल है कि शिवसेना के आगे बढ़ कर सरकार बना लेने की कितनी संभावना है?
महाराष्ट्र में बीजेपी को किनारे कर शिवसेना के लिए सरकार बना लेना कोई मैथ का फॉर्मूला नहीं है. निश्चित तौर पर शिवसेना को एनसीपी और कांग्रेस का साथ मिल जाये तो वो बीजेपी के बगैर सरकार बना सकती है. फिर सवाल होगा कि शिवसेना ऐसी सरकार कब तक चला पाएगी?
सबसे पहले तो शिवसेना को सोचना होगा कि मौजूदा माहौल में वो एनसीपी और कांग्रेस के साथ कैसे फिट होगी और आगे की उसकी रणनीति क्या होगी? क्या आदित्य ठाकरे जैसा नौसिखिया नेता एनसीपी के शरद पवार और कांग्रेस के पृथ्वीराज चव्हाण जैसे घुटे हुए राजनेताओं के साथ राजनीतिक रिश्ते निभा पाएगा? वैसे आदित्य ठाकरे का उद्धव ठाकरे के पास ही कौन सा सरकार चलाने का अनुभव है. हां, ये सब संभव होता अगर शिवसेना की सीटें बीजेपी से कुछ ज्यादा होतीं या फिर बराबर होतीं?
ऐसा मौका फिर कहां मिलेगा?
उद्धव ठाकरे बेटे को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाकर अपने अधूरे ख्वाब पूरे करना चाहते हैं. सुनते हैं कि एक बार उद्धव ठाकरे की भी सीएम बनने की इच्छा रही लेकिन हालात अनुकूल नहीं बन पाये.
शिवसेना ने 50-50 फॉर्मूले को हवा देने के लिए सामना को तो हथियार बनाया ही, संजय राउत ने एक कार्टून भी ट्विटर पर शेयर कर मन की बात का इजहार किया है. संजय राउत ने जो कार्टून शेयर किया है उसमें एक बाघ गले में घड़ी वाला लॉकेट अपने गले में पहने हुए है और पंजे पर कमल का फूल सूंघ रहा है. पूरी कहानी चुनावी निशानों के जरिये कही जा रही है. बाघ शिवसेना का तो घड़ी एनसीपी का और कमल बीजेपी का चुनाव निशान है. साथ में, संजय राउत लिखते हैं - 'बुरा न मानो दिवाली है.'
चुनाव प्रचार के दौरान भी उद्धव ठाकरे बाल ठाकरे से किये गये वादे की याद दिला रहे थे कि शिवसैनिक को वो CM की कुर्सी पर जरूर बैठाने की कोशिश करेंगे. संजय राउत ने तो पहले ही ऐलान कर दिया था कि आदित्य ठाकरे ये काम कर देंगे.
ऐसा लगता है उद्धव ठाकरे शिवसैनिक को मुख्यमंत्री बनाने के बारे में वैसे ही सोच रहे हैं जैसे आम चुनाव से पहले मंदिर को लेकर बयान दे रहे थे - 'अभी नहीं तो कब?' उनका आशय केंद्र और यूपी में बीजेपी की सरकारें होने के बाद भी मंदिर नहीं बनेगा तो कब बनेगा से था.
मातोश्री से पहली बार निकला ठाकरे परिवार का कोई सदस्य वर्ली से चुनाव लड़ा और विधायक बन गया है. शिवसैनिकों में जबरदस्त उत्साह है. बीजेपी थोड़ी कमजोर भी पड़ी है और कांग्रेस-एनसीपी राजनीतिक माहौल को हवा दे रहे हैं. जाहिर है - ऐसा मौका फिर कहां मिलेगा?
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