आम चुनाव में BJP के विरोधी लगातार वादाखिलाफी के आरोप लगाते रहे. आगे से ऐसा कहने को किसी को मौका न मिले इसलिए देश के गृह मंत्री बने बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह अभी से सक्रिय हो गये हैं. चूंकि चुनाव राष्ट्रवाद के मुद्दे पर लड़ा और जीता गया और केंद्रबिंदु भी जम्मू कश्मीर ही रहा, इसलिए वादा निभाने का आगाज कहीं और से तो होगा नहीं.
24x7 चुनावी मोड में तैयार बैठे रहने वाले अमित शाह पिछले साल जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस के मौके पर जम्मू कश्मीर के दौरे पर थे - वहीं से ऑपरेशन राष्ट्रवाद का एक तरह से आगाज किया और फिर पश्चिम बंगाल से जोड़ दिया. चुनाव नतीजे सबूत हैं कि बीजेपी को कितना फायदा हुआ.
बीजेपी ने आम चुनाव में जम्मू कश्मीर को विशेष शक्ति देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 और सूबे के लोगों को विशेष अधिकार देने वाले अनुच्छेद 35 A दोनों को खत्म करने का वादा किया था - जम्मू कश्मीर को लेकर ताजा कवायद उसी चुनावी वादे को पूरा करने की दिशा में बढ़ता हुआ एक छोटा सा कदम है.
जम्मू-कश्मीर को लेकर परिसीमन विमर्श
जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती की अगुवाई वाली PDP-BJP सरकार गिराने के बाद अमित शाह जून, 2018 में जम्मू पहुंचे थे - और दीनदयाल उपाध्याय के बहाने राजनीतिक विमर्श की स्थापना को श्रीगर से कोलकाता तक जोड़ने की पूरी कोशिश की. दीनदयाल उपाध्याय के राष्ट्रवाद के सहारे बीजेपी ने देश के अन्य हिस्सों के साथ साथ जम्मू-कश्मीर से लेकर पश्चिम बंगाल तक अब तो हिस्सेदारी भी ले ली है.
ठीक साल भर बाद अमित शाह, नरेंद्र मोदी सरकार 2.0 में...
आम चुनाव में BJP के विरोधी लगातार वादाखिलाफी के आरोप लगाते रहे. आगे से ऐसा कहने को किसी को मौका न मिले इसलिए देश के गृह मंत्री बने बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह अभी से सक्रिय हो गये हैं. चूंकि चुनाव राष्ट्रवाद के मुद्दे पर लड़ा और जीता गया और केंद्रबिंदु भी जम्मू कश्मीर ही रहा, इसलिए वादा निभाने का आगाज कहीं और से तो होगा नहीं.
24x7 चुनावी मोड में तैयार बैठे रहने वाले अमित शाह पिछले साल जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस के मौके पर जम्मू कश्मीर के दौरे पर थे - वहीं से ऑपरेशन राष्ट्रवाद का एक तरह से आगाज किया और फिर पश्चिम बंगाल से जोड़ दिया. चुनाव नतीजे सबूत हैं कि बीजेपी को कितना फायदा हुआ.
बीजेपी ने आम चुनाव में जम्मू कश्मीर को विशेष शक्ति देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 और सूबे के लोगों को विशेष अधिकार देने वाले अनुच्छेद 35 A दोनों को खत्म करने का वादा किया था - जम्मू कश्मीर को लेकर ताजा कवायद उसी चुनावी वादे को पूरा करने की दिशा में बढ़ता हुआ एक छोटा सा कदम है.
जम्मू-कश्मीर को लेकर परिसीमन विमर्श
जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती की अगुवाई वाली PDP-BJP सरकार गिराने के बाद अमित शाह जून, 2018 में जम्मू पहुंचे थे - और दीनदयाल उपाध्याय के बहाने राजनीतिक विमर्श की स्थापना को श्रीगर से कोलकाता तक जोड़ने की पूरी कोशिश की. दीनदयाल उपाध्याय के राष्ट्रवाद के सहारे बीजेपी ने देश के अन्य हिस्सों के साथ साथ जम्मू-कश्मीर से लेकर पश्चिम बंगाल तक अब तो हिस्सेदारी भी ले ली है.
ठीक साल भर बाद अमित शाह, नरेंद्र मोदी सरकार 2.0 में गृह मंत्री बन चुके हैं और उसके नाते जम्मू-कश्मीर से जुड़े सभी मामले अब राजनाथ सिंह से उनके पास पहुंच चुके हैं. गृह मंत्रालय की मैराथन मीटिंग, कई केंद्रीय मंत्रियों के साथ साथ अमित शाह की जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सतपाल मलिक से बातचीत के बाद परिसीमन की बात सामने आयी है - माना जा रहा है कि अब एक परिसीमन आयोग का गठन भी हो सकता है.
जम्मू-कश्मीर में 1995 में अंतिम दफा परिसीमन हुआ था जब तत्कालीन गवर्नर जगमोहन के आदेश पर 87 सीटों का गठन हुआ.
जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कुल 111 सीटें हैं और उनमें से 24 सीटें पाक अधिकृत कश्मीर के लिए खाली रखी गयी हैं - बाकी 87 सीटों पर ही चुनाव होते हैं. जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 87 सीटों में 37 जम्मू में, 46 सीटें कश्मीर में और 4 सीटें लद्दाख रीजन की हैं. 87 सीटों के अलावा 2 सीटें मनोनीत सदस्यों के लिए रिजर्व होती हैं.
परिसीमन को लेकर 1995 में बने एक कमीशन के बाद जस्टिस केके गुप्ता की कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में जम्मू-कश्मीर में हर 10 साल बाद परिसीमन कराये जाने की सलाह दी थी और उसके अनुसार 2005 में परिसीमन होना चाहिये था. 2002 में तब की फारूक अब्दुल्ला की सरकार ने किसी भी तरीके के परिसीमन पर 2026 तक के लिए रोक लगा दी.
जम्मू-कश्मीर में छह महीने के गवर्नर रूल के बाद फिलहाल राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है - और चुनाव आयोग भी राज्य में विधानसभा के चुनाव कराने की सोच रहा है. अगर परिसीमन होता है तो चुनाव में कुछ और वक्त लग सकता है.
परिसीमन से क्या फर्क पड़ सकता है?
परिसीमन कहीं भी हो असर चौतरफा होता है. जम्मू-कश्मीर में भी होगा. नये परिसीमन से घाटी के साथ साथ जम्मू क्षेत्र की सीटों में भी कुछ बदलाव आएगा ही, मान कर चलना होगा.
जम्मू क्षेत्र के लोगों की अरसे से शिकायत रही है कि राज्य विधानसभा में उनकी मौजूदगी कम दिखती है. ऐसी ही शिकायत कश्मीर घाटी से भी है - वहां गुर्जर, बक्करवाल और गद्दी समुदाय के लोगों को SC/ST की श्रेणी में डाला तो गया था लेकिन विधानसभा में उनका कोई प्रतिनिधित्व नहीं पहुंच सका.
दूसरे पक्ष की दलील है कि कश्मीर घाटी में SC/ST की जगह गुर्जर, बक्करवाल और गड़ेरिये हैं जिनकी 11 फीसदी आबादी को 1991 में अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया था - कहानी वही है, विधानसभा में उनकी भी आवाज उठाने वाला कोई नहीं है.
मीडिया रिपोर्ट से मालूम होता है कि नये सिरे से परिसीमन लागू होने की स्थिति में कश्मीर क्षेत्र में SC/ST के लिए कुछ विधानसभा सीटें रिजर्व की जा सकती हैं.
नये सिरे से परिसीमन के पक्ष में दलील है कि ऐसा हुआ तो सूबे में राजनीतिक असंतुलन खत्म होगा. कश्मीर में एक विधानसभा 346 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर है, जबकि जम्मू में ये 710 वर्ग किलोमीटर पर. परिसीमन होने पर ये असंतुलन समाप्त हो सकता है.
चुनावी वादा और बीजेपी का फायदा
लोक सभा चुनाव 2019 में भारतीय जनता पार्टी ने जम्मू कश्मीर को स्पेशल पावर देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 और सूबे के लोगों को खास हक देने वाले अनुच्छेद 35 A दोनों को खत्म करने का वादा किया था. अब जबकि सरकार ने कामकाज शुरू कर दिया है तो सबसे पहले चुनावी वादे पूरे करने की कोशिश चल पड़ी है.
21 नवंबर 2018 को जम्मू-कश्मीर विधानसभा भंग कर दी गयी थी. उससे पहले राज्य की 87 सीटों में से पीडीपी के पास 28, बीजेपी के पास 25, नेशनल कांफ्रेंस के पास 15 और कांग्रेस के पास 12 रहीं - अन्य के पास बची हुई 7 सीटें थीं.
जम्मू रीजन में पहले से ही बीजेपी का प्रभाव रहा है, जबकि कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस, कांग्रेस और पीडीपी का जनाधार है. इस बार तो जम्मू-कश्मीर की 6 सीटों में से आधी आधी बीजेपी और नेशनल कांफ्रेंस ने बांट ली है.
अगर क्षेत्रफल और वोटर की संख्या के आधार पर परिसीमन हुआ तो विधानसभा की 15 सीटें तक बढ़ सकती हैं. अगर वास्तव में ऐसा हुआ तो जाहिर है सीटें बढ़ने के साथ साथ उसका राजनीतिक समीकरणों पर भी प्रभाव पड़ेगा.
परिसीमन की स्थिति में ऐसा लगता है कि ज्यादातर बढ़ी हुई सीटें जम्मू क्षेत्र से हो सकती हैं - पहले से ही प्रभाव होने के चलते जाहिर है बीजेपी फायदे में रहेगी. विधानसभा में दबदबा बढ़ेगा तो बीजेपी अकेले दम पर न सही, किसी दूसरे दल के सपोर्ट से खुद की सरकार बनाने में सफल हो सकती है. परिसीमन का काम चुनाव आयोग का है इसलिए राष्ट्रपति शासन हो या लोकतांत्रिक सरकार फर्क नहीं पड़ता - हां, धारा 370 और आर्टिकल 35 A हटाने के लिए विधानसभा से प्रस्ताव पारित होकर केंद्र के पास पहुंचना चाहिये - अमित शाह का 'मिशन कश्मीर' यही है और वो जोर शोर से लगे हुए हैं.
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