अमित शाह ने बीजेपी के 'संपर्क फॉर समर्थन' अभियान के तहत सारे साथियों का दरवाजा खटखटा दिया था. टीडीपी नेता एन. चंद्रबाबू नायडू के एनडीए छोड़ देने के बाद लगने लगा था कि गठबंधन चुनाव से पहले ही बिखर जाएगा. बीजेपी अध्यक्ष ने बड़ा दिल दिखाया और खुद नुकसान सहते हुए सहयोगी दलों की मांग पूरी करने की पूरी कोशिश की.
तब अमित शाह बारी बारी सभी के दरवाजे पहुंचे थे - उद्धव ठाकरे, प्रकाश सिंह बादल, नीतीश कुमार. जब अमित शाह की नामांकन की बारी आयी तो एनडीए के बड़े नेताओं ने मौके पर पहुंच कर एहसान का बदला भी चुकाया और बतौर हौसलाअफजाई तारीफ में कसीदे भी पढ़े.
सारी चीजें तो बीजेपी के अच्छे दिनों से मेल खा रही थीं, बस खटकने वाली बात एक ही रही - मंच पर, रोड शो में या नामांकन दाखिल करते वक्त एनडीए के प्रमुख सहयोगी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की गैरमौजूदगी.
नीतीश कुमार की गैरमौजूदगी क्या कहती है?
अपने नामांकन से एक दिन पहले 29 मार्च को अमित शाह बीजेपी उम्मीदवार का चुनाव प्रचार करने बिहार के औरंगाबाद में थे. शाह के भाषण की स्टाइल तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसी रही, लेकिन केंद्र में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही रहे.
लोगों से मुखातिब अमित शाह पूछ रहे थे - 'आज नीतीश बाबू के 10 साल के अंदर हर घर के अंदर बिजली पहुंचा दी है या नहीं?'
फिर शाह ने सीधा सवाल पूछा, 'बिजली पहुंची है या नहीं?'
लोगों ने मनमुताबिक ही जवाब दिया - 'पहुंची है'.
2015 के विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी ने राज्य में बिजली को मुद्दा बनाया और निशाने पर थे - तब के महागठबंधन के नेता नीतीश कुमार. चार साल बाद राजनीति ने ऐसे करवट बदली कि नीतीश कुमार के 10 साल के शासन का अमित शाह देने लगे. अब उनके निशाने पर लालू प्रसाद का शासन है जिसमें, अमित शाह के अनुसार, अंधेरा छाया हुआ था.
बिहार में एनडीए की सीटों का बंटवारा ही नहीं, हर सीट के लिए उम्मीदवारों की भी घोषणा हो चुकी है. सब कुछ दुरूस्त है ये बताने के लिए उम्मीदवारों की घोषणा...
अमित शाह ने बीजेपी के 'संपर्क फॉर समर्थन' अभियान के तहत सारे साथियों का दरवाजा खटखटा दिया था. टीडीपी नेता एन. चंद्रबाबू नायडू के एनडीए छोड़ देने के बाद लगने लगा था कि गठबंधन चुनाव से पहले ही बिखर जाएगा. बीजेपी अध्यक्ष ने बड़ा दिल दिखाया और खुद नुकसान सहते हुए सहयोगी दलों की मांग पूरी करने की पूरी कोशिश की.
तब अमित शाह बारी बारी सभी के दरवाजे पहुंचे थे - उद्धव ठाकरे, प्रकाश सिंह बादल, नीतीश कुमार. जब अमित शाह की नामांकन की बारी आयी तो एनडीए के बड़े नेताओं ने मौके पर पहुंच कर एहसान का बदला भी चुकाया और बतौर हौसलाअफजाई तारीफ में कसीदे भी पढ़े.
सारी चीजें तो बीजेपी के अच्छे दिनों से मेल खा रही थीं, बस खटकने वाली बात एक ही रही - मंच पर, रोड शो में या नामांकन दाखिल करते वक्त एनडीए के प्रमुख सहयोगी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की गैरमौजूदगी.
नीतीश कुमार की गैरमौजूदगी क्या कहती है?
अपने नामांकन से एक दिन पहले 29 मार्च को अमित शाह बीजेपी उम्मीदवार का चुनाव प्रचार करने बिहार के औरंगाबाद में थे. शाह के भाषण की स्टाइल तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसी रही, लेकिन केंद्र में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही रहे.
लोगों से मुखातिब अमित शाह पूछ रहे थे - 'आज नीतीश बाबू के 10 साल के अंदर हर घर के अंदर बिजली पहुंचा दी है या नहीं?'
फिर शाह ने सीधा सवाल पूछा, 'बिजली पहुंची है या नहीं?'
लोगों ने मनमुताबिक ही जवाब दिया - 'पहुंची है'.
2015 के विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी ने राज्य में बिजली को मुद्दा बनाया और निशाने पर थे - तब के महागठबंधन के नेता नीतीश कुमार. चार साल बाद राजनीति ने ऐसे करवट बदली कि नीतीश कुमार के 10 साल के शासन का अमित शाह देने लगे. अब उनके निशाने पर लालू प्रसाद का शासन है जिसमें, अमित शाह के अनुसार, अंधेरा छाया हुआ था.
बिहार में एनडीए की सीटों का बंटवारा ही नहीं, हर सीट के लिए उम्मीदवारों की भी घोषणा हो चुकी है. सब कुछ दुरूस्त है ये बताने के लिए उम्मीदवारों की घोषणा भी साझा प्रेस कांफ्रेंस में की गयी. नामांकन से 24 घंटे पहले तक अमित शाह भी नीतीश के पूरे कार्यकाल की तारीफ कर रहे थे, जिसमें लालू के साथ वाला समय भी शामिल है - फिर क्या बात रही कि नीतीश कुमार न अहमदाबाद पहुंचे, न गांधीनगर.
मई 2017 में सोनिया गांधी ने दिल्ली में विपक्षी दलों के नेताओं के लिए दावत रखी थी. सारे नेता पहुंचे लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा रही नीतीश कुमार के नहीं पहुंचने की. मालूम हुआ अगले ही दिन नीतीश कुमार प्रधानमंत्री के साथ डिनर कर रहे थे - और कुछ दिन बाद महागठबंधन छोड़ कर एनडीए का हिस्सा बन चुके थे.
नीतीश कुमार के उलट शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे की मौजूदगी चौंकाने वाली रही. खुद उद्धव ठाकरे ने कहा भी, 'बहुत लोगों को आश्चर्य हुआ कि मैं आज यहां क्यों आया. कुछ लोग खुश थे कि शिवसेना और बीजेपी में मनमुटाव है, लेकिन मैं उन लोगों से कहना चाहूंगा कि हमारे बीच मनमुटाव खत्म हो गया है. अमित शाह से मेरा दिल मिल गया है. आज हमारी सोच एक है, विचार एक है, नेता एक है. विपक्ष पर निशाना साधते हुए उद्धव ने कहा कि उनका दिल मिले या न मिले, हाथ जरूर मिलना चाहिए.'
उद्धव ठाकरे का एक और बात पर भी जोर रहा 'हमने कभी पीछे से वार नहीं किया और न ही कभी करेंगे.' उद्धव ठाकरे उन चार लोगों में शुमार थे जो नामांकन के वक्त चुनाव अधिकारी के कार्यालय में मौजूद थे. राजनाथ सिंह के अलावा केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली भी इस अवसर पर उपस्थित थे.
अमित शाह की ही तरह नीतीश कुमार भी मौजूदा राजनीति के चाणक्य कहे जाते हैं. नीतीश कुमार का चुप रहना और बोलना, बोलना भी तो शब्द सोच समझ कर बोलना - हर चीज राजनीति के हिसाब से तय रहती है. नीतीश कुमार की मौजूदगी और गैरमौजूदगी में भी कोई न कोई सियासी मैसेज छुपा होता है. हैरानी की वजह भी यही है.
चौकीदार प्योर भी है - और श्योर भी
बिहार से एनडीए के पार्टनर राम विलास पासवान जरूर अमित शाह के नामांकन में शामिल हुए. एनडीए की एकजुटता को लेकर पासवान ने कहा, '2014 के चुनाव में एनडीए और भाजपा को जितनी सीटें मिली थीं, उससे ज्यादा सीटें 2019 के चुनाव में मिलने वाली हैं. मैं हमेशा से कहता रहा हूं कि 2019 में प्रधानमंत्री पद की कोई वैकेंसी नहीं है - सारे लोग 2024 की तैयारी कीजिए.'
बीजेपी के सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी कि विरासत संभालने जा रहे अमित शाह के समर्थन में बीजेपी के दो-दो पूर्व अध्यक्ष मौके पर डटे हुए थे - नितिन गडकरी और राजनाथ सिंह. राजनाथ सिंह ने इस मौके पर चौकीदार के नाम पर कांग्रेस के हमले का अपने तरीके से पलटवार किया.
राजनाथ सिंह ने कहा, 'विपक्ष आरोप लगा है कि चौकीदार चोर है. मैं कहना चाहता हूं कि चौकीदार चोर नहीं, प्योर है. उसका दोबारा प्रधानमंत्री बनना श्योर है.'
मोदी सरकार आयी तो मंत्री बनेंगे शाह!
जब लालकृष्ण आडवाणी पहली बार गांधी नगर से चुनाव लड़े थे तो अमित शाह ही उनके चुनाव प्रभारी रहे. नामांकन और रोड शो से पहले चुनावी सभा में अमित शाह ने पुराने दिनो को याद करते हुए कहा भी, 'मुझे आज 1982 के दिन याद आ रहे हैं. जब मैं यहां के एक छोटे से बूथ का बूथ अध्यक्ष था. गांधीनगर से लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी जी सांसद रहे. मेरा सौभाग्य है कि भाजपा मुझे यहीं से सांसद बनाने जा रही है.' 1996 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी गांधीनगर सीट से चुनाव जीता था, हालांकि, बाद में इस्तीफा दे दिया था.
गांधीनगर सीट पर अब तक हुए 14 लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने 9 बार, कांग्रेस 4 बार और भारतीय लोक दल को एक बार जीत हासिल हुई है. 2014 में बीजेपी ने गुजरात की सभी 26 लोक सभा सीटें जीती थीं.
अमित शाह ने इतिहास दोहराने की अपील की है. अमित शाह ने कहा कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनेंगे ये तो तय है, लेकिन बीजेपी को इस बार भी सभी सीटें मिलें गुजरात के लोग सुनिश्चित जरूर करें. लगता है अमित शाह को 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की बुरी स्थिति डरा रही है. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रभाव के चलते बीजेपी सौ का आंकड़ा पार करने से चूक गयी थी.
अमित शाह ने भाषण की शुरुआत भारत माता की जय के नारे के साथ की. जब लोगों की आवाज कुछ धीमी लगी तो शाह ने कहा कि आवाज इतनी तेज करो कि नॉर्थ ईस्ट में मौजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक पहुंच सके. अरुणाचल प्रदेश में चुनावी रैली में मोदी ने कहा कि वो भलाई के लिए काम करते हैं जबकि उनके विरोधी मलाई के लिए काम करते हैं. मोदी ने भी चौकीदार का मुद्दा उठाया. मोदी ने राहुल गांधी का नाम तो नहीं लिया लेकिन निशाने पर वही थे - जो बेल पर हैं वो चौकीदार को गाली दे रहे हैं.
अमित शाह को सपोर्ट करनेवालों में एनडीए के बुजुर्ग नेता प्रकाश सिंह बादल भी पहुंचे हुए थे. अमित शाह ने सरदार पटेल की मूर्ति को माला पहनाने के बाद बादल के पैर छूकर आशीर्वाद भी लिये.
बादल ने अमित शाह को लेकर जो सबसे बड़ी बात कही वो रही - अमित शाह मोदी सरकार में मंत्री बनेंगे. बादल ने एक तरीके से उन चर्चाओं पर मुहर लगा दी जिसमें कहा जा रहा है कि मोदी सरकार के दोबारा सत्ता में आने पर राजनाथ सिंह और अमित शाह के रोल की अदला-बदली संभावित है.
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